नीलिमा छापेकर: बचपन में मिली संगीत की घुट्टी,

blog-img

नीलिमा छापेकर: बचपन में मिली संगीत की घुट्टी,
अब निशुल्क दे रहीं तालीम

छाया: डॉ. नीलिमा छापेकर के फेसबुक अकाउंट से 

• सीमा चौबे 

आधी शताब्दी से संगीत के क्षेत्र में सक्रिय डॉ. नीलिमा छापेकर का बचपन संगीतमय वातावरण में बीता या यूं कहें कि बचपन से उन्हें संगीत की घुट्टी पिलाई गई। यही वजह रही छोटी उम्र में ही उनकी आवाज का जादू चलने लगा था। 30 नवंबर 1945 को इंदौर में जन्मी नीलिमा के पिता स्व. मनोहर शंकर महाशब्दे अपने समय के इंदौर के प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत और नाट्य संगीत गायक रहे हैं। वे मनोहर संगीत विद्यालय के नाम से संगीत की कक्षाएं लिया करते थे। उनकी माँ प्रभावती महाशब्दे भी बहुत अच्छी गायिका थीं। 

उनके पिताजी जलगांव शहर के निकट पिंप्राळा गाँव के रहने वाले थे। दादाजी स्व. श्री. शंकर रामचंद्र महाशब्दे दशग्रंथी ब्राह्मण थे। वे तानपूरे के साथ पुराण वाचन, कथा कीर्तन किया करते थे। दादाजी की आवाज अत्यंत मधुर थी। थोड़ी बहुत खेती थी, लेकिन विरासत के रूप में अपने पिता से मिले संगीत के संस्कारों के कारण मनोहर जी को बचपन से ही संगीत खूब पसंद था। साथ ही अभिनय में उनकी गहरी रुचि थी। जलगांव में जब भी कोई नाटक कम्पनी आती मनोहर जी नाटक देखने ज़रूर जाते थे। इन नाटक कम्पनियों के साथ जब जब प्रसिद्ध गायक - अभिनेता मास्टर कृष्णा, (किराना घराना), भास्कर रघुनाथ बखले (किराना-घराना- जिन्हें भास्करराव या भास्करबुआ या भास्करबुवा के नाम से भी जाना जाता है) शास्त्रीय गायक, संगीतकार और शिक्षक थे) आदि गायक नट आते थे, तब-तब मनोहरजी को उनका गायन सुनने का, उनसे सीखने का भरपूर अवसर मिलता था। मनोहरजी अपनी संगीत साधना में मास्टर कृष्णा एवं भास्कर बुआ जी की गायन शैली का अनुसरण करने की पूरी कोशिश करते थे। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों में मनोहर जी की पहचान एक सुरीले बाल-गायक के रूप में होने लगी। एक बार किसी नाटक कम्पनी के साथ आया हुआ उनका गायक कलाकार अचानक बीमार  हो गया। नाटक कम्पनी के लोगों ने जब स्थानीय लोगों से पूछा कि यहां ऐसा कोई है जो उस कलाकार के बदले में नाटक में गायन कर सके, भूमिका निभा सके? लोगों ने मनोहर जी का नाम बताया। मनोहर जी ने अपनी भूमिका पूरे दिल से निभाई, उनकी खूब प्रशंसा हुई। यही वह अवसर था कि उस नाटक कंपनी के साथ मनोहर जी का लगातार इंदौर आना-जाना शुरु हो गया। इंदौर में भी उनके गायन और अभिनय को भरपूर सराहना मिलती गई। वहां होळकर घराने में अनेक कलाकारों को राज्याश्रय प्राप्त था। उस समय इन्दौर में बहुत सी कपड़ा मिलें भी थीं और वे सब अपना - अपना गणेशोत्सव मनाती थी और ऐसे लगभग सभी  आयोजनों में मनोहर जी को अपना शास्त्रीय गायन प्रस्तुत करने के भरपूर अवसर मिलते थे।

वर्ष 1920 में होळकर संस्थान के ‘किंग एडवर्ड हॉस्पिटल’ में क्लर्क के पद पर नियुक्ति के बाद मनोहर जी ने इंदौर को ठिकाना बनाकर संगीत सेवाएँ देना शुरू कर दिया। नीलिमा जी के माता-पिता दोनों ही रंगमंच के मंजे हुए कलाकार थे। उस समय इंदौर की छत्रपति नाट्य मंडल नाम की संस्था से मनोहर जी जुड़े हुए थे। तब खुले आकाशीय मंच पर नाटक हुआ करते थे। इन नाटकों का अभ्यास (रिहर्सल) मनोहर जी के निवास पर ही हुआ करता था। इस तरह नीलिमा जी के सभी भाई बहनों को संगीत और अभिनय के अच्छे संस्कार मिले। सभी को संगीत की अच्छी समझ है, लेकिन सात भाई बहनों में चौथे नम्बर की नीलिमा के जीवन पर संगीत और अभिनय की इतनी गहरी छाप पड़ी की उपजीविका के साधन के साथ साथ संगीत नीलिमा जी के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया।

नीलिमा जी बचपन से ही स्कूल और नगर में मनाए जाने वाले उत्सवों का स्थायी हिस्सा होती थीं। पहले स्कूल-कॉलेज में शास्त्रीय संगीत की प्रतियोगिताएँ खूब हुआ करती थीं। उम्र के 7-8वें वर्ष से ही विभिन्न प्रतियोगिताओं में नियमित भाग लेकर वे अनेक पुरस्कार हासिल करती रहीं। स्कूल-कॉलेज में उन्होंने संगीत की मेधावी छात्रा के रूप में अपनी पहचान बनाई। शासकीय संगीत महाविद्यालय, इंदौर में संगीत शिक्षा लेते समय भातखंडे-पलुस्कर जयंती और स्नेह सम्मेलन के अवसर पर गायन की प्रस्तुति सभी के लिए अनिवार्य हुआ करती थी। इसके अलावा अभिनव कला समाज भजनी मंडल आदि बहुत सारे कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं होती थी, जिनमें नीलिमा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेतीं। वहीं से नीलिमा जी को पहचान मिलना शुरू हुई। इस तरह मंचीय अनुभव मिलता रहा और हौसला भी बढ़ता गया। विधिवत मंचीय प्रदर्शन पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद शुरू किया।

नीलिमा जी ने अहिल्या आश्रम (बाद में इसका नाम चंद्रावती विद्यालय हुआ) से स्कूली शिक्षा ग्रहण की। कक्षा 11वीं से संगीत विषय लेने के बाद स्नातक में भी संगीत विषय शामिल रहा। देवी अहिल्या विवि, इंदौर से कंठ संगीत में एम.ए. (प्रावीण्य सूची में द्वितीय स्थान) करने के बाद एम.फिल संगीत (प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान) और पीएच.डी करके संगीत शिक्षा की प्रामाणिक ऊंचाइयां हासिल की। डॉ. नीलिमा छापेकर का शोध प्रबंध भी 'भारतीय संगीत में होलकर रियासत का योगदान' इंदौर से ही संबंधित रहा। उन्होंने  इंदिरा संगीत कला विवि, खैरागढ़ से संगीत कोविद की उपाधि अर्जित करने के बाद  पं. विद्याधर गोखले संगीत नाट्य प्रतिष्ठान, मुंबई से नाट्य संगीत का दो वर्षीय पदविका पाठ्यक्रम विशेष योग्यता के साथ पूर्ण किया।

पिताजी स्व. श्री मनोहर शंकर महाशब्दे (किराना घराना) से हालांकि प्रत्यक्ष रूप से नीलिमा जी ने विधिवत शिक्षा नहीं ली, लेकिन घर में ही घुट्टी में मिले संपन्न, समृद्ध सांगीतिक संस्कारों को वे आत्मसात करती रहीं। उन्हें स्व. पंडित विष्णु भैया मुंगरे (प्रसिद्ध हारमोनियम वादक-इंदौर) एवं श्री रामदास मुंगरे (पूर्व केंद्र निदेशक आकाशवाणी-इंदौर) का मार्गदर्शन और आशीर्वाद हमेशा मिलता रहा। नीलिमा जी विगत 16 वर्षो से किराना घराने की देश की वरिष्ठ गायिका पद्मविभूषण स्वरयोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे जी से संगीत की शिक्षा ले रही हैं।

वर्ष 1964 में नीलिमा जी का विवाह इंदौर कोर्ट में कार्यरत मधुकर भालचंद्र छापेकर से तय हुआ। इसके कुछ समय बाद ही मधुकर जी की एसबीआई में नौकरी लग गई। नीलिमा जी के जीवन में सबसे सुखद संयोग यही रहा है कि संगीत के प्रति अभिरुचि ही दोनों के रिश्ते की वजह बनी थी। ससुराल में भी संगीत के लिए पोषक वातावरण मिला। सास-ससुर सहित सभी का हमेंशा भरपूर सहयोग मिलता रहा। संगीत में अच्छी खासी रुचि के कारण ही उनके पति ने ‘दयानंद संगीत सभा’ नाम से एक संगीत संस्था प्रारंभ की। भारतीय संगीत के हस्ताक्षर विश्व प्रसिद्ध महान सितार वादक पं. रविशंकर, विदुषी किशोरी आमोणकर, पं. जसराज, पं. जितेंद्र अभिषेकी, स्वरयोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे, पं. बसवराज राजगुरु, विदुषी लक्ष्मी शंकर, अब्दुल हलीम जाफर खाँ साहब जैसे अनेक विख्यात कलाकारों के कार्यक्रम इस संस्था के माध्यम से इंदौर में आयोजित हुए। संस्था में आने वाले सभी कलाकारों से नीलिमा जी का अच्छा परिचय होता गया। तकरीबन सभी कलाकार उनके घर भी आते रहे।

संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये मधुकर जी ने एक अच्छा वातावरण निर्मित किया था, लेकिन बढ़ती हुई पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच नीलिमा जी संगीत से दूर होती गईं। उनका सपना बहुत बड़ी मंचीय कलाकार बनने का था। नौकरी करने के बारे में तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, लेकिन पारिवारिक आर्थिक परिस्थितियों  से तालमेल बिठाने के लिये उन्हें  नौकरी करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

वर्ष 1972 में शास्त्रीय संगीत महाविद्यालय, इन्दौर में संगीत प्राध्यापक के रूप में उन्होंने कार्य करना शुरू किया। शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मोती तबेला, इंदौर से प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (संगीत विभाग) के पद से सेवानिवृत्त नीलिमा जी कहती हैं ‘यह मेरा सौभाग्य रहा कि जिन संस्थाओं की मैं छात्रा रही उन्हीं संस्थाओं में मुझे अध्यापन का सुअवसर भी मिला।‘ शास्त्रीय संगीत महाविद्यालय, इन्दौर में 1972 से 1980 तक तथा 1980 से 2007 में सेवानिवृत्ति तक माता जीजाबाई शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, इन्दौर में सेवारत रहीं। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अंतर्गत एम. फिल. संगीत की संयोजक तथा अध्ययन परिषद की अध्यक्ष रही। शिक्षण संस्थाओं से जुड़े होने के कारण उन्होंने महाविद्यालय एवं विवि द्वारा समय-समय पर आयोजित होने वाले राज्यस्तरीय, जोनल स्तरीय युवा महोत्सवों में संगीत प्रतियोगिताओं के लिए छात्राओं को तैयार करने का दायित्व निरंतर 22 वर्षों तक सम्हाला और अनेक बार उनके महाविद्यालय की टीम ने यश और विजय अर्जित की। उन्होंने करीब सवा सौ रचनाओं को स्वरबद्ध किया, अनेक बाल नाट्य शिविरों, संस्थाओं में प्रशिक्षण दिया।

इस तरह नौकरी के साथ-साथ उनका गायन भी चलता रहा। सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी वर्ष 1985 में एक दुर्घटना में उनके पति का निधन हो गया। इस घटना ने उन्हें काफी विचलित कर दिया। अब उन पर पूरे परिवार के भरण-पोषण करने के साथ-साथ बच्चों को शिक्षित कर उन्हें काबिल बनाने की जिम्मेदारी भी थी। उस समय उनके बड़े बेटे की उम्र महज 16 वर्ष थी, उन्होंने अपने आपको संभाला, लेकिन बच्चों की परवरिश के लिए एक बार फिर संगीत को विराम देना पड़ा, जिसका मलाल उन्हें आज भी है। पारिवारिक दायित्वों के बीच संगीत साधना के लिए घर से दोबारा बाहर निकलना उनके लिए बहुत संघर्ष भरा रहा, क्योंकि समय बहुत आगे निकल गया था और परिस्थितियों से समझौता करना भी बड़ा कठिन था। लेकिन किसी तरह उन्होंने संगीत में फिर से रमना शुरू किया। सुविख्यात शास्त्रीय गायिका डॉ. प्रभा अत्रे उनकी आदर्श थीं। उन्हीं से संगीत सीखने का सपना उन्होंने संजो रखा था जो उनकी सेवानिवृति के बाद ही सही, पूरा हुआ। वे बताती हैं “प्रभा ताई जब भी किसी कार्यक्रम के लिए इंदौर-उज्जैन आतीं, उनकी इजाज़त से मैं अपना तानपुरा लेकर उनके पीछे बैठ जातीं। कई बार उनके साथ गायन भी करती। प्रभा ताई के साथ मंच साझा कर मुझे संतुष्टि मिलती और अपने आप पर गर्व होता।"

नीलिमा जी कहती हैं ‘स्वरयोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे की शिष्या होना, मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। उनके सानिध्य में बिताया हुआ हर एक पल, हर एक दिन मेरे लिए अविस्मरणीय है।‘ प्रभाताई से अपनी पहली मुलाक़ात को याद करते हुए नीलिमा जी बताती हैं "वर्ष 1961 में ‘संगीत कला मंडल, इन्दौर’ द्वारा प्रभाताई के गायन का कार्यक्रम रखा था। उस वक्त मैंने पहली बार प्रभाताई को देखा और सुना। बस वही दिन था, प्रभाताई मेरी मानस गुरु बन गई। उसके पश्चात जब-जब प्रभाताई मध्यप्रदेश में कार्यक्रम के लिये आतीं,  मेरी पूरी कोशिश रहती कि मैं उनके साथ तानपुरा संगत कर सकूं।"  फिर वह इन्दौर का मालवा-उत्सव हो, शनैश्चर जयंती समारोह हो, उज्जैन का कालिदास समारोह हो या कहीं गणेशोत्सव का कार्यक्रम हो, वे किसी न किसी तरह पहुँच ही जातीं और अपनी क्षमतानुसार, समझ शक्ति के अनुसार प्रभाताई का गाना समझने की, उसका अनुसरण करने की कोशिश करती रहीं। इस तरह शास्त्रीय संगीत के मंच पर अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा और संस्कार वे प्राप्त करती रहीं। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि गाना सीखना है तो प्रभाताई से ही। उनका यह सपना बड़े लम्बे अंतराल के बाद उस समय साकर हुआ जब वे दिसम्बर 2005 में प्रभाताई के घर मुंबई उनसे मिलने गई। अनपेक्षित रूप से उनकी संगीत-शिक्षा उसी दिन शुरु हो गई, जब प्रभा ताई ने उन्हें  ‘जय गुरु, जय गुरु, जय गुरु देवा’ भजन सिखाया। वर्ष 2008 की गुरु पूर्णिमा से स्वरमयी गुरुकुल में गाने और संगीत शिक्षा का सिलसिला निरंतर बना हुआ है।

प्रभाताई की दो मराठी पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद का किस्सा सुनाते हुए नीलिमा जी बताती हैं गाना सीखने के दौरान ताई ने एक दिन कहा - ‘नीलिमा तुम्हारी हिन्दी अच्छी है, तुम मेरी मराठी पुस्तकों का अनुवाद क्यों नहीं करती?’ यह बात सुन नीलिमा जी की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, लेकिन मन में डर भी था- क्योंकि उनके पास अनुवाद के काम का कोई अनुभव नहीं था। यह बात जब उन्होंने प्रभाताई  को बताई, तो उन्होंने हौसला बढ़ाते हुए कहा ‘अरे! कभी न कभी तो नये काम की शुरुआत करनी ही होती है न? तुम कोशिश तो करो।’ इस तरह वर्ष 2013 से 2016 तक ‘स्वरमयी’ और ‘सुस्वराली’ पुस्तकों का मराठी से हिन्दी अनुवाद कार्य निरंतर चलता रहा। अनुवाद का कार्य बहुत गहन और विस्तृत था। इन वर्षो में ताई के यहाँ नियमित रूप से आना-जाना, रहना चलता रहा। उनका भरपूर सान्निध्य उन्हें इन दिनों मिलता रहा।

एक घटना याद करते हुए नीलिमा जी बताती हैं ‘समर्थ वाणी और गीत समर्थ, महाराष्ट्र के संत रामदास स्वामी जी के जीवन चरित्र पर आधारित दो कार्यक्रम हमने तैयार किए थे। इसकी संकल्पना और लेखन श्रीमती निर्मला देव ( इन्दौर हाईकोर्ट में तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री देव की पत्नी) के थे और संगीत रचनाएँ मेरी थीं। वर्ष 1988 की बात है। देव साहब ने देवास के मल्हार स्मृति मंदिर में समर्थ वाणी कार्यक्रम रखा था। कार्यक्रम रात को 8 बजे प्रारंभ होने वाला था। हम अपने साथी कलाकारों के साथ सुबह 10 बजे इंदौर से देवास के लिये रवाना हुए। दोपहर के खाने के बाद निर्मला ताई ने कहा कि शाम को कुमार गन्धर्व जी और वसुंधरा ताई कार्यक्रम सुनने आने वाले हैं। हमें थोड़ा अभ्यास कर लेना चाहिए। उस समय हमें तबले का बैग मिला ही नहीं, क्योंकि वह हमसे इन्दौर में ही छूट गया था। हम लोग इस उधेड़बुन में थे कि अब क्या करे? देव साहब और कुमारजी में अच्छी मित्रता थी। वे बोले चिंता मत करो, मैं अभी कुमार के घर से तबला लेकर आता हूँ। आधे घंटे में वे तबला ले आये और रिहर्सल भी हो गई । रात को कार्यक्रम में जब पद्मभूषण कुमार गंधर्व जी और वसुंधरा ताई को सामने बैठे देखा तो थोड़ा डर भी लगा। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की, कि आज कोई छोटी सी भी गलती न हो। कुमार जी ने पूरा कार्यक्रम सुना। कार्यक्रम की, गाने की भी खूब तारीफ़ की, मुझे आशीर्वाद भी दिया। उनका मेरे सिर पर हाथ रखना किसी ईश्वरीय वरदान से कम नहीं था। दूसरे दिन सुबह 10 बजे इंदौर के लिये हम निकले। मेरे मन में तबला जोड़ी खो जाने का दुःख था। बार-बार मन ही मन मैं स्व. पिताजी से क्षमा मांगती रही, क्योंकि वह तबला जोड़ी उन्होंने यादगार के तौर पर मुझे सौंपी थी। जैसे ही हम इंदौर में बस से उतरे, हमें सामने ही हमारे तबले का बैग सही-सलामत मिल गया। यशवंत टॉकीज के सामने वाले भीड़भाड़ वाले इलाके में ऐसा होना अविश्वसनीय घटना थी।

एक और वाक़या याद करते हुए नीलिमा जी बताती हैं कि अब्दुल करीम खाँ स्मृति समारोह, मिरज (उरुस) में उन्हें हाजिरी लगाने का मौका मिला। वहां शाम से लेकर सुबह तक कलाकार आते हैं और एक के बाद एक अपनी प्रस्तुति देते  हैं। सभी गायकों के लिए 20 से 25 मिनट का समय निर्धारित था। जब मैंने गायन शुरू किया तो, मुझे ऐसे लगा जैसे मैं नहीं गा रही, बल्कि मुझसे कोई ओर गवा रहा है। इस तरह समय का पता ही नहीं चला और लगातार एक घंटे तक गाती रही। आखिर हारमोनियम पर संगत कर रहे अनंत केमकरी बोले - ताई समय ज्यादा हो रहा है, तब मुझे होश आया।

नीलिमा जी ने देश के अनेक बड़े शहरों के प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। संत रामदास स्वामी एवं मुक्ताबाई के जीवन चरित्र पर आधारित कार्यक्रम ‘गीत समर्थ’ एवं ‘गीत मुक्ताई’ की 200 से अधिक प्रस्तुतियाँ दे चुकी हैं। उनमें गायन के साथ संगीत रचना का कार्य भी किया है। नीलिमा जी कहती हैं ‘समय बदलने के साथ संगीत की प्रस्तुति में भी बदलाव होते हैं। समय के अनुसार संगीत की प्रस्तुति देने का तरीका भी बदला है। अब श्रोताओं की पसंद का भी ध्यान रखते हुए शास्त्रीय के साथ उपशास्त्रीय गायन करना पड़ता है। प्रस्तुति के बाद श्रोताओं के चेहरे पर दिखाई देने वाला संतुष्टि और जुड़ाव का भाव सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। वे कहती हैं मेरी छात्राएं मेरी महान संपदा हैं, जो दूर-दूर तक संगीत के ज्ञान का प्रसार कर रही हैं।

नीलिमा जी के बड़े बेटे राजेन्द्र भारतीय स्टेट बैंक, इंदौर में कार्यरत हैं, उनकी पत्नी रचना सामाजिक कार्यकर्ता है। वहीं दूसरे बेटे पराग वरिष्ठ फिल्म पत्रकार हैं। उनकी पत्नी पूर्वा एक सुविख्यात अभिनेत्री हैं और फिल्मों-धारावाहिकों में सक्रिय है। सबसे छोटे बेटे उज्ज्वल गिटारिस्ट हैं और इंदौर में एडवांस एकेडमी में संगीत शिक्षक है, उनकी पत्नी पल्लवी भी गायन की शौकीन हैं, वे एक स्कूल में शिक्षिका है। बेटी शर्मिला मुंबई में ओरिएंटल इंश्योरेंस कम्पनी में कार्यरत हैं। नीलिमा जी के नाती, पोते भी संगीत की ही शिक्षा ले रहे हैं। नीलिमा जी इंदौर में संगीत क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए विगत पांच वर्षों से निरपेक्ष भाव से निशुल्क संगीत की तालीम दे रही हैं। वे कहती हैं अपनी गुरु माँ से मैंने जो कुछ सीखा है, उस कीमती ज्ञान को जितने अधिक लोगों में बांट सकूं,  यही गुरु के प्रति सच्ची गुरु दक्षिणा होगी।

प्रस्तुतियाँ

• अब्दुल करीम खाँ साहब स्मृति संगीत समारोह-मिरज

• पंडित लालमणि मिश्र स्मृति संगीत समारोह कानपुर

• रामनवमी उत्सव-अयोध्या

• अंबरनाथ संगीत समारोह-मुंबई

• सवाई गंधर्व संगीत सम्मेलन- कुंडगोल (कर्नाटक)

• रामकृष्ण मिशन-भोपाल,

• दत्त जयंती उत्सव ‘‘आनंद -पर्वणी’’- इंदौर

• वासुदेवानंद सरस्वती पुण्यतिथि उत्सव-मंडलेश्वर

• पद्मश्री सितारा देवी जन्मशती समारोह – मुंबई

• उस्ताद सलामत अली खाँ पुण्यतिथि समारोह-लाहौर

• वासंतिक समारोह-खंडवा

• इनके अलावा मुंबई, पूना, जलगाँव, अहमदाबाद, उज्जैन, सेंधवा, खंडवा, खरगोन आदि जगह पर प्रस्तुतियां

सम्मान

• सवाई गंधर्व की जन्मस्थली कुंदगोल (कर्नाटक) में वरिष्ठ कलाकार के रूप में सम्मानित।

• डॉ. रामचंद्र पारनेरकर महाराज की स्मृति में आयोजित ‘सुर-लय-ताल’ संगीत समारोह में इंदौर की वरिष्ठ कलाकार के रूप में सम्मानित।

• पंडित लालमणि मिश्र स्मृति सम्मान – कानपुर

• महामंडलेश्वर दादू महाराज संस्थान इंदौर द्वारा बाबा लोकनाथ कला सम्मान

संगीत निर्देशन

• नाट्य प्रशिक्षण शिविर, अरंक संस्था-इंदौर (संगीत प्रशिक्षक)

• बाल नाट्य शिविर ‘हल्ला-गुल्ला’-इंदौर (संगीत प्रशिक्षक)

• आर्ट फ़ॉर कॉज – एड्स विरोधी अभियान-विश्वास - संगीत निर्देशन

• क्रिएटिव्ह बचपन – बाल संस्कार शिविर – संगीत प्रशिक्षक

• निरंतर 22 वर्षों तक महाविद्यालयीन प्रतियोगिताएं में संगीत निर्देशन

संगीत रचना एवं गायन

• संत चरित्र माला के अंतर्गत संत रामदास के जीवन पर आधारित कार्यक्रम ‘गीत समर्थ’ कार्यक्रम की 200 से अधिक प्रस्तुतियां

• मुक्ताबाई के जीवन चरित्र पर आधारित कार्यक्रम ‘गीत मुक्ताई’ कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां

• देशभक्ति गीत, पर्यावरण गीत, सरस्वती वन्दनाएँ, नाट्य शिविरों के लिए करीब 125 गीतों की संगीत रचना

विशेष उपलब्धियाँ

• स्वरमयी, गुरुकुल डॉ. प्रभा अत्रे फाउंडेशन पूना में गुरु के रूप में कार्य का अनुभव।

• गुरु डॉ. प्रभा अत्रे जी द्वारा मराठी में लिखित 11 पुस्तकों में से ‘स्वरमयी’ एवं ‘सुस्वराली’ पुस्तकों तथा पराग छापेकर द्वारा अंतःस्वर कविता संग्रह का हिन्दी अनुवाद।

• अनेक राष्ट्रीय संगीत संगोष्ठियों में रिसोर्स पर्सन के रूप में आमंत्रित तथा आलेख वाचन एवं उनका प्रकाशन।

• कला डायरी बाय अज़ीम खान की यू-ट्यूब चैनल पर प्रस्तुति।

• सहयाद्री वाहिनी चैनल पर स्वरांगण कार्यक्रम में शास्त्रीय गायन। 

• राज्य स्तरीय अनेक प्रतियोगिताओं में अध्यक्ष एवं निर्णायक के रूप में आमंत्रित।

सन्दर्भ स्रोत: सीमा चौबे से डॉ. नीलिमा छापेकर की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

Comments

  1. Lisa Baker 15 Dec, 2023

    Hello there swayamsiddhaa.com, I was going through your website & I personally see a lot of potential in your website & business. We can increase targeted traffic to your website so that it appears on Google's first page. Bing, Yahoo, AOL, etc. Do you want to appear on the front page, then? Please provide your name, contact information, and email. Regards, Lisa Baker

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी
ज़िन्दगीनामा

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी

सुनीता भलावी ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि इरादे पक्के हों तो विकलांगता कभी आड़े नहीं आ सकती।

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल
ज़िन्दगीनामा

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल , दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर

शुरुआती दौर में तो आदिवासी उन पर भरोसा ही नहीं करते थे। संपर्क के लिये जब वे गाँव में पहुँचती तो महिलाएं देखते ही दरवाजा...

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये
ज़िन्दगीनामा

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये , बगैर जिसने हासिल किया मुकाम

सीमा जी की ज़िंदगी की शुरुआत ही एक नाटक कंपनी चलाने वाले पिता की पहचान के साथ हुई और यही पहचान धीरे-धीरे इन्हें समाज से अ...

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती
ज़िन्दगीनामा

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती , हैं इसरो वैज्ञानिक प्रभा तोमर

अक्सर ऐसा होता कि शिक्षक के पढ़ाने से पहले ही गणित के सवाल वे हल कर लिया करती थीं। इसलिए बोर्ड पर सवाल हल करके बताने के ल...

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा
ज़िन्दगीनामा

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा

उनके उपन्यास 'सिधपुर की भगतणें’ पर मुम्बई विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने एम.फिल का लघु शोध लिखा है। इसी उपन्यास पर ओडिशा...