बेसहारा बुजुर्गों को 'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा

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बेसहारा बुजुर्गों को 'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा

छाया : माधुरी मिश्रा के फेसबुक अकाउंट से 

• सीमा चौबे 

वृद्धाश्रम का नाम लेते ही दिमाग में कमज़ोर और उदास बुजुर्गों की तस्वीर उभर कर सामने आती है, लेकिन भोपाल में एक जगह ऐसी भी है, जहाँ इन बुजुर्गों के लिये केवल खुशियां और ढेर सारा अपनापन है। हम बात कर रहे हैं रोहित नगर स्थित ‘अपना घर’ की। इसकी स्थापना करने वालीं माधुरी मिश्रा, जीवन के अंतिम पहर में पहुँच चुके लोगों की लाठी बनी हैं, जिन्हें उनके अपनों ने ठुकरा दिया है। यह काम हाथ में लेने से पहले माधुरी जी गरीब और बेसहारा बच्चों में शिक्षा की अलख जगाती रहीं। उन्होंने भोपाल की झुग्गी बस्तियों में घूम-घूमकर बच्चों को न केवल पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि कई विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह भी करवाया। वे कहती हैं कि भले ही 'अपना घर' किसी के लिए वृद्धाश्रम हो, मेरे लिए तो यह मेरा परिवार है।

माँ से मिली मदद करने की प्रेरणा 

30 जनवरी 1969 को जबलपुर में माधुरी का जन्म हुआ। उनके पिता श्री विष्णुदत्त दुबे पुलिस में डीएसपी और मां गौरा देवी गृहिणी होने के साथ समाज सेवा भी किया करती थीं। सात भाई -बहनों में दूसरे नम्बर की माधुरी पर अपनी मां के आचार-व्यवहार का गहरा असर आया। यही कारण रहा कि वे भी बचपन से ही दूसरों की मदद करने लगीं थीं। वे बताती हैं “एक पुलिस अधिकारी की पत्नी होते हुए मां बेहिचक सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहती थीं। फिर चाहे किसी का एक्सीडेंट हुआ हो या किसी को पढ़ाई के लिए किसी तरह की मदद करनी हो। आस-पड़ोस में जब भी किसी को कोई परेशानी होती, वो सबसे पहले माँ के पास आता। माँ  को इस तरह लोगों की मदद करते देख माधुरी ने जनसेवा के कार्यों को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।

माधुरी के मन में समाजसेवा का अंकुर तभी फूट गया था जब वे महज 17 साल की थीं। इस बारे में वे बताती हैं “एक बार पड़ोस में किसी की मौत हो गई, तब माँ ने नवजात भाई को जो उस वक्त महज पांच दिन का ही था, मेरे हवाले कर  जिस तरह से दुःख की घड़ी में उनकी सहायता की, उससे मैं काफ़ी  प्रभावित हुई।” इस घटना के बाद माँ की देखा-देखी वे भी अपनी घरेलू सहायिकाओं के बच्चों को कभी पेन्सिल-रबर, तो कभी कॉपी-किताबें देकर मदद करने लगीं। स्कूल-कॉलेज के समय हेल्पेज इंडिया के माध्यम से लोगों के घर-घर जाकर सामग्री और रुपये इकट्ठा किया करती थीं। इस काम के लिए कुछ लोग तो मदद किया करते थे, लेकिन कई ऐसे भी होते थे, जो उन्हें डांट कर भगा देते। इस तरह स्कूल-कॉलेज से शुरू हुआ ज़रूरतमंदों की सहायता का काम बदस्तूर जारी है।

उनके माता-पिता दोनों जबलपुर के ही थे। जब वे कक्षा तीसरी में थीं, तभी उनके पिताजी का तबादला भोपाल हो गया। इसके बाद उनकी पूरी शिक्षा भोपाल में ही हुई। शिशु मन्दिर से सातवीं तक पढ़ाई करने के बाद कमला नेहरु स्कूल से हायर सेकेंडरी किया। नूतन कॉलेज से बी.ए. करने के बाद जब वे एम.ए. (हिन्दी साहित्य) प्रथम वर्ष में थीं,  तभी वर्ष 1980 में टीकमगढ़ के आयुर्वेदिक चिकित्सक राजेंद्र मिश्रा से उनका विवाह हो गया।  

मुसीबतों को भी उनके सामने झुकना पड़ा 

उनका बचपन जितना अच्छा गुजरा, उससे कहीं अधिक संघर्ष उन्हें विवाह के बाद करना पड़ा। पुलिस विभाग में ऊँचे ओहदे पर होने के बावजूद उन्होंने अपने पिता को अपनी इन तकलीफों से दूर ही रखा। माधुरी जी बताती हैं कि आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार होने के बावजूद ससुराल का माहौल उन्हें रास नहीं आया। बावजूद इसके वे शादी के 10 साल तक टीकमगढ़ ही रहीं। लेकिन बेटी का जन्म होने के बाद हालात और बिगड़ गए, तो वे 1992 में ससुराल छोड़ बेटी और पति के साथ भोपाल आ गईं। ससुराल से वे खाली हाथ ही निकलीं, यहां तक कि उनके पैरों में चप्पल तक नहीं थी। जैसे-तैसे ये लोग भोपाल पहुंचे। वे चाहतीं तो भोपाल में मायके में रहकर ऐशो-आराम का जीवन बिता सकती थीं, लेकिन माता-पिता के बुलाने के बावजूद वे वहां नहीं गईं। 

भोपाल में माधुरी जी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उनके पति का कामकाज तो पूरी तरह बंद हो गया था, नई जगह नए सिरे से काम शुरू करने में काफी समय लगा। इस दौरान माधुरी जी ने छोटे-छोटी जगह कई नौकरियां की। झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, जहाँ उन्हें उस समय महज 200 रूपये मासिक मिलते थे। वे लगभग 12 साल तक गरीब बच्चों को पढ़ाने-लिखाने और विधवा महिलाओं की दोबारा शादी करवाने का काम करती रहीं। वे खुद भी कई महीनों तक इंदिरा नगर की झुग्गी में रहीं, जहां उन्होंने 1999 में अपनी छोटी बेटी को जन्म दिया। माधुरी जी अपने आसपास रहने वाले बच्चों की भूख बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं और इसलिए वे अपनी बेटियों को भी बस्ती में पाली जा रही बकरियों का दूध पिलाती थीं, ताकि पैसे बचा कर वे उन बच्चों को खाना खिला सकें।

इसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि झुग्गी-बस्ती के कई परिवारों की लड़कियां महफूज नहीं हैं, उन्होंने ऐसी लड़कियों को परिवार की रजामंदी से रात में अपने पास ही रखना शुरू किया। उनके इस कदम का कुछ लोगों बड़ा विरोध किया तो कुछ लोगों ने उनकी मदद भी की। इंदिरा नगर झुग्गी बस्ती में एक जयसिंह जी थे जिन्होंने अपनी झुग्गी का एक हिस्सा राजेंद्र जी को दवाखाना चलाने के लिए दे दिया। समय के साथ क्लिनिक चलने लगा और गुजारा करने लायक आमदनी भी होने लगी।  इस तरह ससुराल से आने के बाद उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से समाज की भलाई के काम में समर्पित कर लिया। कुछ समय बाद मिश्रा जी भी अपनी जीवन संगिनी का साथ देते हुए समाज सेवा से जुड़ गए। इस दौरान कमज़ोर माली हालात माधुरी जी के आड़े आते रहे, लेकिन उनके बुलंद इरादों के आगे मुसीबतों को भी झुकना पड़ा।

लोग आते गए, कारवां बनता गया 

ताज्जुब नहीं कि दो साल के भीतर ही झुग्गीवासियों के बीच माधुरी जी की अच्छी खासी छवि बन गई। 1994 में एक संस्था ने भोपाल में अपना काम शुरू किया। उसे समाज सेवा से जुड़े लोगों की ज़रुरत थी। उसके कर्ता-धर्ता माधुरी जी से मिले और उनके साथ काम करने का आग्रह किया। माधुरी जी के सामने आर्थिक संकट तो था ही, दूसरा उन्हें अपनी  पसंद का काम करने का अवसर भी मिल रहा था तो उन्होंने यह आग्रह सहर्ष स्वीकार कर लिया और उस संस्था के साथ भी काम करने लगीं। उन्हें भोपाल की 12 मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो काफी दूर-दूर थीं। माधुरी अपनी बेटी को गोद में लेकर कई-कई किलोमीटर पैदल जातीं। वल्लभ नगर, भीम नगर झुग्गी-बस्तियों में कार्य के दौरान कम उम्र में विधवा हुई महिलाओं की मुश्किलों और तकलीफों को देखकर वे काफी दुखी हुईं। उन्हें लगा बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने के अलावा इन महिलाओं के लिए भी मुझे कुछ करना चाहिए। जब उन्होंने इन महिलाओं के पुनर्विवाह की दिशा में कदम बढ़ाए तो कुछ लोगों ने काफी विरोध किया। यहाँ तक की उनके ऊपर तेज़ाब फेंकने की धमकी भी दी गई। जैसे-तैसे उनके परिवारों को समझाया और पहला पुनर्विवाह भीमनगर में हुआ। इस तरह धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और उनका उत्साह बढ़ा, जनसहयोग मिला तो करीब 60 विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह उन्होंने करवाया।

2005 में आनंद धाम बनने के बाद माधुरी जी और उनके पति यहाँ काम करने लगे। संस्था से उन्हें मासिक 300 रुपये मिलते थे। आनंद धाम में काम करते- करते दोनों पति-पत्नी की पगार अब 3000/- तक पहुंच गई थी। जिंदगी की तमाम चुनौतियों से लड़ती माधुरी 7 साल तक भोपाल के आनंद धाम में उन लोगों का सहारा बनीं, जिनको उनके ही घरवालों ने निकाल कर बाहर कर दिया था। एक समय ऐसा आया जब समाज सेवा के नाम पर राजनीति होने लगी तो वर्ष 2012 में न चाहते हुए भी माधुरी जी ने आनंद धाम छोड़ दिया। अब उनके सामने बड़ा संकट रहने का था, क्यूंकि आनंद धाम में उन्हें रहने के की सुविधा भी उपलब्ध थी। 

वे बताती हैं जब वे आनंद धाम से निकलने की तैयारी कर रहीं थीं तब उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं था कि वहां रह रहे 15 बुजुर्ग भी उनके साथ जाने की तैयारी कर रहे हैं। जैसे ही वे आनन्द धाम से निकलने को तैयार हुईं, सभी बुजुर्ग उनके साथ हो लिए। काफ़ी समझाने के बाद भी वे लोग नहीं माने। अपने प्रति बेसहारा बुजुर्गों के इस प्यार को देखकर माधुरी जी की आँखों में आंसू आ गए। अब माधुरी के सामने चुनौती थी उनके लिए एक नया आशियाना खोजने की और यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं था। माधुरी जी कहती हैं उस वक्त उन्होंने सोचा भी नहीं कि यही काम उन्हें फिर से करना पड़ेगा। वे बताती हैं जब बुजुर्ग मेरे साथ हो लिए तब मैंने सोच लिया कि इन्हें फिर से दर-बदर की ठोंकरे खाने के लिए नहीं छोड़ना है। चाहे एक टेंट में ही रखकर मुझे इनका पेट पालना पड़े, लेकिन उस वक्त ईश्वर और परिवार वालों ने साथ दिया। कुछ दिन उन्होंने सभी को अपने घर में रखा।  

फिर मायके वाले मदद को आये 

जब उन्होंने अपने पिताजी से कहा कि अब मेरा अपना कुछ नहीं है, तो उन्होंने कहा तुम “अपना घर” बनाओ। तुम्हारे समाजसेवा के कार्यों में हम सब  आजीवन तुम्हारी मदद करेंगे। इसके बाद उन्होंने कोलार इलाके की सर्वधर्म कॉलोनी में रु. 40 हजार प्रतिमाह में एक तीन मंजिला मकान किराए पर लिया और उसका नाम रखा ‘अपना-घर’। गौरा जनउत्थान संस्था के माध्यम से इस नए उपक्रम का संचालन शुरू किया। माधुरी जी के लिए बुजुर्गों को अकेला छोड़ना मुमकिन नहीं था, इसलिए खुद भी उनके साथ रहने के लिए पूरे परिवार सहित कोलार आ गईं। दुर्भाग्य से 6 साल बाद ही उनके पिताजी का देहांत हो गया। लेकिन माँ ने अपनी पेंशन देना शुरू कर दिया। उनके चारों भाईयों ने भी उनका बहुत साथ दिया। जब मकान मालिक हर साल किराया बढ़ाने लगा तो उनके बिल्डर भाई ने वर्ष 2022 में अपने माता-पिता की स्मृति में रोहित नगर में एक नया घर बनाकर उन्हें दे दिया।  

वर्तमान में यहाँ 25 बुजुर्ग निवास कर रहे हैं। यहीं माधुरी जी भी अपने पति व बेटियों के साथ रहती हैं। सभी का एक ही रसोई में खाना बनता है और सभी एक साथ मिलकर खाना खाते हैं। किसी एक सदस्य की तबीयत खराब होने पर उसकी देखरेख में सभी लग जाते हैं। अपना घर में हर त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां सभी समाज के बुजुर्ग रहते हैं इसलिए सभी प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। यहां माताएं कभी परिवार के लिए अचार-पापड़ बनाती हैं, तो कभी चिप्स व मूंग की बड़ी। कभी कोई समूह बनाकर पार्लर जाता है, हेयर कलर करवाता है, तो कोई फिल्म देखने जाता है।

यहाँ रहने वाले बुजुर्गों को हर वो आज़ादी है, जो शायद कभी उन्होंने अच्छे दिनों में महसूस की होगी। माधुरी जी कहती हैं “मैं बस यही चाहती हूँ कि इनके अधूरे सपनों को पूरा कर पाऊं, इसलिए समय-समय पर मेले, पर्यटन व तीर्थ स्थलों पर लेकर भी जाते हैं। हम उज्जैन के सिंहस्थ में भी सभी को लेकर गए। हालांकि, इतने बुजुर्गों को साथ लेकर जाना आसान नहीं था, लेकिन सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ।

माधुरी जी ने करीब 50 लोगों को काउंसलिंग कर उनके घर वापिस भी पहुंचाया है। उन लोगों से अब पारिवारिक सम्बन्ध बन चुके हैं। समय-समय पर वे उनसे मिलती रहती हैं और कभी-कभार वे बुजुर्ग यहाँ रहने भी आ जाते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपने उम्रदराज माता-पिता को कुछ दिनों के लिए यहाँ छोड़कर जाते हैं, उन्हें अतिथि सदस्य के रूप में नाम मात्र के शुल्क पर ‘अपना घर’ में रखा जाता है।  

बच्चों में संस्कार की पाठशाला बाल चौपाल

माधुरी जी बच्चों व उनके माता-पिता को बुजुर्गों को घर में रखने व उनकी देखरेख करने के लिए जागरुकता अभियान भी चलाती हैं। बच्चों में बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करने की भावना पैदा हो, इस उद्देश्य के साथ आश्रम में मई 2023 से हर गुरुवार को ‘दादा दादी की चौपाल-उसमें आएंगे बाल गोपाल’ नाम से बाल चौपाल लगाई जाती है। चार-पांच बच्चों के साथ शुरू हुई इस चौपाल में अब सैकड़ों बच्चे शामिल हो चुके हैं। इनमें 5 साल के बच्चों से लेकर 20 साल तक के युवा शामिल हैं। जहाँ छोटे बच्चे बुजुर्गों से कहानियां सुनते और पढ़ाई में मदद लेते हैं, वहीं वयस्क और युवा बुजुर्गों के साथ बैठकर बातें करते हैं।

दोनों बेटियां भी, मां की राह पर

उनकी दोनों बेटियों की परवरिश दादा-दादियों के साथ इसी माहौल में हुई। बड़ी बेटी राधिका मिश्रा पूना में जॉब कर रही है। छोटी बेटी विभूति मिश्रा बीएसएस कॉलेज से मास्टर्स कर रही है। उनकी दोनों बेटियां भी बुजुर्गों का खूब ख्याल रखती हैं। यहां आए कुछ बुजुर्गों की मृत्यु भी हुई, जिनका अंतिम संस्कार उनकी छोटी बेटी ने किया।  

जन सहयोग से चल रहा 'अपना घर'

महंगाई से माधुरी परेशान तो होती हैं, लेकिन यह कहना भी नहीं भूलतीं कि अच्छा करने वालों को मदद मिल ही जाती है। अब तो ‘अपना घर’ से काफी लोग जुड़ गए हैं। कोई समयदान करता है तो किसी से आर्थिक मदद मिल जाती है। माधुरी जी के सभी भाई और कई अन्य लोग भी मदद करते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो समय-समय पर ‘अपना घर’ के सदस्यों के लिए खाने-पीने, कपड़े और अन्य ज़रूरत का सामान लेकर आते हैं।

बुजुर्गों के लिए घर सेवा भी

अपना घर के अलावा माधुरी जी ने मलिन बस्तियों में रहने वाले बुजुर्गों के लिए नई मुहीम शुरू की है,  ऐसे बुजुर्ग जिनके पास आश्रय तो है, लेकिन व्यस्तता के चलते परिजन उन्हें भरपूर समय नहीं दे पाते हैं। ऐसे 125 बुजर्गों को अपना घर ने गोद लेकर उनके  स्वास्थ्य की देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। अपना घर की टीम बीमार बुजुर्गों को घर से हॉस्पिटल ले जाकर उपचार के बाद वापिस उनके घर छोड़ देती है।

इतने वर्षों से दूसरों के लिए जी रही माधुरी को अब तक अनगिनत अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। मदर टेरेसा सम्मान से लेकर आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी वे जा चुकी हैं। माधुरी जी अभी दो किताबों ‘क्यों बिखर रहे हैं हमारे बागवान’ और ‘विरासत में माँ क्यों नहीं’ पर काम कर रही हैं। वे कहती हैं मुझे कई बार उखाड़ने की कोशिश की गई, लेकिन मै हर बार खुद को सम्हाल लेती हूँ। अगर मुझे यहाँ से भी कहीं जाना पड़ा, तो फिर से खड़े होकर चलने का जज़्बा रखती हूँ।  

पुरस्कार/सम्मान  

समाज सेवा में उनके द्वारा किये जा रहे उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें छोटे-बड़े 2551 पुरस्कार मिल चुके हैं। उनमें से मुख्य हैं -

• मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा रामेश्वर ठाकुर राज्यपाल के करकमलों से महिला समाज सेवी सम्मान 2010

• मप्र राज्य महिला आयोग के 12 वें  स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज द्वारा सम्मानित 2010

• सामाजिक न्याय विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा राज्य स्तरीय इंदिरा गांधी समाज सेवा पुरस्कार 2011

• तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और बृजमोहन अग्रवाल द्वारा लोक माया सेवा पुरस्कार 2012

• ब्रजभूमि फाउंडेशन द्वारा 51 सबसे प्रभावशाली महिलाओं में शामिल 2019

• दखल न्यूज द्वारा दखल प्राइड अवार्ड 2020

• तुलसी मानस प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश द्वारा श्रीमती शारदा देवी दुबे स्मृति सम्मान 2020

• कलाकुंज फाउंडेशन भोपाल द्वारा अन्वी सशक्त नारी सम्मान 2022

• ह्यूमन राइट यूथ डवलपमेंट काउन्सिल द्वारा नारी प्रतिभा सम्मान 2023

• महामहिम राज्यपाल रामनरेश यादव द्वारा उत्कृष्ट सेवा सम्मान

• श्री भृगु समाज मप्र इंदौर द्वारा मदर टेरेसा अवार्ड सहित अनेक पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त

सन्दर्भ स्रोत : सीमा चौबे की माधुरी मिश्रा से हुई बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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