चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़त सहित अन्य धाराओं में सास व दो ननदों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि दहेज विरोधी कानून महिलाओं को क्रूरता से बचाने के लिए है, व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए नहीं है। कोर्ट ने इसे कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग करार देते हुए इसे बदले की भावना से प्रेरित बताया। हालांकि, कोर्ट ने अग्रिम जमानत की शर्त का उल्लंघन करने पर पति के खिलाफ कार्रवाई को रद्द करने से इन्कार कर दिया।
याचिका दाखिल करते हुए पति व उसके परिवार के सदस्यों ने अप्रैल 2022 को चंडीगढ़ के महिला पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। यह एफआईआर महिला के पिता द्वारा दायर शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी। शिकायत में कहा था कि उनकी बेटी की शादी एक मैट्रिमोनियल वेबसाइट के जरिए हुई थी, जिसमें पति उस समय आस्ट्रेलिया में रह रहा था और पत्नी कतर में काम कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि एफआईआर बिना किसी आधार के दर्ज की गई थी क्योंकि कथित क्रूरता या दहेज की मांग से संबंधित कोई घटना भारत में नहीं हुई थी।
चंडीगढ़ प्रशासन और शिकायतकर्ता ने कहा कि शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच की थी। बताया गया कि सास और ननदों ने नोटिस के बावजूद जांच में शामिल होने से इन्कार किया था। पति के लिए एक लुकआउट सर्कुलर जारी किया गया था जिसके बाद उसे भारत के एक हवाई अड्डे पर पकड़ा गया था। कोर्ट ने फैसले में कहा कि वास्तव में यह एफआईआर बदले की भावना का परिणाम है क्योंकि शिकायतकर्ता की बेटी का अपने पति के साथ वैवाहिक विवाद था। इसी कारण शिकायतकर्ता ने पति और भारत में रह रहे उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ यह शिकायत दर्ज की।
कोर्ट ने पाया कि सास और ननदों के खिलाफ लगाए गए आरोप अस्पष्ट और आधारहीन थे। कोर्ट ने पाया कि पति ने अग्रिम जमानत मिलने के बाद बिना संबंधित कोर्ट की अनुमति के आस्ट्रेलिया की यात्रा की थी। इस आधार पर कोर्ट ने पति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया।
सन्दर्भ स्रोत : अमर उजाला
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