छाया : वर्व मैगजीन डॉट इन
विधि विशेषज्ञ
• सारिका ठाकुर
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘टाइम’ (time-magazine) ने 2022 की 100 प्रभावशाली हस्तियों की सूची हाल ही में जारी की है। इनमें 3 भारतीय शामिल हैं। भोपाल में जन्मी और 2003 से सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर रहीं करूणा नंदी (karuna-nandi) इनमें से एक हैं। इस सूची में उन्हें ‘लीडर्स’ श्रेणी में रखा गया है। ‘टाइम’ के मुताबिक, करुणा नंदी सिर्फ वकील ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वे जन सामान्य से जुड़े मुद्दों पर अदालत के भीतर और बाहर आवाज उठाती रही हैं। वे महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली चैम्पियन हैं। उन्होंने दुष्कर्म रोधी कानून और कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना के ख़िलाफ़ काफ़ी काम किया है।
करुणा का जन्म 4 जनवरी 1976 को हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा सरदार पटेल स्कूल, भोपाल से हुई। उन्होंने 1997 में अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली St. Stephen's College, New Delhi() से प्राप्त की। इसके बाद वे फिल्म की पढ़ाई करना चाहती थीं, कुछ समय के लिए तो उन्होंने टीवी पत्रकार के तौर पर काम भी किया। फिर कानून की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड Cambridge University, England() चली गईं। वर्ष 2000 में वहां से पढ़ाई पूरी होते ही पुनः एलएलएम की डिग्री प्राप्त करने के लिए कोलंबिया चली गईं। वहां उनकी पढ़ाई वर्ष 2001 में पूरी हुई।
एक वकील के रूप में अपने काम की शुरुआत न्यूयॉर्क से की। वहां वे लैंगिक अधिकारों के लिए काम करते हुए इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल और संयुक्त राष्ट्र संघ (International Tribunal and the United Nations) के लिए भी काम करने लगीं। उनके पिता हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज (बोस्टन) में काम करते थे। लेकिन करुणा भारत में काम करना चाहती थीं। इसलिए श्री नंदी वहां की नौकरी छोड़ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) यानि एम्स से जुड़ गए। करुणा की माँ श्रीमती मीता नंदी (meeta nandi) को लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स (london school of economics) की ओर से प्रतिष्ठित ‘हिस्ट्री प्राइज़’ (History Prize) से सम्मानित किया गया था। उन्होंने भी भारत लौटने का फ़ैसला किया। वे ‘स्पास्टिक्स सोसाइटी ऑफ़ नॉर्दर्न इण्डिया’ (Spastics Society of Northern India) नाम से एक संस्था संचालित कर रही हैं। करुणा के एक चचेरे भाई ‘सेरिब्रल पाल्सी’ से पीड़ित थे। उनकी तकलीफों को देखकर मीता जी ने इस संस्था की नींव रखी थी।
करुणा जी अपने क्लाइन्ट्स को अपने काम में साझीदार मानती हैं। अपने करियर में उन्होंने कई मुश्किल केसों में जीत हासिल की और अपना लोहा मनवाया। वकालत के सामानांतर ही मानव अधिकार कार्यकर्ता के रुप में भी वे अपनी आवाज़ उठाती रही हैं। वर्ष 2012 में जब निर्भया काण्ड की अनुगूँज दुनिया भर में सुनाई दे रही थी, दुष्कर्मियों के विरुद्ध करुणा नंदी ने एक मजबूत कानून की मांग करते हुए एक बड़े आन्दोलन का नेतृत्व किया था। विश्वव्यापी विरोध को मद्दे नज़र रखते हुए भारतीय न्याय व्यवस्था ने भी दुष्कर्म रोधी क़ानून की समीक्षा और पुनर्रचना की आवश्यकता महसूस की। वर्ष 2013 में दुष्कर्म रोधी विधेयक की रूपरेखा बनाने में करुणा जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस क़ानून में पहली बार पीछा करने और घूर कर देखने को गैर जमानती अपराध घोषित किया गया, बशर्ते अपराधी ऐसा करते हुए दूसरी बार पकड़ा गया हो। इसके अलावा वर्ष 2013 में ही जस्टिस नागरी कमेटी द्वारा लैंगिक कानूनों पर सौंपे गए ऐतिहासिक रिपोर्ट तैयार करने में भी करुणा जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
जीजा घोष बनाम स्पाइस जेट केस (Jija Ghosh vs Spice Jet case) ने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पहुंचा दिया। यह मामला फरवरी 2012 का है जब सेरिब्रल पाल्सी से पीड़ित एक महिला जीजा घोष कोलकाता से गोआ एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थी और विमान के कर्मचारियों ने उन्हें यह कहकर विमान से उतार दिया कि वे यात्रा के काबिल नहीं है। चालक दल के कुछ कर्मचारियों ने उन्हें अन्य यात्रियों के लिए खतरा बताया एवं कुछ यात्रियों ने उन्हें अपने पास बिठाने से ही इंकार कर दिया। जीजा घोष की ओर से इस मामले की पैरवी करुणा नंदी कर रही थीं। यह मामला चार साल तक चला और अंत में अदालत ने इस कृत्य को अमानवीय करार देते हुए स्पाइसजेट पर 10 लाख का जुर्माना लगाया।
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया (The Times of India) के अनुसार वे भारत की तीन शीर्ष महिलावादियों में से एक (One of the top three feminists of India) हैं। अरुंधती रॉय और वृंदा ग्रोवर (Arundhati Roy and Vrinda Grover) के बाद एकमात्र वही हैं जिन्होंने स्त्री मुक्ति को एक नई दिशा दी। आज वैश्विक स्तर पर वे जानी मानी हस्ती हैं। इसलिए बड़े अवसरों पर वे प्रतिनिधि हस्ताक्षर मानी जाती हैं। नवम्बर 2019 में जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के भारत आगमन पर वे उनके साथ बैठक में शामिल हुई थीं। इसके अलावा उन्होंने अंतरिम सविधान के मसौदे तैयार करने के लिए पाकिस्तान के सीनेटरों की कार्यशाला का सञ्चालन किया था। इसके अलावा नेपाल और भूटान सरकारों के साथ भी उन्होंने काम किया। मालदीव में वहां के महाधिवक्ता और मुख्य न्यायाधीश के साथ भी वे काम कर चुकी हैं। उनकी उपलब्धियों के आधार पर फोर्ब्स मैगज़ीन द्वारा उन्हें ‘माइंड दैट मैटर्स’ में जगह दी गई है।
करुणा जी के वकील बनने के पीछे एक छोटी सी कहानी है। स्कूल के दिनों में एक सहपाठी उनका पीछा किया करता था। प्रधानाध्यापक से उसकी शिकायत करने करने के भी कोई नतीजा नहीं निकला। उलटे उन्हें दुष्कर्म की धमकियाँ मिलने लगीं। उसी समय वकील बनकर ऐसे लोगों को सबक सिखाने का विचार उनके दिमाग में पनपा। हालांकि एक स्वतंत्र और मजबूत शख्सियत बनने का श्रेय वे अपने पिता को देती हैं। एक वकील के तौर पर संवैधानिक विधि, कारोबारी मुकदमे, मीडिया कानून, लीगल पॉलिसी आदि उनकी विशेषज्ञता है। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को साफ़ पानी मुहैय्या करवाने और उनकी दूसरी ज़रूरतें पूरी करवाने के लिए करुणा जी ने पुरजोर पैरवी की। भोजन का अधिकार, ऑनलाइन फ़्री स्पीचेज़ जैसे मुद्दों पर काम कर चुकी सुश्री नंदी इन दिनों ‘वैवाहिक बलात्कार’ के मुद्दे पर काम कर रही हैं। विधिक शिक्षा के अनेक मंचों पर भी वे सक्रिय हैं।
उपलब्धियां
पुरस्कार/सम्मान
• वर्ष 2000 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा इम्मेलिन पंख्रुस्त अवार्ड, एमी कोहेन अवार्ड एवं बीकर स्टूडेंटशिप अवार्ड
• 2001 में कोलंबिया फुल टाइम फ़ेलोशिप अवार्ड कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा
• 2017 में इकोनॉमिक टाइम्स की जूरी ने कमर्शियल लॉ विशेषज्ञता के कारण कॉर्पोरेट जगत में लोकप्रिय चेहरे के तौर पर मान्यता दी
• 2017 में अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए फ़ेमिना अवार्ड
.• 2018 में Beti FLO GR8 Award
• 2019 में ग्लोबल ट्रस्ट लॉ अवार्ड, लन्दन
• 2020 में फ़ोर्ब्स मैगजीन में सेल्फ़ मेड वूमन की सूची में शामिल
सन्दर्भ स्रोत: विकी बायो डॉट इन, दैनिक भास्कर
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