इतिहास के गर्द में गुम एक खेल सितारा -अविनाश सिद्धू

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इतिहास के गर्द में गुम एक खेल सितारा -अविनाश सिद्धू

छाया सौजन्य : डॉ. अरविन्द लेले 


• सारिका ठाकुर

वक्त के साथ-साथ हमें दुनिया वाले ही नहीं भूलते, कभी-कभी हम खुद को भी भूलने लगते हैं। मगर कुछ यादें जेहन में अमिट होती हैं।

दिनांक 25 जनवरी 2023, पहले से तय समय पर मैं अपने जमाने की सुप्रसिद्ध  वॉलीबॉल और हॉकी खिलाड़ी डॉ. अविनाश सिद्धू से फोन पर साक्षात्कार ले रही हूँ.....

“मैम, आपने ग्रेजुएशन कब किया?” मैं पूछती हूँ।

“1962 में कॉलेज में एडमिशन हुआ और 1965 में पास हुई।” सहज भाव से वह उत्तर देती हैं।

“आपकी याददाश्त बहुत शार्प है मैम”। मैं उनकी तारीफ़ करती हूँ। वे हंसी। बहुत ही छोटी सी हंसी जो हंसने जैसी भी नहीं थी। वे कई सवालों के जवाब इस तरह देती हैं जैसे वह कल की ही बात हो और कुछ सवालों के सपाट जवाब देकर इस तरह आगे बढ़ जातीं जैसे वक़्त के उस हिस्से में कोई जंगल उग आया हो। थोड़ी देर बाद उनकी छोटी बहन डॉ. अरविन्द लेले से चर्चा होती है और वे बताती हैं –अविनाश पिछले दो-तीन सालों से डिमेंशिया ( स्मृति लोप की समस्या ) से पीड़ित हैं। मेरे कानों में फिर वही हंसी उभरती है और मेरे सामने से एक भूतपूर्व सुप्रसिद्ध खिलाड़ी की जिन्दगी रेल की तरह धड़धड़ाती गुज़र जाती है।

डॉ. सिद्धू के पिता श्री बलवंत सिंह वन विभाग में कार्यरत थे, जिनका अक्सर तबादला हुआ करता था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को ध्यान में रखते हुआ परिवार स्थायी रूप से जबलपुर में ही निवास करता था। उनकी माँ श्रीमती हरभजन कौर गृहणी थीं। पिता की गैरमौजूदगी में बच्चों की परवरिश में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। हरभजन जी का मायके जालंधर में था और अविनाश जी का जन्म वहीं 6 नवम्बर 1947 में हुआ। चार बहन और एक भाई में उनका स्थान दूसरा है। प्रारंभिक शिक्षा घर में ही हुई। पिता अपनी बेटियों को लेकर जागरूक थे इसलिए उस जमाने में भी अविनाश या उनकी बहनों को पढ़ाई या खेल-कूद को लेकर कभी रोक-टोक का सामना नहीं करना पड़ा। खुशहाल बचपन की वजह से सभी बच्चों ने अपने-अपने जीवन में सफलताएं अर्जित कीं।

अविनाश जी ने जबलपुर के महारानी लक्ष्मीबाई हायर सेकेंडरी स्कूल पढ़ाई की। स्कूल के खेल-कूद में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। तब तक हॉकी से उनका परिचय नहीं हुआ था, बास्केट बॉल और वॉलीबॉल आदि उनके पसंदीदा खेल थे। हायर सेकेंडरी के बाद वर्ष 1962 में उनका दाखिला गवर्नमेंट आर्ट स्कूल, जबलपुर में हुआ। जबलपुर के ही बोडल हाई स्कूल के मैदान में हॉकी का खेल हुआ करता था। अविनाश  वहाँ तक कैसे पहुंचीं, बता  नहीं पाती हैं।  उनकी स्मृति में सिर्फ यही अंकित है कि उन्हें हॉकी का शौक था, इसलिए वे भी खेलने लगीं लेकिन  वॉलीबॉल का साथ भी बना रहा। वॉलीबॉल का अभ्यास एक अलग मैदान पर करती थीं जिसका नाम उन्हें याद नहीं।

उन दिनों सभी भाई-बहन अपनी-अपनी साइकिल पर स्कूल और खेल के मैदान जाया करते थे। टीम इंडिया तक अविनाश ही पहुंची लेकिन सभी भाई-बहन खेल में अव्वल थे। वे बताती हैं कि उस समय जिला स्तर पर हॉकी के मैच नहीं होते थे। हायर सेकेंडरी स्कूल का आयोजन राज्य स्तर पर हुआ करता था जिसकी टीम में वे अक्सर चुनी जाती रहीं। राज्य स्तरीय पहले मैच की स्मृति उन्हें नहीं है लेकिन 70 के दशक के शुरुआत में वे पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने जापान गयी थीं, उन्हें अच्छी तरह याद है।

स्नातक की उपाधि के बाद उन्होंने राजनीतिशास्त्र से स्नातकोत्तर किया, जिसके बाद पंजाब में लुधियाने के पास एक ‘सिधवा’ नाम की छोटी सी जगह थी जहां के ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन’ में वे व्याख्याता बन गयीं। अविनाश जी के खेल के अनगिनत प्रशंसकों में से एक हैं कथाकार पंकज स्वामी, जिन्होंने अपने ब्लॉग ‘जबलपुर चौपाल’ में उन पर एक लेख लिखा है, जिसमें हमें अपनी समस्या का समाधान मिला।  इन जानकारियों के बिना अविनाश जी  के जीवन वृत्त को पूरा कर पाना संभव ही नहीं था। अविनाश जी के जीवन वृत्त का यह अगला हिस्सा वहीं से उद्धृत है -

 

"कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण जब एक खेल में भारत के लिए प्रतिनिधित्व करना मुश्किल हो, तब दो खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करना विशिष्ट उपलब्धि ही कही जाएगी। यह उपलब्धि जबलपुर की डा. अविनाश कौर सिद्धू ने हासिल की है। उन्होंने वर्ष 1967 से वर्ष 1975 तक भारतीय महिला हॉकी टीम और वर्ष 1970 में भारतीय वॉलीबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया है। डॉ. सिद्धू का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे पिछले तीन दशकों से हॉकी से जुड़ी हुई हैं और विभिन्न संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और प्रदेश की टीमों को हॉकी का प्रशिक्षण देती आ रही हैं। उन्होंने जर्मन कॉलेज ऑफ़ फ़िज़िकल कल्चर से स्पोट्‌र्स साइकोलॉजी में मास्टर ऑफ़ स्पोर्ट की डिग्री प्राप्त की और इसी संस्थान से उन्होंने स्पोट्‌र्स साइकोलॉजी में डॉक्टरेट भी की है। उन्होंने सन्‌ 1972 से वर्ष 2001 तक लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान, ग्वालियर (एल एन पी आई) में अध्यापन कार्य किया है। 

 

वर्ष 2001 में प्राध्यापक पद से अविनाश जी  ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके तुरंत बाद उन्होंने वर्ष 2005 तक बांग्लादेश इंस्टीट्‌यूट ऑफ़ स्पोर्ट, ढाका में स्पोट्‌र्स साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्य किया। उन्होंने दस खेलों - हॉकी, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, फुटबॉल, जिम्नास्टिक, शूटिंग, स्विमिंग, टेनिस और ट्रैक एंड फील्ड में बांग्लादेश की राष्ट्रीय टीमों को सहायता प्रदान की। मेनचेस्टर कॉमनवेल्थ गेम्स 2004 में बांग्लादेश के स्वर्ण पदक जीतने वाले शूटर मो. आसिफ़ को उन्होंने मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया था। वर्ष 2004 के इस्लामाबाद सैफ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले मो. आसिफ़ के साथ-साथ शर्मीन को भी डा. सिद्धू की मनोवैज्ञानिक सहायता मिली थी।


डॉ. सिद्धू वर्ष 1968 में आयोजित प्रथम एशियाई महिला हॉकी चैम्पियनशिप में भारतीय टीम की कप्तान रही हैं। भारतीय टीम ने इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। इसी प्रतियोगिता के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें 'ऑल स्टार एशियन इलेवन' में चुना गया। इसके पश्चात डा. अविनाश सिद्धू ने श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, जापान, हांगकांग, यूगांडा, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, स्पेन, स्कॉटलैंड के विरूद्ध खेली गई टेस्ट सीरीज में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और इन देशों के विरुद्ध टेस्ट सीरीज में विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डा. सिद्धू ने ऑकलैंड (न्यूज़ीलैंड), बिलबाओ (स्पेन) और एडिनबर्ग (स्कॉटलैंड) में आयोजित इंटरनेशनल फेडरेशन वूमेन हॉकी एसोसिएशन के टूर्नामेंट, जो कि विश्व कप के समकक्ष माना जाता है, में भी भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया।

डॉ. सिद्धू ने वर्ष 1962 से वर्ष 1974 तक महाकौशल महिला हॉकी टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने वर्ष 1963, 1965 और 1966 में अंतर विश्वविद्यालयीन महिला हॉकी प्रतियोगिता में जबलपुर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1965 में जबलपुर विश्वविद्यालय की टीम उपविजेता रही। इस टीम का नेतृत्व भी अविनाश सिद्धू ने ही किया था। उन्होंने वर्ष 1968 में पंजाबी यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व भी किया। सक्रिय हॉकी से अवकाश लेने के पश्चात उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं में अंपायरिंग भी की है। जिसमें 10 वें एशियन गेम्स सियोल, द्वितीय इंदिरा गांधी इंटरनेशनल विमेंस हॉकी टूर्नामेंट नई दिल्ली, एशियन जूनियर विमेंस हॉकी वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग टूर्नामेंट, तृतीय इंटरनेशनल कप फॉर विमेंस हॉकी, 11 वें एशियन गेम्स बीजिंग (फाइनल मैच में ऑफिशियल), चतुर्थ इंदिरा गांधी इंटरनेशनल विमेन हॉकी टूर्नामेंट जैसी प्रमुख प्रतियोगिताएं हैं। डा. सिद्धू 1994 हिरोशिमा गेम्स में भी अंपायर के रूप में चुनी गईं थीं।


सन् 1970 में डॉ.अविनाश सिद्धू ने भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम का नेतृत्व भी किया। इसके अलावा राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई बार उन्होंने मध्यप्रदेश की टीम का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने एथलेटिक्स (ट्रैक एंड फील्ड) के अंतर्गत 20 वें नेशनल गेम्स में 4X100 रिले और 800 मीटर दौड़ में भाग लिया और रिले में कांस्य पदक जीता। 1963-64 में उन्हें जबलपुर विश्वविद्यालय का सर्वश्रेष्ठ एथलीट घोषित किया गया। 1964 में नेशनल बास्केटबॉल चैम्पियनशिप में मप्र की टीम का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1963 एवं 1965 में डा. सिद्धू ने इंटर यूनिवर्सिटी बास्केटबॉल  टूर्नामेंट में जबलपुर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। दोनों प्रतियोगिताओं में वे टीम की कप्तान भी रहीं। वर्ष 1975 में हॉकी में उत्कृष्ट और उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए डा. सिद्धू को मध्यप्रदेश शासन ने विक्रम अवार्ड से सम्मानित किया।

महिला हॉकी में डॉ. अविनाश सिद्धू ने भारतीय महिला हॉकी टीम की मैनेजर के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। वर्ष 1983 से 1985 तक वे भारतीय टीम की चयनकर्ता रही हैं और भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। उनकी पहचान एक श्रेष्ठ कोच के रूप में भी है। डॉ. सिद्धू अपनी छोटी बहन डॉ. अरविन्द लेले के साथ जबलपुर में रहती हैं। खेल में मसरूफ़ियत और अलहदा नज़रिए के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया। ख़ुशी की बात यह है कि अकेली नहीं, बल्कि अपनी छोटी बहन की स्नेहिल देखरेख में हैं।  

संदर्भ स्रोत : डॉ.अविनाश सिद्धू से बातचीत और कथाकार पंकज स्वामी के ब्लॉग 'जबलपुर चौपाल' पर प्रकाशित आलेख के आधार पर 

 

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