जहां लेक्चरर थीं, वहीं डायरेक्टर बनीं इरा बापना

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जहां लेक्चरर थीं, वहीं डायरेक्टर बनीं इरा बापना


छाया: स्व सम्प्रेषित

• सारिका ठाकुर 

हर इंसान अपने क्षेत्र में काम करते हुए ऊँचाई पर पहुंचना चाहता है। इस मकसद में कामयाब कुछ लोग तो उस ऊंचाई से पहचाने जाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उस ऊंचाई को नई पहचान देते हैं। इरा बापना का शुमार ऐसे ही लोगों में होता है। असिस्टेंट लेक्चरर के तौर पर जिस संस्थान में उन्होंने प्रवेश किया, आज वे उस संस्थान की निदेशक पद पर सुशोभित हैं। ज़ाहिर है कि कोई जादू की छड़ी घुमाने से ऐसा नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे उनकी अथक मेहनत और दूसरों से अलग सोचने की काबिलियत है।  

इरा जी का जन्म 1 नवम्बर 1974 को उज्जैन में हुआ। उनके पिता डॉ. दर्शन सिंह बोथरा वहां माधव कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे और डीन पद तक पहुंचे। उनकी माँ श्रीमती सुशीला बोथरा सुशिक्षित गृहणी थीं। दो भाई बहन में इरा जी छोटी हैं इसलिए उन्हें माता पिता के साथ बड़े भाई का भी खूब स्नेह मिला। बोथरा परिवार उदार विचारों वाला था। इरा जी के दादा - जो स्कूल इन्स्पेक्टर हुआ करते थे, ने बहू सुशीला (इरा जी की माँ) को शादी के बाद पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और ग्रेजुएशन करवाया। उनके बाद यह जिम्मेदारी इरा जी के पिताजी ने अपने ऊपर ले ली और अपने सभी छोटे भाई-बहनों को पढ़ाया। इसलिए उज्जैन में जिस किराए के घर में उनका परिवार रहता उसमें चार कमरे थे लेकिन उनमें रहने वाले  सदस्यों की संख्या कभी-कभी बीस तक पहुँच जाती थी। इरा जी के चाचा और बुआ के अलावा ममेरे भाई भी वहीँ रहकर पढ़ाई करते थे।  

बोथरा परिवार की एक और खासियत यह थी कि तंगहाली के बावजूद उसमें माहौल खूब हंसी ख़ुशी वाला रहता था। इरा जी बताती हैं, हमारे घर में सभी समय के पाबन्द थे, हमारे खेलने और पढ़ने का समय निश्चित रहता था। एक ही कमरे में दस-दस बच्चे पढ़ते थे, लेकिन शोरगुल नहीं होता था। बचपन के साथी चाचा, बुआ और मामा थे इसलिए बाहर के दोस्तों की कभी जरुरत नहीं पड़ी। ”इरा जी के पिताजी बच्चों में पढ़ाई के अलावा आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देते थे। वे याद करती हैं कि “मैं छठवीं में पढ़ती थी और मेरे पिताजी ने मुझे अकेले मामा के घर महिदपुर भेज दिया था। यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है क्योंकि उस समय मोबाइल फोन भी नहीं हुआ करता था।”  उनके पिता का मानना था कि बच्चों को निडर होना चाहिए साथ ही उनमें यह क्षमता भी होनी चाहिए कि किसी मुश्किल घड़ी में खुद फैसला ले सकें। आगे चलकर इरा जी के जीवन में ऐसे कई मौके आए जब बचपन का यह प्रशिक्षण उनके काम आया।  

इरा जी की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के एक निजी विद्यालय में हुई। पहली कक्षा में तीन महीने पढ़ने के बाद ही स्कूल प्रबंधन ने उनके माता-पिता से कहा कि “आप अपनी बच्ची को दूसरी कक्षा में प्रमोट कर दें क्योंकि वह पढ़ने में बहुत तेज है।” इस प्रस्ताव को उनके पिता ने ठुकरा दिया। दूसरी कक्षा में उनका नामांकन केंद्रीय विद्यालय उज्जैन में हुआ, जहाँ से उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई की और अपने शहर में टॉप किया। फिर सेंट मेरी स्कूल से उन्होंने 1992 में बारहवीं पास की। उस जमाने में हालांकि बच्चों के करियर का फैसला अभिभावक ही करते थे लेकिन इरा जी पर किसी ने दबाव नहीं डाला। वे डॉक्टर बनना चाहती थीं इसलिए प्रवेश परीक्षा के लिए दिन रात मेहनत कर रही थीं। 1992 में उन्होंने पीएमटी की परीक्षा दी, परिणाम आने से पहले कुछ लोगों ने पैसों की मांग करते हुए कहा कि वे अच्छे नंबरों से पास हो जाएंगी। लेकिन सिद्धांतवादी अभिभावकों ने घूस देकर बच्ची को परीक्षा उत्तीर्ण करवाने से मना कर दिया। नतीजतन इराजी का चयन मेडिकल में नहीं हुआ।  

एक विद्यार्थी के रूप में इस घटना से इरा जी को भारी निराशा हुई और उन्होंने अपना विषय बदल कर वाणिज्य  में प्रवेश ले लिया। पिताजी ने खूब समझाया और यह विश्वास दिलाने की कोशिश की उन्हें दोबारा पीएमटी का इम्तहान देना चाहिए और वे अपने बलबूते पर सफल हो सकती हैं लेकिन इस घटना के बाद डॉक्टर बनने का सपना ही जैसे मर गया। 1996 में कालिदास कन्या महाविद्यालय से बी.कॉम करने के बाद उन्होंने माधव कॉलेज, उज्जैन से 1998 में एम.कॉम कर लिया। इसके बाद घर में शादी की चर्चा शुरू हो गई। उनके माता-पिता पढ़ाई पूरी करने के बाद ही उनकी शादी करवाना चाहते थे। लेकिन एम.कॉम के बाद घर बैठने की बजाय इरा जी ने ‘महाराजा इंस्टीटयूट ऑफ़ प्रोफेशनल साइंसेज’ में पढ़ाना शुरू कर दिया। यह उज्जैन का पहला निजी महाविद्यालय था। पिताजी ने नौकरी करने से मना नहीं किया पर यह ज़रुर समझाया कि शादी के बाद नौकरी करने या न करने जैसा फैसला अपने जीवनसाथी से तालमेल रखते हुए लेना होगा ।  

महाराजा इंस्टीटयूट में इरा जी ने लगभग दो साल तक अध्यापन किया। सन 2000 में उन्होंने पीएचडी के लिए पंजीयन करवा लिया और उसी वर्ष नवम्बर में उनकी शादी व्यवसायी मनीष बापना हो गई। उस समय उनके पति नागदा में माता-पिता के साथ रहते थे, लेकिन शादी के लगभग आठ महीने के बाद सितम्बर 2001 में व्यवसाय के सिलसिले में इंदौर आ गए जिसके बाद इराजी को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। इंदौर नई जगह थी जिसे समझने में ही कुछ वक़्त लग गया। फिर उन्होंने वैष्णव कन्या वाणिज्य महाविद्यालय, इंदौर में आठ महीने के अनुबंध पर बतौर असिस्टेंट लेक्चरर ज्वाइन कर लिया। इस अनुबंध के पूरा होने के बाद फिर दो महीने का अन्तराल आया जिसमें वे काम ढूंढती रहीं। किसी ने एम.के.एच.एस. गुजराती गर्ल्स कॉलेज में जगह खाली होने के बारे में बताया। दरअसल वहां पढ़ाने वाली एक व्याख्याता प्रसूति अवकाश पर थीं, इसलिए उनके स्थान पर मात्र तीन महीने के लिए उन्हें काम मिल गया।  

इसके बाद उन्होंने छह महीने के लिए स्वाति जैन एकेडमी में काम किया। फिर उन्हें महाराजा रणजीत सिंह महाविद्यालय के बारे में पता चला जो देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। दरअसल, उज्जैन के जिस ‘महाराजा इंस्टीटयूट ऑफ़ प्रोफेशनल साइंसेज’ में उन्हें सबसे पहले काम करने का अवसर मिला वे महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज के साझीदार थे जो बाद में अलग हो गए। 2003 में इराजी को इस संस्थान में नियुक्ति मिल गई,  जहाँ उन्हें अपनी प्रतिभा साबित करने का भरपूर अवसर दिया। महाविद्यालय में शैक्षिणक स्तर को बढ़ाने के साथ कई नए नए विचार पर उन्होंने काम किया। 2005 में उनकी पीएचडी भी पूरी हो गयी। कुछ समय बाद उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से त्यागपपत्र देने का मन बना लिया लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें जाने नहीं दिया और उनकी योग्यता को देखते हुए वर्ष 2006 में उन्हें एसोसिएट प्रोफ़ेसर बना दिया गया। वर्ष 2008 में उस महाविद्यालय में बिजनेस मैनेजमेंट का पाठ्यक्रम शुरू हुआ और उसकी जिम्मेदारी इरा जी को सौंप दिया गई। वर्ष 2010 में प्रोफ़ेसर पद के लिए साक्षात्कार के समय विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रतिनिधि पहुंचे थे। पद के  लिहाज से इराजी की उम्र कम थी, लेकिन उनकी क्षमताओं को देखते हुए उन्हें प्रोफ़ेसर पद के लिए उपयुक्त माना गया। इसके बाद फिर परिस्थितियां ऐसी निर्मित हुईं कि उन्होंने फिर इस्तीफ़ा दे दिया जो बड़ी मुश्किल से मंजूर किया गया। इसके बाद लगभग एक साल उन्होंने ‘सेपिएन्ट इंस्टीटयूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज’ में बतौर उपनिदेशक उन्होंने काम किया। लेकिन महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज ने उन्हें डायरेक्टर के पद पर वापस बुला लिया।  

यह वह समय था जब देश भर में बिजनेस मैनेजमेंट के संस्थानों की साख गिरने लगी थी। अचानक जिस तेजी से  कई संस्थान खुल गए थे उसी गति से बंद होने लगे थे। छात्रों में निजी महाविद्यालय के पाठ्यक्रम से भरोसा उठने लगा था और नए नामांकन नहीं हो रहे थे। ऐसे में महाविद्यालय को बचाए रखना भी बहुत बड़ी चुनौती थी। ऐसे में इरा जी ने स्ट्रेस मैनेजमेंट पाठ्यक्रम और कार्यशाला का विचार दिया। उन्होंने मध्यप्रदेश के लगभग सभी शहरों के हायर सेकेंडरी स्कूलों में ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ विषय पर कार्यशालाएं की। इसके साथ ही अपने यहाँ के सभी छात्रों को निःशुल्क ‘व्यक्तित्व निर्माण, डिजिटल मार्केटिंग जैसे विषयों पर निःशुल्क सर्टिफिकेट कोर्स की सुविधा दी। इस नए विचार ने छात्रों का भरोसा जीता और महाविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ने लगी।  

वर्ष 2017 में इरा जी ने एक और प्रयोग किया जिसकी वजह से संस्थान का नाम ग्लोबल बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। दरअसल इंदौर स्वच्छता के मानकों पर अव्वल रहा है। एक बार पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध लगाने की मुहिम छिड़ी। इरा जी ने प्रदेश के अलग अलग स्कूलों और महाविद्यालयों में जाकर बच्चों को कागज की थैलियां बनाने के लिए उत्प्रेरित किया। उनका लक्ष्य डेढ़ लाख से  भी ज़्यादा थैलियां बनवाने का था। उनके अधीनस्थ सहयोगी इस लक्ष्य को असंभव मान रहे थे। उनके कहना था कि दस हज़ार थैलियाँ भी इकट्ठी हो जाएँ तो बहुत है। लेकिन जब प्रदेश भर से थैलियां भर-भरकर गाड़ियां आने लगीं तो सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं। लगभग पौने दो लाख अलग अलग आकार प्रकार की थैलियाँ इकट्ठी हो गईं। अब एक बड़ी चुनौती थी उन्हें छांटना। इसके लिए कॉलेज के विद्यार्थियों से सहयोग लिया गया। पंद्रह दिन में यह काम पूरा हो गया। अब उन्हें सभी दुकानदारों में वितरित करना था। इस काम के लिए इरा जी ने बाकायदा उन्होंने मॉक ड्रिल की ताकि पता किया जा सके कि कितने समय में यह काम हो पाएगा।  आखिरकार  इरा जी, महापौर मालिनी गौड़ और ग्लोबल बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के प्रतिनिधि को लेकर इंदौर के दुकानों में थैलियाँ बांटने निकली। यह काम तीन घंटे में पूरा हुआ और महाविद्यालय का नाम ग्लोबल बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ  

वर्ष 2018 में इराजी ने संस्थान की ओर से मैराथन दौड़ का आयोजन किया जिसमें करीब एक हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया। यह एक जोखिम से भरा काम था, क्योंकि दौड़ के दौरान अगर कोई हादसा होता तो कॉलेज की छवि खराब होती इसलिए भारी पैमाने पर हर तरह की व्यवस्था के बाद यह आयोजन सफलतापूवर्क संपन्न हुआ। 

इरा जी आज भी अपने कॉलेज के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही हैं, यहाँ से पढ़कर निकले छात्र हमेशा उन्हें याद करते हैं। लेकिन कॉलेज से परे वे कुछ और भी करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर वर्ष 2014 में ‘मार्क एडूकोन एंड ट्रेनिंग सोल्यूशन’ के नाम से एक कम्पनी शुरू की जो व्यवहार कौशल, व्यक्तित्व निर्माण, टीम बिल्डिंग, करियर काउंसलिंग जैसे काम करती है। इरा जी की कई किताबें पाठ्क्रम में सम्मिलित है। कई प्रतिष्ठित जर्नल्स में उनके शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। अब तक नौ छात्र उनके मार्गदर्शन में पीएचडी कर चुके हैं।  

प्रकाशित कृतियाँ

• बेसिक एकाउंटिंग, 2. फायनेंशियल एकाउंटिंग, 3. वित्तीय लेखांकन 

(ये तीनों किताबें इरा जी ने दो अन्य लेखकों के साथ मिलकर लिखी हैं जो 2010 में शिव प्रकाशन, इंदौर से प्रकाशित होकर देवी अहिल्या विवि से बी.कॉम, प्रथम सेमेस्टर के लिए अनुमोदित हैं ) 

 फायनेंशियल मैनेजमेंट (बापना, सलूजा यह एक साझा प्रकाशन है जिसमे इरा जी के साथ एक अन्य लेखक भी हैं) बीबीए द्वितीय सेमेस्टर के लिए लिखी गई यह पाठ्य पुस्तक प्रकाशनाधीन है।  

• मैनेजमेंट सूत्राज़ फ्रॉम गुरु ग्रन्थ साहिब, द राईट ऑर्डर पब्लिकेशन, बंगलौर, मार्च -2023

• संचयन: (लघु कथा संग्रह, साझा प्रकाशन), संस्मय प्रकाशन, नई दिल्ली

• प्रबोधन, युवाओं के लिए जीवन प्रबंधन पर आधारित लेखों का संग्रह, संस्मय प्रकाशन, नई दिल्ली (प्रकाशनाधीन)

पुरस्कार एवं सम्मान

• 14 अप्रैल 2012 को पेसेफिक एकेडमी ऑफ़ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी, उदयपुर द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  शोधपत्र ‘Dynamics of Macroeconomic Variables Affecting Price Innovation in Gold’ के लिए ‘बेस्ट आल राउंड कांफ्रेंस पेपर’ पुरस्कार के तौर पर रु. 5000/-  नगद।

• मई 20014 में एल्टियस इंस्टिट्यूट ऑफ़ यूनिवर्सल स्टडीज, इंदौर द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शोध पत्र ‘Efficiency and Co-integration of SENSEX and Sectoral Indices of Bombay Stock Exchange: A Shift to Dynamic Business Environment’ के लिए बेस्ट आल राउंड कांफ्रेंस पेपर पुरस्कार के तौर पर रु. 5000/- नगद

• मई 20014 में एल्टियस इंस्टिट्यूट ऑफ़ यूनिवर्सल स्टडीज, इंदौर द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शोध पत्र Impact of Sensory Marketing on Perceived Quality in Restaurants in Indore City: A Paradigm Shift to Dynamic Marketing के लिए रीसर्च स्कॉलर श्रेणी में बेस्ट आल राउंड कांफ्रेंस पेपर पुरस्कार के तौर रु 7500/- नगद

• देवांग मेहता एजुकेशनल लीडरशिप अवार्ड -2019

• रिसर्च फाउंडेशन ऑफ़ इण्डिया द्वारा इंटरनेशनल अवार्ड फॉर मोटिवेटर 2019 

• इंडो ग्लोबल एस.एम.ई चैंबर्स द्वारा ‘मानवीय सेवा’ की श्रेणी में वीमन इन बिजनेस अवार्ड-2020

• वर्ष 2022 में आयोजित 12वें ग्लोबल लीडरशिप समिट द्वारा राष्ट्र प्रेरणा पुरस्कार

अन्य उपलब्धियां

• वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी कोटा के लिए मार्च 2014 में ‘‘Cost & Its Classification’ विषय पर दिए गए लेक्चर की वीडियो रिकॉर्डिंग हुई।  

• फरवरी 2020 को हैदराबाद में आयोजित 14वें वर्ल्ड एजुकेशन समिट में स्पीकर के तौर पर आमंत्रित

• जनवरी 2022 को एआईसीटीई के सहयोग से अर्दोर कॉम मीडिया द्वारा बेंगलुरु में आयोजित न्यू नॉर्मल: एजुकेशन लीडरशिप समिट एंड अवार्ड्स में विशिष्ट वक्ता के रूप में आमंत्रित

• वर्ष 2020 में  इंटरनेशनल ज्यूरी अवार्ड के लिए नॅशनल ज्यूरी के तौर पर नामजद

• वर्ष 2020 में फॉरएवर स्टार इंडिया अवार्ड में मोटिवेशनल स्पीकर श्रेणी में नामित

• वर्ष 2020  में कॉरपोरेट ट्रेनर और मोटिवेशनल स्पीकर श्रेणी में WEAA  टाइटल विजेता 

संदर्भ स्रोत:  डॉ. इला बापना से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित  

© मीडियाटिक

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