छाया : अज्ञात
प्रतिभा- टेलीविजन, सिनेमा और रंगमंच
अपने समय की अत्यंत प्रतिष्ठित हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायिका और रंगमंच कलाकार जयमाला शिलेदार का जन्म 21 अगस्त 1926 को इंदौर में हुआ था। उनका नाम मूल नाम प्रमिला जाधव था। उनकी माँ श्रीमती काशी बाई कुशल गृहणी थीं एवं उनके पिता श्री नारायण सावलराम जाधव गन्धर्व संगीत मण्डली, शिवराज कंपनी, ललित कलादर्शन जैसी थिएटर कंपनियों से जुड़े हुए थे। अपने जीवन काल में उन्होंने रंगमंच पर अनेक छोटी-बड़ी भूमिकाएं अदा कीं। कहना न होगा कि जयमाला जी व्यक्तित्व निर्माण में उनके पारिवारिक संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बचपन सभी उन्हें प्यार से ‘नानी’ कहते थे। अपने बाल्यकाल में ही वे बिरहाड़ी नाटक समूह से जुड़ गईं थीं। उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा मराठी माध्यम से बेलगाम के ‘वनिता विद्यालय’ में कक्षा पांच तक हुई। जबकि प्रारंभिक संगीत शिक्षा पिता से ही प्राप्त हुई। बाद में बेलगाम के ही मोगूबाई कुर्दीकर उनकी गुरु बनीं। संगीत शिक्षा की यात्रा आगे बढ़ी और वे जयपुर घराने के मोहन पुलकर से सीखने लगीं, उसके बाद जगन्नाथ बुवा पंढरपुरकर, मनहर बर्वे, कृष्णराव चोंकर जैसे दिग्गजों से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। अल्पायु में ही उन्हें बाल गन्धर्वों का गायन सिखाया गया। कालांतर में उन्होंने विधिवत संगीत विशारद और संगीत अलंकार की उपाधियाँ भी हासिल की।
प्रमिला की रूचि गायन के साथ-साथ अभिनय में भी थी, इसलिए उन्होंने गोविन्दराम ताम्बे से अभिनय की शिक्षा प्राप्त की। दिसंबर 1942 में प्रमिला को गोविन्दराम तेम्बे के नाटक ‘वेशांतर’ में अभिनय का पहला मौक़ा मिला और उन्होंने रंगमंच पर अपना पहला कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे जीवन भर उन संगीत नाटकों से जुड़ी रहीं, जिनमें वे अपनी भूमिकाओं के लिए गायन और अभिनय करती थीं। कुछ नाटकों के लिए उन्होंने धुनें भी बनाईं। अपने पचास साल के करियर में उन्होंने कुल छियालीस नाटकों और चार हज़ार से अधिक प्रयोगों में बावन तरह की भूमिकाएं निभाईं। लगभग साढ़े चार हज़ार शो किए। इस दौरान उन्होंने बाल गन्धर्व से लेकर, छोटा गन्धर्व, रामदास कामत, राम मराठे जैसे संगीतकारों के साथ काम किया।
उनकी विशेषता थी सुमधुर सुरीली आवाज और दर्शकों के मनोभावों की समझ। वे दर्शकों की रुचि को समझते हुए कभी भी पद्यांश को समाप्त कर सकती थीं या भूमिका के अनुरूप उसे विस्तार दे सकती थीं। शब्दों को तोड़े बिना उसका स्पष्ट निरूपण करते हुए गायन करना और छंद के साथ संवाद समावेश की खूबी उनकी प्रस्तुतियों को विलक्षण बना देते थे। उनके जीवन में कभी संगीत और अभिनय एक साथ तो कभी-कभी अलग धाराओं में भी बंट जाता था। इसके पीछे कारण यह था कि उन दिनों संगीत नाटकों से बहुत कम आय होती थी इसलिए अलग से शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियां भी देती थीं। 1944 में उनके द्वारा गाए गए चार भाव गीतों ऑडियो रिकॉर्डिंग खूब लोकप्रिय हुई थी। वर्ष 1947 में उन्होंने एक मात्र सिनेमा ‘गरीबांचे राज्य’ में अभिनय के साथ गायन किया।
वर्ष 1949 में उन्होंने अपने सहकलाकार जयराम शिलेदार के साथ मिलकर संगीत नाट्य संस्थान ‘मराठी रंगभूमि’ की स्थापना की एवं 23 जनवरी 1950 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के सोयागाँव में स्थित श्रीराम मंदिर में उनसे विवाह कर लिया। जयराम जी विधुर थे और तीन पुत्रियों के पिता भी। पति के नाम से संगत बैठाते हुए प्रमिला, जयमाला शिलेदार बन गईं। दोनों ने मिलकर ‘मराठी रंगभूमि’ के नाम से एक नई संस्था की स्थापना की। इस दंपत्ति को मराठी संगीत उद्योग को नई दिशा देने का श्रेय भी दिया जाता है। जयमाला जी की कुछ नाट्य प्रस्तुतियों को आज भी मील का पत्थर माना जाता है, जैसे –संगीत शारदा में शारदा और संगीत सुभद्रा में सुभद्रा की भूमिका, मान-अपमान, संशय कल्लोल, एकच प्याला, मृच्छकटिकम।
गायिका, अभिनेत्री होने के साथ-साथ वे अच्छी गृहणी भी सिद्ध हुई। जयमाला एवं जयराम जी को दो बेटियां हुईं जो बाद में मराठी की चर्चित नाट्य कलाकार बनीं। बड़ी पुत्री लता शिलेदार बाद में दीप्ती भोगले कहलाईं। छोटी पुत्री कीर्ति शिलेदार 98वें अखिल भारतीय मराठी नाट्य सम्मेलन ((All India Marathi drama convention) की अध्यक्ष थीं। उनका जन्म 1952 में हुआ था एवं वर्ष 2022 में उनका देहांत हो गया। कीर्ति ने अपनी माँ पर एक पुस्तक लिखी ‘जयमाला शिलेदार : सूर रंगी रंगली।
प्रमिला उर्फ़ जयमाला जी की बड़ी बहन निर्मला ( बाद में निर्मला देशमुख ) सुप्रसिद्ध गायिका थीं। उन्होंने भीमसेन जोशी के संतवाणी कार्यक्रम में ऑर्गन पर संगत की थी । छोटे भाई कमलाकर जाधव नागपुर के एक स्कूल में संगीत के शिक्षक थे। जयमाला जी को वर्ष 2013 भारत सरकार का प्रतिष्ठित पद्मश्री का सम्मान प्राप्त हुआ। उस समय उन्होंने कहा था - 'मैं अभिभूत हूँ, यह सम्मान सिर्फ मेरा व्यक्तिगत रूप में नहीं है बल्कि मराठी संगीत रंगमंच का है। मैं इसलिए भी खुश हूँ कि यह मान्यता भारत सरकार से मिली है। मैं इसे मराठी रंगमंच को दी गई राष्ट्रीय भेंट मानती हूँ। जयमाला जी लम्बे समय तक हृदय रोग से पीड़ित रहीं जिसकी वजह से गायन लगभग छूट गया। तीन बार शल्य चिकित्सा के बाद 8 अगस्त 2013 को उनका देहांत हो गया।
जयमाला एवं जयराम जी की दो पुत्रियाँ हुईं जो आगे चलकर मराठी की चर्चित थियेटर आर्टिस्ट बनीं। बड़ी पुत्री लता शिलेदार जो विवाह के बाद दीप्ती भोगले कहलायीं एवं छोटी पुत्री कीर्ति शिलेदार दोनों बहनों ने अपने माता-पिता के सामान ही मराठी संगीत नाटक में अपना योगदान दिया। वर्ष 2022 में कीर्ति शिलेदार का देहांत हो गया।
उपलब्धियां
• अखिल भारतीय रंगमंच परिषद् द्वारा ‘बाल गन्धर्व पुरस्कार -1974.
• महाराष्ट्र राज्य शासन का ‘बाल गन्धर्व’ पुरस्कार
• नाट्य दर्पण द्वारा महिंद्रा नटराज पुरस्कार 1998
• छत्रपति शाहू पुरस्कार ; 2006
• महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘लता मंगेशकर पुरस्कार-2006
• नाट्य परिषद् का ‘जीवन गौरव पुरस्कार और व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार-2011
• भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री-2013.
सन्दर्भ स्रोत : विकिपीडिया एवं महाराष्ट्रनायक डॉट इन पर प्रकाशित धनश्री खरवन्दीकर का लेख
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