मध्यप्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री जमुना देवी

blog-img

मध्यप्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री जमुना देवी

छाया : द हिंदू

अपने क्षेत्र की पहली महिला

उनकी शिक्षा के लिए पिता को सहना पड़ा था विरोध 

पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ते समय बिटिया थी ढाई वर्ष की और पति हो गए थे खिलाफ 

•  कई असफलताओं को झेलने के बाद भी नहीं छोड़ी हिम्मत 

आदिवासी समाज के स्थायी विकास और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जमुना देवी (jamuna-devi) का संघर्ष सराहनीय रहा है। समय को लांघकर सोचने वाली निडर, जुझारू, दृढ़ और ईमानदार राजनीतिज्ञ के  रूप में उन्होंने अपने आप को स्थापित किया था। पुरुषार्थ के बल पर प्रदेश की राजनीति के शिखर तक पहुंचने वाली जमुना देवी का जन्म 19 नवम्बर,1929 को धार जिले के सरदारपुर (Sardarpur Dhar district) में भील परिवार में हुआ। पिता सुखजी सिंधार (Sukhji Sindhar) को इकलौती बेटी जमुना को दसवीं तक की शिक्षा दिलाने में विरोधों को सामना करना पड़ा था। उनका विवाह  1946 में बड़वानी में एक युवा शिक्षक के साथ 17 वर्ष की उम्र में कर कर दिया गया था।

इन्हें भी पढ़िये –

देश की पहली महिला पखावज वादक चित्रांगना आगले रेशवाल

 सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल Socialist leader Mama Baleshwar Dayal() जब  मालवा के आदिवासी क्षेत्र में जब लोगों को संविधान के अनुरूप उनके अधिकारों की जानकारी दे  रहे थे, तब उन्हें मदद के लिए जमुना देवी की आवश्यकता महसूस हुई, क्योंकि वे ही उस क्षेत्र में पढ़ी-लिखी और समाज कार्य में सक्रिय थीं। मामा जी ने अपने मित्र खेमा सूबेदार के जरिए उनके दामाद सुखजी सिंघार को कहलवाया,कि वे अपनी बेटी को समाज को जगाने के काम में लगायें। इस तरह जमुना देवी का राजनीति में पदार्पण हुआ। 1950 से 1952 तक वे समाज कार्य में सक्रिय रहीं। मामा बालेश्वर दयाल ने उन्हें 1952 में विधान सभा चुनाव लड़ाने का फैसला किया। चूंकि उस समय वह विवाहित थीं और उनकी ढाई साल की एक बेटी भी थी, इसलिए पति ने इसका विरोध किया, लेकिन वे नहीं मानी। उनका वैवाहिक जीवन तनावग्रस्त रहने लगा। जमुना देवी आदिवासी बाहुल्य और अत्यंत पिछड़े झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडक़र सबसे कम उम्र की विधायक निर्वाचित हुईं। 1957 में जमुना देवी ने धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन क्षेत्र बदलने के कारण वे असफल रहीं। जमुना देवी ने महसूस किया, कि चुनाव क्षेत्र बदलना उनके राजनीतिक जीवन के लिए ठीक नहीं, इसलिए उन्होंने झाबुआ को ही अपना स्थायी निवास बनाया। इस बीच तपेदिक के कारण उनके पेट में दर्द रहने लगा। 1957 में  ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ कर वे फिर जनसेवा में जुट गईं। 1960 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मूलचंद देशलहरा ने उन्हें  कांग्रेस में शामिल कर लिया। 1962 में झाबुआ से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर  लोकसभा चुनाव जीता। उन्हें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोरारजी भाई देसाई का अच्छा सहयोग मिला। लेकिन पति गुलाब चंद  मकवाना को अब भी अपनी पत्नी का समाज सेवा करना और राजनीति में भाग लेना पसंद नहीं था। बात इतनी बढ़ गई, कि अंंतत: संबंध विच्छेद हो गया, जिसका असर उनके राजनैतिक जीवन पर भी पड़ा। 1967 के लोकसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों ने जमुना देवी का इतना विरोध किया,कि वे धार लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गईं। असफलताओं  के बावजूद उन्होंने धैर्य नहीं खोया और उनका संघर्ष जारी रहा।

इन्हें भी पढ़िये –

दूरदर्शन की पहली महिला महानिदेशक अरुणा शर्मा

कांग्रेस में विभाजन के बाद जमुना देवी, श्री मोरारजी भाई देसाई (Shri Morarji Bhai Desai) के साथ रहीं और उन्हीं की पार्टी से 1972 में चुनाव लड़ीं, लेकिन फिर चुनाव हार गईं। 1977 में जब श्री मोरारजी भाई प्रधानमंत्री बने,तो उन्होंने जमुना देवी को राज्यसभा सदस्य बनवाया। जब 1978 में इंदिरा गांधी (indira gandhi) की सरकार बनी, तो हरिजन-आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षण की अवधि 10 साल बढ़ाने के प्रस्ताव के पक्ष में उन्होंने जनता पार्टी की विचारधारा से हटकर मतदान किया। बाद में श्रीमती गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया और उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का संयुक्त सचिव (Joint Secretary, Indian Congress Committee) नियुक्त किया। सन् 1985 में वे कुक्षी से विधायक चुनी गईं और 1990 का विधानसभा चुनाव छोड़कर लगातार इसी क्षेत्र से निर्वाचित होती रहीं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। 1990 में वह भाजपा प्रत्याशी रंजना बघेल से चुनाव हार गई थीं।  वे दिग्विजय सिंह की सरकार में आदिवासी, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण,समाज कल्याण के अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्री रही हैं। इसी दौरान श्री सिंह ने उन्हें बुआ जी (buaji) का संबोधन दिया और यही फिर उनकी पहचान बन गया। उन्होंने 1998 से 2003 तक उप मुख्यमंत्री का पद भी संभाला। 16 दिसम्बर,2003 को वे मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं। इसी पद पर रहते हुए 24 सितम्बर, 2010 को लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।

इन्हें भी पढ़िये –

देश की पहली ध्रुपद गायिका असगरी बाई

श्रीमती जमुना देवी के खाते में ढेर सारी उपलब्धियां दर्ज हैं। आदिवासियों के उत्थान के लिए उनकी ईमानदार कोशिशों को देखते हुए 1963 में उन्हेें आदिवासी केंद्रीय सलाहकार बोर्ड का सदस्य (Member of Tribal Central Advisory Board) नियुक्त किया गया। उल्लेखनीय कार्य के लिए 1997 में उन्हेें उत्कृष्ट मंत्री का पुरस्कार  मिला। 2001 में महिला सशक्तीकरण वर्ष में इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसाइटी ने उन्हें भारत ज्योति पुरस्कार (Bharat Jyoti Award) से सम्मानित किया।  2003 में संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर संसदीय जीवन सम्मान उन्हें प्रदान किया गया।

 उपलब्धियां

1. ‘उत्कृष्ट मंत्री पुरस्कार’- 1997
2. ‘भारत ज्योति सम्मान’- 2001
3. संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर  ‘संसदीय जीवन सम्मान’- 2003
4. 2003 में  नेता प्रतिपक्ष मध्यप्रदेश विधानसभा

संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी
ज़िन्दगीनामा

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी

सुनीता भलावी ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि इरादे पक्के हों तो विकलांगता कभी आड़े नहीं आ सकती।

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल
ज़िन्दगीनामा

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल , दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर

शुरुआती दौर में तो आदिवासी उन पर भरोसा ही नहीं करते थे। संपर्क के लिये जब वे गाँव में पहुँचती तो महिलाएं देखते ही दरवाजा...

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये
ज़िन्दगीनामा

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये , बगैर जिसने हासिल किया मुकाम

सीमा जी की ज़िंदगी की शुरुआत ही एक नाटक कंपनी चलाने वाले पिता की पहचान के साथ हुई और यही पहचान धीरे-धीरे इन्हें समाज से अ...

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती
ज़िन्दगीनामा

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती , हैं इसरो वैज्ञानिक प्रभा तोमर

अक्सर ऐसा होता कि शिक्षक के पढ़ाने से पहले ही गणित के सवाल वे हल कर लिया करती थीं। इसलिए बोर्ड पर सवाल हल करके बताने के ल...

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा
ज़िन्दगीनामा

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा

उनके उपन्यास 'सिधपुर की भगतणें’ पर मुम्बई विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने एम.फिल का लघु शोध लिखा है। इसी उपन्यास पर ओडिशा...