बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि अगर किसी महिला के पति ने दूसरी शादी कर ली है और उसे प्रताड़ित कर रहा है तो इसके लिए उसकी नई पत्नी या उसके पिता के खिलाफ उकसाने का मुकदमा नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही मुंबई की महिला और उसके पिता के खिलाफ दायर मुकदमा रद्द कर दिया गया। न्यायमूर्ति मकरंद कार्णिक की एकल न्यायाधीश पीठ ने महिला और उसके पिता की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि शिकायत में एकमात्र दावा यह है कि पति ने पहली पत्नी के रहते किसी और महिला से शादी कर ली है। ऐसे में उकसावे के दावे के आरोप को मुकदमा नहीं माना जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि विक्रोली की रहने वाली महिला और उसके पिता ने विक्रोली में एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत के नवंबर 2007 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।
व्यक्ति की पहली पत्नी की शिकायत के आधार पर मामला शुरू किया गया था। उन्होंने कहा कि मार्च 1990 में उस व्यक्ति से शादी की थी और शादी से तीन बेटियां पैदा हुईं। महिला ने दावा किया कि जुलाई 2005 में उसे पति का घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति उसके साथ दुर्व्यवहार करता था। तीन महीने बाद उसे पता चला कि उसके पति ने उसके रहते हुए दूसरी शादी कर ली है।
पहली पत्नी की शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट ने उसके पति पर द्विविवाह (भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत) करने और दूसरी पत्नी और उसके पिता पर उकसाने (भारतीय दंड संहिता की धारा 109 के तहत) के लिए मुकदमा चलाने की प्रक्रिया जारी की। दूसरी पत्नी और उसके पिता ने नवंबर 2007 के मजिस्ट्रेट आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उनकी याचिका के विरोध में दलील दी गई कि महिला ने आरोपी के साथ विवाह किया था। इसलिए मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उसके और उसके पिता के खिलाफ प्रक्रिया जारी करना उचित था।
बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति कार्णिक ने पिता-पुत्री के खिलाफ दायर मामले को रद्द कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि मुख्य अपराधी होने के नाते पति पर आईपीसी की धारा 494 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। न्यायाधीश ने कहा, “शिकायत में इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है कि आवेदकों ने किस तरह से पति की सहायता की या उसे उकसाया।”
सन्दर्भ स्रोत :हिन्दुस्तान
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