मध्यप्रदेश के पंजाबी साहित्य में लेखिकाओं का योगदान

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मध्यप्रदेश के पंजाबी साहित्य में लेखिकाओं का योगदान

साहित्य विचार 

 • सुमन ओबेरॉय

मध्यप्रदेश की मुख्य भाषा हिंदी है, लेकिन यहाँ सिंधी, बांग्ला, गुजराती, मलयाली, मराठी और उर्दू भाषी बहुतायत में हैं। जहाँ बहुभाषी लोग होते हैं वहाँ एक सर्वाधिक प्रचिलित भाषा का प्रयोग होना आवश्यक है, इसलिए यहाँ हिंदी का प्रयोग अधिक है।

मध्यप्रदेश में हिंदी लेखिकाओं का अनुपात बेहतर माना जा सकता है। प्रगति और विकास के इस दौर में महिलाएं भी मुखर होती हो रही हैं। उनकी जिस व्यक्तिगत सोच को सदियों से सामाजिक दबावों ने घेराबंदी कर रखी थी, वह उन हदों को तोड़ अपनी आवाज़ बुलंद कर रही हैं। वह अपनी भावनाओं पीड़ाओं, शिकवे-शिकायतों, कुंठाओं, आकांक्षाओं को साहित्य की विभिन्न विधाओं –कविता, लेख, कहानी इत्यादि द्वारा न केवल अभियक्त कर रही हैं बल्कि इन सबसे कहीं ऊपर उठकर स्वयं को स्थापित भी कर रही हैं।

पंजाबी भाषा साहित्य में शायद वह दौर अब तक नहीं आया है। मध्यप्रदेश में पंजाबी लेखिकाओं का अनुपात बहुत कम है। जो पंजाबी लेखिकाएं हैं, उन्होंने पंजाबी भाषा में बहुत कम लिखा है। स्थिति बहुत निराशाजनक है। इस मुद्दे पर कुछ पंजाबी लेखिकाओं से बातचीत की गई। इसमें भोपाल की वरिष्ठ लेखिका कुलतार कौर कक्कड़(कहानी, गीत, कविता, लेख) अमरजीत कौर(कविता, कहानी, लेख), आशा शर्मा(कविता, कहानी, बाल साहित्य, व्यंग्य) आशा सिंह कपूर (कहानी, गीत, कविता, आलेख), मैं स्वयं सुमन ओबेरॉय(कहानी, नाटक, लघु कथा, हास्य व्यंग्य, बाल साहित्य, समीक्षक), भूपिंदर कौर (हाईकू, लघु कथा) मनोरमा चोपड़ा(ग़ज़ल गीत, बाल साहित्य), भोपाल के अलावा दमोश से डॉ. इन्द्रजीत भट्टी(कविता कहानी), काला पीपल से जसबीर गुरुदत्ता(कविता, लेख), शुजालपुर से हरभजन कौर राजपाल(कविता) आदि शामिल हैं।

इन पंजाबी साहित्यकारों से बातचीत बाद पंजाबी साहित्य में महिला लेखन को कुछ जानकारी सामने आई। जैसे -कुलतार कौर कक्कड़ की कुछ कविताएँ पंजाबी में हैं। अमरजीत कौर की कुछ कहानियां और लेख पंजाब की पत्रिकाओं ‘पेजदरिया’ स्पोर्ट्समैन और जम्मू की की पत्रिका ‘आगाज़’ में प्रकाशित हो चुके हैं। भूपिंदर कौर ने कुछ लघु कथाएँ पंजाबी लिपि में लिखी, वह पंजाब की मिनी पत्रिका में प्रकाशित हुई। कुछ लघु कथाओं का पंजाबी में अनुवाद भी हुआ है। मनोरमा चोपड़ा ने डॉ. विमल कुमार शर्मा की पुस्तक ‘पत्नी पुराण’ का पंजाबी में अनुवाद किया है। आशा शर्मा ने पांच कविताएँ अपनी हिंदी पुस्तक में शामिल की। इन्होंने ‘विश्व हिंदी मंच’ के लंदन में आयोजित कार्यक्रम में अपनी रचनाओं की पंजाबी भाषा में प्रस्तुति भी दी।

इस प्रकार मध्यप्रदेश में पंजाबी भाषा में महिला लेखन न के बराबर है। इसका मुख्य कारण पंजाबी लिपि के ज्ञान का अभाव भी हो सकता है। किसी भी भाषा में साहित्य रचने के लिए भाषा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। लेखक को भाषा व्याकरण का ज्ञान हो, उसके पास शब्दों-मुहावरों का प्रचुर भण्डार हो, वह बोलचाल की भाषा से परिचित हो, उस भाषा का साहित्य भी पढ़ा हो, तब ही वह भाषा आत्मसात कर उत्कृष्ट लेखन कर सकता है। यहाँ लिपि लेखकों के आड़े आ रही है।

इसके अलावा राष्ट्रभाषा होने होने के कारण हिंदी का फलक बहुत विस्तृत है, प्रत्येक लेखक अधिक से अधिक लेखक तक पहुंचना चाहता है, वह एक वर्ग विशेष तक सीमित नहीं रहना चाहता। अंत में पंजाबी लेखकों का कहना है कि अन्य भाषा की भाँति मध्य प्रदेश में उनके पास कोई पंजाबी मंच नहीं है। उनके मन में भाषा के प्रति बेहद प्रेम और सम्मान है, साथ ही उनके अन्दर(मेरे मन में भी) एक अपराध बोध भी है है कि हिंदी के साथ-साथ पंजाबी भाषा एवं साहित्य में कोई विशेष योगदान नहीं दे पाए। मातृभाषा में अभिव्यक्ति मन में बहुत संतुष्टि प्रदान करती है, मध्य प्रदेश की पंजाबी लेखिकाएं इससे वंचित महसूस करती हैं।


लेखिका हिन्दी जगत की सुपरिचित साहित्यकार हैं ।

© मीडियाटिक

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