छाया : भड़ास4मीडिया
हिन्दी सिनेमा की सुपरिचित निर्माता, निर्देशक और लेखक सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ का लोकार्पण पिछले दिनों मुम्बई में हुआ। मूल रूप से हिन्दी में लिखी गई इस आत्मकथा को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस मौके पर फिल्म इंडस्ट्री की अनेक हस्तियाँ उपस्थित रहीं।
इस खास मौके पर उन्होंने इस किताब से जुड़ी अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि यह केवल एक किताब नहीं, बल्कि उनकी आत्मा का एक टुकड़ा है। उन्होंने इस बायोग्राफी के जरिए अपने जीवन के संघर्षों, खुशियों और अनुभवों को साझा किया है।
सीमा कपूर ने क्यों लिखी यह बायोग्राफी?
सीमा कपूर ने बताया कि उनकी यह किताब उनके जीवन की असली झलक दिखाती है। उन्होंने इसमें अपने बचपन से लेकर अब तक के संघर्षों, अपने अनुभवों, परिवार, करियर और समाज में महिलाओं की स्थिति पर गहराई से लिखा है। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ एक किताब नहीं है, यह मेरी आत्मा का एक टुकड़ा है। मैंने इसमें वो सबकुछ लिखा है, जो मैंने जीवन में महसूस किया और जिया है। "
इस मौके पर अन्नू कपूर ने अपनी बहन सीमा कपूर की आत्मकथा को एक प्रेरणादायक कृति बताते हुए कहा, “सीमा का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उसने बहुत सारे कष्ट सहे हैं। लेकिन फिर भी वो हमेशा हँसती और खिलखिलाती रही। यह किताब उनके जीवन संघर्ष की कहानी है। यह पाठकों के लिए जरूर प्रेरणादायी साबित होगी।”
किताब के बारे में
सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ सिर्फ़ उनके ही जीवन की कहानी नहीं है, इसमें हम एक पूरे दौर के जाने-माने कलाकारों, फ़िल्मकारों के साथ-साथ उनके परिवार के बारे में भी जान पाते हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पारसी थियेटर के ज़माने की कला से जुड़ी रही है। पिता मदनलाल कपूर का पारसी रंगमंच को जो योगदान रहा, उसे अब भी याद किया जाता है। माँ कमल कपूर ‘शबनम’ शायर थीं। बड़े भाई रंजीत कपूर रंगमंच के और अन्नू कपूर हिन्दी सिने-जगत के जाने-माने चेहरे हैं। छोटे भाई निखिल कपूर कवि हैं। सीमा जी प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी की जीवन-संगिनी हैं, तो ज़ाहिर है इस आत्मकथा में उनका जीवन भी हमारे सामने आता है, वे संघर्ष भी दिखाई देते हैं जिनसे आप दोनों को गुज़रना पड़ा और ख़ुशियों के वे पल भी जो उन्होंने जिये। ओम पुरी के जीवन के अन्तिम दिनों की उदास करने वाली छवियाँ हमें सिर्फ़ इसी पुस्तक में मिलती हैं। कलाकार-दंपति ने उन दिनों को जैसे जिया, वह पठनीय तो है ही अनुकरणीय भी है ।
बता दें कि सीमा कपूर का जन्म 12 मई, 1959 को भोपाल में हुआ। बचपन पारम्परिक पारसी थिएटर में बीता। उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से बी.ए. किया। विख्यात नाट्य-निर्देशक हबीब तनवीर, राजेन्द्र नाथ, दादी पद्म जी, अस्ताद देबू और रंजीत कपूर के साथ कई नाटक किए। पपेट थिएटर के ज़रिये कई वर्षों तक विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। फ़िल्म और टेलीविज़न के लिए लेखन, निर्देशन और निर्माण में व्यस्त रहती हैं।
उनके प्रमुख कार्य —‘हाट द वीकली बाज़ार’ (फ़ीचर फ़िल्म); ‘मिस्टर कबाड़ी’ (हास्य फ़ीचर फ़िल्म); ‘क़िले का रहस्य’, ‘ज़िन्दगीनामा’, ‘पलछिन’, ‘रिश्ते’, ‘विजय ज्योति’, ‘आवाज़ दिल से दिल तक’, ‘एकलव्य’, ‘मेरा गाँव मेरा देश’, ‘अवंतिका’ (धारावाहिक); ‘महानदी के किनारे’, ‘ओरछा : एक अन्तरयात्रा’, ‘नौटंकी एंड पारसी थियेटर : अ जर्नी’ तथा ‘सॉन्ग ऑफ़ द सॉइल’ (डॉक्यूमेंटरी)। उनकी लिखी बाल फ़ीचर फ़िल्म ‘अभय’ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुई। उन्हें ‘बेस्ट क्रिटिक अवार्ड’ (थर्ड आई एशियन फ़ेस्टिवल), ‘बेस्ट स्टोरी स्क्रीन प्ले’ (जागरण इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल) से सम्मानित किया गया।
सन्दर्भ स्रोत : भड़ास4 मीडिया
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