नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने गांव वालों के सामने शादी खत्म करने और दूसरी शादी करने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर मात्र से विवाद को खत्म करने के मामले पर हैरानी जताई है।
पहली शादी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करने के आरोप में बर्खास्त किए गए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के कांस्टेबल को राहत देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि सामाजिक लोगों और गवाहों के सामने शादी तोड़ने से संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से हिंदू विवाह को भंग नहीं किया जा सकता।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने कहा कि कोर्ट को ऐसे किसी कानून या सिद्धांत की जानकारी नहीं है जिसके तहत गांव के लोगों के सामने शादी तोड़ने से संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके विधिवत संपन्न हिंदू विवाह को समाप्त किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि याचिकाकर्ता ने पहली शादी के चलते ही दूसरी शादी कर ली थी। याचिकाकर्ता सिर्फ यह दलील देना चाहता है कि 15 अक्टूबर 2017 को गांव वालों के सामने शादी तोड़ने से संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से पहली शादी टूट गई, जबकि ऐसा नहीं किया जा सकता।
ऐसी स्थिति में, अदालत याचिकाकर्ता की कोई मदद नहीं कर पाती और रिट याचिका खारिज की जाती है। सीआईएसएफ में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत अश्विनी कुमार ने राहत की गुहार लगाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अश्विनी के खिलाफ इस आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही चल रही थी कि उन्होंने अपनी पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी की थी।
इसके बाद, उन्हें सीआईएसएफ नियम 2001 के नियम 182 का उल्लंघन करने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उनकी दलील थी कि उन्होंने गाँव के लोगों के सामने अपनी पहली शादी तोड़ी थी और उससे संबंधित दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर भी किए थे।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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