छाया :फाइनेंशियल एक्सप्रेस
अपने क्षेत्र की पहली महिला
• अब तक 8 लाख किमी से ज्यादा तय कर चुकी हैं सफ़र
• कई भाषाओँ की हैं जानकार
• पति की मौत के बाद मजबूरन संभालने लगी थीं उनकी ट्रांसपोर्ट कंपनी
हमारे देश में ट्रक-बस जैसे भारी वाहन चलाना पुरुषों के ही बूते की बात मानी जाती है, लेकिन भोपाल की योगिता रघुवंशी ने इसे ग़लत साबित कर दिखाया है। 13 अगस्त 1970 में योगिता रघुवंशी का जन्म महाराष्ट्र के नंदुरबार में हुआ। उनके सेवानिवृत्त पिता विजय सिंह रघुवंशी, और माँ वंदना रघुवंशी नंदुरबार में ही रहते हैं। योगिता बचपन से ही एयर होस्टेस बनना चाहती थीं। लेकिन बी.कॉम की उनकी पढ़ाई पूरी हुई और फिर उनकी शादी भोपाल के वकील राजबहादुर रघुवंशी से हो गई, जो ट्रांसपोर्ट व्यवसाय भी चलाते थे। शादी के बाद योगिता का सपना, सपना ही बनकर रह गया। उन्हें पता चला कि उनसे झूठ कहा गया कि उनके पति हाईकोर्ट में वकील थे, जबकि वास्तव में वे लोअर कोर्ट में प्रैक्टिस करते थे। इसके बावजूद उन्होंने शादी को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि पति की वक़ालत में साथ देने के लिए एलएलबी की डिग्री भी हासिल कर ली।
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शादी के बाद रघुवंशी दंपत्ति को एक बेटी और एक बेटा हुआ। फरवरी 2003 में राजबहादुर एक सड़क दुर्घटना में गुजर गए। इस हादसे के बाद सदमे से उबरने में योगिता को कुछ समय लग गया, लेकिन उसने जिंदगी से हार नहीं मानी। उन्होंने कुछ दिन वकालत में हाथ आज़माया लेकिन फिर उन्हें महसूस हुआ कि एक जूनियर वकील की तनख़्वाह में उनका काम नहीं चलेगा और अपना घर चलाने के लिए उन्हें किसी स्थायी साधन की ज़रूरत है। इसीलिए उन्होंने अपने पति के परिवहन व्यवसाय को संभालना शुरू किया। हालांकि उन्हें ड्राइविंग तक नहीं आती थी। शुरुआत में जिस ड्राइवर को उन्होंने काम पर रखा था, वह छह महीने में ही भाग गया। उसने ट्रक को हैदराबाद के पास एक खेत में छोड़ दिया था। योगिता वहां एक मैकेनिक और एक सहायक के साथ गईं और चार दिन में ट्रक की मरम्मत कराकर वापस आईं। इन चार दिनों में उनके बच्चे घर पर बिलकुल अकेले थे।
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जब वे हैदराबाद से लौटीं तो उन्होंने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। योगिता ने ड्राइविंग सीखी और साल 2004 में उन्हें अपना ड्राइविंग लाइसेंस मिला और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें ट्रक के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था लेकिन वे धीरे-धीरे आगे बढ़ती गईं। लोगों ने उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की लेकिन वे पीछे नहीं हटीं। कई बार रास्ते में टायर फट जाना, इंजन ऑयल खत्म होने जैसी कई मुश्किलें भी आईं, लेकिन किसी न किसी तरह उन्हें मदद मिलती रही। अक्सर दूर-दूर तक कोई नहीं होता था, कई बार जेब में पैसे भी कम या नहीं ही होते थे, तब भी वे उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें अपने परिवार, ख़ास तौर पर बच्चों का बहुत समर्थन मिला। योगिता की बेटी अब एक इंजीनियर है और उनका बेटा प्रबंधन की तालीम हासिल कर रहा है।
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जिन योगिता को एक समय ड्राइविंग भी नहीं आती थी, वे अब 10 चक्कों वाला भारी भरकम ट्रक चलाती हैं और अक्सर नाजुक सामान इधर से उधर ले जाती हैं। शुरू की कुछ यात्राओं में वे हेल्पर को साथ लेकर जाती थीं फिर जल्द ही अकेले सफ़र करने लगीं। योगिता न केवल हिन्दी, बल्कि अंग्रेजी, गुजराती, मराठी और तेलुगु भी काफ़ी अच्छे से बोल लेती हैं। उनके पास ब्यूटीशियन का प्रमाणपत्र भी है। उन्होंने पिछले 15 वर्षों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में अपना ट्रक चलाया है। दक्षिण भारत के कुछ शहरों के लगभग हर नुक्कड़ और गली उन्हें याद हैं। कभी-कभी उन्हें पूरी रात ड्राइव करना पड़ता है। ऐसे में अगर नींद आती है, तो वे ट्रक को किसी पेट्रोल पंप के पास खड़ा कर एक झपकी ले लेती हैं। यात्रा में अपना खाना वे खुद बनाती हैं या फिर किसी ढाबे में खा लेती हैं।
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योगिता को भारत की पहली महिला ट्रक ड्राइवर कहा जाता है, लेकिन उनसे पहले मंदसौर की पार्वती आर्य यह पदवी हासिल कर चुकी हैं। यह ज़रूर है कि योगिता देश की पहली अंतरराज्यीय (इंटर स्टेट) ट्रक ड्राइवर हैं। इसके अलावा वे उच्च शिक्षित हैं और पेशेवर ढंग से अपना काम कर रही हैं। वे अब तक 8 लाख किमी से ज्यादा का सफ़र बतौर ट्रक ड्राइवर पूरा कर चुकी हैं। इसी का नतीजा है कि ऊर्जा क्षेत्र की वैश्विक कंपनी शेल की सहायक कंपनी शेल इंडिया ने 2021 में महिला दिवस के अवसर शुरू किए गए जागरूकता अभियान के तहत गतिशीलता की चुनौतियों का सामना करने वाली महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियों पर तीन फ़िल्में जारी कीं, जिनमें से एक योगिता पर केंद्रित है। जून 2018 में कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था ‘सेवा केंद्र’ द्वारा आयोजित ट्रक चालकों के राष्ट्रीय सम्मेलन में योगिता को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
संदर्भ स्रोत : प्रभात खबर तथा विभिन्न वेबसाइट्स से प्राप्त जानकारी के आधार पर
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