छाया : स्क्रॉल डॉट इन
विशिष्ट महिला
• राकेश दीक्षित
अपने 75 वें जन्मदिन से एक हफ़्ते पहले प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पद्मभूषण ईशर जज अहलूवालिया (Economist Isher Judge Ahluwalia) ने 26 सितम्बर, 2020 को इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया। मृत्यु के मात्र दो महीने पहले ही उनकी प्रेरक आत्मकथा ‘ब्रेकिंग थ्रू' (Autobiography 'Breaking Through') शीर्षक से छपकर आई थी। सरल अंग्रेजी में सहज प्रवाह के साथ उन्होंने इंदौर में जन्म से लेकर जीवनकाल के अंतिम दिनों में ब्रेन कैंसर से अपने संघर्ष को दर्ज किया है। ऊँची से ऊँची शिक्षा के लिए तड़प कैसे एक परम्परावादी निम्न मध्यमवर्गीय सिख लड़की में अदम्य साहस भरती जाती है,यह आत्मकथा उसकी गौरवशाली मिसाल है।
लाहौर में ईशर के दादा का अचार का छोटा -मोटा व्यवसाय था जो बढ़ते परिवार के बढ़ते खर्चों को पूरा करने के लिए नाकाफ़ी था। लिहाजा ईशर के पिता धंधे की तलाश में 1940 में इंदौर में बस गये। ईशर अपने माता -पिता की नौवीं संतान थीं। बाद में परिवार में दो बच्चे और बढ़ गए। इंदौर में धंधा मंदा रहा इसलिए परिवार 1950 में कलकत्ता आ गया। तब ईशर पांच साल की थी। कलकत्ता के हिन्दी माध्यम स्कूल में परिवार के बच्चों की पढ़ाई शुरू हुई। अपने सभी भाई -बहनों के मुकाबले ईशर पढ़ाई में तेज थी। कुशाग्र बुद्धि लड़की के लिए कदम -दर -कदम आगे बढ़ने के संयोग बनते गए। असाधारण अकादमिक सफलता ने उन्हें कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लेकर दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और फिर मेसाचुएट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमआईटी ) तक पहुंचा दिया। हर अकादमिक सफलता के बाद बढ़-बढ़ कर मिले वजीफे ने जहाँ ईशर के आत्मविश्वास में ज़बरदस्त वृद्धि की वहीं पिता की दकियानूसी सोच को बदल दिया। पिता गर्व से बेटी की सफलताओं का अपने मिलने-जुलने वालों से बखान करने लगे।
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इंदौर में 1अक्टूबर 1945 को जन्मी ईशर जज अहलूवालिया ने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता विश्वविद्यालय से बीए किया, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) से अर्थशास्त्र में पीएच.डी. किया। उनका शोध भारत में औद्योगिक विकास, मैक्रो-आर्थिक सुधार और शहरी क्षेत्रों के विकास पर केंद्रित रहा हैं
एमआईटी जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान में महान अर्थशास्त्रियों से शिक्षा लेने और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थान में ऊँची पगार पर नौकरी के बावजूद ईशर में भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति अगाध निष्ठा अंत तक बनी रही। वे सिख धर्म का पालन करती थीं। गुरुद्वारों में मत्था टेकना, अमेरिका में भी जारी रहा। गुरुबाणी और कीर्तन उन्होंने बचपन से गाना सीख लिया था। संयोग से उन्हें जीवन साथी भी सिख परिवार का उनकी ही तरह अत्यंत मेघावी अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह के रूप में मिला। लेकिन अहलूवालिया दंपत्ति में धार्मिकता के साथ उदार सोच थी। अपने दोनों बेटों को भारतीय जड़ों से जोड़े रखने की गरज से ही उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया। मोंटेक केन्द्रीय वाणिज्य विभाग में सीधी भर्ती से सचिव बन गये। ईशर ने अनुसंधान और शोध का काम हाथ में लिया। इंडियन कॉउन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन्स (ICRIER) की अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा तो मनवाया ही ,नारायणमूर्ति और उदय कोटक जैसे प्रसिद्ध उद्योगपतियों को भी इससे जोड़ा।
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भारत सरकार ने उन्हें 2008-2011 में शहरी अधोसंरचना के क्षेत्र में गठित की गई विशेषज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया था। सन 2010 में शिक्षा और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें पदमभूषण दिया गया।
उनकी पुस्तक ‘हमारे शहरों का रुपांतरण’ काफी चर्चित दस्तावेज़ हैं| यह किताब 2014 में आई किताब ‘ट्रांसफॉर्मिंग अवर सिटीज़ : पोस्टकार्ड्स ऑफ चेंज’ का हिंदी रुपांतरण है। किताब में 38 शहरों की कहानियां शामिल हैं। इसमें लिखा है कि किस तरह हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, इंदौर, जयपुर, मगरपट्टा और अन्य कई शहरों ने शहरीकरण की चुनौतियों का जवाब नवाचारी तरीकों से दिया है। वर्ष 2005 से दो वर्षों तक ईशर जज पंजाब राज्य योजना आयोग की उपाध्यक्ष भी रहीं।
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जहाँ मोंटेक सिंह ने भारत सरकार में रहकर उदारीकरण की आर्थिक नीतियों को बनाने और लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,वहीँ ईशर ने स्वतंत्र शोध के जरिये अर्थव्यवस्था पर अपनी छाप छोड़ी। अहलूवालिया दंपत्ति के प्रभावशाली मित्रों की लंबी सूची है। इनमे सबसे बड़ा नाम पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का है। ईशर के लिए मनमोहन सिंह घर के सम्माननीय बुजुर्ग और अर्थशास्त्र के गुरु थे, उसी तरह जैसे डॉ.अमर्त्य सेन और डॉ. भगवती थे।
ईशर जज ने आत्मकथा में मित्रों का सहज भाव से विशिष्ट सन्दर्भों में उल्लेख किया है ,पाठकों पर अपना रौब झाड़ने के लिए नहीं। ऐसा करना न ईशर को पसंद था न मोंटेक को। करीब 49 बरस के दाम्पत्य जीवन में दोनों ने पारिवारिक सुख चैन को सामाजिक नेटवर्क से ज्यादा महत्व दिया। दिल्ली के राजनीतिक माहौल में घुलने मिलने की बजाय अनुसंधान, अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों और बचे समय में ईशर बेटों की परवरिश में ध्यान देती थीं। पति की व्यस्तता के चलते उन्हे परिवार पर अतिरिक्त ध्यान देना पड़ता था और इसमें उन्हें सुख मिलता था।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।
© मीडियाटिक
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