गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने सबको चौंका दिया। मामला एक शादीशुदा कपल का है। कपल की शादी अहमदाबाद में हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) के तहत हुई थी। बाद में दोनों ऑस्ट्रेलिया चले गए और वहीं कोर्ट ने उन्हें तलाक भी दे दिया। लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने साफ कहा कि विदेशी कोर्ट का यह आदेश भारत में मान्य नहीं है और हिंदू रीति-रिवाज से हुई शादी को खत्म करने का अधिकार सिर्फ भारतीय अदालतों के पास है।
जस्टिस एवाई कोगजे और एनएस संजय गौड़ा की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम से जुड़ी शादी पर किसी विदेशी कोर्ट का फैसला लागू नहीं होगा। भले ही पति-पत्नी ने विदेशी नागरिकता ही क्यों न ले ली हो। अदालत ने फैमिली कोर्ट का पुराना आदेश खारिज कर दिया और पत्नी की अपील स्वीकार करते हुए मामले को मेरिट के आधार पर फिर से सुनने का निर्देश दिया।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
यह कपल जुलाई 2008 में अहमदाबाद में शादी के बंधन में बंधा था। कुछ समय बाद दोनों ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गए और 2013 में उनका पहला बच्चा वहीं पैदा हुआ। साल 2014 में मतभेद उभरने लगे और पति भारत लौट आया। जबकि पत्नी ऑस्ट्रेलिया में रहकर नागरिकता हासिल करने में जुटी रही। 2015 में उसने भी बेटे के साथ भारत वापसी की।
ऑस्ट्रेलिया का तलाक और भारत में चुनौती
मार्च 2016 में पति ने ऑस्ट्रेलिया के फैडरल सर्किट कोर्ट में तलाक और बच्चे की कस्टडी का केस दायर किया। नवंबर 2016 में कोर्ट ने तलाक मंजूर कर दिया। पत्नी ने इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन उसकी समीक्षा याचिका खारिज हो गई। इसके बाद पत्नी ने भारत में कई मुकदमे दर्ज किए, जिनमें विदेशी तलाक आदेश को अवैध घोषित करने और दांपत्य अधिकार बहाल करने की मांग की।
फैमिली कोर्ट का आदेश और हाईकोर्ट की नाराजगी
मार्च 2023 में अहमदाबाद की फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला दिया और पत्नी के दोनों मुकदमे खारिज कर दिए। लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को गलत ठहराया। अदालत ने कहा कि जब पत्नी ने खुद ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट की जुरिस्डिक्शन पर सवाल उठाया था, तो विदेशी तलाक को अंतिम और वैध मान लेना बिल्कुल अनुचित है।
नागरिकता का कोई लेना-देना नहीं
हाईकोर्ट ने साफ किया कि अगर यह मान लिया जाए कि विदेशी नागरिकता मिलते ही भारतीय शादी पर विदेशी कानून लागू हो जाएगा, तो इससे गंभीर अराजकता पैदा होगी। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हुई शादी चाहे भारत में रहे या विदेश में, उसका अधिकार क्षेत्र सिर्फ भारतीय अदालतों के पास रहेगा।
पत्नी को बड़ी राहत
कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(c) पत्नी को यह अधिकार देती है कि वह विदेशी तलाक आदेश को चुनौती दे सके। इसलिए उसकी याचिकाओं को मेरिट पर सुना जाना चाहिए। अदालत ने फैमिली कोर्ट को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने बिना गहराई से विचार किए विदेशी आदेश को मान्यता दे दी।
आगे क्या होगा?
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद पत्नी की याचिकाएं फिर से फैमिली कोर्ट में सुनवाई के लिए जाएंगी। इस फैसले ने एक बड़ा संदेश दिया है कि विदेशी कोर्ट का आदेश भारतीय वैवाहिक कानूनों पर हावी नहीं हो सकता।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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