छाया : सुनयना पटेरिया
सामाजिक कार्यकर्ता
• वन्दना दवे
महाकौशल की धरती को कर्मभूमि बनाकर स्त्री शक्ति की लौ जगाने वाली चन्द्रप्रभा पटेरिया का जन्म 5 अक्टूबर 1925 को देहरादून में हुआ था। आपके पिता ओंकार प्रसाद महन्त व्यवसायी और गांधीवादी कार्यकर्ता थे। मां अंबा देवी भी गांधीवादी होने के साथ-साथ संगीत और नृत्य में गहन रुचि रखती थीं। इन सबके बीच चंद्रप्रभा जी का संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में हुई और उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की।
आज़ादी के पहले स्त्री शिक्षा की स्थिति बेहद दयनीय थी। बहुत कम लड़कियां प्रारंभिक शिक्षा भी ले पातीं थी। ऐसे में चंद्रप्रभा जी का उच्च शिक्षित होना स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का होना था। ये संभव इसीलिए हो पाया कि उनके माता – पिता ने गांधी जी के स्त्री स्वातंत्र्य के विचारों का अनुपालन किया। उस दौर में गाना – बजाना भी लड़कियों के लिए वर्जित था। ऐसे में मां अंबा देवी के सशक्त इरादों के कारण दोनों पुत्रियों कमला और चंद्रप्रभा को गायन और नृत्य की भी विधिवत शिक्षा दिलाई गई।
बेटियों की शिक्षा विवाह के बाद व्यर्थ न चली जाए, इसे देखते हुए मां ने बेटियों का विवाह ऐसे अनुकूल परिवारों में किया जहां उन्हें किसी प्रकार की मनाही न हो। चन्द्रप्रभा जी का विवाह पहली लोकसभा के सदस्य और जबलपुर के युवा सांसद सुशील कुमार पटेरिया के साथ सत्ताइस साल की उम्र में 17 फरवरी 1953 को हुआ। सुशील कुमार जी गांधीवादी राजनेता होने के साथ-साथ पंडित रविशंकर जी के शिष्य भी थे। इस लिहाज से चंद्रप्रभा जी को संगीत का माहौल भी मनोनुकूल मिला। विवाहोपरांत चंद्रप्रभा जी की कर्मयात्रा जबलपुर में शुरू हुई। उन्होंने सबसे पहले 1953 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। वे समर्पित भाव से समाज के हर तबके के लिए कार्य कर रही थी कि अनायास ही उनके पति सुशील कुमार जी गंभीर बीमार हो गए। अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका और वे 3 अक्टूबर 1961 को अपने छोटे से पुत्र हर्ष, पत्नी, बहन और मां रमा देवी को छोड़कर चल बसे।
इस परिस्थिति में परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी चन्द्रप्रभा जी पर आ गई। अपने अंतिम समय में सुशील कुमार जी ने पत्नी से वचन लिया कि वे जबलपुर छोड़कर नहीं जाएंगी और परिवार की ज़िम्मेदारी उनकी जगह वे उठाएंगी। इसके अलावा उनका अंतिम संस्कार भी वे ही करेंगी। वचनबद्ध चंद्रप्रभा जी ने पति की इच्छानुसार सभी कार्य किए। वे जबलपुर छोड़कर अपने मायके नहीं गई। बल्कि वहीँ रहकर अपनी ननद उषा पटेरिया जो खुद भी मजबूत इरादों वाली महिला थीं, के साथ बेजोड़ तालमेल रखते हुए खेती और व्यवसाय को संभाला और सामाजिक ज़िम्मेदारियां भी निभाईं। सुशील कुमार जी ने उनसे चुनावी राजनीति में न आने का भी वचन लिया था, क्योंकि इससे उन्हें परिवार के बिखर जाने की आशंका थी। इसी वचन का मान रखते हुए उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा जबकि हर चुनाव में कांग्रेस पार्टी की तरफ से उनसे आग्रह किया जाता था।
पति की मृत्यु के बाद उनकी इच्छानुसार उन्होंने उनका अग्नि संस्कार किया। उस समय जब महिलाओं का श्मशान घाट तक जाना भी निषेध था, ऐसे में अंतिम संस्कार करना बहुत ही साहसिक घटना थी। चुनाव न लड़ने के वचन से बंधी ज़रूर थीं लेकिन सामाजिक रुढ़ियों को तोड़ने के लिए वे सतत प्रयासरत रहीं। हितकारिणी सभा की अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने वंचित वर्ग की लड़कियों और बच्चों की पढ़ाई पर काफी ध्यान दिया। उनके जाने के बाद उनकी बहू सुनयना पटेरिया हितकारिणी सभा को देख रही हैं। वर्तमान समय में इसके अंतर्गत 13 स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। इनमें से चार स्कूल अंग्रेज़ी माध्यम के हैं। उच्च शिक्षा में इंजीनियरिंग, नर्सिंग, आर्किटेक्चर, बीएड तथा विमेंस कॉलेज संचालित किए जा रहे हैं।
चंद्रप्रभा जी सन 1965 में जबलपुर जिला कांग्रेस में महिला संयोजक बनीं। महिला कांग्रेस के गठन के बाद वे मप्र महिला कांग्रेस महामंत्री बनीं। इस दौरान गांव-गांव जाकर उन्होंने गहन जनसंपर्क किया और लड़कियों को पढ़ने और खेलने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करती रहीं। जबलपुर में जब मेडिकल कॉलेज बना तो वहां काम करने वाली नर्सिंग स्टाफ के लिए उन्होंने पालना घर बनाया जिससे उनके बच्चों की उचित देखभाल हो सके। समाज कल्याण बोर्ड में रहते हुए परिवार परामर्श केंद्र की शुरुआत उन्होंने की और कामकाजी महिलाओं के लिए होस्टल भी बनवाए।
1962 से 1992 तक अखिल भारतीय महिला परिषद की वें जबलपुर इकाई की अध्यक्ष रहीं हैं। विश्व महिला सम्मेलन लाॅग आइलैंड न्यूयॉर्क में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में शिरकत की। खेल, कृषि और संगीत संस्थानों में भी विभिन्न पदों पर रहकर ज़मीनी स्तर पर काम करती रहीं। वे अखिल भारतीय महिला हॉकी फेडरेशन की उपाध्यक्ष, मप्र महिला हॉकी एसोसिएशन की अध्यक्ष और भारत कृषक समाज की जबलपुर इकाई की अध्यक्ष भी रहीं। विनोबा भावे से प्रभावित होकर उन्होंने दे भूदान आंदोलन में योगदान देते हुए अपनी कुछ उपजाऊ जमीन दान में दी। संगीत के प्रति गहरा रुझान होने के कारण उन्होंने मास्टर मदन संगीत संस्थान को संभाला। यहां से निकले बच्चे काफी ऊंचाई तक पहुंचे। सारे गा मा पा जैसे ख्यात कार्यक्रमों में यहां के बच्चे लगातार भाग लेते रहे हैं। इस तरह वे निस्वार्थ मौन साधक बनकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी अंतिम समय तक निभाती रहीं।
कुल मिलाकर चंद्रप्रभा जी प्रचार से दूर, एक कर्तव्यनिष्ठ और रूढ़ियों को तोड़ने वाली महिला थीं। 10 नवंबर 2010 को जबलपुर में उनका देहावसान हो गया। महाकोशल के लोग आज भी उन्हें बहुत सम्मान के साथ याद करते हैं। चंद्रप्रभा जी के एकमात्र पुत्र हर्ष का विवाह कांग्रेस के कद्दावर नेता और उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी की पोती यानी लोकपति त्रिपाठी की पुत्री सुनयना के साथ हुआ। हर्ष पटेरिया भी राजनीति से दूर पैतृक व्यवसाय और कृषि को संभाल रहे हैं। अपनी मां की ही तरह वे भी निस्वार्थ सामाजिक कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं। इनकी पत्नी सुनयना पटेरिया हितकारिणी सभा के साथ जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में अपना सामाजिक दायित्व निभा रही हैं।
लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।
© मीडियाटिक
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