प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि शादी का रजिस्ट्रेशन न होने से शादी अमान्य नहीं होती। कोर्ट ने साफ किया कि शादी का रजिस्ट्रेशन सिर्फ शादी का सबूत देने का एक आसान तरीका है, लेकिन इसका न होना शादी को गैर-कानूनी नहीं बनाता। जस्टिस मनीष निगम ने 26 अगस्त को दिए अपने फैसले में यह बात कही। यह फैसला आजमगढ़ के एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए आया, जिसमें एक याचिकाकर्ता की अर्जी को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने शादी के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को जमा करने से छूट मांगी थी।
क्या है पूरा मामला?
सुनील दुबे नाम के याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 (बी) के तहत 23 अक्टूबर 2024 को आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल की थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान आजमगढ़ की फैमिली कोर्ट ने 4 जुलाई 2025 को आदेश दिया कि दोनों पक्षों को 29 जुलाई 2025 तक शादी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा करना होगा।
सुनील दुबे ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि उनके पास रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं है और हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य नहीं है। इसलिए, उन्हें सर्टिफिकेट जमा करने से छूट दी जाए। इस अर्जी का समर्थन उनकी पत्नी ने भी किया। हालांकि, 31 जुलाई 2025 को फैमिली कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद सुनील दुबे ने हाई कोर्ट का रुख किया।
हाई कोर्ट का फैसला
जस्टिस मनीष निगम ने अपने फैसले में कहा, 'हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत जब शादी विधिवत तरीके से होती है, तो उसका रजिस्ट्रेशन कराने के लिए राज्य सरकारें नियम बना सकती हैं। लेकिन अगर शादी का रजिस्ट्रेशन न हो या रजिस्टर में इसका जिक्र न हो, तो भी शादी की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता। भले ही राज्य सरकार शादी के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करने का नियम बनाए, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं हो सकता जो रजिस्ट्रेशन न होने पर शादी को अमान्य घोषित कर दे।'
रजिस्ट्रेशन का मकसद
हाई कोर्ट ने साफ किया कि शादी का रजिस्ट्रेशन सिर्फ शादी का सबूत देने के लिए होता है। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 8(5) के तहत, रजिस्ट्रेशन न होने से शादी की वैधता पर कोई सवाल नहीं उठता। कोर्ट ने यह भी कहा कि विभिन्न हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में भी यही बात सामने आई है कि रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट सिर्फ शादी का सबूत है, न कि शादी की वैधता का आधार। इस फैसले के जरिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बार फिर साफ कर दिया कि शादी का रजिस्ट्रेशन न होना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विधिवत हुई है, तो वह पूरी तरह वैध मानी जाएगी।
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