दिल्ली हाईकोर्ट : सहमति से तलाक की पहली

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दिल्ली हाईकोर्ट : सहमति से तलाक की पहली
अर्जी के लिए 1 साल का इंतजार अनिवार्य नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि फैमिली कोर्ट या हाईकोर्ट हिंदू मैरिज एक्ट (एचएमए) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी एक साल की अलग रहने की अवधि को माफ कर सकते हैं और शादी को खत्म कर सकते हैं, अगर शादी से किसी भी पति या पत्नी को बहुत अधिक परेशानी या बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा हो। 

न्यायमूर्ति नवीन चावला, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की पीठ ने कहा कि एचएमए की धारा 13बी के तहत अनिवार्य अवधि को माफ किया जा सकता है, ताकि एक जोड़े को ऐसे शादी के रिश्ते में फंसे रहने से बचाया जा सके जो साफ तौर पर काम नहीं कर रहा है। 

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एचएमए की धारा 13(1)बी के तहत पहली अर्जी देने के लिए तय की गई एक साल की अवधि को पारिवारिक अदालत या हाई कोर्ट अपनी मर्जी से माफ कर सकता है। ऐसे में अदालत के लिए अलगाव की एक साल की अवधि खत्म होने से पहले भी पहली अर्जी पर सुनवाई करना कानूनी तौर पर जायज है।पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे में अदालत की राय है कि एचएमए की धारा 14(1) के प्रावधान में दिए गए प्रोसीजरल फ्रेमवर्क को एचएमए की धारा 13बी(1) के संबंध में इस्तेमाल किया जा सकता है और सही मामलों में धारा 14(1) के प्रावधान का इस्तेमाल पहली अर्जी पर सुनवाई के लिए किया जा सकता है, ताकि पार्टियों को एक ऐसे शादी के रिश्ते में फंसे रहने से बचाया जा सके जो साफ तौर पर काम नहीं कर रहा है। 

ऐसे आया ऐतिहासिक फैसला 

पीठ ने यह मामला तब उठाया जब एक पीठ ने अप्रैल 2025 के अपने फैसले में मुख्य न्यायधीश से एक बड़ी बेंच बनाने का अनुरोध किया था, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या कोई जोड़ा अलग होने का एक साल पूरा होने से पहले आपसी सहमति से तलाक ले सकता है। पीठ ने इस मामले को उससे बड़ी पीठ के पास भेज दिया था, क्योंकि उसे लगा कि को-ऑर्डिनेट बेंच के 2013 के फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। 2013 में कोऑर्डिनेट पीठ ने फैसला सुनाया था कि हालांकि आपसी सहमति से तलाक की याचिका पति-पत्नी के अलग होने के एक साल पूरा होने से पहले दायर की जा सकती है, लेकिन अलग होने की जरूरी एक साल की अवधि पूरी हुए बिना तलाक का आदेश नहीं दिया जा सकता।

यह कानूनी प्रावधान 

दरअसल, धारा 13बी के तहत पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं, अगर वे कम से कम एक साल से अलग रह रहे हैं, साथ रहने में असमर्थ हैं, और शादी खत्म करने के लिए सहमत हैं। इस प्रक्रिया में दो चरण होते हैं। पहली अर्जी में सहमति और गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी और प्रॉपर्टी पर शर्तों का जिक्र करते हुए एक संयुक्त याचिका दायर की जाती है और छह महीने बाद दूसरी अर्जी जब सहमति की पुष्टि की जाती है और कोर्ट तलाक का आदेश दे सकता है। एचएमए की धारा 14(1) का प्रावधान कोर्ट को शादी के एक साल पूरे होने से पहले तलाक की याचिका दायर करने की इजाजत देता है, अगर कोर्ट को लगता है कि मामले में याचिकाकर्ता को बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है या प्रतिवादी की तरफ से बहुत ज्यादा बुरा बर्ताव किया गया है।

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पीठ ने कहा कि आरोपित अगर चाहता तो शरियत के अनुसार तलाक दे सकता था, लेकिन उसने इसके बजाय मौजूदा शादी जारी रखी।