• 8 सितम्बर को साक्षरता दिवस पर विशेष
• सुषमा दुबे ने साक्षरता अभियान के तहत लिखी 15 पुस्तकें
• अभियान से प्रेरित होकर साक्षर हुए कई बच्चे
इंदौर। शिक्षा से न सिर्फ साक्षर होते हैं, बल्कि शिक्षा से ही जीवन जीने की दिशा मिलती है, लेकिन स्कूल की भारी भरकम फीस और संसाधनों की कमी के कारण कई बच्चे शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। ऐसे ही जरुरतमंदों के जीवन में साक्षरता का उजियारा फैलाने का काम इंदौर के कई लोग कर रहे हैं। उन्हीं लोगों में शामिल शहर की सुषमा दुबे और कुमुद मारु, किसी मिसाल से कम नहीं हैं।
सरकारी स्कूल के बच्चों को अलग से देती हैं ट्यूशन
कुमुद मारु पिछले कई साल से गवर्नमेंट स्कूल के बच्चों को शिक्षित कर रही हैं। वे वर्ष 2008 से बच्चों को शिक्षित करने में जुटी हुई हैं। कुमुद कहती हैं कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ट्यूशन नहीं जा पाते हैं और शिक्षा का स्तर भी सरकारी स्कूल में बहुत अच्छा नहीं होता है। ऐसे में उन्हें अलग से पढ़ाती हूं। कुमुद ने कहा, ज्यादातर बच्चे ऐसे थे, जिन्हें बड़ी कक्षा में होने के बावजूद लिखना भी नहीं आता था। अब उन्हें लिखना भी आता है और पढ़ना भी। कुमुद मारु एक अच्छी लेखिका होने के साथ ही पेंटिंग की भी शौकीन हैं।
सुषमा ने साक्षरता अभियान से जुड़कर लिखी 15 पुस्तकें
लेखिका सुषमा दुबे ने साक्षरता अभियान के अंतर्गत राज्य संसाधन केंद्र, प्रौढ़ शिक्षा के लिए 15 से 35 वर्ष के छात्रों के लिए करीब 35 पुस्तकें लिखी हैं। इनमें से लगभग 15 पुस्तकों में उनकी स्वयं की और बाकी पुस्तकों में अन्य लेखकों की भी कहानियां हैं। सरल भाषा में लिखी ये पुस्तकें सकारात्मक संदेश देती हैं। सुषमा दुबे कहती हैं कि जो लोग कभी स्कूल नहीं गए वे भी इस अभियान से प्रेरित हुए और साक्षर हुए। एक समय था, जब हर गांव में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र होते थे और उस समय इन पुस्तकों की बहुत मांग रहती थी। सुषमा दुबे की नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली से भी बालिका शिक्षा पर पुस्तक पहले ही प्रकाशित हो चुकी है।
सन्दर्भ स्रोत: पत्रिका
सम्पादन: मीडियाटिक डेस्क
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