अंबिका बेरी: जिनके प्रयासों से एक छोटे से गाँव को मिली नई पहचान

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अंबिका बेरी: जिनके प्रयासों से एक छोटे से गाँव को मिली नई पहचान

छाया: इंडल्ज एक्सप्रेस डॉट कॉम 

सामाजिक कार्यकर्ता

• सीमा चौबे


सतना जिले में माँ शारदा के मंदिर के लिए प्रसिद्ध मैहर से करीब आठ किलोमीटर दूर एक छोटा गाँव है इचौल, कुछ सालों पहले तक जिसकी कोई ख़ास पहचान नहीं थी। लेकिन समाजसेवी और कलाप्रेमी अंबिका बेरी ने यहाँ अपनी प्रतिभा का ऐसा परचम लहराया कि आज विदेश में भी इस गाँव का नाम गर्व के साथ लिया जाने लगा है। अंबिका अपनी सृजनात्मकता से पुराने कबाड़ की ऐसी कलाकृतियों को जन्म देती हैं, जो लोगों के घरों की रौनक बढ़ा देते हैं। पुरानी वस्तुओं से बनी बेशकीमती कलाकृतियों से उन्होंने मैहर के इचौल को अद्भुत कला का केंद्र बना दिया है। यह गांव अब कलाकारों, लेखकों तथा मूर्तिकारों के लिए भारत का रचनात्मक आश्रय स्थल बन गया है।

1958 को जालंधर (पंजाब) में जन्मी अंबिका के पिता सूरज प्रकाश सभरवाल एक वास्तुशिल्पी थे और माँ रानी सभरवाल गृहिणी। सभरवाल दम्पति की दो संतानों (एक बेटा और एक बेटी) में बड़ी अंबिका को बचपन से ही कलाकृतियां बनाने और पेंटिंग करने का शौक था। वे घर में फालतू पड़ी चीज़ों को जोड़-तोड़कर कुछ नई शक्ल ही दे देतीं। अंबिका की स्कूली शिक्षा सीनियर कैंब्रिज, सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट ( बोर्डिंग)  डलहौज़ी (हिप्र) में हुई। इसके बाद दिल्ली पॉलिटेक्निक से उन्होंने टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में डिप्लोमा किया।

टेक्सटाइल में डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने विचित्र साड़ीमें डिज़ाइनर के रूप में वर्ष 1980 में कार्य की शुरुआत की, लेकिन उन्हें तो लीक से हटकर कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी सो यहां एक साल काम करने के बाद नौकरी छोड़ दी। इसी बीच वर्ष 1982 में कोलकाता निवासी संजीव बेरी (व्यवसायी) से उनका विवाह हो गया। एक बड़े संयुक्त परिवार की बहू बनने के बाद वे पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारियों में बंध गईं। संजीव जी सतना जिले में स्थापित पारिवारिक व्यवसाय संडरसन मिनरल्स का संचालन कर रहे थे। इसी बीच उनके 2 बच्चे हुए उनके लालन-पालन और शिक्षा के कारण अंबिका जी का अधिकांश समय कोलकाता में ही व्यतीत हुआ, हालांकि मैहर उनका दूसरा घर बना रहा।

उन्हें बचपन से ही कला और कलाकारों के बीच रहना पसंद था, लेकिन विवाह के बाद वे अपने जीवन में कुछ रिक्तता सी महसूस कर रहीं थी। इस बात को उनके पति ने भी महसूस किया और विवाह के करीब 8 वर्ष बाद 1990 में उन्होंने कोलकाता में गैलरी संस्कृतिनाम से एक आर्ट गैलरी खोलने में अंबिका का सहयोग किया। गैलरी शुरू करने के साथ ही अंबिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी अनुभव का अभाव। दूसरा, अंबिका वहां न किसी कलाकार को जानती थीं और न कला के ख़रीददारों को। इसके लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। यह उनका सौभाग्य रहा कि गणेश पाइन, विकास भट्टाचार्य, परितोष सेन, लालू प्रसाद शॉ, गणेश हलोई आदि बंगाल के सुप्रसिद्ध कलाकार उनकी गैलरी की शुरुआत से जुड़े रहे।

घर और काम के बीच संतुलन बनाते हुए उन्होंने पहले पश्चिम बंगाल और फिर धीरे-धीरे कोलकाता के बाहर कार्यशालाएं करना शुरू किया। शुरुआती दिनों में उनका यह काम परिवार के लोगों को समझ में नहीं आता था, पर किसी ने कभी रोका-टोका नहीं। व्यवासायिक, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर उनके जीवन में उतार चढ़ाव आते रहे, लेकिन हर एक चुनौती का सामना करते हुए वे बेहतर कार्य करते हुए आगे बढ़ती गईं। तकरीबन 25 सालों तक संस्कृतिगैलरी में स्थानीय कलाकारों के साथ काम करने के बाद उन्होंने शहर की चकाचौंध से दूर प्राकृतिक सौन्दर्य और खुले वातावरण वाले इचौल गाँव में अपने काम को विस्तार देते हुए वर्ष 2015 में करीब 3 एकड़ भूमि में आर्ट इचौल’  कला संस्थान की स्थापना की।  इस कार्य में उनके आर्किटेक्ट पिता ने उनकी बहुत मदद की।

आमतौर पर घरों-कारखानों, दफ़्तरों और रेलवे में प्रयोग किये जाने वाले सामान पुराने और ख़राब हो जाने के बाद लोग फेंक देते हैं या कबाड़ी को बेच देते हैं लेकिन इन्हीं अनुपयोगी सामानों से अंबिका नायाब कलाकृतियां तैयार करती हैं। वे बताती हैं कि 'आर्ट इचौल' को बनाने में हमने कबाड़ का बहुत प्रयोग किया है। इसका एक प्रमुख कारण था कि यहाँ आसपास केवल खदान, सीमेंट प्लांट और क्रशर इत्यादि ही दिखते हैं। अपने कलाकारों के साथ मिलकर मैं इस इलाके में पाए जाने वाली रद्दी सामान का स्वरूप बदले बिना उसे कलात्मक रूप देना चाहती थी। इसलिए यहाँ कबाड़ के सामान से क्राफ्टिंग से लेकर ऑर्गेनिक पेंटिंग, मिट्टी, धातु के खिलौने और अन्य कलाकृतियां बनाना सिखाया जाता है। ख़ास बात यह है कि इन कलाकृतियों को बनाने के लिए किसी भी तरह के सांचों का इस्तेमाल नहीं होता है। स्टूडियो में क्ले (मिट्टी), लकड़ी, पत्थर, मोम, आयरन, तांबा, पीतल का संग्रह रहता है, ताकि कलाकार अपनी पसंद की धातु का चुनाव कर उसे आकार दे सकें।

अंबिका का काम औरों से अलग इसलिए भी है क्यूंकि पूरी दुनिया से कलाकार और कला के छात्र यहां आकर स्थानीय लोगों को कला के विभिन्न एवं नए रूप सिखाते हैं। भारत के अलावा कोरिया, जापान, अमेरिका और इंग्लैंड के कलाकार इस स्टूडियो में अपनी कला का जादू बिखेर रहे हैं। बकौल अंबिका, प्रारम्भ में मेरे कुछ कलाकार मित्रों की पहचान के जरिये वर्ष 2012 में साउथ कोरिया से 5 और एक अमेरिका से विदेशी कलाकार 'आर्ट इचौल' आए, उस समय यह पूरी तरह से बना भी नहीं था। फिर धीरे-धीरे नए और अनजान कलाकारों ने मुझे ई-मेल भेजने शुरू किए और इस तरह अनेक विदेशी कलाकारों के आने का सिलसिला बनता गया। अब तक 24 से भी अधिक देशों से विभिन्न कलाकार जैसे  पेंटर, शिल्पकार, संगीतकार, टेक्सटाइल आर्टिस्ट, फ़ोटोग्राफ़र इत्यादि यहां आ चुके हैं। वे अपना काम करने साथ साथ स्थानीय स्कूलों में जाकर कभी-कभी बच्चों के साथ कार्यशाला भी करते हैं। इचौल आर्ट सेंटर में तुर्की, लातविया, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड सहित देश-विदेश के नामचीन आर्टिस्ट्स की कला के विभिन्न रूप संग्रहीत है। इन मनमोहक और रोचक कलाकृतियों में कई संस्कृतियों का समागम दिखाई देता है।

अंबिका बताती हैं पहली प्रदर्शनी कोलकाता में लगने के बाद इस आर्ट गैलरी के माध्यम से अब तक मप्र के कई स्थानों पर अनेक प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जा चुका है। गैलरी के तत्वावधान में 100 कलाकारों की एकल प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। संस्कृति गैलरी द्वारा इंडोनेशिया, शंघाई, न्यूयॉर्क, चीन, लंदन आदि देशों में प्रदर्शनियां आयोजित की गई, जिससे देश के कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। दूसरी तरफ कई कलाकारों को अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश भेजा गया जिससे भारतीय कला और संस्कृति का विस्तार हुआ। यह सिलसिला वे 'आर्ट इचौल' के माध्यम से भी जारी रखना चाहती हैं। अभी तक यहाँ के 5 कलाकार विदेशों में अपना हुनर दिखाया। वर्ष 2016 में पहली बार सिरेमिक आर्टिस्ट अंजनी खन्ना ऑस्ट्रेलिया गई थीं, इसके बाद वर्ष 2017 में फाल्गुनी भट्ट ऑस्ट्रेलिया, और वर्ष 2019 में रवि कुमार, मिलन सिंह तथा रमेशचंद्र, चीन में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।

अंबिका जी बताती हैं 5 वर्ष पहले उदय सिंह नाम का एक किसान आर्ट इचौल आया और सिरेमिक शिल्प कला सीखने की इच्छा प्रकट की। मैंने उसका हुनर देखा और प्रोत्साहित किया। पिछले पांच वर्षों से वो सिरेमिक के गाय-बैल बना रहा है और वे देश-विदेश में इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि पिछले साल उदय को ऑस्ट्रेलिया के शहर पर्थ में प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। इसी प्रकार एक और नौजवान - जो अपनी सरकारी नौकरी से नाखुश था और शिल्पकला में रुचि रखता है, भी अब यहाँ शानदार काम कर रहा है। दोनों की कृतियां देश-विदेश में अनेक घरों की शोभा बढ़ा रही हैं। 'आर्ट इचौल', ने उन्हें अपने हुनर को निहारने और मन पसंद व्यवसाय से आजीविका कमाने का अवसर दिया है। प्रतिष्ठित कलाकारों की कला के दस्तावेज के रूप में उनकी कॉफ़ी टेबल बुक भी प्रकाशित हुई है।

अंबिका कहती हैं -देश की अमूल्य धरोहर को समझना और पहचानना बहुत ज़रूरी है। इस आर्ट गैलरी के माध्यम से इस आशा के साथ युवा कलाकारों की कला प्रदर्शित करती हूँ, ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिले और वे इस क्षेत्र में स्थापित हो सकें। इस क्षेत्र में सफलता पाना अत्यंत कठिन है, ऐसे में यदि मैं उनकी थोड़ी भी सहायता कर सकूँ जिससे वे टिके रहें, तो मेरे लिए बहुत है।आर्ट इचौल का मकसद ही उभरते हुए प्रतिभाशाली और कला के प्रति समर्पित छात्रों को प्रोत्साहित करना, आसपास तथा स्थानीय महिलाओं और बच्चों में कला कौशल का विकास करना तथा देहाती इलाकों के साधन विहीन छात्र-छात्राओं को शिक्षित व संस्कारित करना है। मुझे हमेशा अपने परिवार का सहयोग मिलता रहा। पहले अपने माता-पिता का, फिर पति और बच्चों का। मेरी भाभी से भी मुझे बहुत सहयोग मिलता है। ये सभी मेरे साथ हमेशा खड़े हैं और इसीलिए मैं अपने सपनों को साकार कर पाई हूँ। मेरे पिता ने मेरे लिए 81 की उम्र में 'आर्ट इचौल' बनाने में सहयोग किया था।

पिछले 32 सालों से इस कला से जुड़ी अंबिका स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अनेक सम्मान और पुरस्कार अपने नाम कर चुकी हैं। इसमें मुख्य रूप से नेशनल अवार्ड- लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन द्वारा मोस्ट इनोवेटिव टूरिस्ट डेस्टिनेशन इन इण्डिया (2016), राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी के करकमलों से नारी शक्ति अवार्ड’ (2018), मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कर कमलों द्वारा स्पेशल स्टेट अवार्ड (2015) तथा रिस्पांसिबल टूरिज़्म स्टेट अवार्ड (2016), मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा देवी अवार्ड’ (2020) आदि अवार्ड शामिल हैं।

अंबिका जी ने वर्ष 2022 में एक समकालीन आर्ट गैलरी- काई कंटेम्परेरी कोलकाता में शुरू की है। यहाँ ऐसे कलाकार काम करेंगे जो कला को लेकर थोड़ा अलग सोचते हैं और वैचारिक काम करते हैं। अंबिका के दो बेटे आदित्य और अंशुमन दोनों कला प्रेमी हैं और अंबिका के कार्यों में खासी दिलचस्पी रखते हैं। बड़ा बेटा आदित्य सी.ए. है और पिता के व्यवसाय में भी हाथ बंटाता है, वहीं अंशुमन - अर्न्स्ट एंड यंग, अमेरिका में बिजनेस कन्सल्टंट है।

सन्दर्भ स्रोत : अंबिका बेरी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

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