छाया: ज्योति तिवारी के फेसबुकअकाउंट से
लोक कलाकार
• सीमा चौबे
लोक लुभावन फ़िल्मी गीत गाने वाले गायकों के बीच अपनी आंचलिक कला-संस्कृति को सहेजना और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन होनहार गायिका ज्योति तिवारी ने कम उम्र में ही बघेली गायन में न सिर्फ अपनी अलग पहचान सुनिश्चित की है, बल्कि अन्य राज्यों में इस लोकभाषा में प्रस्तुति देकर विंध्य अंचल का मान और गौरव भी बढ़ाया है। ज्योति का जन्म रीवा के छोटे से गांव टिकुरी में श्री बृजेन्द्र प्रसाद तिवारी और श्रीमती ललिता तिवारी के यहां वर्ष 1995 में हुआ। चार भाई बहनों में तीसरे नंबर की ज्योति की बचपन से ही संगीत खासकर लोकगीत के प्रति विशेष रुचि थी। वे कई घंटे अपनी दादी से लोकगीतों पर बात किया करती। ज्योति गायन के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहती थी लेकिन जिस परिवार के अधिकांश लोग शिक्षक हों, वहां उसी क्षेत्र में बच्चों को भेजने की इच्छा अधिक होती है। ऐसा ही ज्योति के साथ भी हुआ। परिवार के लोग चाहते थे कि वे पढ़ाई करने के बाद एक शिक्षक के रूप में अपना करियर बनायें, लेकिन ज्योति का मन तो संगीत में रम चुका था और सपना था लोक गायिका के रूप में खुद को स्थापित करना। जिस दौर में लोग फिल्मी गायन को ही सफलता की सीढ़ी मानते हैं, उस दौर में बघेली लोकगीतों और अपनी सुरीली आवाज के जरिये ज्योति ने न सिर्फ बघेलखंड का नाम रोशन किया, बल्कि अपने गाँव की युवतियों के लिए गाँव से बाहर निकलने का रास्ता भी तैयार किया। आज उसी गाँव में जहाँ लोग उनके काम को लेकर सवाल उठाते थे, अब उन्हें आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
गांव में लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरुकता की बेहद कमी थी, लेकिन ज्योति के दादा सरकारी स्कूल में हेडमास्टर थे और पिताजी शिक्षक, दोनों शिक्षा के महत्व को समझते थे, इसलिए परिवार में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं आई। ज्योति की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। उसके बाद माध्यमिक शिक्षा के लिए रीवा के मॉडल स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। रीवा के इस प्रतिष्ठित स्कूल में एडमिशन लेने वाली ज्योति गांव की पहली लड़की थी, वहीं कॉलेज की दहलीज तक पहुँचने वाली गाँव की पहली लड़की थी उनकी बड़ी बहन। मॉडल साइंस कॉलेज रीवा से बीएससी की डिग्री हासिल करने के बाद ज्योति ने वर्ष 2016-17 में टीआरएस कॉलेज रीवा से संगीत विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
ज्योति की दादी लोकगीत गायन में माहिर थीं। गांव, परिवार, समाज में होने वाले आयोजनों में संस्कार गीतों का कार्यक्रम दादी के बिना अधूरा ही रहता। ज्योति बचपन से ही दादी के साथ ऐसे कार्यक्रमों में जाती थी। उन्होंने दादी से जो सुना और सीखा, वही लोकगायन उनके जीवन में रच-बस गया। एक तरफ भोजपुरी, मैथिली कलाकारों की बढ़ती लोकप्रियता से ज्योति का रुझान लोकगीतों के प्रति बढ़ता ही जा रहा था तो दूसरी तरफ परिवार की तरफ से शिक्षक बनने का दबाव भी बराबर बना रहा। ज्योति शिक्षक पद के निकलने वाली रिक्तियों के लिए फॉर्म भी भरती रहीं। ग्रेजुएशन के दौरान ही वर्ष 2015 में आकाशवाणी, रीवा में लोकगीत गायक कलाकार के लिए ‘बी’ ग्रेड में उनका चयन हो गया। यहां मिले प्लेटफॉर्म से उन्हें लोक गायिका के रूप में पहचान मिलना शुरू हुई। वर्ष 2015 से ही विंध्य महोत्सव का आगाज हुआ और कई चरणों की चयन प्रक्रिया के बाद इस उत्सव में प्रस्तुति के लिए भी वे चुन ली गईं। यहां उनके गाए सोहर गीत ने खूब वाहवाही बटोरी। उसके बाद जिला, संभाग एवं राज्य स्तरीय अनेक प्रतियोगिताओं एवं कार्यक्रमों में उन्होंने हिस्सा लिया और अनेक पुरस्कार अपने नाम किए। अब रीवा और आसपास के क्षेत्रों में लोग उन्हें गायन के लिए आमंत्रित करने लगे। इस तरह वर्ष 2015 से उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर प्रस्तुति देना शुरू किया। वर्ष 2016 में ‘बिहान म्यूजिकल’ नाम से आर्केस्ट्रा ग्रुप बनाया। सरकारी स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों के अलावा सोशल मीडिया के जरिये काम मिलने लगा और इस तरह गायन का सिलसिला शुरू हो गया।
मात्र 18 वर्ष की उम्र में गायन के क्षेत्र में पदार्पण करने वाली ज्योति अपने गांव ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की इकलौती लड़की थी। जब आकाशवाणी से उनके गायन का पहला प्रसारण हुआ, उस दिन परिवार के अलावा पूरे गांव में उत्सव सा माहौल था। ज्योति के साथ-साथ सभी के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी क्यूंकि गांव से किसी लड़की के गायन का रेडियो से पहली बार प्रसारण होने जा रहा था। सभी ने एक जगह इकट्ठा होकर उनके गायन को सुना। इसे सुनने के बाद हर कोई गर्व का अनुभव कर रहा था। ज्योति ने जब मंचीय कार्यक्रम करना शुरू किया, तब गांव में उनके प्रति नकारात्मक धारणा बनने लगी, क्योंकि ज्यादातर कार्यक्रम शाम को होते थे, जिससे घर लौटने में देरी हो जाती। लोग तरह-तरह की बातें करते, ताना मारते कहते ‘लड़की है इस तरह रात में कार्यक्रम करना ठीक नहीं’। गांव में जो माहौल बना, उससे एकबारगी तो लगा कि जनता के सामने उनका गाना बंद हो जाएगा, लेकिन उस समय उनके दादाजी ने लोगों की बातों को नज़रअंदाज करते हुए उनका साथ दिया, जिससे संगीत के क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी रही। आकाशवाणी में उनका चयन होने और उनकी लोकप्रियता बढ़ने के बाद गांव के लोगों की सोच में बदलाव आया। अब गांव के लोग अपनी बेटियों को ज्योति की तरह बनने के लिए प्रेरित करने लगें हैं।
वर्ष 2019 में उनका विवाह घर से मात्र 1 किमी. दूर ग्राम इटौरा के निवासी और भारतीय वायुसेना में कार्यरत श्री रामेन्द्र द्विवेदी से हो गया। ससुराल में सभी लोग खुले विचारों के थे, इसीलिए शादी के बाद उनका गायन निर्बाध गति से चलता रहा। ससुराल में सभी उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। वर्ष 2019 में जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय संगीत समारोह ‘सुर संगम’ उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यहां उनके गाए बघेली लोकगीत को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। इस समारोह में देश के हर राज्य के एक से बढ़कर एक लोक गीतों की प्रस्तुति हुई, लेकिन ज्योति के बघेली गायन ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहां कई लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने बघेली का नाम ही पहली बार सुना था, लेकिन उनके गायन के बाद लोगों की उत्सुकता बढ़ी और बघेलखंड की संस्कृति और गायन के बारे में काफी चर्चा हुई। कार्यक्रम में बॉलीवुड की हस्तियां (ग़ज़ल गायिका पीनाज़ मसानी, वीना कैसेट्स के डायरेक्टर मालू जी और के.सी मलिक गज़ल कम्पोजर-कल्याण जी ) भी मौजूद थी, उन्होंने भी उनके गायन को खूब सराहा। राष्ट्रीय स्तर पर मिले इस पुरस्कार को ज्योति एक बड़ी उपलब्धि, मानती हैं क्योंकि इसके बाद उन्हें एक के बाद एक स्टेज शो मिलते गए जो अनवरत जारी हैं।
मालिनी अवस्थी जी का गायन और उनका पारम्परिक पहनावा ज्योति को बचपन से ही आकर्षित करता था। वे स्टेज कार्यक्रमों के लिए खुद को तैयार करने शीशे के सामने खड़े होकर घंटों अभ्यास किया करतीं। मालिनी जी को अपना आदर्श मानने वाली ज्योति उनकी नक़ल नहीं करना चाहती थी, लेकिन उनके जैसा ही कुछ उन्हें करना था जो विशुद्ध हो, इसीलिए उन्होंने बघेली लोकगायन का चुनाव किया। ज्योति का मानना है कि युवाओं को हमारी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए लोकगीतों में नयापन दिखाना ज़रूरी है, इसीलिए उन्होंने मूल बघेली गीतों में बिना कोई छेड़छाड़ के कुछ अंतर के साथ प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखने लगा है। अब उनके कार्यक्रमों में पाश्चात्य और बालीवुड गीतों के शौक़ीन युवा फ़िल्मी गानों की फरमाइश करना ही भूल गए हैं।
शादी के बाद वर्ष 2019 में उन्होंने लोकगीतों प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से ‘ज्योति तिवारी’ नाम से यूट्यूब चैनल बनाया। आज इस चैनल पर पारंपरिक और ऋतुपरक गीतों के 75 से अधिक वीडियो अपलोड हैं। लॉक डाउन में खाली समय का सदुपयोग करते हुए ज्योति ने पुराने लोकगीत - जो उनकी दादी गाया करती थीं और जिन्हें लोग भूलने लगे थे, उन्हें नए सिरे से तैयार कर अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया और यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड कर दिया। ज्योति कहती हैं- लोकगीतों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर पहले बहुत चिंता हुआ करती थी कि आज से 40 साल बाद लोकगीत गाने वाले, उसे समझने वाले और उसकी सराहना करने वाले बचेंगे भी या नहीं, लेकिन वर्तमान में सोशल मीडिया के जरिये जिस तरह कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय बोली, संस्कृति को बचाने के प्रयास में लगे हैं उसे देखते हुए चिंता कुछ कम हुई है। आज यू ट्यूब पर 4 सौ से अधिक ऐसे चैनल हैं, जहाँ केवल लोकगीतों की ही धमक है। इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन चैनलों पर मिलियन-बिलियन व्यूज़ दिखाई देते हैं।
संयुक्त परिवार में पली बढ़ी ज्योति के मायके में आज भी दादा-दादी सहित उनके पापा के चार भाइयों का परिवार एक साथ रहता है। वे कहती हैं आज परिवार सिमटते जा रहे हैं, इसीलिए बच्चे रिश्तों की आपसी मिठास को भूलते जा रहे हैं। सिमटते परिवार और व्यस्तता के कारण कई तीज-त्यौहार हम छोड़ते जा रहे हैं। जब त्यौहार ही छूटने लगेंगे तो उनसे जुड़े गीत भी हम धीरे-धीरे भूल ही जायेंगे। जब ये सारी चीजें गायब होंगी, तो एक पूरी परंपरा, पूरी संस्कृति ही गायब हो जायेगी। आने वाले समय में परिवार इतने छोटे हो जायेंगे जहाँ शायद मामा-बुआ, मौसी चाचा के रिश्ते केवल इतिहास बनकर रह जायें। ज्योति कहती है- लोक गायन के माध्यम से ही सही इन रिश्तों की मधुरता और हमारी संस्कृति आने वाली पीढ़ी समझ सके, उसे महसूस कर सकें, यही मेरे लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
ज्योति का अब एक ही लक्ष्य है - बघेली लोकगीतों को विश्व स्तर पर सम्मानजनक स्थान दिलाना। वे कहती हैं- मुझे गर्व है कि आज पाश्चात्य गीतों की संस्कृति के बीच मैंने अपनी मिट्टी की संस्कृति बघेली लोकगीतों का चुनाव किया है। लोग बघेली को जाने-समझें, उसे पसंद करें, बस यही प्रयास करना है। जब तक जीवित रहूँ, लोकगीत ही गाऊँ। उसी का प्रचार-प्रसार करूं, भजन भी गाना पड़े तो बघेली में ही गाऊँ। उनके मुताबिक़ लोकगीत गायन सिर्फ एक कला नहीं है, बल्कि अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाने का एक अभियान भी है। ज्योति को पर्वतारोहण का शौक अभी भी है और जब भी कोई मौका मिलेगा, वे यह शौक पूरा करना चाहेंगी। फ़िलहाल वे अपने पति के साथ दिल्ली में रहती हैं, लेकिन सामाजिक उत्सवों, पर्वों के दौरान उनका अधिकांश समय रीवा में ही व्यतीत होता है।
उपलब्धियां
राष्ट्रीय संगीत समारोह ‘सुर संगम’ प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त। एनसीसी कैडेट में ‘बी’ और ‘सी’ सर्टिफिकेट प्राप्त ज्योति को एनसीसी के जरिये वर्ष 2014 के नेशनल कैम्प में पर्वतारोहण के लिए पूरे देश से चयनित 7 लड़कियों में (मप्र और छग में) शामिल किया गया। एनसीसी कोटे से ही वर्ष 2017 में भारत-बांग्लादेश सीमा की सांस्कृतिक यात्रा के लिए चयन हुआ और वहां उन्हें तिरंगा फहराने का अवसर मिला। विंध्य महोत्सव (2015) में सुनिधि चौहान, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और रीवा के गणमान्य अतिथियों के सामने लोक गायन प्रस्तुति तथा वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में वैवाहिक गीतों की प्रस्तुति दे चुकी ज्योति को जिला, संभाग तथा स्थानीय स्तर पर अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हैं।
सन्दर्भ स्रोत : ज्योति तिवारी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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