छाया: स्व सम्प्रेषित
• सारिका ठाकुर
मीडिया की दुनिया में वह बदलाव का दौर था जब पत्रकार और पत्रकारिता - दोनों ही पारम्परिक प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ओर जा रहे थे। उस चुनौतीपूर्ण समय में कुछ लोग केवल अपनी योग्यता के दम पर नए माध्यम में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे। प्रदेश की वरिष्ठ पत्रकार शिफाली भी उन्हीं ‘कुछ’ लोगों में से एक हैं। उनकी कहानी छलांग लगाते हुए करियर की बुलंदी को छूने की नहीं बल्कि इंच-इंच आगे बढ़ते हुए पथरीली ज़मीन पर रास्ता बनाने की है। 9 जून को भोपाल में जन्मी शिफाली के पिता श्री महादेव प्रसाद शर्मा गृह मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी थे। उनकी मां सुश्री रामश्री शर्मा गृहणी हैं। पांच भाई बहनों में सबसे छोटी शिफाली की प्रारंभिक शिक्षा सरदार पटेल माध्यमिक शिक्षा विद्यालय, तात्या टोपे नगर से हुई ।
शिफाली के माता-पिता मूल रूप से उस ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र से हैं जहाँ लड़कियों का जन्म से ही तिरस्कार किया जाता है। अपने बच्चों को इस दकियानूसी माहौल से दूर रखने की सोच के साथ शर्मा जी परिवार को साथ लेकर भोपाल आ गए। उस समय नया भोपाल बसना शुरू ही हुआ था। शिफाली के पिता उस सरकारी अमले में शामिल थे जो अपने घर से पहले इस शहर को एक राजधानी की शक्ल दे रहे थे। शिफाली का बचपन यूं तो खुशहाल था लेकिन नाते-रिश्तेदार जब तब उन्हें ‘लड़की होना’ ज़रूर याद दिला दिया करते थे। वह याद दिलाना कुछ नियमों के तौर पर होता जिसका उस समय के घरों में मजबूती से पालन होता था। जैसे लड़कियों को जोर से नहीं हंसना चाहिए, दौड़कर नहीं चलना चाहिए, ज्यादा पढ़ लेगी तो शादी नहीं हो पाएगी आदि-आदि। लड़कियों की पढ़ाई को ज़रुरी नहीं समझा जाता था लेकिन शिफाली के माता पिता ने अपने बच्चों में भेदभाव न करते हुए सभी को पढ़ाया और आगे बढ़ने का भरपूर अवसर दिया।
1992 में सरोजिनी नायडू हायर सेकेंडरी स्कूल, शिवाजी नगर से हायर सेकेंडरी करने के बाद शिफाली ने मोती लाल नेहरू विज्ञान महाविद्यालय से बीएससी किया। पिताजी चाहते थे कि वे डॉक्टर बनें इसलिए दो बार उन्होंने पीएमटी की परीक्षा भी दी जिसमें असफल रहीं। स्कूल में शिफाली भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता में खूब हिस्सा लिया करती थीं। दसवीं कक्षा में सैफिया स्कूल में काज़ी वज्दी उल हुसैनी ‘अंतर्विद्यालय प्रतियोगिता’ जीतने के बाद पहली बार अख़बार में उनका नाम छपा था। शिफाली खुद नहीं जानती थी कि ये उनकी पत्रकारिता की नींव का हिस्सा है। इस तरह की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का सिलसिला बाद में कॉलेज में भी जारी रहा। शिफाली के सबसे बड़े बहनोई पं रामगोपाल शर्मा वरिष्ठ पत्रकार थे। उनकी वजह से घर में लेखकों और वरिष्ठ पत्रकारों का आना जाना लगा रहता था। 1990 में जब शिफाली 9वीं-10वीं में पढ़ती थीं, वे रामगोपाल जी के साथ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के एक कार्यक्रम में तुमकुर, कर्णाटक गईं। वहाँ उन्होंने ‘द हिन्दू’ की की वरिष्ठ महिला पत्रकार को देखा और उनके आत्मविश्वास और प्रस्तुति को देखती ही रह गईं। वहां उन्होंने रामगोपाल जी की लिखी एक कविता भी पढ़ी जिस पर खूब तालियां बजीं, साथ ही एक नए रास्ते की ओर इशारा करने वाली रोशनी की झलक भी मिली।
ग्रेजुएट होने के बाद 97 में वे दैनिक ‘स्वदेश’ से प्रशिक्षु के तौर पर जुड़ गईं, तब वे हिन्दी में एम.ए. भी कर रही थीं। शिफाली कहती हैं, “उस समय पत्रकारिता में चकाचौंध नहीं थी लेकिन हर ऐरा-गैरा यह काम कर भी नहीं सकता था, काबिलियत बहुत मायने रखती थी। ये वो दौर था जब प्रशिक्षु पत्रकार 'संपादक के नाम पत्र' लिखने से शुरुआत करते और खबर के हर पहलू , हर हिस्से कड़ी मेहनत करते थे।” स्वदेश अखबार में शिफाली के काम सीखने की शुरुआत भी ‘संपादक के नाम पत्र’ से फिर प्रांतीय डेस्क और उसके बाद फीचर वाले पन्ने से हुई। यहाँ छः सात महीने काम करने के बाद वे दैनिक जागरण से जुडीं, हालांकि उन्हें यहाँ फिर शून्य से काम शुरू करना पड़ा। उनके बैठने की व्यवस्था संपादक के कमरे में ही थी। शिफाली बताती हैं, “संपादक के कक्ष में कई लोग आते थे और वो बिना एक शब्द कहे मुझे असहज महसूस करवा देते थे, हालाँकि दफ्तर के माहौल में किसी तरह की कमी नहीं थी। यह शायद इसलिए था क्योंकि अख़बार की नौकरी तब बहुत कठिन मानी जाती थी और गिनी चुनी लड़कियां ही आती थीं।” विज्ञान पृष्ठभूमि से होने के कारण शिफाली के काम में भाषायी अशुद्धियाँ बहुत ज्यादा होती थीं। वे कहती हैं, “ मैंने हिन्दी विषय को लेकर एमए की पूरी पढ़ाई ‘छोटे उ’ के सहारे ही की है।” कुछ समय बाद जागरण की नौकरी छोड़ शिफाली ने टीचर बनना तय किया, कुछ समय नौकरी भी की लेकिन बात नहीं बनी। लगभग एक साल बाद वे लिखित परीक्षा देकर ‘सांध्य प्रकाश’ में आ गईं। यह वह समय था जब बिना लिखित परीक्षा के अखबारों में नियुक्ति नहीं होती थी। नई जगह में शिफाली को कई सामाजिक मुद्दों पर काम करने का मौक़ा मिला। सांध्य प्रकाश उस समय का प्रमुख सांध्य दैनिक था और सरोकारी पत्रकारिता के लिए जाना जाता था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से शिफाली का पहला परिचय 98-99 में हुआ। उस समय भोपाल और उसके आसपास सी टीवी की धूम थी। यहाँ वे एंकरिंग के साथ रिपोर्टिंग भी करती थीं। दो साल बाद ‘सांध्य प्रकाश’ ने उन्हें वापस बुला लिया। हालांकि वे सीटीवी के साथ भी जुड़ी रहीं। शिफाली के अनुसार ‘असल पत्रकारिता जिसमें ग्राउण्ड रिपोर्ट्स शामिल हैं, सीखने का मौक़ा उन्हें सांध्य प्रकाश में ही मिला। वर्ष 2002 में क्षेत्रीय समाचार चैनलों की शुरुआत हुई, सहारा न्यूज़ भी तभी शुरू हुआ था और शिफाली उसकी स्थापना करने वाली टीम में शामिल थीं। 'सहारा" में बतौर रिपोर्टर नियुक्ति होने पर उन्होंने सांध्य प्रकाश और सी टीवी दोनों को अलविदा कह दिया।
यह शिफाली के जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ क्योंकि आने वाला कल उनके लिए मौके और चुनौतियां दोनों लेकर आया था। सहारा टीवी में शुरुआत में उन्हें ‘कला संस्कृति’ जैसी बीट मिली लेकिन वे कुछ अलग करना चाहती थीं। उन्होंने प्रबंधन से बात की और उन्हें राजनीतिक बीट बतौर ‘भारतीय जनता पार्टी’ को कवर करने का मौका मिला। पत्रकारिता के क्षेत्र में राजनीतिक बीट मिलना बड़ी बात होती है लेकिन उस समय कमज़ोर विपक्ष के तौर पर मौजूद भाजपा में किसी की रूचि नहीं थी और आने वाले वक्त में राजनीतिक परिदृश्य किस तरह बदलने वाला है यह भी किसी को पता नहीं था। नवम्बर 2003 में विधानसभा चुनाव होने वाला था। सहारा टीवी ने लाइव रिपोर्टिंग शो ‘चुनाव रथ’ करने का फैसला किया और इस काम के लिए दस संवाददाताओं को चुना गया जिनमें से एक शिफाली भी थीं। भारतीय टेलीविजन जगत के इतिहास में क्षेत्रीय स्तर पर पहली बार चुनाव में ऐसी लाइव रिपोर्टिंग की शुरुआत सहारा टीवी से ही हुई।
एक महीने तक मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की यात्रा और दिन-रात सफर करते हुए चुनाव रथ के साथ 200 से ज्यादा लाइव शो, शिफाली के करियर का वह अहम् पड़ाव था। शो की शुरुआत उत्तर भोपाल की विधानसभा सीट से हुई। लेकिन दक्षिण-पश्चिम विधानसभा में हुए दूसरे ही शो में दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच पथराव हो गया। विवाद की वजह ये थी कि नेता और उनके कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा समय शो में कैमरे के सामने रहना चाहते थे। एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी दोनों पक्षों में तनातनी में तब्दील हुई और पत्थरबाजी होने लगी। इधर शिफाली को हेडफोन पर कमेंट्री जारी रखने के लगातार निर्देश मिल रहे थे। बात फैली और मीडिया ने इसे पत्रकारों पर हमला बताया। चूंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से उस समय वहां केवल सहारा की संवादाता शिफाली मौजूद थीं इसलिए उनकी क्लिपिंग हर चैनल पर दिखाई जाने लगी और देखते ही देखते शिफाली मीडिया जगत में छा गईं। शिफाली की हिम्मत और जज़्बे की सराहना हुई कि वे भीड़ से घबराई नहीं। उस समय संवाददाताओं के साथ ‘बाउंसर्स’ नहीं होते थे। इस तरह अपना लोहा मनवाने के बाद शिफाली को कई महत्वपूर्ण कवरेज पर भेजा गया भले ही उन्हें मेकअप से दिक्कत रही हो।
इस बीच घर में शादी की बात भी चलने लगी। उनके लिए माता-पिता सरकारी नौकरी करने वाले को ढूंढ रहे थे लेकिन शिफाली ने हमपेशा श्री संजय पांडे को चुना जो हर कदम पर उनका साथ देते आ रहे थे। 2006 में शिफाली और संजय एक दूजे के हो गए। उसी साल फिर चुनाव का मौसम आया और शिफाली को शिवराजसिंह चौहान के क्षेत्र में कवरेज के लिए भेजा गया। बदकिस्मती से उनकी कार दुर्घटनाघ्रस्त होकर खाई में गिर गयी और उनका हाथ टूट गया। मजबूरन अपने काम से छुट्टी लेनी पड़ी। छ:-सात महीने घर में बिताने के बाद उन्हें बेचैनी होने लगी। दरअसल किसी भी क्षेत्र में इंसान तभी तक टिक सकता है जब तक वह उसमें बना रहे। एक बार काम छोड़ते ही दस जने उसकी जगह लेने आ जाते हैं। शिफाली के लिए अब काम में बने रहना भी एक बड़ी चुनौती थी। 2007 में उन्हें एमएच वन में काम करने का मौक़ा मिला। वह एक राष्ट्रीय चैनल था और ज़िम्मेदारी भी बड़ी थी लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उस समय कई उलटे सीधे प्रयोगों के दौर से गुजर रहा था। भूत, प्रेत, काला जादू और अघोरी जैसे विषय पर कहानियां दिखाई जा रही थीं और शिफाली से भी इसी तरह के प्रोग्राम बनाने की अपेक्षा रखी गयी। पत्रकारिता के इस विद्रूप से बेचैन शिफाली फिर नौकरी छोड़ वॉइस ऑफ़ इण्डिया से जुड़ गईं। वहां उन्होंने 2009 में कंपनी बंद हो जाने तक काम किया। वॉइस ऑफ इंडिया के छोटे से कार्यकाल में शिफाली रेजिडेंट एडीटर की बड़ी जिम्मेदारी तक पहुंची। कुल जमा चार रिपोर्टर की काबिल टीम के साथ उन्होंने यहां भी पत्रकारिता के झंडे गाड़े।
5 अक्टूबर 2009 में शिफाली ने एक बेटे को जन्म दिया। इस नई और सुन्दर जिम्मेदारी को निभाने के लिए एक बार फिर काम से छुट्टी लेना ज़रुरी हो गया। एक साल के बाद वापसी हुई बंसल न्यूज़ से लेकिन छ: सात महीने से ज्यादा काम नहीं कर सकीं क्योंकि बच्चा बहुत छोटा था। काम छोड़ने के बाद एक बार फिर पढ़ना लिखना बंद सा हो गया। एक-दो जगह इंटरव्यू देने भी गईं, लेकिन ‘वे एक छोटे बच्चे की माँ हैं’ - यह सुनते ही खारिज कर दी जातीं। अस्तित्व का संकट फिर गहराने लगा मगर डूबते को तिनके का सहारा की तर्ज पर शिफाली को एलएन स्टार में मौक़ा ही नहीं मिला बल्कि अपने हिसाब से समय और काम संभालने की सुविधा भी मिली। यह बड़ी राहत की बात थी क्योंकि पूरे समय दफ्तर में न रहकर समय पर काम पूरा करने की जिम्मेदारी थी। यहाँ 2016 तक काम करने के बाद 2017 से 2022 तक न्यूज़ 18 और अब उसके बाद से शिफाली ई टीवी भारत में काम कर रही हैं। ग्लैमर नहीं, कंटेंट के बूते पर पत्रकारिता में मुकाम बनाया जा सकता है - इस जिद पर आगे बढ़ी शिफाली 2003 के बाद 2018 में फिर चुनावी रिपोर्टिंग के लिए गांव-गांव के सफ़र पर थी। 'सियासी सफ़र' नाम के उनके इस शो को टेलीविजन न्यूज़ इंडस्ट्री के प्रतिष्ठित ईएनबीए गोल्ड अवार्ड से नवाज़ा गया। न्यूज 18 में स्पेशल प्रोग्रामिंग के आइडिएशन से लेकर उसे अमल में लाने तक की सारी जवाबदारी शिफाली की थी। इस दौरान उन्होने 'चुनाव चालीसा' समेत कई प्रयोग किए।
पत्रकारिता के साथ शिफाली का लेखन भी जारी थी। बीबीसी मीडिया एक्शन के अवार्ड विनिंग शो रेडियो शो ‘खिड़की मेहंदी वाली’ के उन्होंने 36 एपीसोड लिखे जो काफी सराहे गए। इसके पहले वे नीलेश मिसरा के शो के लिए कहानियां लिख चुकी थीं। एफ़ एम रेडियो के शो ‘याद शहर’ में वे पहली आउटसोर्स राइटर थीं। इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स से जुड़ कर शिफाली ने बतौर पटकथा लेखक ‘आवाज़ों के जुगनू’ नाम से कॉफी टेबल बुक तैयार की, जिसमें भारत की आवाज़ की दुनिया से जुड़े प्रमुख हस्तियों की जिंदगी से रुबरु हुआ जा सकता है। हमेशा कुछ अलग और नया करने की शिफाली की बेचैनी उन्हें अब पत्रकारिता के साथ कविता,कहानी और व्यंग्य लेखन में ले जा रही है।
पुरस्कार/सम्मान
• 2021 में लोकसभा अध्यक्ष के हाथो उत्कृष्ट संसदीय रिपोर्टिंग का अवार्ड
• में चुनावी ग्राउण्ड रिपोर्ट के शो सियासी सफर को टेलीविजन का प्रतिष्ठित ईएनबीए अवार्ड
• 2015 में उत्कृष्ट पॉलीटिकल रिपोर्टिंग के लिए माधव राव सप्रे संग्रहालय का रामेश्वर गुरु सम्मान
• सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टिंग केलिए सत्यनारायण तिवारी स्मृति सम्मान
• 2004 में सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए प्रशांत सम्मान
संदर्भ स्रोत - शिफाली पाण्डेय से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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