प्रकृति और मानव मन को एकाकार करतीं संध्या श्रीवास्तव 

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प्रकृति और मानव मन को एकाकार करतीं संध्या श्रीवास्तव 

छाया: स्व सम्प्रेषित

चित्रकार

• सीमा चौबे

'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' मुहावरे को चरितार्थ किया है चित्रकार संध्या श्रीवास्तव ने। भोपाल में पलीं-बढीं संध्या जी बचपन से ही कला के विभिन्न आयामों से प्रभावित रहीं। एक कलाकार के रूप में उन्होंने शास्त्रीय संगीत, वाद्य संगीत, फोटोग्राफी, ग्राफ़िक डिज़ाइन सहित विभिन्न कला माध्यमों में दक्षता हासिल की है। कला शिक्षक के रूप में कार्यरत संध्या जी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। कवयित्री और चित्रकार के रूप में उनकी विशेष पहचान है। 18 मई 1970 को श्री वी.डी. श्रीवास्तव और श्रीमती कमला देवी श्रीवास्तव के घर सीहोर में उनका जन्म हुआ। माता गृहिणी और पिताजी खाद्य विभाग में लेखापाल थे। पांच भाई बहनों में दूसरे नम्बर की (तीन बहन, दो भाई) संध्या बचपन से ही सब कुछ सीख लेना चाहती थी। इस बात से उनके माता पिता बड़े परेशान रहते थे।

उनकी सम्पूर्ण शिक्षा भोपाल में हुई। प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा सरोजिनी नायडू स्कूल और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा कमला नेहरु हायर सेकेंडरी स्कूल से प्राप्त की। स्कूल में विद्यालयीन-अंतर विद्यालयीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेती थी। स्कूल की ओर से उन्हें आकाशवाणी में बच्चों के एक कार्यक्रम में तमिल गाना एवं राष्ट्रभक्ति गीत गाने का अवसर प्राप्त हुआ और यहीं से उन्हें अपने जीवन में कुछ अलग करने का जज़्बा हासिल हुआ। स्कूली पढ़ाई के दौरान उन्होंने  रिंग बॉल और कबड्डी खेली, जूडो और जिम्नास्टिक भी सीखा। जवाहर बाल भवन शुरू हुआ तो वहां फोटोग्राफी सीखने पहुँच गई। किसी तस्वीर को कंपोज़ कैसे किया जाता है, ये सीखते हुए कला के प्रति उनकी समझ बनना शुरू हुई। मलयालम सीखने की अपनी ज़िद भी वे पूरी करके ही मानीं। उनकी माँ ने उन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान देने के लिहाज से एक प्राइवेट स्कूल में भी उनका दाखिला करवा दिया। ज़ाहिर है कि उन्हें  दो पालियों में अलग-अलग स्कूल जाना पड़ता था। स्कूल में गाइड कैडेट होने के नाते सुबह 6 बजे ही मैदान पर समय से पहले पहुंच जाती। यह क्रम कॉलेज में एन. सी.सी. कैडेट के रूप में भी जारी रहा। उन्होंने शास्त्रीय गायन में प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से डिप्लोमा हासिल किया तथा शास्त्रीय गायन में अनेक स्पर्धाओं में पुरस्कार भी प्राप्त किए।

संध्या जी भले ही एक साथ कई चीजों को सीखती रहीं, लेकिन चित्रकला के प्रति उनका कुछ विशेष  रुझान था। वे घर पर आने वाले  वैवाहिक आमंत्रण पत्रों के मोटे कागज़ सहेज कर रख लेती और खाली समय में उसके पीछे चित्र बनाया करतीं। त्योहारों पर घर के आंगन में बड़ी-बड़ी अल्पना तथा रंगोली बड़े लगन से बनाया करती, जो उन्होंने अपनी माँ से सीखी थी। वे कहती हैं चित्रकला के क्षेत्र में यही मेरी प्राथमिक शिक्षा थी। उनके पिता भी एक बेहतरीन कलाकार थे। इस तरह कूची से आकार और रंग देने के गुण उन्हें अपने पिता से विरासत में ही मिले।

हायर सेकेंडरी में उन्होंने ललित कला विषय लिया। यहां चित्रकला की आरंभिक शिक्षा श्री जी एल चौरागड़े जी से प्राप्त की। श्री चौरागड़े जी ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर एक दिशा प्रदान की। प्रतिदिन छः-सात घंटे पेंटिंग करना उनके लिए सामान्य बात थी, लेकिन पढाई पर भी वे उतना ही ध्यान देती थीं। ये वो दौर था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बने हालात में सभी विद्यार्थियों को जनरल प्रमोशन दे दिया गया था। परन्तु हायर सेकेंडरी बोर्ड की परीक्षाएं ली गईं। परीक्षा परिणाम आने के एक दिन पहले उनके मामाजी जो बोर्ड ऑफिस में कार्यरत थे, ने उन्हें बताया कि तुम सेकंड डिवीज़न पास हो, लेकिन अगले दिन जारी परीक्षा परिणाम में उनका नाम प्रावीण्य सूची में शामिल था। उनकी इस उपलब्धि को सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोतीलाल वोरा ने उन्हें सम्मान-पत्र और स्वर्ण पदक प्रदान किया। साथ ही शालेय शिक्षा मंत्री श्री बंशीलाल धृतलहरे, आवास तथा पर्यावरण राज्य मंत्री श्री महेश जोशी तथा विधानसभा स्पीकर श्री बृजमोहन मिश्र ने भी उनका सम्मान किया। लायंस क्लब, एनएसयूआई, स्टेट बैंक आदि अनेक संस्थानों से मिले सम्मान ने उन्हें और ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित किया।

इसके बाद महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज में स्नातक में उन्होंने ललित कला के साथ एक अन्य विषय के रूप में संगीत में सितार का चयन किया। वे बचपन से ही पं. रविशंकर को सुना करती थीं इसलिए सितार में उनकी रुचि पहले से ही थी। यहाँ गुरु अरविन्द जोशी के मार्गदर्शन में उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला और उन्होंने कॉलेज स्तर पर संगीत (सितार वादन) के अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इसके अलावा गायन में भी राज्य स्तरीय कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने भागीदारी की। ललित कला में स्नातकोत्तर के लिए प्रो. डी डी धीमान एवं प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. राजाराम का सानिध्य तथा मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। संध्या जी ने बी.ए. तथा एम.ए. में विश्वविद्यालय में प्रावीण्य सूची में स्थान हासिल किया तथा मेरिट स्कालरशिप भी प्राप्त की। इसी दौरान उन्हें अपने कॉलेज में फाइन आर्ट्स सेक्रेटरी का पद भी दिया गया। वर्ष 1987 में उनके कॉलेज  में सभी विद्यार्थियों के चित्रों की एक भव्य प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। स्वाभाविक रूप से संध्या जी के चित्र भी इस प्रदर्शनी में शामिल थे, जिसका अवलोकन महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने किया।

स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने चित्रकला, लेखन और कविता के क्षेत्र में बहुत काम किया। अनेकानेक राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय, पश्चिम ज़ोन स्तरीय, अंतर महाविद्यालयीन तथा महाविद्यालयीन अनेकानेक चित्रकला स्पर्धाओं, शिविरों  तथा प्रदर्शनियों  में हिस्सा लेकर अनेक पुरस्कार प्राप्त किए। उनके लेख नियमित रूप से आकाशवाणी और टेलीविजन पर प्रसारित होते रहे। उन्होंने समकालीन भारतीय रेखांकन विषय पर शोध प्रबंध भी लिखा। अपने पूरे करियर में उन्हें प्रतिष्ठित विभागों (एम.एल.बी. कॉलेज-ललित कला विभाग, सहायक प्रोफेसर 1991-92, ग्राफिक कलाकार दूरदर्शन केन्द्र भोपाल 1992-93, जूनियर आर्टिस्ट मप्र पाठ्यपुस्तक निगम, भोपाल 1995-96) में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। दूरदर्शन केंद्र में कार्य के दौरान मिले खाली समय और शांत वातावरण में उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने यहाँ कई कविताएँ तथा लेख लिखे, जो बाद में आकाशवाणी - दूरदर्शन में प्रसारित होने के अलावा अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

संध्या जी कला में अपना करियर बनाना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे सरकारी अफसर बनें। हालाँकि उनकी रुचि और प्रतिभा को देखते हुए उन्हें उनके मन मुताबिक़ काम करने से कभी मना नहीं किया। वे अपने पिता की इच्छानुसार पीएससी की तैयारी और सरकारी नौकरियों के लिए भी आवेदन करती रहीं। मज़े की बात ये कि वे जहाँ भी आवेदन देतीं, उनका चयन हो जाता। इस तरह एक नहीं, कई सरकारी नौकरियों के लिए वे चुनी जाती रहीं, लेकिन थोड़े समय में ही उनका मन ऊब जाता और वे वापस अपने मनपसंद विषय की तरफ मुड़ जातीं।

राज्य शैक्षणिक अनुसन्धान परिषद ( एससीईआरटी) में काम के दौरान वर्ष 1997 संध्या जी की मुलाकात राजेश जी से हुई जो एससीईआरटी के लेखा अधिकारी उमेश जी के भाई थे। उमेश जी ने संध्या जी से अपने भाई के रिश्ते की बात की। संध्या जी, राजेश जी के सहज स्वभाव से प्रभावित थीं, लेकिन उनके माता-पिता इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे। वे अपनी बेटी के लिए सरकारी नौकरी वाला दामाद चाहते थे जबकि  राजेश जी एक निजी कम्पनी में काम करते थे। लेकिन संध्या जी की ज़िद के आगे उन्हें झुकना पड़ा और उसी साल मई में उनका विवाह राजेश जी के साथ हो गया। शादी के बाद नए वातावरण तथा परिवार से तालमेल बैठाने में उनका चित्रकला, कविता और संगीत से साथ छूटने लगा। हालाँकि उस समय भी वे एससीईआरटी में चित्रांकन के साथ स्वतंत्र रूप से काम करती रहीं, परन्तु उनके अन्दर का कलाकार इससे अलग हटकर कुछ करना चाह रहा था वे पेंटिंग के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने आर्थिक रूप से किसी के ऊपर आश्रित नहीं रहना चाहती थीं। आखिरकार उनके प्रयास से वर्ष 1998 में केन्द्रीय विद्यालय में चित्रकला शिक्षक के पद पर उनका चयन हो गया, लेकिन उसी वर्ष उनकी बड़ी बेटी का जन्म हुआ और उसकी देखभाल के लिए उन्हें ये नौकरी छोड़ना पड़ी। एक बार फिर वे घर से ही फ्री लान्सिंग करने लगी, पेंटिंग और कविता का जुनून भी बना रहा।

जनवरी 2002 में नवोदय विद्यालय समिति (केन्द्रीय सरकार) में कला शिक्षक के पद पर उनका चयन हुआ और उन्हें भोपाल से चंडीगढ़ आना पड़ा। भोपाल से चंडीगढ़ और वहां से पंजाब तक का सफ़र बेहद मुश्किलों भरा रहा। चंडीगढ़ में ज्वाइनिंग लेकिन पदस्थापना हिमाचल के लाहौल स्पीती में हुई, जो लगभग 3650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कोल्ड डेज़र्ट के नाम से जाना जाता है। उनके साथ उनकी चार साल की बेटी थी, जिसने अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था। एक बार फिर उन्हें लगने लगा कि ये नौकरी भी उन्हें छोड़नी पड़ेगी क्योंकि न तो बेटी को साथ रखा जा सकता था और न किसी के पास छोड़ा जा सकता था। कठिन समय में उनके पति ने उनका साथ दिया और अपने कारोबार को कुछ विराम देकर उनके साथ चंडीगढ़ आने का फैसला लिया। उनके प्रयासों से शीघ्र ही उन्हें पंजाब में संगरूर के लोंगोवाल स्कूल में पोस्टिंग दे दी गई। इसी दौरान सितंबर 2002 में उनकी छोटी बेटी ने जन्म लिया। अब परिस्थितियां और अधिक जटिल हो गईं। बच्चों की देखभाल के साथ आवासीय विद्यालय की 12-13 घंटे की कठिन नौकरी उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। विषम परिस्थितियों में अपनी कला के लिए समय ही नहीं बचा। उनके साथ रहते हुए पति का व्यवसाय भी ठप्प पड़ गया। आखिरकार पति ने निश्चय किया कि वे पंजाब में रहकर ही नए सिरे से काम शुरू करेंगे और उन्होंने अपने शौक (वास्तु और ज्योतिष) को ही अपना पेशा बना लिया।

इधर संध्या जी ने स्कूल के कलाकक्ष में अपना ईज़ल लगा लिया और जब भी खाली समय मिलता, ड्राइंग-पेंटिंग करती रहतीं। इस तरह जब उनकी लगभग 45 पेंटिंग तैयार हो गई, तब अक्टूबर 2010 में उनके एकल चित्रों की प्रदर्शनी चंडीगढ़ के एलायंस फ्रैंकाइज़ कला वीथिका में प्रदर्शित हुई, जिसका उद्घाटन नवोदय विद्यालय के क्षेत्रीय उप निदेशक श्री सुरेश कुमार शर्मा ने किया। उनका काम देखकर वे आश्चर्य चकित हो गए और पूछा कि नौकरी के बीच उन्होंने इतना काम कैसे कर लिया। वर्ष 2019 उनका तबादला संगरूर से पटियाला हो गया। चित्रों और कविताओं के जरिये संध्या जी  प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को मानव मन के साथ एकाकार करने की कोशिश करती हैं। उनका पसंदीदा माध्यम ऑइल पेंटिंग ही है हालाँकि एक्रेलिक में भी वे काम करती हैं। कई बार अमिश्रित रंगों को सीधे ही कैनवास पर लगा देती हैं ताकि रंगों का अपना मूल स्वभाव बना रहे। रेखांकन भी उनका प्रिय माध्यम रहा है जिसमें वे रंगीन पेन और स्याही का प्रयोग पसंद करती हैं। उनका प्रयास हमेशा यही रहता है कि चित्रों में भारत की संस्कृति और मिट्टी की झलक दिखाई दे। चित्रकला, पोस्टर मेकिंग, पेपर मेशी, पेपर क्राफ्ट, मिट्टी कला, खिलौना कला 3D मॉडल इत्यादि के माध्यम से वे अपने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करती हैं। उनके द्वारा शिक्षित कई विद्यार्थी कलाकार के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा कोई डॉक्टर, इंजीनियर, लेखक और शिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं तो कोई भारतीय सेना में सेवा दे रहे हैं।

संध्या जी इस समय नवोदय विद्यालय, पटियाला में टीजीटी कला शिक्षा के पद पर कार्यरत हैं। उनकी बड़ी बेटी शिवालिका प्राणिशास्त्र में एमएससी करने के बाद इसी विषय पर शोध कर रही हैं, छोटी बेटी विनायका दिल्ली यूनिवर्सिटी से भाषाशास्त्र और फ्रेंच के साथ स्नातक कर रही है। विनायका भी कविताएं लिखती है तथा ‘साउंड्स ऑफ़ साइलेंस’ नाम से उसकी एक पुस्तक 2019 में प्रकाशित हो चुकी है।

उपलब्धियां/सम्मान/पुरस्कार

• एक शिक्षक के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई सम्मान और पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किए। इसी क्रम में तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त हुआ।

• रज़ा अवार्ड (स्टेट एग्जीबिशन भोपाल 1997)

• भारतीय समाज सेवा समिति-पुणे द्वारा श्रेष्ठ कला शिक्षक सम्मान (2020)

• विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा अमृता प्रीतम कवयित्री सम्मान (2020)

• मिनी आर्ट वर्क की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी और फाइनेक्स अवार्ड देवलालीकर कला वीथिका इंदौर (म.प्र.)

• हेल्प बॉक्स फाउंडेशन भोपाल द्वारा वसुधा सम्मान (2022) (महिला पर्यावरण योद्धा)

• एकल प्रदर्शनी के दौरान हिंदुस्तान टाइम्स चंडीगढ़, द इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़, द ट्रिब्यून चंडीगढ़, पंजाब केसरी आदि समाचार पत्रों में साक्षात्कार प्रकाशित (2020)

• बाल अधिकार संरक्षण तथा आर्ट डिजाइन टीचर फोरम मध्य प्रदेश द्वारा ‘टर्निंग पॉइंट 6’ वार्षिक कलेंडर 2023 में पेंटिंग प्रकाशित

चित्र प्रकाशन

• इंटरनेशनल आर्ट शो कैटलॉग ‘डायरीज़ ऑफ़ दिसंबर’ (2019)

• एक्ट, कनेक्ट एंड रिफ्लेक्ट- II, नेशनल एनुअल आर्ट शो ईस्टर्न आर्ट फाउंडेशन कैटलॉग (2019)

• फाइनेक्स्ट इंटरनेशनल अवार्ड कैटलॉग (2019-20)

• हेल्प बॉक्स फाउंडेशन भोपाल की वार्षिक स्मारिका ‘वसुधा’ के कवर पेज पर चित्र प्रकाशित (2022)

• चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेटरी मध्यप्रदेश द्वारा प्रायोजित कैलेंडर- ‘द गार्जियनशिप’ (2023)

• मध्य प्रदेश पाठ्यपुस्तक निगम की अनेक पाठ्यपुस्तक के चित्र और बुक कवर (कक्षा 4 से 12वीं तक लगभग सभी विषयों के लिए)  

• एनसीईआरटी की विभिन्न परियोजनाओं और व्यावसायिक पाठ्यक्रम पाठ्यपुस्तकों का चित्रण

संग्रह

• नवोदय विद्यालय समिति क्षेत्रीय कार्यालय-चंडीगढ़

• म्यूजियम ऑफ़ पटियाला- पंजाबी यूनिवर्सिटी

• एलायंस फ्रैंकाइज-चंडीगढ़

• कई व्यक्तिगत संग्रह

प्रदर्शनियां/ एकल प्रदर्शनी

• फ्रांस दूतावास और द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रायोजित ‘एलायंस फ्रैंकाइज’ चंडीगढ़ 16 से 29 अक्टूबर (2010),

सामूहिक प्रदर्शनियां और भागीदारी

• नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ इन्डिया 1985

• लायंस क्लब भोपाल 1985

• सैफिया कॉलेज छात्र संघ भोपाल 1987

• अखिल भारतीय महिला सम्मेलन 1988

• सम्राट अशोक अभियांत्रिकी महाविद्यालय,विदिशा 1989

• नेशनल एग्जीबिशन, साउथ सेन्ट्रल ज़ोन, नागपुर 1989

• स्टेट एग्जीबिशन ग्वालियर, मप्र 1989

• वी.एस. वाकणकर स्मृति राज्य प्रदर्शनी,उज्जैन 1989

• ग्रुप शो युवा चेतना परिषद-भोपाल 1990

• ग्रुप शो मध्य प्रदेश कला परिषद, भोपाल 1990

• सफदर हाशमी  स्मृति राज्य प्रदर्शनी, भोपाल 1990

• ग्रुप शो कालिदास अकादमी, उज्जैन 1990

• ग्रुप शो देवलालीकर कला वीथिका-इंदौर 1990

• रिदम आर्ट सोसायटी, भोपाल, राज्य प्रदर्शनी 1987, 88. 89. 90. 91

• नेशनल एग्जीबिशन,संस्कार भारती, जयपुर 1992

• संस्कार भारती स्मृति राज्य प्रदर्शनी, भोपाल 1995

• पीएसएस सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वोकेशनल एजुकेशन-भोपाल 1997

• उड़ीसा ईस्टर्न फाउंडेशन ऑफ आर्ट एंड कल्चर द्वारा आयोजित चौथा वार्षिक कला कार्यक्रम, धौली कॉलेज ऑफ आर्ट- भुवनेश्वर 2019

• उत्सव आर्ट एकत्व फाउंडेशन द्वारा आयोजित ग्रुप आर्ट एग्जीबिशन,आइफैक्स, नई दिल्ली-2019

• आर्ट आर्टिस्ट आर्टिस्टिक कला स्पंदन आर्ट फेयर, नेहरू केंद्र, मुंबई 2019

• स्टोन रेजीडेंसी, नई दिल्ली (मई 2019)

• नवम अन्तर्राष्ट्रीय सामूहिक कला प्रदर्शनी 'डायरीज ऑफ़ दिसम्बर',शिमला 2019

• फाइनेक्स अवार्ड्स एंड इंटरनेशनल मिनी आर्टवर्क, देवलालीकर कला वीथिका, इंदौर (3 से 6 जनवरी 2020)

• आर्ट फॉर कॉज, अष्टम अंतर्राष्ट्रीय ऑन लाइन आर्ट शो 2021

• कलर्स और कैनवस द्वारा विजुअल आर्ट एक्सपो इंटरनेशनल ग्रुप एग्जीबिशन 2021-22

कैंप/आर्ट फेयर

• ऑल इंडिया आर्ट स्टूडेंट कैंप, भारत भवन, भोपाल (1987-ग्राफ़िक्स)

• वेस्ट ज़ोन यूथ फेस्टिवल, मुंबई (1987- पेंटिंग)

• वेस्ट ज़ोन यूथ फेस्टिवल, इंदौर (1988- पेंटिंग)

• ऑल इंडिया आर्ट, स्टूडेंट कैंप, भारत भवन, भोपाल (1990-स्कल्पचर)

• स्टेट आर्ट फेयर, शरद पर्व, भारत भवन, भोपाल (1991-पेंटिंग

सन्दर्भ स्रोत: संध्या श्रीवास्तव से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित

©  मीडियाटिक 

Comments

  1. Munish 16 Apr, 2023

    Super se uper ki Life Journey, hats off to you

  2. Janpriy Sharma 16 Apr, 2023

    Very nice and inspiring compilation.

  3. Arvind kumar 16 Apr, 2023

    It's fantastic. Keep it up madam. Stay blessed always

  4. Medhavi jindal 16 Apr, 2023

    Truly inspiring

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