छाया राय : दर्शनशास्त्र की विद्वान जिन्होंने विदेशों में भारत का मान बढ़ाया

blog-img

छाया राय : दर्शनशास्त्र की विद्वान जिन्होंने विदेशों में भारत का मान बढ़ाया


छाया: स्व संप्रेषित 

 

विषय विशेषज्ञ

• सारिका ठाकुर 

वैज्ञानिक व्याख्या से पहले सभी कौतुहलों और जिज्ञासाओं का जवाब दर्शन शास्त्र के माध्यम से ही दिया जाता था। चाहे वह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के रहस्य हों, तत्ववाद हो या फिर मनुष्य के धार्मिक विश्वास।  

जबलपुर की डॉ. छाया राय भारतीय षट्दर्शन(सांख्य, योग, मीमांसा, न्याय, वैशेषिक और वेदांत) में से एक ‘योगदर्शन’ का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करती हैं। हालाँकि दर्शनशास्त्र के अंतर्गत आने वाले अधिकांश बिन्दुओं पर इनके शोधकार्य विभिन्न दार्शनिक पत्रिकाओं और जर्नल्स में प्रकाशित हैं। चाहे वह नीतिशास्त्र, अद्वैत वेदांत हो, तत्ववाद हो या पाश्चात्य दार्शनिक इमानुएल कांट का समीक्षावाद। इनके शोधकार्यों की विशेषता है इनका मौलिक विश्लेषण, अकाट्य तर्क और सन्दर्भ। उनके द्वारा किये गए काम को देखते हुए अगर हम उन्हें दार्शनिक छाया राय कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। दर्शन शास्त्र के अकादमिक क्षेत्र में वे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने दार्शनिकता को स्त्री-पुरुष के सन्दर्भ से मुक्त कर उसे एक खुले आकाश में विचरने छोड़ दिया।  

चार दशक पहले तक यह विषय अघोषित रूप से लड़कियों के लिए वर्जित था क्योंकि लड़कियों के दार्शनिक हो जाने की बात ही कल्पना से परे थी। लेकिन छायाजी ने न केवल दर्शनशास्त्र को अपनाया बल्कि दार्शनिकों जैसा जीवन भी चुना, किसी भी वर्जना से परे एक ऐसी ज़िन्दगी जैसी वे खुद के लिए चाहती थीं या कोई भी दार्शनिक अपने लिए चुनता। बेशक इसमें उनके परिवार की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रही। उनके परिवार की विचारधारा अपने समय से कई दशक आगे की थी। उनके परदादा उत्तरप्रदेश से तत्कालीन मध्यप्रांत के कटनी में आकर बसे थे। उनके दादा रायबहादुर डॉ. हीरालाल राय असाधारण बौद्धिक क्षमता रखते थे। वे उच्च कोटि के साहित्यकार होने के साथ-साथ इतिहासकार, भाषा विज्ञानी, पुरातत्ववेत्ता और विज्ञान के शिक्षक थे। वे कई स्थानीय भाषाओं जैसे गोंडी, कोरकू और गद्बी इत्यादि के जानकार थे। उन्होंने लुप्त हो चुकी संस्कृत और प्राकृत भाषा की 10 हज़ार पांडुलिपियों की खोज की थी। 1922 में नरसिंहपुर के डिप्टी कमिश्नर के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद भी उनका शोधकार्य जारी रहा था। उनकी लिखी हुई कई पुस्तकें आज महत्वपूर्ण दस्तावेज माने जाते हैं जैसे – एथनोग्राफिक्स नोट्स (1908),  मध्यप्रांत और बरार के शिलालेख(1914), ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ़ दी सेन्ट्रल प्रोविंसेस ऑफ़ इण्डिया, रामटेक का दर्शन, चिमूर का घोड़ा और बुन्देलखंड की त्रिमूर्ति आदि। उन्होंने ही देश को हिन्दी गजेटियरों की सौगात दी। इसके अलावा कटनी,जबलपुर समेत उनके पास कई गांवों की जमींदारी भी थी।

डॉ. छाया राय ने अपने दादा की बौद्धिक विरासत को विस्तार देते हुए परिवार का मान बढ़ाया। उनका जन्म 2 फ़रवरी 1946 को सागर में श्री कीर्तिभानु राय और श्रीमती श्रीदेवी राय के घर हुआ। उनके पिता संपन्न कृषक और मालगुजार थे। अंग्रेजों के शासनकाल में अगर किसी गाँव के किसान लगान नहीं दे पाते तो उन पर सख्ती बरतने की जगह उन्हें मुक्त कर देते थे। श्री कीर्तिभानु राय ने अंग्रेज सरकार के सामने अपने अधीन लगभग 70 गाँवों से लगान वसूली करने से मना कर दिया था। चार बहन और तीन भाइयों में छायाजी 6वें स्थान पर हैं। प्रगतिशील विचारधारा वाले उनके परिवार में पढ़ाई लिखाई को बहुत महत्त्व दिया जाता था। बचपन से ही वे पढ़ाई-लिखाई में मेधावी रहीं। इसके अलावा वे खेल-कूद में भी अव्वल रहीं। उस जमाने में भी उनके परिवार में पुत्र-पुत्री को लेकर किसी तरह का भेद नहीं किया जाता था। उनके पिता की ओर से सभी बच्चों को अपना करियर चुनने की खुली छूट मिली थी। छाया जी की बहनें पोलो खेलने की शौक़ीन थीं, हालाँकि छायाजी की रूचि खो-खो में रही।

अकादमिक क्षेत्र में उन्होंने शुरू से ही असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1963 में उन्होंने हायर सेकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट एग्जाम तीन विषयों में डिस्टिंक्शन सहित उत्तीर्ण किया था। वर्ष 1966 में उन्होंने स्नातक की उपाधि राष्ट्रीय मेधा स्कॉलरशिप सहित प्राप्त की। प्रावीण्य सूची में उनका नाम तीसरे स्थान पर दर्ज हुआ था। 1968 में स्नातोकातर की उपाधि उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ प्राप्त की। प्रावीण्य सूची में वे पहले स्थान पर दर्ज हुईं। दादाजी(हीरालाल जी) के कारण घर में पढ़ने के लिए असंख्य ग्रंथावलियां मौजूद थीं। छायाजी को बचपन से ही पढ़ने का शौक था। धीरे-धीरे उनका रुझान दार्शनिक विषयों की ओर बढ़ने लगा और उन्होंने विषय के रूप में दर्शन शास्त्र का चयन किया। 28 अगस्त 1969 में व्याख्याता के रूप में उनकी नियुक्ति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में हुई। इसी विद्यालय में कार्यरत रहते हुए दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ के तौर पर उनके कद की ऊँचाई बढ़ती रही और उनकी विद्वता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।

छायाजी से बड़ी तीन बहनें थीं। सब बहनें स्नातक की उपाधि हासिल कर चुकी थीं, इनकी एक बहन शैल एथलीट भी रही हैं। समय पर सभी भाई-बहनों का विवाह हुआ लेकिन छाया जी का व्यक्तित्व और उनके विचार सभी से अलग थे। ज्ञान की अनंत और कभी न बुझने वाली प्यास के कारण उन्होंने अपने परिवार से साफ़ साफ़ कह दिया था कि वे शादी नहीं करेंगी। परिवार में थोड़ी मायूसी रही लेकिन उन पर कभी किसी ने दबाव नहीं डाला  बल्कि बाद में उनके निर्णय को सहजता से परिवार ने स्वीकार कर लिया। छायाजी की पढ़ाई-लिखाई जबलपुर में ही हुई, बाद में यह शहर उनकी कर्मस्थली भी बन गया। महाविद्यालय में पढ़ाने के अलावा भारतीय और पाश्चात्य दार्शनिक सिद्धांतों का अध्ययन करना और मौलिक विश्लेषण करते हुए उन पर लेखन करना छाया जी के जीवन का हिस्सा बन गया। उनके लिखे लेख दार्शनिक पत्रिकाओं, जर्नल्स में प्रकाशित होने लगी। इसके साथ ही वे दार्शनिक विषयों पर आधारित राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों और सेमिनारों में भी व्यस्त रहने लगीं।

1972 में ‘स्टडीज इन फिलोसोफिकल मेथड्स’ विषय पर उन्होंने पीएचडी किया। इस शोधकार्य के लिए उन्हें यूजीसी शोध अध्येयतावृत्ति मिली थी। यूजीसी की शोध प्रबंध योजनान्तर्गत यह शोध प्रबंध पुस्तक रूप में 1980 में प्रकाशित हुआ। यह देश के अनेक विश्वविद्यालयों के एम.फिल. पाठ्यक्रम में सम्मिलत है।  सितम्बर 1982 में एक साल के लिए उनकी नियुक्ति केलाबर विश्वविद्यालय, नाइजीरिया में दर्शन शास्त्र के भारतीय विशेषज्ञ के तौर पर हुई। वर्ष 2000 में मेसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी, अमेरिका में ‘कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ़ इन्डियन फिलॉसॉफी टू वर्ल्ड फिलॉसॉफी’ विषय पर आधारित चौथे अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन में शामिल  हुईं और सारगर्भित भारतीय दर्शन के महत्त्व से दुनिया को अवगत करवाया। वर्ष 2003 में एशियन फिलॉसॉफिकल सोसायटी, मास्को के आमंत्रण पर उनका लेख ग्लोबल स्टडीज एनसाइक्लोपेडिया में प्रकाशित हुआ। विश्वविद्यालय में डीन के तौर पर दो बार कार्य भार सम्भालने के अलावा वे, विभाग प्रमुख, डायरेक्टर-इन-चार्ज, प्रोफ़ेसर-इन-चार्ज, डीन-इन-चार्ज, एग्जक्यूटिव काउंसलर जैसे महत्वपूर्ण पद पर रही। इसके अलावा 1995-97 के बीच केंद्रीय विश्वविद्यालय, सिलचर, आसाम में वे राष्ट्रपति की प्रतिनिधि के तौर पर भी कार्यरत रहीं  वर्ष 2005 में वे सेवा निवृत्त हो गयीं लेकिन उनकी व्यस्तताएं कम नहीं हुईं। वे कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। वे अब तक लाखों का दान सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को कर चुकी हैं। परिवार में उनकी तीन बहनों का निधन हो चुका है। वे आज भी जबलपुर में ही निवास कर रही हैं। उनके भाइयों और उनके परिवार को छायाजी पर गर्व है ।

प्रकाशित ग्रन्थ

• कांट का नीति दर्शन : भारतीय विद्या प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-1977, द्वितीय संस्करण-1980

• स्टडीज इन फिलॉसॉफिकल मेथोड्स: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 1980, अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों में एम.फिल के पाठ्यक्रम के लिए अनुशंसित

• इमैनुएल कांट “आधुनिक पाश्चात्य दर्शन”: मप्र हिंदी ग्रन्थ अकादमी 1989

• रेलेवेंस ऑफ़ गांधीयन थॉट (संपादन): न्यू बी.बी.सी. दिल्ली, 2000

• नैतिक चिंतन के आयाम : प्रतिभा प्रकाशन,  नई दिल्ली

• श्री यशदेव शल्य का दर्शन (संपादन) : भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली 2001

शोध पत्रिकाओं का संपादन

• अखिल भारतीय दर्शन परिषद् की त्रैमासिक शोध पत्रिका “दार्शनिक त्रैमासिक” में अतिथि संपादक

• कल्याणिका(त्रैमासिक आध्यात्मिक पत्रिका)

• संपादक मंडल की सदस्य, दार्श्निकी, काशी विद्यापीठ, वाराणसी

अनुवाद कार्य

• ईश्वर तथा मानव चेतना, लेखक: दयाकृष्ण, डायोजिनीज(यूनेस्को) संख्या_6, 1985

• देहांतर पर, लेखक: रोनाल्ड बोनन, डायोजनीज संख्या -10, 1987

• शांति का प्रत्यय तथा मानवता का प्रत्यय, लेखक:  बलोद लेफोर, डायोजनिज, संख्या-12, 1988

• संकट और सभ्यता, लेखक: एडमंड राडार, डायोजनिज, संख्या-13

• शरीर तथा व्यक्तिवाद, लेखक: डेविड ली ब्रेटोन, डायोजनिज, संख्या- 14

• विश्व दर्शन के सन्दर्भ में भारतीय दर्शन, लेखक : कालीदास भट्टाचार्य, जीआईपीआर से चयनित लेखों का संकलन

शोध परियोजनाएं

• 1978 में पुणे विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विश्वविद्यालय अनुसंधान परिषद् की परियोजना “ फिलॉसॉफी इन इण्डिया टुडे में शोध सहायक.

• 1991 में सार्क(SAARC) परियोजना “गर्ल चाइल्ड एंड फैमिली” में बतौर परियोजना अधिकारी.

• 2005 में विश्वविद्यालय अनुसंधान परिषद् की परियोजना - गीता फिलॉसॉफी एंड मैनेजमेंट ऑफ़ इमोशंस में बतौर मुख्य अन्वेषक

सन्दर्भ स्रोत : डॉ. छाया राय से सुश्री श्रद्धा सुनील और उनके भतीजे श्री निशांक राय से सारिका ठाकुर की बातचीत, स्व संप्रेषित बायोडाटा 

© मीडियाटिक 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी
ज़िन्दगीनामा

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी

सुनीता भलावी ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि इरादे पक्के हों तो विकलांगता कभी आड़े नहीं आ सकती।

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर
ज़िन्दगीनामा

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर

शुरुआती दौर में तो आदिवासी उन पर भरोसा ही नहीं करते थे। संपर्क के लिये जब वे गाँव में पहुँचती तो महिलाएं देखते ही दरवाजा...

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये
ज़िन्दगीनामा

सीमा कपूर : उसूलों से समझौता किये , बगैर जिसने हासिल किया मुकाम

सीमा जी की ज़िंदगी की शुरुआत ही एक नाटक कंपनी चलाने वाले पिता की पहचान के साथ हुई और यही पहचान धीरे-धीरे इन्हें समाज से अ...

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती
ज़िन्दगीनामा

एक साथ दस सैटेलाइट संभालती , हैं इसरो वैज्ञानिक प्रभा तोमर

अक्सर ऐसा होता कि शिक्षक के पढ़ाने से पहले ही गणित के सवाल वे हल कर लिया करती थीं। इसलिए बोर्ड पर सवाल हल करके बताने के ल...

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा
ज़िन्दगीनामा

लिखना ज़रूरी है क्योंकि जो रचेगा, वो बचेगा : डॉ.लक्ष्मी शर्मा

उनके उपन्यास 'सिधपुर की भगतणें’ पर मुम्बई विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने एम.फिल का लघु शोध लिखा है। इसी उपन्यास पर ओडिशा...

दुनिया की सबसे युवा महिला सीए
ज़िन्दगीनामा

दुनिया की सबसे युवा महिला सीए , का तमगा हासिल करने वाली नंदिनी

चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने के बाद नंदिनी ने ए.सी.सी.ए. अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा में इंडिया में पहली व विश्व में तीसरी रैंक हा...