कैंसर को हराकर गरीब बच्चों की उम्मीद बनीं डॉ. ज्योत्सना,

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कैंसर को हराकर गरीब बच्चों की उम्मीद बनीं डॉ. ज्योत्सना,
सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षा का दीप जला रहीं डॉ. उषा

भोपाल। जब जज़्बा सेवा का हो और इरादा समाज में बदलाव लाने का, तो उम्र, बीमारी या हालात भी राह का रोड़ा नहीं बनते। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है भोपाल की दो शिक्षिकाओं आरजीपीवी की प्रोफेसर डॉ. ज्योत्सना चौहान और जहांगीराबाद स्कूल की पूर्व प्राचार्य डॉ. उषा खरे ने। जहां डॉ. चौहान ने कैंसर को हराकर गरीब बच्चों और कैंसर पीड़ितों के लिए शिक्षा और जागरूकता की मुहिम छेड़ी है, वहीं डॉ. खरे ने सेवानिवृत्ति के बाद पूरे शहर को ही स्कूल बना डाला। इनकी ये यात्राएँ न केवल शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा हैं, बल्कि यह बताती हैं कि अगर इरादे नेक हों, तो बदलाव की शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है।

कैंसर से जंग जीतकर बनीं सहारा – डॉ. ज्योत्सना चौहान

राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV), भोपाल की भौतिकी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. ज्योत्सना चौहान ने वर्ष 2012 में जब कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सामना किया, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह न केवल इस बीमारी को मात देंगी, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा और सहारा भी बन जाएंगी।  उन्होंने 2014 तक अपना सर्वाइवल पीरियड पूरा किया, और इसके बाद जीवन को एक नई दिशा दी। आज वे कैंसर पीड़ितों के लिए जागरूकता अभियान चला रही हैं, जो लोगों को जीवन के प्रति आशा और हौसले से जीने की प्रेरणा देता है। 

छात्रों को समर्पित लेखन – बिना रॉयल्टी की 13 किताबें :इंजीनियरिंग विद्यार्थियों की मदद के लिए उन्होंने नैनो टेक्नोलॉजी, एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी जैसे जटिल विषयों पर 13 किताबें बिना किसी रॉयल्टी के लिखीं। ये किताबें 2019 से 2024 के बीच प्रकाशित हुईं और उन्हें "सर्वाधिक स्टूडेंट यूटिलिटी" का खिताब भी मिला।\ डॉ. चौहान न केवल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं, बल्कि निचले इलाकों में रहने वाले गरीब बच्चों की स्कूल और कॉलेज फीस जमा करने के लिए भी एक सामाजिक मुहिम चला रही हैं। उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें आइसर बेंगलुरु द्वारा "अब्दुल कलाम लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड" से सम्मानित किया गया है। 

पूरे शहर को बना दिया स्कूल – डॉ. उषा खरे

एक ओर डॉ. चौहान ने बीमारी को हराकर सेवा की मिसाल पेश की, तो वहीं डॉ. उषा खरे ने रिटायरमेंट के बाद भी शिक्षा का दीपक जलाए रखा। जहांगीराबाद स्थित एक सरकारी स्कूल की पूर्व प्राचार्य डॉ. खरे को राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

सरकारी स्कूल में पहली एआई और रोबोटिक्स लैब : डॉ. खरे ने उस समय सरकारी स्कूल में पहली रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) लैब की स्थापना करवाई, जब निजी स्कूल भी इस दिशा में आगे नहीं थे। इससे स्कूल की छात्राओं को तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण मदद मिली।

केबीसी में जीते 25 लाख, सब स्कूल को समर्पित :डॉ. खरे 'कौन बनेगा करोड़पति' के कर्मवीर एपिसोड में भी शामिल हुईं, जहां उन्होंने 25 लाख रुपये जीते और वह पूरी राशि स्कूल की रोबोटिक्स लैब के विकास में लगा दी।

स्टडी सेंटर्स से बच्चों को भविष्य की दिशा : सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने शहर के विभिन्न इलाकों—आरिफ नगर, करोंद आदि में स्टडी सेंटर्स की शुरुआत की, जहां बच्चों को न सिर्फ पढ़ाई की सुविधा मिलती है, बल्कि करियर गाइडेंस और रोजगारपरक कोर्सेस भी कराए जाते हैं।

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