छाया: भाविका शर्मा
अपने क्षेत्र की पहली महिला
• किरण बेदी के बाद देश की दूसरी और मप्र की पहली महिला पुलिस अधिकारी बनीं आशा गोपाल
• उस समय देश भर में मात्र 16 महिलाएं पुलिस सेवा में थीं
• शिवपुरी से डाकुओं का किया सफाया और ग्वालियर में मजनुओं के खिलाफ छेड़ा था अभियान
उस दौर में जब समाज में इतना खुलापन नहीं था और लड़कियों के लिए गृहस्थी ही श्रेयस्कर मानी जाती थी, आशा गोपाल ने पुलिस की कठिन और अनगिनत चुनौतियों से भरी नौकरी को अपना करियर बनाने का साहसिक निर्णय लिया। 1976 में उन्होंने केंद्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके अगले साल वे भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुईं। उस समय देश भर में सिर्फ़ 16 महिलाएं इस सेवा में थीं। किरण बेदी के बाद देश की दूसरी और मप्र की पहली आईपीएस अधिकारी आशा जी ने अपनी सूझबूझ और गहरी समझ के साथ पुलिस बिरादरी में अपना एक अलग स्थान बनाया।
इन्हें भी पढ़िये -
चांसलर बनने वाली देश की पहली महिला मृणालिनी देवी
उनकी पहली पदस्थापना दस्यु प्रभावित शिवपुरी ज़िले में हुई। इस दौरान उन्होंने अनेक डाकुओं का सफाया किया। यह पहला ऐसा अभियान था, जिसका नेतृत्व एक महिला अधिकारी ने किया। एक यात्रा के दौरान निर्जन सड़क पर वाहन चालक के बार-बार अकारण हॉर्न बजाने से आशा जी उद्वेलित हो उठीं। उन्हें अपनी प्रत्युत्पन्नमति से आभास हुआ, कि शायद वाहन चालक दस्युओं को किसी तरह का संकेत दे रहा है। इस पर उन्होंने तुरंत वाहन चालक को उसी जगह उतार दिया और स्वयं गाड़ी लेकर आगे बढ़ गईं। इसी तरह ग्वालियर पुलिस अधीक्षक के पद पर रहते हुए उन्होंने मजनुओं के खिलाफ जो कार्रवाई की उसे लोग आज भी याद करते हैं। 1976 बैच की आशा गोपाल के सहकर्मी आईपीएस अधिकारी नंदन दुबे का कहना है, कि चुनौतीपूर्ण पदस्थापनाओं पर रहते हुए भी उन्होंने कभी भी महिला होने की छूट नहीं ली। जिस भी हालत में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी गई, उसे उन्होंने बड़ी निष्ठा और तत्परता से निभाया।
इन्हें भी पढ़िये -
मध्यप्रदेश की पहली महिला राज्यसभा सदस्य सीता परमानंद
आशा जी सन 1987 मेें जबलपुर की पुलिस अधीक्षक थीं। उस दौरान क्राइम ब्रांच के प्रभारी रहे अनिल वैद्य बताते हैं कि आशा जी बेहद सख़्त अफ़सर थीं। उनका ऐसा ख़ौफ़ था कि बड़े-बड़े गुंडे उनके नाम सुनते ही कांप उठते थे। उन्होंने अभियान चलाकर दर्जनों गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। सटोरियों, जुआरियों को पकड़कर शहर से दूर डुमना में छोड़ दिया जाता था। उनकी कार्यशैली का हर कोई मुरीद हो गया था। जबलपुर में अपराध और अपराधी दोनों ही कम हो गए। करीब सात माह के कार्यकाल के बाद उनका तबादला सागर कर दिया गया। यह मालूम होते ही जनता सड़क पर आ गई। लोगों ने एक स्वर में उनका स्थानांतरण आदेश वापस लेने की मांग की। चेंबर ऑफ़ कॉमर्स जैसे संगठनों ने भी खुलकर जनता की मांग का समर्थन किया। ऐसे में खुद आशा जी ने आगे आकर लोगों से कहा कि सरकारी नौकरी में स्थानांतरण एक सामान्य प्रक्रिया है। उनकी इस समझाइश पर ही जनता मानी थी।
14 सितम्बर 1952 को जन्मीं आशा जी ने भोपाल महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय से 1971 में जीव विज्ञान में एम.एससी किया था। उनके पिता मदन गोपाल एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे, जबकि माँ तारा एक शिक्षाविद थीं। 1999 में उन्होंने जर्मनी के स्ट्रेटेजिक पुलिस महकमे के वरिष्ठ अधिकारी क्लॉ वॉन डर फ़िंक को अपना जीवन साथी बनाया। पुलिस सेवा में 24 साल बिताने के बाद जब वे महानिरीक्षक के पद पर थीं तब उन्होंने स्वैच्छिक सेवनिवृत्ति ले ली। 1982 में इंडिया टुडे जैसी प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका ने आशा जी को पूरा एक पृष्ठ समर्पित किया था। दस्यु प्रभावित क्षेत्र में निडरता पूर्वक कार्य करने के लिए आशा जी को 1984 में राष्ट्रपति की और से वीरता पदक प्रदान किया गया और सर्वोच्च सेवा पदक भी उन्हें प्राप्त हुआ। दूसरी ओर जर्मन सरकार ने उनके पति को हिंदुस्तान में उत्कृष्ट सामजिक कार्य के लिए सर्वोच्च सम्मान दिया। आशा जी “कलर्स ऑफ़ इंडिया” नामक पुस्तक की लेखिका भी हैं। यह पुस्तक भारतीय समाज, लोगों और सरकारी तंत्र पर अलग तरह से रोशनी डालती है।
इन्हें भी पढ़िये -
प्रसार भारती की पहली महिला अध्यक्ष मृणाल पाण्डे
वे न केवल डकैतों और मजनुओं के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाए जाने के लिए याद की जाती हैं, बल्कि सड़कों और रेलवे प्लेटफार्म पर घूमते बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए भी जानी जाती हैं। ऐसे बच्चों को स्वावलम्बी बनाने की दिशा में उनकी पहल ने उन्हें दुनिया में खास स्थान दिलाया। सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद उन्होंने भोपाल के पीपलनेर इलाके में अनाथ बच्चों को घर जैसा वातावरण मुहैया कराने के लिए नित्य सेवा सोसायटी की स्थापना की, जिसे अब मेजर जनरल ( सेवानिवृत्त ) श्याम श्रीवास्तव और उनकी पत्नी निशी श्रीवास्तव संभाल रहे हैं। सोसायटी में इस समय तीन साल के बच्चों से लेकर 20 साल तक के किशोर हैं, नित्य सेवा संस्था में जिनकी पढ़ाई से लेकर समुचित प्रशिक्षण और नौकरी दिलवाने तक का काम बख़ूबी किया जा रहा है।
संदर्भ स्रोत: आशा गोपाल -आईपीएस ब्लॉग स्पॉट, दैनिक भास्कर एवं पत्रिका
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *