प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत संपन्न विवाह को केवल इस आधार पर अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता कि विवाह के समय दुल्हन नाबालिग थी। कोर्ट ने कहा कि दुल्हन की आयु से जुड़ा प्रावधान अधिनियम की उन धाराओं में शामिल नहीं है, जिनके उल्लंघन पर विवाह को स्वतः शून्य माना जाता है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति सत्यवीर सिंह की खंडपीठ ने राजधारी और अन्य की प्रथम अपील खारिज करते हुए पारित किया। कोर्ट ने बताया कि अधिनियम की धारा 5(iii) में दूल्हे के लिए 21 वर्ष और दुल्हन के लिए 18 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित है, लेकिन धारा 11 में केवल धारा 5 के खंड (i), (iv) और (v) के उल्लंघन पर ही विवाह को अमान्य घोषित करने का प्रावधान है।
विधानमंडल ने जानबूझकर धारा 5(iii) को धारा 11 में शामिल नहीं किया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह को अमान्य घोषित कराने का अधिकार केवल पति या पत्नी को है, न कि किसी तीसरे पक्ष को, जबकि वर्तमान मामले में याची मृतक सैन्य अधिकारी के माता-पिता थे, जिन्हें यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
मामला एक युद्ध विधवा और उसके ससुराल वालों के बीच मृतक सैन्य अधिकारी के आश्रितों को मिलने वाले लाभों के अधिकार से जुड़ा है। मृतक की कथित पत्नी ने परिवार न्यायालय, आजमगढ़ में विवाह की घोषणा के लिए आवेदन किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। इसके खिलाफ ससुराल वालों ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया कि विवाह के समय पत्नी नाबालिग थी, इसलिए विवाह अमान्य है।
कोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर माना कि विवाह के समय पत्नी की आयु 18 वर्ष से लगभग दो माह कम थी, लेकिन यह तथ्य धारा 11 के तहत विवाह को अमान्य ठहराने का आधार नहीं बनाते। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यह आपत्ति न तो पहले किसी न्यायालय के समक्ष उठाई गई थी और न ही परिवार न्यायालय में दाखिल लिखित बयान में इसका उल्लेख किया गया था। इन परिस्थितियों में कोर्ट ने ससुराल वालों की अपील खारिज कर दी।



Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *