दिल्ली हाईकोर्ट :  बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी

blog-img

दिल्ली हाईकोर्ट :  बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी
छोड़ने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक महिला का अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ना ‘स्वैच्छिक परित्याग’ नहीं होता है, इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने जारी एक आदेश में कहा कि इस स्थिति को बच्चे की देखभाल करने के परम कर्तव्य के परिणाम के तौर पर देखा जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक महिला और उसके नाबालिग बेटे को अंतरिम भरण-पोषण देने संबंधी निचली अदालत के आदेश को खारिज करने से मना कर दिया। 

क्या है पूरा मामला? 

महिला के पति ने निचली अदालत के अक्टूबर 2023 के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उसे (पति को) अलग रह रही अपनी पत्नी और बच्चे को 7,500 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता पति को निर्देश दिया कि वह महिला को निचली अदालत द्वारा निर्धारित मासिक राशि देना जारी रखे, साथ ही अपने बच्चे के लिए अलग से प्रतिमाह 4,500 रुपये दे। कोर्ट ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से स्थापित तथ्य है कि नाबालिग बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी माता या पिता पर असमान रूप से पड़ती है, जो अक्सर पूर्णकालिक रोजगार की उनकी क्षमता को सीमित कर देती है, खासकर उन मामलों में जहां मां के नौकरी पर होने के दौरान उसके बच्चे की देखभाल में परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता है।’’ 

अच्छा कमाती थी, मैं गुजारा भत्ता क्यों दूं' 

फैसले में कहा गया है कि महिला द्वारा रोजगार छोड़ने को ‘काम का स्वैच्छिक परित्याग’ नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे बच्चे की देखभाल के परम कर्तव्य के परिणामस्वरूप जरूरी माना जाता है। व्यक्ति ने निचली अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि महिला उच्च शिक्षा प्राप्त थी और पहले दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में गेस्ट टीचर के रूप में काम करती थी, जिससे वह प्रतिमाह ट्यूशन फीस सहित 40,000 से 50,000 रुपये कमाती थी। पति ने दावा किया था कि महिला कमाने और खुद का तथा बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम थी, लेकिन उसे (पति को) परेशान करने के इरादे से याचिका दायर की गई। 

अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि फैमिली कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार न करके त्रुटि की है कि महिला अपनी मर्जी से ससुराल से चली गई थी और अदालत के आदेश के बावजूद उसने अपने पति के साथ अपने वैवाहिक संबंध फिर से शुरू नहीं किए। पति ने दावा किया कि वह अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे के साथ रहने को तैयार है। उस व्यक्ति ने यह भी कहा कि वह हरियाणा में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहा है और प्रतिमाह केवल 10,000 से 15,000 रुपये ही कमाता है, इसलिए वह अंतरिम भरण-पोषण संबंधी निचली अदालत के आदेश का पालन करने में असमर्थ है। 

महिला की दलील 

दूसरी ओर, महिला ने दलील दी कि वह बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण काम करने में असमर्थ थी। उसने कहा कि उसका पिछला रोजगार उसे उचित भरण-पोषण से वंचित करने का वैध आधार नहीं है। उसने दलील दी कि चूंकि उसे आने-जाने में बहुत समय लगता था और उसे घर के पास काम नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उसने अपना टीचिंग करियर छोड़ दिया। अदालत ने महिला की दलील स्वीकार कर ली और उसके स्पष्टीकरण को तार्किक और न्यायोचित पाया। बेंच ने कहा कि व्यक्ति का आय प्रमाण-पत्र रिकॉर्ड में नहीं है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अंतरिम भरण-पोषण की अर्जी तथा अंतरिम अवधि में व्यवस्था जारी रखने के लिए नए सिरे से निर्णय ले। 

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : हिंदू विवाह केवल , रजिस्टर्ड न होने से अमान्य नहीं हो जाता

जस्टिस मनीष निगम ने अपने फैसले में कहा, 'हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत जब शादी विधिवत तरीके से होती है, तो उसका रजिस्ट्रे...

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा
अदालती फैसले

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट :  अपने पसंदीदा शादीशुदा , मर्द के साथ रह सकती है महिला

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो उसे ऐसा करने से रोके।

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : पति की सैलरी बढ़ी , तो पत्नी का गुजारा भत्ता भी बढ़ेगा  

महिला ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजारा भत्ता बढ़ाने की उसकी अपील को खारिज कर दिया गया था।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के जीवित रहने , तक भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है पति

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से सक्षम पति को अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना होगा जब तक वह जीवित है भले...

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : ग्रामीणों के सामने तलाक लेकर , नहीं किया जा सकता हिंदू विवाह को भंग

कोर्ट ने CISF के एक बर्खास्त कांस्टेबल को राहत देने से इनकार कर दिया जिसने पहली शादी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी की थी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : बिना वजह पति से दूरी बनाना मानसिक क्रूरता

10 साल से मायके में पत्नी, हाईकोर्ट में तलाक मंजूर