छाया: संगीता अग्निहोत्री के फेसबुक अकाउंट से
• सारिका ठाकुर
कलाकार - संगीत एवं नृत्य
मध्यप्रदेश की पहली महिला तबला वादक संगीता अग्निहोत्री का जन्म इंदौर में 12 अक्टूबर 1966 को हुआ था। उनके पिता पंडित दिनकर मुजूमदार दक्ष तबला वादक होने के साथ-साथ सरकारी स्कूल में गणित एवं विज्ञान के शिक्षक थे और माँ स्व.श्रीमती मालिनी मुजुमदार कुशल गृहणी थीं। संगीता जी जब छोटी थीं, तब श्री मुजूमदार के उस्ताद जहांगीर खां साहब अक्सर उनके आया करते और उनके दूसरे शिष्य भी तबला सीखने के लिए वहां आते थे। इसलिए संगीता जी और उनकी बड़ी बहन को बचपन से ही परिवार में संगीतमय वातावरण मिला। श्री मुजूमदार की हार्दिक इच्छा थी कि परिवार में कोई उनकी विरासत अपनाकर आगे बढ़े। यह काम संगीता जी ने किया, क्योंकि उनकी बड़ी बहन की रूचि सितार वादन में थी।
दस-बारह वर्ष की आयु से उन्होंने अपने पिता से सीखना शुरू कर दिया। कुछ ही वर्ष के बाद छोटी-छोटी बैठकों व संगीत समारोहों में वे प्रस्तुतियां देने लगीं थीं। वर्ष 1981 में अहिल्या आश्रम, इंदौर से ग्यारहवीं करने के बाद इंदौर के ही ओल्ड गर्ल्स डिग्री कॉलेज में संगीता जी का नामांकन हुआ जिसमें विषय के रूप में अन्य विषयों के साथ उन्होंने सितार भी लिया क्योंकि उस महाविद्यालय के संगीत विभाग में तबला शामिल नहीं किया गया था। फिर 1987 में उन्होंने इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय से ‘तबला’ विषय लेकर स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। इस समय तक मंच प्रस्तुतियों का दौर शुरू हो चुका था।
तबला हमेशा से एक ‘पुरुषोचित वाद्य’ माना जाता रहा है, तथापि संगीताजी ने इस विधा को बड़े ही मनोयोग से साधा। उनके पिता एवं गुरु ने जहाँगीर खां साहब के घराने की बारीकियों के लिहाज से सिर्फ ‘बाएं’ पर दक्षता प्राप्त करने के लिए उन्हें अलग से प्रशिक्षण दिया, परिणामस्वरूप उनकी प्रतिभा में और भी निखार आया, तबले के बोल और भी स्पष्ट और मधुर होने लगे साथ ही संगीता जी की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी। उनकी हाथों से फूटते तबले के बोल न केवल उनकी साधना का परिचय देते हैं बल्कि रंजकता भी अभिव्यक्त करते हैं। गायन हो या स्वर वाद्यों के साथ संगत, संगीता जी बहुत खूबसूरती से तालमेल बैठा लेती हैं। एकल वादन में तो वे दक्ष हैं ही।
इस प्रशिक्षण के दौरान संगीताजी के लिए एक ऐसे परिवार से रिश्ता आया,जिसके सभी सदस्य किसी न किसी रूप से संगीत से जुड़े हुए थे। 1994 में उनका विवाह ग्वालियर के श्री संतोष अग्निहोत्री के साथ हो गया। संतोष जी स्वयं सभी वाद्य यंत्र बजाने में प्रवीण हैं। वे आकाशवाणी में सुगम संगीत के ‘ए’ श्रेणी के कलाकार एवं कम्पोज़र भी हैं। वर्तमान में वे आकाशवाणी में कार्यक्रम अधिकारी हैं। उनके पिता माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर में संगीत के प्रोफ़ेसर थे। इस तरह यह संगीता जी के जीवन में यह सुखद और दुर्लभ संयोग रहा कि मायके और ससुराल दोनों ही स्थानों पर संगीतमय वातावरण ही मिला, जिसकी वजह से उनके रियाज अथवा मंच प्रस्तुतियों में कभी कोई रुकावट नहीं आई। संतोष जी इंदौर में ही कार्यरत थे इसलिए संगीता जी को समय-समय पर पिताजी से मार्गदर्शन मिलता रहा।
संगीता जी अब तक देश के लगभग सभी प्रमुख मंचों पर प्रस्तुतियां दे चुकी हैं और लगभग सभी प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में हिस्सा ले चुकी हैं, जैसे – एकल वादन हेतु गीतिका समारोह नई दिल्ली, आरम्भ (भारत भवन, भोपाल), स्वर साधना समिति (मुंबई) अमीर खान संगीत समारोह (इंदौर), गणपत राव कवठेकर स्मृति संगीत समारोह (मिरज) एवं विश्व योग दिवस ( संस्कृति विभाग, भोपाल), आदि। गायन, अन्य वाद्य यंत्र एवं नृत्य के साथ संगत हेतु तानसेन समारोह(ग्वालियर), संगीत पियासी(कोलकाता), पंडित कुमार गन्धर्व समारोह(देवास), खजुराहो नृत्य समारोह(खजुराहो), दक्षिण-पश्चिम सांस्कृतिक केंद्र(नागपुर), कालिदास समारोह(उज्जैन) आदि।
वर्तमान में संगीता जी पति एवं बच्चों के साथ इंदौर में ही निवास कर रही हैं। उनकी फिजियोथेरेपिस्ट बिटिया ‘शुभ्रा’ आकाशवाणी से गायन प्रस्तुति देती हैं,जबकि बेटा चारुदत्त की बोर्ड और गिटार बजाने में कुशल होने के साथ-साथ ऑडियो वीडियो की एडिटिंग एवं फोटोग्राफ़ी में रुचि रखता है।
उपलब्धियां
· वर्ष 1988 में अभिनव कला परिषद्, भोपाल द्वारा कल के कलाकार पुरस्कार
· वर्ष 1989 में महाकालेश्वर उत्सव समिति द्वारा महाकाल सम्मान
· वर्ष 1990 में अध्यात्म मंडल, विदिशा द्वारा सरस्वती पुत्री सम्मान
· वर्ष 1996 में गान प्रभा संस्था, मुंबई द्वारा स्त्री गुरु वंदना सम्मान
· वर्ष 2012 में नाद योग संस्था, इंदौर द्वारा नाद योग सम्मान
· वर्ष 2012 में नई दुनिया नायिका सम्मान
संदर्भ स्रोत: संगीता जी से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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