पद्मश्री सम्मानित कलाकार दुर्गा बाई व्याम, जो गोंड कला की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुकी हैं, अपना अधिकांश समय मूक-बधिर, गरीब और आदिवासी बच्चों को कला सिखाने में व्यतीत करती हैं। उनका मानना है कि कला केवल एक अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज में जागरूकता लाने का एक सशक्त उपकरण भी है। इसी सोच के साथ, वे बच्चों को न केवल गोंड पेंटिंग की बारीकियां सिखाती हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण संदेश जैसे ‘धरती बचाओ, पेड़ बचाओ, पानी बचाओ’ भी देती हैं।
दुर्गा बाई बताती हैं कि उन्होंने गोंड पेंटिंग की कला, जिसे जनगढ़ सिंह श्याम ने विकसित किया, उन्हीं से सीखी थी। उनके मार्गदर्शन में बनाई गई पेंटिंग्स में प्रकृति, जंगल, जीव-जंतु और स्थानीय संस्कृति का अद्भुत मिश्रण होता है। यह परंपरा अब वे नई पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं। उनका कहना है, "जब भी प्रदेश के किसी हिस्से में आवश्यकता होती है या मुझे बुलाया जाता है, मैं बच्चों और महिलाओं को गोंड कला सिखाने जाती हूं।" इन प्रशिक्षण शिविरों में वे कला के तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ प्रकृति के महत्व को भी बच्चों और महिलाओं को समझाती हैं।
दुर्गा बाई यह भी बताती हैं कि उनके परिवार के सभी सदस्य गोंड चित्रकला सीख रहे हैं। वे इसे सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत मानती हैं, और इसे आगे बढ़ाना अपने दायित्व के रूप में देखती हैं। वे देश के विभिन्न हिस्सों में महिला समूहों को प्रशिक्षण देती हैं और उन्हें यह समझाती हैं कि कला को कैसे रोजगार के रूप में अपनाया जा सकता है। उनके मार्गदर्शन में कई आदिवासी महिलाओं ने अपनी कला को बाजार से जोड़कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है।
हर प्रशिक्षण में वे पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने का खास ध्यान रखती हैं। उनके काम में पेड़-पौधे, पक्षी, नदी और वन्य जीवन हमेशा केंद्र में रहते हैं, ताकि बच्चे कला के माध्यम से प्रकृति के महत्व को समझ सकें और बड़े होकर इसे बचाने के लिए संवेदनशील रहें। परधान गोंड पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली दुर्गा बाई आज भी गांव-गांव जाकर बच्चों को यह कला सिखाती हैं। उनकी कला और समाज सेवा का यह संगम उन्हें आदिवासी समाज की प्रमुख प्रेरणास्त्रोतों में शामिल करता है।
सन्दर्भ स्रोत : डीबी स्टार
सम्पादन : मीडियाटिक डेस्क



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