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राजनीति-प्रमुख हस्ती
कॉमरेड नुसरत बानो रूही (Comrade Nusrat Bano Ruhi) का जन्म 16 नवम्बर, 1931 को भोपाल में हुआ। उनके पिता एल.के. नजमी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं प्रगतिशील विचारक थे और मां मरियम बी इस्मत महू में एक स्कूल शिक्षिका थीं ।
डॉ. रूही का बचपन दादी के घर भोपाल में बीता। क्योंकि देश के विभाजन का असर उनके घर पर भी पड़ा था। पिता आंदोलनों में सक्रिय थे और एक मात्र कमाने वाली सदस्य मां अकेले महू में रहती थी। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रूही जी भोपाल के एक अस्पताल में क्लर्क की नौकरी करने लगीं और इसी कमाईं से आगे की पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से बीए, विक्रम विश्वविद्यालय से कानून और राजनीति शास्त्र में पीएचडी की उपाधि हासिल की। बौद्धिक रूप से सक्रिय प्रो.रूही ने सैफिया महाविद्यालय में सन् 1963 से 1991 तक नौकरी की। वे क्रमश: प्रवक्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर, फिर प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहीं। उन्हें उत्तम शिक्षिका की पदवी से नवाजा गया। उनके जीवन में एक मोड़ तब आया, जब उनके पिता एलके नजमी दूसरी शादी कर पाकिस्तान चले गए। इस घटना ने रूही जी को सामाजिक व्यवस्था पर विचार करने के लिए मजबूर किया। प्रगतिशील रूही जी ने जीवन भर अविवाहित रहकर परिवार का पालन पोषण किया। परिवार के प्रति उनका दायित्व बोध धीरे-धीरे इतना व्यापक हुआ कि उनका एक विशाल परिवार बन गया। आगे चलकर उन्होंने एक गरीब घर की बच्ची सना को गोद लिया। उनके निर्देशन में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के करीब 10 विद्यार्थियों ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पिता के प्रगतिशील विचार और बोल्शेविक क्रांति के दस दिन पढऩे के बाद वे कम्युनिज्म से इतनी प्रभावित हुईं कि सन् 1968-69 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य (Member of Communist Party of India) बन गईं। वे कई वर्षों तक भाकपा राज्य सचिव मण्डल की सदस्या (Member of CPI State Secretary Board) रहीं।
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मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए निरंतर सक्रिय रहीं रूही जी ने शाह बानो प्रकरण (Shah Bano Case) में मुसलमान महिलाओं के अधिकारों और मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) पर मीडिया में होने वाली तीखी बहसों में हिस्सा लिया। विशेष रूप से फौरी तलाक, बहुविवाह और बुरका प्रथा समाप्त करने पर उन्होंने जोर दिया। महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और समानता पर उनके द्वारा लिखे गए लेख हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी अखबारों में निरंतर प्रकाशित होते रहे। भारतीय महिला फेडरेशन (Indian Women's Federation) में काम करते हुए उन्होंने प्रौढ़ महिला शिक्षा केंद्र चलाया। वे मध्यप्रदेश के साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र ‘बढ़ता कारवां’ की सम्पादक (Editor of 'Badhta Caravan') भी कई वर्षों तक रहीं।
सन् 1969-70 की बाढ़ हो या यूनियन कार्बाइड से गैस रिसाव, वे पीडि़तों के राहत relief to the victims() के लिए हमेशा तैयार रहीं। उन्होंने गरीब बालिकाओं की शिक्षा और महिलाओं के स्वावलम्बन की दिशा में अनेक सराहनीय कार्य किए। दंगा पीड़ितों की सहायता और साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने के लिए उनका प्रयास अविस्मरणीय है। 80 वर्ष की आयु तक वे विश्व शांति और राष्ट्रों के बीच मैत्री और सद्भावना के लिए सक्रिय रहीं। विदेशों में होने वाली चर्चाओं और गोष्ठियों में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने सोवियत संघ, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और इराक जैसे देशों की यात्राएं की। वर्ष 2016 में वह चिरनिद्रा में लीन हो गईं।
उपलब्धियां
- मध्यप्रदेश शांति एवं एकता संगठन की प्रान्तीय महासचिव।
- भारतीय महिला फेडरेशन की प्रान्तीय अध्यक्ष
- मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की प्रान्तीय कार्यकारिणी सदस्य
- मप्र अशासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ की भोपाल इकाई की अध्यक्ष।
- बज्मे सब रंग की संस्थापक अध्यक्ष।
- नागरिक अधिकार मोर्चा की संस्थापक
- इंसानी बिरादरी मप्र की सदस्य
प्रकाशित कृतियाँ
- भूतपूर्व भोपाल राज्य में साम्राज्यवाद और सामंतवाद के विरुद्ध जनवादी राजनीतिक आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास ।
- जंगे आजादी में भोपाल का (हिस्सा उर्दू और हिन्दी में प्रकाशित)।
- विद्यार्थियों के नाम पत्र
- मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं और शिष्टाचार से संबंधित चंद कुरानी आयात
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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