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खून की कमी पर डॉक्टर ने चेताया था, लेकिन अपने जूनून को छोड़ना नहीं चाहती थीं
भोपाल की तेजस्विता अनंत ऐसी इकलौती महिला तालवादक (पर्कशनिस्ट) हैं, जिनकी संगीत यात्रा ढोलक बजाने से शुरू हुई थी और आज वे 25 से अधिक ताल वाद्य बजा लेती हैं। उनमें से कई तो ऐसे हैं, जिनका उन्हें नाम भी पता नहीं था। तेजस्विता ने भारत भवन में एक नाटक में किसी को पखावज बजाते देखा और उसके बारे में जानना चाहा। तब उनके एक साथी ने बताया कि इसे मर्दों का वाद्य कहा जाता है और उसे बजाना बहुत मुश्किल होता है। तेजस्विता ने सोचा कि यह दिखता तो ढोलक जैसा है। इतना मुश्किल कैसे हो सकता है। तभी उन्होंने निर्णय लिया कि यह वाद्य तो उन्हें सीखना ही है। इस तरह वे ताल वाद्य की ओर आकर्षित हुईं।
साल 2015 में विहान ड्रामा वर्क्स में एक नृत्य कार्यशाला मैं तेजस्विता ने हिस्सा लिया। इसके बाद उनकी गायन कार्यशाला में भी वे शामिल हुई। विहान की यह तैयारी दरअसल रंग संगीत की प्रस्तुति के लिए थी, जिसमें तेजस्विता को भी समूह गान में गाने का मौका मिला। उसी दौरान उनकी तबीयत ख़राब हो गई। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें खून की कमी हो गई है और उन्हें शारीरिक श्रम नहीं करना चाहिए वर्ना समस्या बढ़ सकती है। लेकिन तेजस्विता ने महसूस किया कि नाटक और संगीत ही उनके लिए सबसे बड़ी दवा है और इसलिए उन्होंने अपने जूनून को जारी रखने का फ़ैसला किया। इसी का नतीजा है कि वे अब मांदल, पखावज, नगाड़ा, ढोलक दरबुका, कहॉन जेम्बे, कांगो-बांगो, डफ, सम्मल, दुबकी, टिमकी, ताशा, बीट बॉक्स, वुडन ड्रम, गुग्गू, जैसे वाद्यों पर समान अधिकार रखती हैं।
संदर्भ स्रोत- दैनिक भास्कर
संपादन- मीडियाटिक डेस्क
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