माया बोहरा 

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माया बोहरा 

छाया : माया बोहरा  के एफबी अकाउंट से

 

• सीमा चौबे

‘किसी भी समाज की उन्नति उस समाज की औरतों की स्थिति से मापी जा सकती है’ –  डॉ. भीमराव आंबेडकर का यह कथन आज के उस परिप्रेक्ष्य में सही सिद्ध हो रहा है, जब हम उन महिलाओं को देखते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कठिन परिश्रम करते हुए एक महान लक्ष्य की प्राप्ति की है। ऐसी ही  एक  शख्सियत हैं मध्यप्रदेश के इंदौर की पुनर्वास मनोवैज्ञानिक माया बोहरा (maya bohra - counselling psychologists) , जिन्होंने कई विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए जीवन में एक सर्वश्रेष्ठ मुकाम बनाया। लोगों के मन: स्थिति समझकर वे न केवल उन्हें जीवन की दिशा बता रही हैं, बल्कि अपने आप से हताश-निराश हो चुके लोगों के मन में जीवन के प्रति आशा का संचार भी कर रही हैं। माया जी का जन्म वर्ष 1969 में कलकत्ता के एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ, जहाँ लड़कियों के लिए तरह-तरह की बंदिशें थीं। ऐसे वातावरण में श्री भीकमचंद सुराना और श्रीमती भंवरी देवी की चार संतानों में सबसे बड़ी माया को अपनी शिक्षा के लिए अपनों से ही बगावत करनी पड़ी, लेकिन लगातार तमाम तरह के दबावों को झेलते हुए उन्होंने पढ़ना जारी रखा और आज वे पूरे मध्यप्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता (Awareness on mental health) फैला रही हैं।

श्रीमती सुराना की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, लिहाजा माया जी के जन्म के कुछ माह बाद ही उनके दादा-दादी उन्हें अपने साथ राजस्थान के एक छोटे-से गाँव ले गए। 8 वर्ष की उम्र में उन्हें वापस कलकत्ता लाया गया। दादा-दादी के पास नाजों से पली माया की आंखों में पढ़ने और कुछ कर गुजरने के सपने थे, लेकिन मां की बीमारी की वजह से भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी उन पर ही आ गई। इन परिस्थितियों में माया जी कभी-कभार ही स्कूल जा पाती थीं। लेकिन फिर भी किसी तरह उन्होंने 10वीं पास कर ली। वे आगे पढ़ना चाहती थीं, लेकिन पिता की इच्छा थी कि वे पढ़ाई छोड़ दें और केवल घर के काम पर ध्यान दें। उन्होंने किसी तरह घर वालों को विश्वास दिलाया कि वे पढ़ाई के लिए घर का कामकाज प्रभावित नहीं होने देंगीं। 11वीं की पढ़ाई के दौरान माया जी के सबसे छोटे भाई ने जन्म लिया और उन पर पढ़ाई छोड़ने का दबाव और बढ़ गया, परंतु माया जी ने इस बार भी दृढ़ता से अपनी बात रखी और पढ़ाई न छोड़ने के अपने फैसले पर डटी रहीं।

शुरुआत में माया जी विज्ञान पढ़ रही थीं, लेकिन नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पाने के कारण उन्होंने आर्ट्स लेकर पढ़ना शुरू किया। जब पढ़ाई छोड़ने का ज्यादा दबाव बना तो नियमित पढ़ने की बजाय प्राइवेट पढ़ाई करना शुरू किया और जैसे तैसे ग्रेजुएशन पूरा कर ही लिया। समय बीतने के साथ ही उन पर पढ़ाई छोड़ने और शादी करने का दबाव भी बढ़ता जा रहा था, फिर भी उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. (प्राइवेट) के लिए फॉर्म भर दिया। लेकिन परीक्षा से पहले ही फतेहपुर (राज.) निवासी व्यवसायी श्री रविन्द्र बोहरा से उनकी सगाई हो गई। माया ने साहस दिखाते हुए अपने ससुराल पक्ष के सामने विवाह के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने की बात रखी, जिस पर सास-ससुर ने अपनी सहमति दे दी। 12 दिसंबर 1990 को उनका विवाह हो गया। विवाह के कुछ दिनों बाद ही शुरू होने वाली परीक्षा देने की बात पर ससुराल वाले यह कहते हुए मुकर गए कि ‘अब कोई ज़रूरत नहीं है पढ़ने की, जितना पढ़ना था, पढ़ लिया’।

विवाह के बाद उनकी चुनौतियां कम नहीं हुईं क्योंकि ससुराल में मायके से ज़्यादा बंदिशे थीं। पति उनके मन की पीड़ा समझते, परंतु वे भी परिवार की परम्पराओं से बंधे थे। कुछ समय बाद वे पति के साथ इंदौर चली आईं, जहाँ उनके पति ने उनसे एलएलबी का प्रायवेट फॉर्म भरवाया, लेकिन कानून की किताबें माया को रास नहीं आई और उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया। इस बीच दो बेटियां होने के बाद माया जी ने चित्रकारी सीखी और अपने अंदर छुपी निराशा को उन्होंने कैनवास पर उकेरना शुरू किया। हर बार की तरह यहां भी वही हुआ कि जब लोग उनके काम की तारीफ़ करने लगे, पेंटिंग खरीदने की बात करने लगे और उत्साहित होकर वे कला प्रदर्शनियों में शिरकत करने लगीं, तो घर वालों ने उनका यह काम भी बंद करवा दिया।

अब माया जी पेंटिंग करना छोड़ घर के आस-पड़ोस के कुछ बच्चों को पेंटिंग सिखाने लगीं। बस, यहीं से उन्हें अपनी मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता मिल गया। दरअसल बच्चों को पेंटिंग सिखाने के दौरान उन्होंने देखा कि कुछ लोग अपने बच्चों को रुचि न होने के बावजूद पेंटिंग सीखने के लिए जबरदस्ती छोड़कर जाते थे। माया जी ने बच्चों की मनोदशा को समझा और बाल मनोविज्ञान पढ़ना शुरू किया। वे बच्चों को पेंटिंग सिखाने के साथ अपनी किताबें लेकर पढ़ने बैठ जाती। क्लब, किटी और गपशप जैसी चीज़ें उन्हें रास नहीं आती थीं, इसलिए खाली समय में वे पढ़ने बैठ जाया करती थीं। मनोविज्ञान की किताबें पढ़ने के दौरान उन्हें समझ आया कि असामान्य होना किसे कहते हैं? मानसिक स्वास्थ्य के मसले क्या हैं? चूंकि वे भी अपने जीवन में निराशा और अवसाद के दौर से गुजर चुकी थीं, इसलिए वे दूसरों के मनोभावों को आसानी से समझने लगीं। उन्हें इस स्थिति से बाहर निकालने में उनके पारिवारिक मित्र ने उनकी मदद की और वे विपरीत परिस्थितियों पर काबू पाते हुए अवसाद से जीतने में सफल रहीं। उन्हें लगा जब कोई उन्हें नई दिशा दे सकता है तो वो भी लोगों को रास्ता दिखा सकती हैं। बस, यहीं से उनके जीवन में नया मोड़ आ गया।

एक बार उन्हें जैन समाज के ‘मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता’  विषय के एक कार्यक्रम में ‘बच्चों की परवरिश’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम में मनोविज्ञान की प्रोफेसर डॉ. सरोज कोठारी मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थीं। डॉ. कोठारी को जब यह पता चला कि माया जी के पास इस विषय की कोई डिग्री नहीं है, इसके बावजूद वे लोगों के मन की स्थिति को बेहतर तरीके से समझती और मार्गदर्शन देती हैं। तब उन्होंने माया जी को फिर से पढ़ाई करने का सुझाव दिया। जब उन्होंने यह बात पति को बताई तो एक बार फिर सब उनके विरोध में खड़े हो गए, लेकिन उनके पति ने उन्हें इस हिदायत के साथ पढ़ने की इजाजत दे दी कि घर के काम और बेटियाँ इससे प्रभावित नहीं होनी चाहिए। इसके बाद माया जी ने इंदौर के एक कॉलेज में एमए (मनोविज्ञान) में दाखिला ले लिया, लेकिन इस बीच हर दिन कोई न कोई पारिवारिक परेशानी सामने आ जाती। नियमित कॉलेज न जा पाने के कारण उन्हें मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख ने मनोविज्ञान की पढ़ाई के लिए अयोग्य घोषित कर दिया और उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई।

एक साल बाद अचानक उनकी मुलाक़ात डॉ. कोठारी से हुई। माया जी ने उन्हें सारी बात बताई, तो उन्होंने माया का दाखिला अपने कॉलेज में करा दिया। बस, इसके बाद माया जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एमए साइकोलॉजी पूरा होने के बाद माया ने पीजी डिप्लोमा इन गाइडेंस एंड काउंसलिंग, ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन रिहैबिलिटेशन साइकोलॉजी, (Diploma in Rehabilitation Psychology) डिप्लोमा इन अर्ली चाइल्डहुड एंड स्पेशल एजुकेशन (Diploma in Early Childhood and Special Education), कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (Cognitive Behavior Therapy) और रेशनल मोटिव थेरेपी (Rational Motive Therapy) में फॉर्मल ट्रेनिंग और लर्निंग डिसेबिलिटी (learning disabilities) विषय में पीएचडी की। उनकी इन्हीं उपलब्धियों के कारण आज वह लगातार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों में शिरकत करती हैं।

माया जी ने जब मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करना शुरू किया तो उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लोग इसे सीधे पागलपन से जोड़कर देखते थे और उनके पास आने से कतराते थे। वर्ष 2006 में उन्होंने मनो-निदान, चिकित्सीय और उपचारात्मक केंद्र ‘लक्ष्य’ (लर्निंग डिसेबिलिटी, रेमेडियल एंड पैरेंटल एजुकेशन, डायग्नोसिस थैरेपीज़ उपचार के लिए एक विशेष केंद्र) प्रारम्भ किया। माया जी ने अपने अनुभवों से यह समझा कि समाज में ऐसे काम की कितनी ज़रुरत है। लोग परेशान हैं, निराश हैं पर कोई उन्हें सही रास्ता बताने वाला नहीं है। ऐसे ही लोगों की सहायता के लिए उन्होंने मदद का हाथ बढ़ाया और सहकर्मी सुलेशा के साथ मिलकर वर्ष 2012 में ‘स्पंदन’ (‘Spandan’ Helpline)  नामक हेल्पलाइन शुरू की। इस हेल्पलाइन के माध्यम से अब तक हज़ारों लोगों की जान बचाई जा चुकी है।

जनवरी 2020 से माया जी यूएनएफपीए, मध्यप्रदेश शासन, समग्र शिक्षा अभियान और आर.ई.सी. फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में शासकीय शालाओं में पढ़ने वाले कक्षा 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए ‘उमंग’ हेल्पलाइन (‘Umang’ Helpline) भी संचालित कर रही हैं। ‘स्पंदन’ के माध्यम से कार्यशालाओं, सेमिनार, व्याख्या, प्रतियोगिताओं और नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए जीवन जीने का कौशल, समस्याओं का निराकरण, परीक्षाओं के तनाव और दबाव से बचाव, असरकारक अध्ययन और याददाश्त संबंधी तकनीक, घातक व्यवहार को पहचानने और उसके प्रबंधन आदि विषयों पर जागरूक करने के साथ ही देश भर में लाइफ-स्किल्स, लाइफ कोचिंग, पेरेंटिंग (बचपन और किशोरावस्था), करियर गाइडेंस, इमोशन एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट, किशोरावस्था, लीडरशिप, काउंसलिंग स्किल्स, बिहेवियर थेरेपी, बिहेवियर मोडिफिकेशन, डिसेबिलिटी से संबंधित कार्यशालाएं और प्रशिक्षण तथा आत्महत्या रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

माया जी की बड़ी बेटी शिखा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन बाद में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र को चुनकर करियर को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं। वहीं छोटी बेटी प्राची एक प्रशिक्षित ओडिसी नृत्यांगना है। बेटियों के मामले में उन्होंने कोई समझौता नहीं किया और उनकी परवरिश इस तरह की कि उन पर किसी तरह की रूढ़िवादिता का साया पड़ने नहीं दिया। माया जी कहती हैं, आज जो कुछ भी हासिल किया है वह सब कभी संभव नहीं हो पाता यदि मेरे पति मुझे नहीं समझते। आज मैं अपने काम से काफी संतुष्ट हूँ और उम्मीद करती हूं कि जीवनपर्यंत इसी तरह लोगों की मदद करती रहूंगी।

मनोविज्ञान के क्षेत्र में लगातार काम करने के साथ-साथ माया जी सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय रहती हैं। उनके इन्हीं श्रेष्ठ कार्यों ने उन्हें कई तरह के सम्मान दिलवाए। इन सम्मानों में प्रमुख हैं- ‘प्रतिभा अलंकरण सम्मान’, तेरापंथ महिला मंडल द्वारा ‘निवेदिता सम्मान’, ‘संस्कार भारती बेस्ट प्रेसिडेंट अवॉर्ड’, रोटरी क्लब द्वारा ‘उत्कृष्ट व्यावसायिक सेवा सम्मान’ एवं लायंस क्लब द्वारा ‘रक्तदान के लिए विशेष सम्मान’। इनके अलावा 21 अन्य ‘सेवा सम्मान पुरस्कार’ भी माया जी की उपलब्धियों में शामिल हैं।

संदर्भ स्रोत: माया बोहरा से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

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