छाया : उर्मिला शिरीष के फेसबुकअकाउंट से
प्रमुख लेखिका
उर्मिला शिरीष हिंदी साहित्य जगत में एक मजबूत हस्ताक्षर मानी जाती हैं। इनका जन्म 19 अप्रैल 1959 को मध्यप्रदेश दतिया जिले में एक सभ्रांत, प्रतिष्ठित और उच्च शिक्षित परिवार में हुआ। पिता डॉ. डी.पी. गोस्वामी उद्योगपति थे एवं माता श्रीमती गिरिजा देवी गोस्वामी एक सरल सहज घरेलू महिला हैं। उर्मिला जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। पुनः मिडिल तक की शिक्षा डबरा में हुई। उन्होंने हायर सेकेण्डरी की परीक्षा मा. विद्यालय दतिया से प्रथम श्रेणी में पास की। अपनी मेधा का परिचय देते हुए उन्होंने स्नातक प्रथम श्रेणी से एवं स्नातकोत्तर की परीक्षा में प्रवीण्य सूची में तृतीय स्थान प्राप्त किया। गुरुनानकदेव विश्वविद्यालय, अमृतसर से ‘मोहन राकेश के कथा साहित्य में नारी पात्रों का अध्ययन’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 2010 में ‘गोविन्द मिश्र के कथा साहित्य में भारतीयता की अवधारणा’ विषय पर डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की।
इनका विवाह 23 अप्रैल 1985 को डॉ. शिरीष शर्मा से हुआ। वह पेशे से चिकित्सक हैं तथापि साहित्य के प्रति सम्मान भाव रखते हैं। इसलिए इनका वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखद रहा। ससुराल के सदस्यगण भी साहित्यिक अभिरुचि वाले और उनके लेखन कार्य के प्रति सहयोगी सिद्ध हुए। वर्तमान में उर्मिला जी नूतन कॉलेज, भोपाल में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं। इनके दो पुत्र हैं, बड़े पुत्र दुष्यंत शर्मा फ्लोरिडा में एक निजी कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं एवं छोटे पुत्र कनिष्क शर्मा टेक्सास में निवास करते हैं और अमेरिकी फ़ौज में उच्च पद पर कार्यरत हैं।
उर्मिला जी को बचपन से ही अपने परिवार में साहित्यिक वातावरण प्राप्त हुआ। इनके पूर्वजों में लेखन प्रतिभा थी जो इनमें पुनः जागृत हो गयी। परिवार में कोई लेखन कार्य नहीं करता लेकिन पढ़ने का शौक सभी को था। घर में पुस्तकों का अम्बार लगा हुआ था। पुस्तकों के बीच रहने के कारण उनसे सहज स्वाभाविक मैत्री भी स्थापित हो गया। स्कूली शिक्षा समाप्त होने तक वह देसी विदेशी सभी शीर्ष लेखकों की रचनाओं को पढ़ चुकीं थीं। कहा जा सकता है कि साहित्यिक लेखन की ज़मीन उसी दौर में तैयार होने लगी थी। लेखन की शुरुआत लेखों से हुई। इनकी प्रारंभिक कहानियां ग्वालियर से प्रकाशित ‘नवभारत’ के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित हुई, जिसके बाद कहानियों में ऐसा मन रमा कि लेख पीछे छूट गए। अब तक इनकी 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उर्मिला जी के साहित्य पर केरल, कर्णाटक में स्थित विश्वविद्यालयों के साथ-साथ बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कई छात्र अब तक पीएमडी एवं एमफिल की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं।
प्रकाशित कृतियाँ
- वे कौन थे (1983)
- मुआवज़ा (1985)
- केंचुली (1990)
- सहमा हुआ कल (1991)
- शहर में अकेली लड़की (1998)
- निर्वासन (2003)
- पुनरागमन (2005)
- लकीर तथा अन्य कहानियां (2011)
- रंगमंच (201 1)
- कुर्की और अन्य कहानियां (2012)
- ग्यारह लम्बी कहानियां (2013)
- मेरी प्रिय कथाएँ (2013)
- दीवार के पीछे (2015)
- उर्मिला शिरीष की श्रेष्ठ कहानियां (2016)
- बिवाईयाँ तथा अन्य कहानियां (2018)
- उर्मिला शिरीष की लोकप्रिय कहानियां (2019)
- नाच गान (कहानी संग्रह) (2019)
- ख़ैरियत है हुज़ूर (2021)
जीवनी: बयावां में बहार (गोविन्द मिश्र की जीवनी) (2014)
साक्षात्कार: शब्दों की यात्रा के साथ (2014)
सम्पादित कहानी संग्रह:
- खुशबू, राजेश प्रकाशन, दिल्ली 1993
- धूप की स्याही, राजेश प्रकाशन, दिल्ली 1987
- जीवन-मृत्यु (अस्पताल जीवन की कहानियां)
सम्पादित पुस्तकें:
- प्रभाकर श्रोत्रिय: आलोचना की तीसरी परंपरा, दिल्ली (2006)
- हिंदी भाषा एवं समसामयिकी (2002)
- सृजनयात्रा: गोविन्द मिश्र (2001)
- चित्रा मुद्गल: सृजन के विविध आयाम
टेलीफिल्म
दूरदर्शन द्वारा कहानी ‘पत्थर की लकीर पर आधारित प्रसारित टेलीफिल्म
उपलब्धियां:
- समर स्मृति साहित्य पुरस्कार ‘शहर में अकेली लड़की’ कहानी संग्रह केलिए (1999)
- मध्यप्रदेश साहित्य सम्मलेन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार कहानी संग्रह रंगमंच केलिए (2001)
- कहानी संग्रह ‘निर्वासन’ को निर्मल पुरस्कार (2005)
- कहानी संग्रह ‘पुनरागमन’ को विजय वर्मा कथा पुरस्कार (2006)
- शैलेश मटियानी चित्राकुमार कथा सम्मान (2013)
- कृष्ण प्रताप कथा सम्मान (2013)
- लीलावती फाउंडेशन द्वारा रामदास तिवारी सम्मान (2014)
- कमलेश्वर कथा सम्मान (2016)
- मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार (2016)
रिसर्च अवार्ड :
यू.जी.सी. द्वारा स्वीकृत रिसर्च अवार्ड के अंतर्गत ‘भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्री का संघर्ष तथा उसकी बदलती हुई छवि’ आधुनिक कथा साहित्य के संदर्भ में विषय पर शोध कार्य
स्व सम्प्रेषित
© मीडियाटिक
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