राजस्थान हाईकोर्ट : पत्नी को आत्महत्या के लिए

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राजस्थान हाईकोर्ट : पत्नी को आत्महत्या के लिए
उकसाने का आधार नहीं बन सकता अवैध संबंध

पति या पत्नी के विवाहेतर संबंध क्या उसके पार्टनर को आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार हो सकते हैं और ऐसी घटना प्रथम दृष्टया कथित अपराध मानी जा सकती है। राजस्थान हाईकोर्ट ने मेघराज बनाम राजस्थान राज्य के केस में दिए गए अहम फैसले में स्थिति पूरी तरह स्पष्ट कर दी है। राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही ऐसे ही एक मामले में अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी। हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पति के विवाहेत्तर संबंध थे और पत्नी के मन में कुछ शक था। इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं माना जा सकता।

जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की सिंगल जज बेंच ने इस मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद कहा, "इस अदालत का विचार है कि मृतका के पति के अवैध संबंध के बारे में कुछ सबूत मौजूद हैं, लेकिन रिकॉर्ड पर कुछ अन्य स्वीकार्य प्रथम दृष्टया सबूतों के अभाव में आईपीसी की धारा 306 के तत्व, जिसमें महिला को आत्महत्या के लिए उकसाना शामिल है, प्रथम दृष्टया संतुष्ट नहीं पाए जा सकते।"  अदालत के फैसले में यह भी कहा गया कि विवाहेत्तर संबंध अपने आप में या इस तरह से उकसाने के दायरे में नहीं आते। केवल इसलिए कि पति विवाहेत्तर संबंध में शामिल है और पत्नी के मन में कुछ शक है, इसे आईपीसी की धारा 306 की सामग्री को संतुष्ट करने के लिए उकसाने के रूप में नहीं माना जा सकता। मृतका के मन में बोए गए संदेह के बीज ने अंततः त्रासदी को जन्म दिया, लेकिन ऐसी घटना प्रथम दृष्टया कथित अपराध नहीं होगी। इसलिए, याचिकाकर्ता की जमानत के लिए मामला बनता है।

यह आदेश पति की जमानत याचिका पर पारित किया गया। इस मामले में याचिकाकर्ता के ससुर (शिकायतकर्ता) ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि 2014 में उसकी बेटी ने आरोपी से शादी की थी। उसके ससुरालवालों और पति ने उसे परेशान किया, उसके साथ मारपीट की और उसके साथ दुर्व्यवहार भी किया। इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि मृतका का पति शराबी था और उसके किसी दूसरी महिला से अवैध संबंध थे और यह आरोपी के विवाहेत्तर संबंध थे। आरोप है कि अप्रैल में आरोपी पति के भाई ने ही शिकायतकर्ता पिता को फोन करके बताया कि उसकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जब वह अपनी बेटी के ससुराल पहुंचा, तो उसे शक हुआ कि उसकी हत्या की गई है और इसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की जा रही है। आरोपी के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि पत्नी ने शादी के 10 साल बाद अपनी मर्जी से आत्महत्या की थी। ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि उसके पति ने उसे आत्महत्या के लिए सक्रिय रूप से उकसाया था।

अदालत ने रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि मृतका के पिता ने अपने बयानों में मृतक बेटी को किसी भी प्रकार के उकसावे के संबंध में कुछ नहीं कहा है। इसके सिवाय कि उसकी बेटी को शादी के बाद से ही उसका पति उसे परेशान करता था और पीटता था।

अदालत ने कहा कि कथित विवाहेत्तर संबंध को छोड़कर अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसा कोई भी सबूत नहीं पेश किया गया है, जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता ने पत्नी को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था। यह देखते हुए कि आरोपी किसी अन्य मामले में शामिल नहीं था और मुकदमे में समय लगने के तथ्य के कारण हाईकोर्ट ने गुण-दोष पर विचार किए बिना पति को जमानत दे दी।

सन्दर्भ स्रोत : लॉ ट्रेंड

 

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