दविंदर कौर : पत्रकारिता की प्राध्यापक ही नहीं, समाज चिन्तक भी

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दविंदर कौर : पत्रकारिता की प्राध्यापक ही नहीं, समाज चिन्तक भी

छाया: दविन्दर कौर उप्पल  फेसबुक अकाउंट से

• रीमा दीवान चड्ढा 

सच कहने का साहस, जीवन के प्रति असीम उत्साह ,नेकी की सीधी सरल राह ,ममतामय विशाल हृदय ,स्त्री विमर्श और जन सरोकारों से गहरा जुड़ाव – ये तमाम चीज़ें जिनके व्यक्तित्व में घुली-मिलीं थीं -उनका नाम था प्रो. दविन्दर कौर उप्पल (davinder-kaur-uppal) । एक ऐसी महिला जिनकी उपस्थिति भर से उनके आस-पास एक आभा मंडल अपने आप ही बन जाता था। सुश्री उप्पल अविभाजित मध्यप्रदेश के पत्रकारिता (journalism) जगत की प्रथम महिला प्राध्यापक (first woman professor) थीं। उनका जन्म पंजाब के लुधियाना जिले के बोपाराय कलां गांव जो कि उनका ननिहाल है, में 25 मई 1946 को हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद उनकी माताजी उन्हें लेकर वापस शहडोल जिले के छोटे से कस्बे कोतमा (Kotma) – जो अब अनूपपुर जिले में है, को वापस आ गईं। सुश्री उप्पल की आरंभिक शिक्षा वहीं हुई।

भालुओं से भरे घने जंगल वाले इस इलाके में 9 भाई बहनों के साथ दविन्दर जी पली और बड़ी हुईं। मिट्टी के दो मंज़िला घर में लालटेन की रोशनी में ही उनका बचपन गुज़रा, क्योंकि तब तक कोतमा में बिजली नहीं आई थी। दविन्दर जी की माँ श्रीमती जागीर कौर पढ़ी-लिखी महिला नहीं थीं लेकिन वे अति संवेदनशील थीं। यह गुण और दूसरों के दुख दूर करने की आदत दविन्दर जी को उनसे विरासत में मिली। जबकि पिता श्री आत्मा सिंह से – जो सुशिक्षित थे और ठेकेदारी करते थे, उन्होंने उदार होना सीखा। पिता के व्यवसाय की अनिश्चितता और बड़े परिवार के खर्चों के चलते घर में पैसों की दिक्कत अक्सर बनी रहती थी। इसके बावज़ूद माता – पिता ने सारे बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी।

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सुश्री उप्पल ने कोतमा  के सरकारी स्कूल से 11वीं तक पढाई की। उनकी बड़ी बहन इन्द्रजीत कौर कोतमा में शासकीय बालिका हाई स्कूल में शिक्षिका थीं तथा एक भाई हरमीत उप्पल कोतमा शासकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। सुश्री उप्पल  ने सागर वि.वि. (Sagar University) से बी.ए. और शासकीय महाविद्यालय, शहडोल से अर्थशास्त्र में एम.ए.किया। 1968 में प्रदेश में जब निजी कॉलेजों  की शुरुआत हुई तो दविन्दर जी को कोतमा में खुले महाराज मार्तण्ड सिंह महाविद्यालय (Maharaj Martand Singh College) में अवसर स्वत: ही मिल गया। उन्होंने यहाँ 4 साल अध्यापन किया, फिर 1973 में बिलासपुर से बी.एड. किया। इस दौरान मसीही समुदाय से ताल्लुक रखने वाली उनकी सखी -जो उनके साथ ही रहती थी, जब बीमार हुईं तो दविन्दर जी ने उसकी बहुत सेवा-सुश्रुषा की। इससे प्रभावित होलीक्राॅस होम साइंस कॉलेज, अंबिकापुर ने उन्हें अपने यहाँ अध्यापन के लिए प्रस्ताव दिया। दविन्दर जी ने वहाँ के  विद्यार्थियों को अर्थशास्त्र पढ़ाया। अंबिकापुर में उनके साथ कमरा साझा करने वालीं कला ठाकुर उन्हें आज भी नम आँखों से याद करती हैं।

अपने बड़े भाई पत्रकार हरदीप उप्पल और दूसरे बड़े भाई सुखदीप उप्पल, जो एक अच्छे लेखक थे, से प्रेरित हो 1978 में सुश्री उप्पल ने पंजाब वि.वि.,चण्डीगढ़ से पत्रकारिता की स्नातक उपाधि ली। पत्रकारिता के अध्ययन में जन संचार विषय ने उन्हें आकर्षित किया। उन्होंने उसे ही अपने लिए उपयुक्त माना और 26 सालों तक वह विषय अपने विद्यार्थियों को पढ़ाया। उन्होंने जनसंचार की बहुत सी नई अवधारणाएं गढ़ीं और विद्यार्थियों को पुस्तक ज्ञान से बाहर निकल कर प्रभावशाली संप्रेषण हेतु जन सहभागिता के लिए प्रोत्साहित किया ।

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सुश्री उप्पल ने 1980 से 1984 तक महर्षि दयानंद वि.वि., रोहतक और उसके बाद 1984 से 1991 तक डाॅ. हरिसिंह गौर वि.वि.सागर में व्याख्याता के रूप में छात्रों के जीवन को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। म.प्र. की पत्रकारिता में उल्लेखनीय पड़ाव की शुरुआत हुई भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता वि.वि. की स्थापना से। 1991 के पहले सत्र में सुश्री उप्पल जनसम्पर्क विषय की रीडर के रूप में यहाँ आईं। साथ ही साथ छात्राओं की वार्डन की भूमिका भी उन्होंने बख़ूबी निभाई। उनका स्नेहिल व्यवहार और अनुशासन विद्यार्थियों के मन में ऐसा घर कर गया कि वे उन सभी की पसंदीदा शिक्षिका बन गईं और प्रत्येक विद्यार्थी यह मानने लगा कि वही उनका चहेता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले शिक्षक दुर्लभ ही होते हैं।

सन् 1999 में सुश्री उप्पल की योग्यता को देखते हुए उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ( इसरो ), अहमदाबाद में आमंत्रित किया गया जहाँ दो साल उन्होंने विकास शिक्षा संचार इकाई ( DECU ) में सामाजिक वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। वे सामाजिक शोध और मूल्यांकन के अपने विशिष्ट कार्यों के लिए जानी जाती थीं। इस कारण अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं में उन्हें समन्वय की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। इधर 2001 में पत्रकारिता विश्वविद्यालय में छात्रों ने अपनी प्रिय शिक्षिका को वापस बुलाने के लिए हड़ताल कर दी। अंतत: वे वापस आईं और उनकी लोकप्रियता और क्षमता को देखते हुए जनसंचार का अलग विभाग बनाकर उन्हें उसकी बागडोर सौंपी गयी। उन्हें अपनी इच्छानुसार पाठ्यक्रम बनाने की भी स्वायत्तता दी गई। बतौर जनसंचार विभागाध्यक्ष उन्होंने नये प्रयोग किए, नया पाठ्यक्रम तैयार किया और नवीनतम शिक्षण पद्धति अपनाई, जो बहुत सफल साबित हुई। उन्होंने प्रायोगिक अध्ययन पर बल दिया और परीक्षा लेने के तरीकों में भी अनिवार्य बदलाव किये। अध्यापन और परीक्षा की अनूठी पद्धति के साथ वे एक नई पीढ़ी को बहुत कुशलता से गढ़तीं गईं। वे अविवाहित थीं लेकिन अपने विद्यार्थियों पर उन्होंने भरपूर ममत्व लुटाया। इस तरह वे केवल प्राध्यापक ही नहीं, सबकी अभिभावक भी थीं।

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हरदम सादे पहनावे में रहने वालीं, लेकिन ऊंची सोच रखने वाली सुश्री उप्पल जन सरोकार के न जाने कितने उपक्रमों से जुड़ीं थीं। वे समर्थन, मुस्कान, किशोर भारती और एकलव्य जैसी संस्थाओं के संचालक मंडल में शामिल रहीं। उनकी बैठकों में शामिल होने के अलावा ज़मीनी तौर पर भी उन्होंने साथ काम किया। सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता थी। वे अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच की अत्यंत सक्रिय कार्यकर्ता थीं। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के आन्दोलन, साक्षरता अभियान, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, स्त्री अधिकारों और जन विज्ञान आंदोलनों से वे जुड़ी हुई थी। इन आंदोलनों में शामिल होने के लिए वे अक्सर सागर से भोपाल आया करती थीं। पर्यावरण संरक्षण से अटूट लगाव उनकी सादा जीवन शैली का कारण था। सर्वधर्म समभाव में उनका गहरा विश्वास था। उन्मादी सांप्रदायिक धारा से वे बहुत विचलित होती थीं और उसके जरिए किए जाने वाले दुष्प्रचार का प्रतिकार करती थी। कोविड की पहली लहर के दौरान देश भर में अपने घरों की और लौट रहे श्रमिकों की उन्होंने भरसक मदद की। सोशल मीडिया से जुड़कर और बहुत से लोगों को वे मदद करवाती रहीं। उन्होंने खुद भी कोरोना पीड़ितों की आर्थिक सहायता की और जहाँ संभव हुआ, अन्य आवश्यक सामग्री भी भिजवाई ।

पंचायती राज और महिला सरपंचों के लिए लगातार काम करते हुए उन पर कुछ लघु फिल्में बनाए जाने की योजना बनी तो उन्होंने उनके लिए पटकथा भी लिखी,महत्वपूर्ण सुझाव दिए और साथ जुड़कर संवाद करने के तरीके बताए। उनके महत्वपूर्ण सहयोग से कुछ बेहतरीन फिल्में बनी और जन – जन तक पहुँची। समर्थन संस्था के प्रमुख योगेश कुमार बताते हैं कि परिकल्पना, पटकथा लेखन ,निर्देशन और प्रस्तुति – सभी में उनका योगदान रहा। इन फिल्मों में प्रमुख नाम हैं – शाला प्रबंधन समिति, ग्राम पंचायत की बैठक, ग्राम विकास नियोजन तथा ग्राम पंचायत कार्यालय प्रबंधन। उल्लेखनीय है कि फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया एंड नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ इंडिया से मैडम ने 1985 में चार हफ्तों का फिल्म एप्रीसिऐशन कोर्स भी किया था। प्रजनन स्वास्थ्य और किशोरावस्था पर उनके निर्देशन में ‘परिवर्तन की ओर’ नाम से भी एक लघु फिल्म बनी। वे कला फिल्मों की प्रशंसक थीं और उन्हें विश्व सिनेमा की भी गहरी जानकारी थी।

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देश – दुनिया की सर्वश्रेष्ठ किताबें सुश्री उप्पल ने पढ़ीं। उनका अपना एक निजी पुस्तकालय था। लगातार अध्ययन,चिंतन और मनन ने उनकी सोच और दृष्टि को बहुत व्यापक बनाया था, जिसे वे अपने विद्यार्थियों  को गढ़ने में इस्तेमाल करतीं।आसियान देशों में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में पेपर स्वीकृत होने के कारण उन्हें मनीला, कुआलालम्पुर और सिंगापुर की यात्रा का अवसर मिला। अध्यापन के लिए विभिन्न शहरों तथा भ्रमण के उद्देश्य से देश के भी कुछ प्रमुख स्थलों की उन्होंने सैर की। पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में उनके सहकर्मी रहे दीपेन्द्र बघेल बताते हैं कि माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय और शहीद भगत सिंह पुस्तकालय में अनेक पुस्तकें उन्होंने भेंट की। वे साहित्य, खास तौर से जीवनियों की पाठक थीं और सेवानिवृत्ति के बाद अपना काफ़ी समय वे अध्ययन में देती थीं। महत्वपूर्ण यह है कि एकाकी होने के बावजूद उन्होंने अपनी रुचियों, अंदरूनी ताकत, सामाजिक और पारिवारिक संबंधों से अपने जीवन को गरिमापूर्ण, बेहद शांतिपूर्ण, सार्थक और योगदानकारी बनाया। वे अपनी ओजस्विता को अपने हज़ारों विद्यार्थियों और सहकर्मियों में विस्तृत कर उनकी प्रेरणापुंज भी बनी।

प्रचार प्रसार से सर्वथा दूर मैडम ने अपने आप को सदैव समेट कर रखा ।उनके चारों ओर का ‘इको सिस्टम’ उनके व्यक्तित्व से संचालित होता था और बहुत हरा भरा रहता था। बहुत अपनत्व के बावजूद वे सदैव सबसे एक निश्चित दूरी बनाकर चलतीं थीं। अपने हित के लिए उन्होंने कभी नहीं सोचा। कभी नाम या पुरस्कार की परवाह नहीं की। निस्वार्थ भाव से सामाजिक सरोकार निभाए। वे अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव बहुत सजग रहीं। अपने भाई बहनों से उनके बहुत आत्मीय रिश्ते थे। अपनी भाभियों और बच्चों से भी उनका बहुत लगाव था। अपनी लिलियन भाभी को बहुत स्नेह से याद कर अंतिम विदा दी थी उन्होंने। उनके छोटे भाई और पत्रकार जगमीत उप्पल का मानना है कि दविन्दर जी जीवन में हमेशा पारदर्शिता की हिमायती रहीं और ” मैं ” के बजाय  ” हम ” पर ज़्यादा ज़ोर देती थीं। उनका यह अटल विश्वास था कि समाज में महिलाओं और निचले तबके का समावेश ” हम की अवधारणा ” से ही संभव होगा और उसके लिए युवाओं को निरंतर प्रेरित करना ज़रूरी होगा।

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2009 में उनके विदाई समारोह में विद्यार्थियों ने उनके लिए जो लिखा, जो कहा, जो किया – उस पर कोई भी शिक्षक घमंड कर सकता था, लेकिन सुश्री उप्पल ने उसे एक सरल मुस्कान और नम आँखों के साथ स्वीकार किया। विद्यार्थियों  ने उनकी उदारता, शिक्षण पद्धति, ममत्व भाव एवं भारतीय जीवन संदर्भों के साथ वैचारिक खुलेपन की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए अश्रुपूर्ण विदाई दी। उनके छात्र अंकुर विजयवर्गीय कहते हैं कि ” मैंने जब पहली बार कैमरे का सामना किया तो उप्पल मैडम की क्लास याद आ गई। शुक्रिया मैडम, इतना कुछ सिखाने के लिए”। गर्व की बात है कि प्रोफेसर दविंदर कौर उप्पल के सागर विश्वविद्यालय और पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा राष्ट्रीय स्तर के सभी प्रमुख टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों और हिंदी-अंग्रेज़ी भाषाओं के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों में स्थापित पत्रकार के रूप में पत्रकारिता कर रहे हैं और मैडम के आदर्शों की ज्योत जलाए हुए हैं।

सागर में सुश्री उप्पल के छात्र रहे सत्य सागर के मुताबिक उप्पल मैडम एक बहुत अच्छी शिक्षिका थीं क्योंकि वे स्वयं शिक्षार्थी थीं। वे एक अच्छी विचारक, भरोसेमंद सलाहकार और कर्मठ कार्यकर्ता भी थीं। सोने जैसे दिल वाली उप्पल मैडम हमारी यादों में जीवित रहेंगी, क्योंकि वह यांत्रिक मानव (प्रोग्राम्ड रोबोट)  जैसे लोगों से भरी दुनिया में एक सच्चे इंसान के रूप में सामने आईं। दुनिया केवल शिक्षा, पुरस्कार या धन के संचय से संबंधित उपलब्धियों का जश्न मनाती है, लेकिन उप्पल मैडम ने हमें दिखाया कि एक उदार, खुला दिमाग, दयालु और साहसी इंसान होना कितना अधिक महत्वपूर्ण है। एबीपी न्यूज़ के राज्य प्रमुख ब्रजेश राजपूत के अनुसार उप्पल मैडम ज़िन्दादिल इंसान थीं। हर वक़्त ख़ुशमिज़ाज रहना और सामने वाले को खुश रखने की कोशिश करना उनका विशिष्ट गुण था। उनकी आत्मा उनके विद्यार्थियों  में बसती थी। हमेशा उनकी मदद के लिये कुछ भी कर गुजरने वालीं। लिखने पढ़ने और फिल्में देखने को लेकर हम छात्र हमेशा उनसे कुछ न कुछ अवश्य सीखते थे। मैडम की कमी हमेशा हम सबको खलेगी। अशोक मनवानी, जो  सागर वि.वि. में सुश्री उप्पल के छात्र थे और वर्तमान में मप्र शासन में वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी हैं, कहते हैं कि पत्रकारिता की उन्हें बारीक समझ थी। वे अलग-अलग शहरों की प्रेस संस्कृति को अच्छे से जानती थीं। वे क्षेत्रीय शब्दावली के उपयोग के उदाहरण भी बताती थीं। उन्होंने देश के प्रख्यात लेखकों और इतिहासकारों और उनकी पुस्तकों का उल्लेख अनेक बार अपने व्याख्यान में किया। वे स्वयं तो अध्ययनशील रहीं ही, ऐसी ही अपेक्षा पत्रकारिता के विद्यार्थियों से भी करती थीं कि वे खूब पढ़ें और परिष्कृत होते रहें।

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दुर्भाग्य से सुश्री उप्पल कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गईं। उनके विद्यार्थियों और परिजनों ने यथाशक्ति उनके उपचार का प्रयास किया। गंभीर संक्रमण के बाद भी वे उन्हें उनकी चिंता छोड़ दूर रहने की सलाह देती रहीं। अंतत: 4 मई 2021 को वे अनंत यात्रा पर चली गईं।

नागपुर निवासी रीमा साहित्यकार और प्रकाशक हैं, वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता वि.वि. में सुश्री उप्पल की विद्यार्थी रही हैं। 

© मीडियाटिक

 

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