विदेशी विश्वविद्यालय की कुलाधिपति बनने वाली देश की पहली महिला डॉ. रेणु खटोड़

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विदेशी विश्वविद्यालय की कुलाधिपति बनने वाली देश की पहली महिला डॉ. रेणु खटोड़

छाया :रोटरी हाउसटन डॉट ओआरजी

अपने क्षेत्र की पहली महिला 

ग्वालियर के नया बाजार स्थित गणेश कॉलोनी में रहने वाले खटोड़ परिवार की बड़ी बहू डॉ. रेणु खटोड़ को वर्ष 2014 में डलास के फेडरल रिजर्व बैंक के निदेशक बोर्ड का प्रमुख नामित किया गया। इससे पहले वे भारतीय प्रधानमंत्री की वैश्विक सलाहकार परिषद, अमेरिकी शिक्षा परिषद, ग्रेटर ह्यूस्टन पार्टनरशिप, ह्यूस्टन प्रौद्योगिकी केंद्र, मेथोडिस्ट शोध संस्थान के बोर्ड, बिजनेस-उच्च शिक्षा मंच तथा विदेश संबंध परिषद का हिस्सा रही हैं।इसी साल रेणु को विभिन्न संगठनों की ओर से उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया। इनमें  भारतीय राष्ट्रपति की ओर से प्रवासी भारतीय पुरस्कार, नापसा (एनएपीएसए) प्रेसीडेंट्स अवार्ड तथा भारतीय गौरव पुरस्कार शामिल हैं।

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वर्ष 2008 में जब ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में कुलाधिपति का पद खाली हुआ तो रेणु ने भी आवेदन किया। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी की रैंकिंग बढ़ाने की योजना बताई ,जो निर्णायक मंडल को इतनी पसंद आई की उन्होंने रेणु को तत्काल यूनिवर्सिटी की चांसलर और प्रेसिडेंट बना कर बताए गए प्लान को अमल में लाकर यूनिवर्सिटी की रैंकिंग बढ़ाने की चुनौती दे दी। वे इस विश्वविद्यालय की आठवीं कुलाधिपति और 13 वीं अध्यक्ष बनीं। वे पहली भारतीय महिला रहीं जिन्हें किसी विदेशी विश्वविद्यालय में यह सम्मान मिला। ह्यूस्टन के अधीन चार विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक प्रमुख का कार्यभार रेणु ने संभाला। अमरीका के तीसरे सबसे बड़े और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक ह्यूस्टन में तकरीबन 3 हजार फैकल्टी और 56 हजार से अधिक छात्र हैं। इतने बड़े विश्वविद्यालय के कुलपति की ज़िम्मेदारी उठाना अपने आप में एक बड़ी बात थी। रेणु जब यहाँ प्रोवोस्ट के पद पर थीं, तब उनके प्रयासों से इस विश्वविद्यालय को डॉ. किरण पटेल और उनकी पत्नी पल्लवी ने 18.5 मिलियन डॉलर का दान प्राप्त हुआ था।

फ़र्रुखाबाद से फ्लोरिडा तक और कानपुर से ह्यूस्टन तक की उनकी यात्रा यहाँ के अमरीकी मीडिया में सुर्खियों में रही। गौरतलब है कि कई वर्षों से यूनिवर्सिटी ऑफ मिसीसिपी, टेंपल यूनवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ नेवेडा से उन्हें सर्वोच्च पद दिए जाने का प्रस्ताव लगातार मिल रहा था। उत्तर प्रदेश के फ़र्रुखाबाद में 29 जून, 1955 को  एक वकील पिता के यहाँ जन्मी रेणु जब महज 18 साल की थीं तो उनके पिता ने उनसे कहा कि 10 दिन में उनकी शादी होने वाली है। यह सुनकर रेणु के पैरों तले धरती खिसक गई। उन्होंने घर वालों के ख़िलाफ़ मौन विद्रोह सा कर दिया और अपने आपको एक कमरे में कैद कर लिया। रेणु को लगा कि पढ़ाई करने का उनका सपना शादी कर लेने से चूर चूर हो जाएगा। बहरहाल, कानपुर विश्वविद्यालय से बीए करने के बाद उनकी शादी हो गई और वर्ष 1974 में वे अमरीका आ गई। तब उनके पति सुरेश खटोड़ परड्यू विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। सुरेश ने उनकी आगे पढ़ने की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें एक स्थानीय कॉलेज में दाखिला दिलाया। लेकिन अंग्रेजी बोलने -समझने में उन्हें कठिनाई होती थी । कॉलेज में प्रवेश के दौरान डीन के साथ जब उनका इंटरव्यू हो रहा था, तब उनके पति दोनों के लिए अनुवादक की भूमिका निभा रहे थे। अंग्रेज़ी सीखने के लिए रेणु प्रतिदिन टीवी टॉक शो पर लोगों की बातें सुनतीं  और उसी तरह बोलने का अभ्यास करतीें। धीरे-धीरे वे अंग्रेज़ी बोलना सीख गईं।

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रेणु ने वहाँ रहकर राजनीति विज्ञान में  मास्टर की डिग्री हासिल की। इसके बाद दोनों पति-पत्नी वापस भारत लौट आए। 1983 में  सुरेश को दक्षिणी फ्लोरिडा विश्वविद्यालय से पढ़ाने का प्रस्ताव मिला और वे दोनों फ्लोरिडा चले आए। रेणु का चयन भी विश्वविद्यालय में अस्थायी तौर पर हो गया। दो दशकों में वह अपनी प्रतिभा और लगन से विश्वविद्यालय  की टॉप फैकल्टी में पहुँच गईं। उनकी इस कामयाबी ने ह्यूस्टन विश्वविद्यालय का ध्यान अपनी ओर खींचा।  उनकी सफलता ने इस कहावत को भी बदल दिया है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, उनके पति सुरेश खटोड़ ने जिस तरह से पग-पग पर रेणुजी का उत्साह बढ़ाया और आगे बढ़ने में मदद की उससे यह कह जा सकता है कि किसी सफल औरत के पीछे भी एक आदमी का हाथ होता है।

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ह्यूस्टन क्रॉनिकल ने लिखा कि 13वें विश्वविद्यालय अध्यक्षीय समारोह में रेणु बिना नोट्स के ही बोलीं और अपनी सरल, शिष्ट और संस्कारित भाषा से मौजूद लोगों पर जादू सा कर दिया। समारोह में मौजूद उनके पति सुरेश ने कहा कि अब उनको अपनी पत्नी के अधीन रहकर काम करना होगा, वे उनके जूनियर हो गए हैं, लेकिन यह उनके लिए गौरव की बात है। रेणु के खाते में शैक्षणिक और सामाजिक उपलब्धियाँ तो दर्ज हैं ही अपने हिन्दी लेखन के लिए भी वे पुरस्कृत हो चुकी हैं। 1985 से लेकर 2007 तक में उन्होंने कई शोध पत्र और पुस्तकें लिखी हैं। कई विषयों पर व्याख्यान दिए हैं। रेणु खटोड़ को शिक्षा एवं अकादमिक नेतृत्व के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित अमेरिकन ऐकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में शामिल किया गया है। 65 वर्षीय डॉ.खटोड़ अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज़ (एएएएस) की 2020 की सूची में प्रतिष्ठित कलाकारों, विद्वानों, वैज्ञानिकों तथा सार्वजनिक, गैर लाभ वाले और निजी क्षेत्रों के नेताओं समेत 250 से अधिक लोगों के साथ सदस्य के रूप में जुड़ेंगी। एएएएस हर क्षेत्र के नवाचार विचारकों का प्रतिनिधि संगठन है। 250 से अधिक नोबेल पुरस्कार विजेता और पुलित्जर पुरस्कार विजेता इसके सदस्य हैं।

संपादन: मीडियाटिक डेस्क

संदर्भ स्रोत: भारत की नारी … की … भारत की शान (ब्लॉग) एवं अन्य वेबसाइट 

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