कला बाई श्याम : गोंड चित्रकला को पहचान दिलाने वाली अंतरराष्ट्रीय कलाकार

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कला बाई श्याम : गोंड चित्रकला को पहचान दिलाने वाली अंतरराष्ट्रीय कलाकार

छाया : मस्ट आर्ट गैलरी

लोक कलाकार

कलावती श्याम ( Kalavati Shyam ) अपनी कलात्‍मक अभिव्‍यक्ति के लिए कैनवास, ब्रश और एक्रिलिक रंग का इस्‍तेमाल करने वाली प्रथम गोंड परधान महिला थीं। दूसरे शब्दों में वे पहली महिला गोंडी चित्रकार (Gond Artist) थीं।  उनके चित्रों में बाघ, हिरण,पेड़ और पक्षी प्रमुखता से दिखाई देते थे। बाघ उन्हें विशेष रूप से इसलिए भी प्रिय थे, क्योंकि अपने बचपन में उन्होंने बाघों को  आसपास के जंगलों में घूमते देखा था। उन्होंने बाघ के कई रूप देखे, और उन्हें चित्रों में उतारा भी। कलावती का जन्म ग्राम पाटनगढ़, जिला-डिंडोरी में हुआ था। श्री सोन साय टेकाम और श्रीमती ललिया बाई की बेटी कला का ब्याह उनके ही गांव के आनंद सिंह श्याम (anand singh shyam) के साथ महज सात वर्ष (7 वर्ष) की उम्र में हो गया था।

भोपाल में जब बहुकला केन्द्र भारत भवन (bharat bhavan) का निर्माण हो रहा था, तब आदिवासी कलाकारों (Tribal Artists) की खोज करने चित्रकारों की सर्वे टीम डिंडोरी के पाटनगढ़ गांव गई थी। इस टीम में श्री अशोक साठे एवं श्री विवेक टेम्बे प्रमुख थे। कलाबाई तब 16 साल की थीं और गाँव में बकरी चराती थीं। उनके साथ स्व. जनगढ़ सिंह श्याम भी गाय-बकरी चराते थे। जनगढ़ चूँकि गोंडी चित्रकारी करते थे इसीलिए उन्हें भारत भवन बुला लिया गया। जबकि कलावती अपने पति आनंद के साथ जबलपुर चली गईं। छ:-सात साल वहां रहने के बाद आनंद श्याम की भी नौकरी भारत भवन के ग्राफिक विभाग में लग गई और कलाबाई उनके साथ भोपाल आ गईं। भारत भवन में इसी दौरान महिला चित्रकारों का पहला शिविर आयोजित हुआ, जिसमें कलावती भी शामिल हुईं। किसी कलाकार ने उन्हें कागज़ दिया तो उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वे कागज़ के बजाय दीवार पर काम करेंगीं। उन्‍होंने दीवार पर एक बाघ का चित्र बनाया, जिसे सभी लोगों ने बहुत सराहा। इसके बाद कलाबाई, मशहूर चित्रकार जे. स्वामीनाथन के सानिध्य में काम करती रहीं।

जापान प्रवास में जनगढ़ सिंह श्याम (Jangarh Singh Shyam) के असामयिक निधन के बाद आनंद और कलावती इस चित्रकला को आगे बढ़ाने के लिए भोपाल और दिल्ली में सामूहिक प्रदर्शनियां (Exhibitions) करने लगे। वन्या प्रकाशन, कला परिषद, भारत भवन और इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय का सहयोग उन्हें इस काम में मिलता रहा। वे नए चित्रकारों को इन आयोजनों में शामिलकरते रहे  और इस तरह गोंडी चित्रकला की परम्परा का विस्तार तथा विकास करते रहे। इन्होंने नर्मदा प्रसाद तेकाम, वेंकट रमन सिंह श्याम, विजय श्याम, सुरेश धुर्वे, भज्जू श्याम, रामसिंह उवेती, दुर्गा श्याम, मयंक और ननकुसिया बाई जैसे अनेक चित्रकारों को आगे बढ़ने की प्रेरणा और सहयोग दिया।

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जब मध्‍यप्रदेश से विभाजित करके छत्‍तीसगढ़ बनाया गया तो कलावती और आनंद सिंह श्‍याम ने मध्‍यप्रदेश का नया नक्‍शा बनाया। इस नक्‍शे का विमोचन भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्‍दुल कलाम द्वारा किया गया था। डॉ. कलाम ने उनसे उनकी संस्‍कृति तथा जीवन-शैली के बारे में अनेक प्रश्‍न पूछे। बाद में उन्‍होंने कर्मा नृत्‍य की उनकी एक पेंटिंग खरीदी। एक अन्‍य स्‍मरणीय घटना तब घटी, जब स्‍कॉटलैंड के एक फिल्‍म एनिमेटर जेस्‍ली ने कलावती और अन्‍य कलाकारों को गोंड लोककथा को चित्रांकित करने के लिए काम पर लगाया जिसे बाद में तारा द्वारा एनिमेटेड फिल्‍म में परिणत किया गया। इस फिल्‍म को स्‍कॉटलैंड में टॉलेस्‍ट स्‍टोरी कंपीटिशन में पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।

देश के विभिन्न प्रमुख शहरों -जैसे उदयपुर, जबलपुर, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, चण्डीगढ़, कोलकता, चैन्नई, बैंगलोर, सूरत, इलाहाबाद, नागपुर और खजुराहो आदि में कलाबाई और आनंद के चित्रों की प्रदर्शनियां तो लगीं ही, इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, जापान, स्कॉटलैंड, जर्मनी, स्पेन, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, पोलैंड और नीदरलैंड में भी उन्हें अपनी कला प्रदर्शित करने के अवसर उन्हें मिले। गोंडी चित्रकारी को पहचान दिलाने के लिए दोनों की लगन और मेहनत का कोई सानी नहीं है।

1. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्राहलय द्वारा ग्राम-पाटनगढ़, जिला-डिंडोरी में चित्र शिविर एवं प्रदर्शनी (सन् 1993)
2. दक्षिण मध्य क्षेत्र नागपुर द्वारा आयोजित जनजाति चित्र शिविर, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) (सन् 1994)
3. भारत भवन, भोपाल द्वारा आयोजित फाइन आर्ट मध्यप्रदेश पार्ट-2 नामक प्रदर्शनी, नई दिल्ली (सन् 1995)
4. गोंडवाना उत्सव जबलपुर, मध्यप्रदेश में आदिवासी गोंडी कला चित्रकला प्रदर्शनी, साज सज्जा (सन् 1996)
5. सामूहिक आदिवासी चित्रकला प्रदर्शनी, भोपाल (सन् 1997)
6. प्रगति मैदान, मध्यप्रदेश हाउस, नई दिल्ली (सन् – 1997) भोपाल (सन् 1998)
7. खजुराहो सन् 1998, पूना एवं मंदसौर सन् 1999, भोपाल।
8. खजुराहो सन् 1999), नई दिल्ली सन् 2000 क्राफ्ट म्यूजियम, नई दिल्ली सन् 2000
9. अमरकंटक सन 2000, दिल्ली सन् 2000, अनादि, नई दिल्ली सन् 2000

भागीदारी :
1. आदिवासी लोककला परिषद पचमढ़ी द्वारा पचमढ़ी में, 1993, 94, 95, 96 सह-कलाकार
2. आदिवासी लोककला परिषद द्वारा आयोजित महेश्वर उत्सव मध्यप्रदेश में साज-सज्जा हेतु 1994
3. नागर कला एवं आदिवासी लोक चित्र शिविर, चंडीगढ़ सन्-1995
4. भारत भवन चित्र शिविर पार्ट-2, भोपाल सन् 1995
5. आदिवासी लोककला परिषद, चित्र शिविर भोपाल सन् 1996
6. भारत भवन द्वारा आयोजित मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चित्र शिविर – 1996
7. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा आयोजित भारत, ऑस्ट्रेलिया के तत्वाधान में आदिवासी डाट चित्र शिविर (केन को लबंग के आतिथ्य में) सन् 1997
8. अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला, प्रगति मैदान, एम.पी. हाउस, नई दिल्ली सन् 1997
9. ट्रायफेड चित्रकला प्रदर्शनी, भोपाल सन् 1998
10. एच.एस.व्ही.एन. चित्रकला प्रदर्शनी, मंदसौर भोपाल-1999
11. प्रगति मैदान क्राफ्ट म्यूजियम, नई दिल्ली, खजुराहो सन् 2000
12. नागपुर, खजुराहो, अमरकंटक, नई दिल्ली आकसक-भोपाल रीति सन् 2000
13. छत्तीसगढ़ आर्ट फाउण्डेशन, चित्र शिविर, रायपुर सन् 2001 संग्रह –
1. आदिवासी लोककला परिषद, भोपाल (म.प्र.)
2. भारत भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल (म.प्र.)
3. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्राहलय, भोपाल (म.प्र.)
4. मृगनयनी, भोपाल (म.प्र.)
5. ट्रायफेड, भोपाल (म.प्र.)
6. सा.से.जो. नागपुर (महाराष्ट्र)
7. प्रगति मैदान, नई दिल्ली (भारत)

इसके अतिरिक्त देश-विदेश के अनेक संग्रहालयों में उनकी कृतियाँ संग्रहित हैं। नवम्बर 2020 में बीमारी के चलते कलावती का निधन हो गया।  

स्रोत : ‘कला समय’ में श्री विजय काटकर का आलेख तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की वेबसाइट

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