स्त्री शिक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित रहीं कृष्णा अग्रवाल 

blog-img

स्त्री शिक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित रहीं कृष्णा अग्रवाल 

छाया: अंजलि अग्रवाल

शिक्षा के लिए समर्पित महिला

• सारिका ठाकुर 

अपने आपको समाज की भलाई के लिए समर्पित कर देने वाली प्रदेश की चुनिंदा महिलाओं में एक नाम है इंदौर की प्रख्यात समाज सेविका श्रीमती कृष्णा अग्रवाल का। उनका जन्म दिल्ली के एक प्रतिष्ठित समाजसेवी परिवार में लाला किशोरी लाल गुप्ता के घर 22 अक्टूबर 1932 में हुआ। किशोरी लाल जी कांग्रेस के प्रमुख सक्रिय सदस्यों में से एक थे। उस समय राजनीति और समाजसेवा में एक अद्भुत तालमेल हुआ करता था। राजनीति का दरवाज़ा समाजसेवा की लम्बी गली पार करने के बाद ही खुलता था। लाला जी का परिवार उस समय मुकुट राय परिवार के नाम से जाना जाता था। दरअसल, उनके पुरखे रियासत काल में वजीर हुआ करते थे और मुकुट धारण करते थे, बाद में उनके परिवार को ही ‘मुकुटराय परिवार’ कहा जाने लगा। कृष्णा जी की माता श्रीमती पार्वती देवी एक धार्मिक महिला और गृहिणी थीं।

कृष्णा जी की प्रारंभिक शिक्षा आर्य समाज हायर सेकेंडरी स्कूल दिल्ली में हुई। उसके बाद इन्द्रप्रस्थ महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ स्नातक की उपाधि हासिल की। परिवार में समाज सेवा की भावना के साथ पली बढ़ी कृष्णा जी के मन में कमज़ोर तबकों के लिए गहरी संवेदना थी, जिसने भविष्य में उनके व्यक्तित्व को आकार दिया। वर्ष 1952 में उनका विवाह महू के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. राधामोहन अग्रवाल के पुत्र डॉ. रमेश अग्रवाल के साथ संपन्न हुआ। संयोग से कृष्णा जी का ससुराल भी सामाजिक सरोकारों के प्रति सचेत परिवार था। तीन भाई और दो बहनों वाले परिवार में रमेश जी सबसे बड़े थे इसलिए कृष्णा जी की घर के प्रति जिम्मेदारियां भी बड़ी थी। दो संतानों के जन्म तक यह परिवार संयुक्त ही रहा। कृष्णा जी और रमेश जी को 1954 में एक पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई, गृहस्थी की गाड़ी चलती रही और आगे चलकर वे तीन अन्य संतानों के जन्मदाता बने, जिन्होंने आगे चलकर अपने अपने क्षेत्र में माता-पिता का नाम रोशन किया।

इन्हें भी पढ़िये -

शालिनी ताई : जिन्होंने शिक्षा के साथ पर्यावरण की अलख जगाई

इस बीच दो संतानों के जन्म के बाद रमेश जी ने महू से इंदौर आकर अपना क्लीनिक खोल लिया। कृष्णा जी ने घर-गृहस्थी सँभालते हुए ही 195- में महू छावनी के चुनाव में जीत हासिल की। अपने पति के साथ जब वे महू के आसपास के गाँवों में जातीं तो घूंघट में अनेक अशिक्षित महिलाओं को देखतीं और उनके जीवन को जानने की कोशिश करतीं। वहीं से उनके मन में उन महिलाओं को शिक्षित करने का विचार आया। उसके बाद उन्होंने आसपास के 60 गाँवों में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की, जहाँ महिलाएं शाम के वक्त पढ़ने आती थीं। वर्ष 1960 में उन्होंने महारानी पटियाला - मोहिंदर कौर, डॉ शंकरदयाल शर्मा की पत्नी विमला जी और महू की समाज सेविका होमाय इलावा आदि के सहयोग से  भारतीय ग्रामीण महिला संघ की मध्यप्रदेश शाखा की स्थापना की। उल्लेखनीय है कि भारतीय ग्रामीण महिला संघ या बीजीएमएस (नेशनल एसोसिएशन ऑफ रूरल वुमन इंडिया) की स्थापना 1955 में हुई थी। यह एक गैर-राजनीतिक राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी शाखाएं पूरे  देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई है। यह एसोसिएटेड कंट्री वूमेन ऑफ द वर्ल्ड (ACWW) से संबद्ध है, जो ग्रामीण महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है, साथ ही यूएनओ, यूनेस्को, डब्ल्यूएचओ और आईएलओ जैसे संगठनों का सलाहकार भी है। इसकी स्थापना पद्मभूषण श्रीमती यशोधरा दासप्पा और श्रीमती सी. शारदा ने की थी।

इंदौर में भारतीय ग्रामीण महिला संघ ने स्थापना के फ़ौरन बाद ही युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया। जल्द ही संघ की सदस्याएं लाल पाड़ वाली बहनजी के नाम से प्रसिद्ध हो गयीं। वर्ष 1961 से 65 के बीच शासन से अनुदान, विभागों से संपर्क, ग्रामवासियों से संपर्क, शाखा की मान्यता, समाज कल्याण बोर्ड से सहयोग प्राप्त करने पर उन्होंने बल दिया  परिणामस्वरूप समाज कल्याण बोर्ड ने 17 समाज कल्याण केन्द्रों, 25 संक्षिप्त पाठ्यक्रम संस्थानों, बालवाड़ियों, सिलाई कक्षाओं के संचालन का  दायित्व ग्रामीण महिला संघ को सौंप दिया, जिसके माध्यम से एक हज़ार से भी अधिक महिलाओं को शिक्षा प्रदान कर रोजगार के साधन उपलब्ध करवाए गए।

वर्ष 1965 में कृष्णा जी को केंद्र सरकार के माध्यम से नीदरलैंड से सोशल पॉलिसी में डिप्लोमा करने का अवसर प्राप्त हुआ। घर परिवार की जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने अपने पैर पीछे खींच लिए थे, लेकिन उस समय उनके पति श्री रमेश अग्रवाल ने उन्हें समझा बुझाकर नीदरलैंड भेजा, जहां से वे नौ महीने का पाठ्यक्रम पूरा करके बाद लौटीं। उन्होंने इंग्लैंड, आयरलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, अफ्रीका, नैरोबी, पाकिस्तान और अमेरिका का भ्रमण कर भारत की ग्रामीण नारी के उत्थान और जागृति के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई। इस पर अमल की शुरुआत ‘साक्षरता योजना’ से हुई।  इस चरण में ही दो महान हस्तियों से उनकी मुलाक़ात हुई। जिनमें से पहली थीं लक्ष्य के प्रति समर्पित शालिनी ताई मोघे और विश्व साक्षरता संगठन की प्रतिनिधि श्रीमती कमला राणा। उनके मार्गदर्शन में ही कृष्णा जी ने साक्षरता का महाअभियान चलाया और 15 हज़ार महिलाओं को साक्षर करने का लक्ष्य प्राप्त किया।

इन्हें भी पढ़िये -

भोपाल की नवाब बेगमों ने किया था शिक्षा को प्रोत्साहित

वर्ष 1972 में उन्होंने राऊ ग्राम में ज़मीन लेकर जीवन ज्योति शिक्षण संस्थान की नींव रखी। इस कार्य में उन्हें सर्वप्रथम आर.सी. जाल ट्रस्ट से 11 हज़ार की राशि सहयोग स्वरुप प्राप्त हुई। इस संस्थान में इस समय 8 सौ विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वहीं स्थापित निराश्रित बाल गृह में 64 बच्चियां निवास कर रही हैं। वहां उनकी शिक्षा के साथ-साथ रोजगारमूलक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। इस संस्थान के माध्यम से उन्होंने अनुमानतः 40 हज़ार स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाया। इस सेवा के लिए वर्ष 1999 में उन्हें नेहरु साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय रहते हुए भी वे भारतीय ग्रामीण महिला संघ के काम-काज प्राथमिकता देते हुए करती रहीं। कृष्णा जी के कठोर परिश्रम के कारण ही अगस्त 1885 में केंद्र सरकार द्वारा साक्षरता कार्यक्रम और उसके लिए अपेक्षित तकनीकी सहायता एवं संसाधन उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से प्रदेश का पहला ‘राज्य संसाधन केंद्र’ शुरू करने का जिम्मा उनकी संस्था को दिया गया।

इन्हें भी पढ़िये -

जयवंती हक्सर : कॉलेज के लिए संपत्ति दान कर दी और माँ कहलाईं


कृष्णा जी जीवनपर्यंत महिलाओं की शिक्षा के लिए समर्पित रहीं। उन्होंने इस क्षेत्र में अलग-अलग प्रयोगों के अलावा परिवार कल्याण और स्वरोजगार जैसे कई कार्यक्रम शुरू किए। उनकी पहली जंग तो निरक्षरता के ख़िलाफ़ ही थी, लेकिन वे शिक्षा को कौशल से जोड़ने की भी पक्षधर थीं। उन्हें कभी किसी ने आराम करते हुए नहीं देखा, 52-53 की आयु में जब वे गंभीर रूप से अस्वस्थ हुईं तब भी नहीं। लेकिन 11 जून 1991 को हमेशा के लिए थककर सो गईं। उनकी सबसे बड़ी पुत्री भारती भराणी इंदौर की सुप्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। पुत्र अमिताभ इंजीनियर हैं, पुत्री शक्ति दलाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़ी हुई हैं और सबसे छोटे बेटे आदित्य, इंदौर के सुप्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ हैं। आदित्य जी की पत्नी श्रीमती अंजलि अग्रवाल, कृष्णा जी की विरासत को सँभालते हुए समाज सेवा के कार्यों में संलग्न हैं और उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रही हैं।

सन्दर्भ स्रोत : कृष्णा जी पुत्रवधू अंजलि अग्रवाल द्वारा संप्रेषित कुछ मौलिक एवं कुछ प्रकाशित सामग्री और उनसे सारिका ठाकुर की चर्चा पर आधारित

© मीडियाटिक 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सुषमा स्वराज : विदिशा की सांसद बन विदेश मंत्री के ओहदे पर पहुंचीं
ज़िन्दगीनामा

सुषमा स्वराज : विदिशा की सांसद बन विदेश मंत्री के ओहदे पर पहुंचीं

सुरुचिपूर्ण पहनावा, बड़ी-बड़ी आंखें, माथे पर बड़ी गोल लाल रंग की बिंदी, शालीन चेहरा और वक्तृत्व कला में निपुण सुषमाजी गृ...

मुकदमे के बजाय समझौते के लिए प्रोत्साहित करती थीं शिप्रा शर्मा
ज़िन्दगीनामा

मुकदमे के बजाय समझौते के लिए प्रोत्साहित करती थीं शिप्रा शर्मा

जिस दौर में शिप्रा शर्मा न्यायिक सेवा में पहुंची उस समय इक्का दुक्का महिलाएं ही इस क्षेत्र में सक्रिय थीं। 31 साल और 8 म...

इंदु मेहता : ऐसी कॉमरेड जो आज़ादी के लिए आखिर तक लड़ती रहीं
ज़िन्दगीनामा

इंदु मेहता : ऐसी कॉमरेड जो आज़ादी के लिए आखिर तक लड़ती रहीं

सीपीआई की कर्मठ कार्यकर्ता इंदु मेहता ने अपनी किशोरावस्था और जवानी में ही अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी का ख़्वाब अपनी आँख...

नाटक से लेकर नेशनल चैंपियनशिप तक परचम लहराया नाज़नीन हमीद ने
ज़िन्दगीनामा

नाटक से लेकर नेशनल चैंपियनशिप तक परचम लहराया नाज़नीन हमीद ने

नाजनीन हमीद, जिन्होंने खेल की शुरुआत दौड़ और ऊंची कूद से की लेकिन वे राष्ट्रीय चैम्पियन बनी वॉलीबॉल की।

मीता दास: कवियत्री जिन्होंने अनुवादक के रूप में बनाई पहचान
ज़िन्दगीनामा

मीता दास: कवियत्री जिन्होंने अनुवादक के रूप में बनाई पहचान

अब तक बांग्ला और हिंदी के कई प्रतिष्ठित रचनाकारों के ग्रंथों का मीता जी अनुवाद कर चुकी हैं और यह सफ़र आज भी जारी हैं।

सपनों को हकीकत में बदलने वाली फिल्मकार : शिल्पी दासगुप्ता
ज़िन्दगीनामा

सपनों को हकीकत में बदलने वाली फिल्मकार : शिल्पी दासगुप्ता

शिल्पी ने एक लीक से हटकर कहानी पर काम करना शुरू कर दिया जो ‘ख़ानदानी शफ़ाख़ाना’ के नाम से सामने आई।