पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने

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पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने
वाली पहली दिव्यांग भारतीय खिलाड़ी

छाया : स्व संप्रेषित 

• सीमा चौबे 

खेलकूद के क्षेत्र में कई विकलांग भारतीय महिला खिलाड़ी न केवल नाम कमा रही हैं, उनमें से कुछ इतिहास भी रच रही हैं। उससे कहीं ज़्यादा अहम यह है कि वे विकलांगता के बारे में लोगों को अपना नज़रिया बदलने के लिए भी प्रेरित कर रही हैं। ऐसे कई खिलाड़ियों को अपने ही घर-परिवार और समाज का विरोध झेलना पड़ता है और यदि वे आर्थिक रूप से कमज़ोर भी हैं तो उनकी की राह और मुश्किल हो जाती है। लेकिन भिंड जिले से ताल्लुक रखने वाली पूजा ओझा ऐसी ही खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी गरीबी और विकलांगता को अपने सपनों की राह में रुकावट नहीं बनने दिया। उठती-गिरती लहरों से खेलने और उनसे जीतने का जज़्बा उनके भीतर ऐसा है, जो सामान्य खिलाड़ियों को भी पीछे छोड़ दे।

15 अप्रैल 1986 को महेश ओझा और मुन्नी देवी के घर जन्मी पूजा जन्म से ही सामान्य जीवन नहीं जी पाईं। 10-11 महीने की होने पर माता-पिता को बेटी के पोलियोग्रस्त होने का पता चला, लेकिन उन्होंने खासकर माँ ने उसे कभी इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि उसका जीवन आम लोगों की तरह नहीं है। परन्तु उनकी असल तकलीफ़ तब शुरू हुई जब पूजा स्कूल जाने लगी। बच्चे उसे हीन भाव से देखते, उस पर हँसते और लंगड़ी कहकर बुलाते। इस डर से पूजा स्कूल जाने में बहुत रोती। मुन्नी देवी उन्हें स्कूल भेजने के कई जतन करतीं। तंगहाली के बावजूद वे अपनी बेटी के लिए कभी नया स्कूल बैग लाती, कभी जूते तो कभी नई ड्रेस। जैसे-तैसे पूजा स्कूल जाती भी तो अपने से छोटी कक्षा में जाकर बैठती, क्योंकि वहाँ बच्चे कुछ नहीं बोलते थे।

पूजा बताती हैं कि "मेरी पढ़ाई से लेकर करियर संवारने तक का सारा श्रेय माँ को ही जाता है। कई बार कुछ लोग आकर मां से कहते भी थे कि इससे तो अच्छा होता, यह मर गई होती, लेकिन माँ मेरा ख़ास ख्याल रखती। उस समय लोगों की यह बातें सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता था, अब मुझे किसी की कोई बात बुरी नहीं लगती और न ही यह लगता है कि मुझमें कोई कमी है।"

छह भाई बहनों में पांचवे नम्बर की पूजा ने दसवीं तक की शिक्षा भिंड के मदर इंडिया कॉन्वेंट हाई स्कूल से प्राप्त की। 11-12वी प्राइवेट करने के बाद बी.ए., मॉडर्न ऑफिस मैनेजमेंट में डिप्लोमा और आईटीआई भी किया। ये सब पूजा ने मां से मिले प्रोत्साहन से ही किया। दरअसल मां चाहती थी कि उनकी बेटी किसी तरह अपने पैरों पर खड़ी हो जाये। वे अखबार में सरकारी नौकरी के विज्ञापन देखती और बेटी के लिए फॉर्म भी भरवाती। 

सरकारी नौकरी की ख्वाहिश पाले पूजा का वॉटर स्पोर्ट्स में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था। दरअसल, 2017 में महिला बाल विकास विभाग में निकली वैकेंसी की परीक्षा की तैयारी के लिए जब पूजा कोचिंग जाती तो रास्ते में पड़ने वाले गौरी सरोवर स्थित किशोरी बोट क्लब पर अपने ही जैसे बच्चों को नाव चलाते हुए बड़ी ही उत्सुकता से देखती। वहां के कोच बलवीर सिंह कुशवाह ने इस बात पर गौर किया और एक दिन पूजा से पूछ ही लिया क्या तुम इस खेल से जुड़ना चाहोगी। उन्होंने पूजा को ये भी बताया कि इससे तुम्हें सरकारी नौकरी भी मिलेगी। अंधा क्या चाहे दो आँखें.....वैसे भी पूजा का एक ही लक्ष्य था सरकारी नौकरी हासिल करना। उस समय तक उसे नहीं पता था कि विकलांगों के लिए भी कोई खेल होता है। हालांकि पूजा को पानी से बहुत डर लगता था तो उसने कोच को कोई जवाब नहीं दिया। दो-चार दिन इसी उहापोह में बीत गए। जब इस बात का ज़िक्र घर में किया तो पिता ने विकलांगता का हवाला देते हुए वहाँ जाने से मना कर दिया, लेकिन मां ने कहा “तुम कर सकती हो, तुम्हें इस कमज़ोरी को अपनी ताक़त बनाना होगा, तुम कोशिश करो” और पूजा ने भी ठान लिया कि अब इसमें ही अपना करियर बनाना है। इस तरह भिंड से कयाकिंग-केनोइंग प्रशिक्षण की शुरुआत हुई और अपनी कड़ी मेहनत से पूजा ने पहली बार ड्रैगन बोट प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन कर सभी को चकित कर दिया। 

इसी साल नवम्बर में भोपाल नेशनल गेम्स के लिए चयन भी हो गया। यहाँ उम्मीद से विपरीत स्वर्ण पदक हासिल कर देश की पहली महिला पैरा केनो खिलाड़ी का तमगा हासिल किया। उनका सफ़र यहीं नहीं रुका और उन्होंने अपनी काबिलियत का डंका अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी बजा दिया। 2018 में पहली बार थाईलैंड में आयोजित हुई एशियन पैरा चैंपियनशिप में भारत के लिए रजत पदक जीता। इसके साथ ही वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस खेल में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला दिव्यांग खिलाड़ी बन गईं।

सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था लेकिन पैरालिम्पिक क्वालीफाई राउंड की तैयारी के बीच कोरोना आ गया और वे उस राउंड में हिस्सा नहीं ले सकीं। इसी साल उनके सबसे बड़े भाई जो कबड्डी प्लेयर थे, खेल के दौरान एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। कोरोना के दो साल वे अवसाद में रहीं और खेल छोड़ने का विचार भी उनके मन में आया लेकिन माँ और दोस्तों से मिले हौसले से वर्ष 2022 में भोपाल आकर मयंक ठाकुर से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। कोच के मार्गदर्शन और पूजा की मेहनत के चलते इसी वर्ष वर्ल्ड चैम्पियनशिप में रजत तथा एशियन चैम्पियनशिप में 2 स्वर्ण पदक हासिल किये। 

इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा वे पांच साल से पैरा कैनो नेशनल चैंपियनशिप में लगातार स्वर्ण पदक हासिल करने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। 2022, 2023 और 2024 में लगातार 3 बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप में रजत जीत चुकी हैं। पूजा ने इंटरनेशनल इवेंट्स में अब तक 11 स्वर्ण, 4 रजत तथा राष्ट्रीय स्तर पर 15  स्वर्ण तथा एक रजत पदक जीता है। उनकी मेहनत और लगन के बूते खेल में योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2022 में दिव्यांग दिवस पर सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन श्रेणी में राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया गया।

पूजा बताती हैं "कैनोइंग काफी महंगा खेल है। मैं अपने शुभचिंतकों की मदद के बूते ही यह मुकाम हासिल कर पाई हूँ। जब मैंने पहला इंटरनेशनल खेला था, तब मेरे पास जूते तक नहीं थे। तब जिले के कलेक्टर इलैया राजा टी ने मुझे हरसंभव मदद की। आज भी मैं उन्हें किसी चीज के लिए कहूँ, तो वे चाहे जहां कहीं रहें मेरी मदद करने से चूकते नहीं हैं। वहीं ज़रूरत पड़ने पर पापा ने अपनी ज़मीन गिरवी रख दी थी, लेकिन मेरे कॅरियर पर कभी लगाम नहीं लगने दिया। मुझे आज भी याद है - जब मैं पहली बार भोपाल आई थी, तब सिर्फ 5 हज़ार रुपयों में गुज़ारा करना था। हालात ऐसे नहीं थे कि इस खेल को अपना सकूं। उस समय कोच श्री ठाकुर ने बहुत मदद की। वे आज भी कोई फीस नहीं लेते।" 

अब पूजा का सरकारी नौकरी का सपना भी पूरा हो गया है। वे पिछले 2 साल से भारतीय डाक विभाग, मुंबई में पोस्टल असिस्टेंट (डाक सहायक) की जिम्मेदारी संभाल रहीं है। उनका छोटा भाई एक कार दुर्घटना के बाद लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पर है। खेल में अपने करियर पर ध्यान देने के साथ ही वे अपने भाई के दो बच्चों की ज़िम्मेदारी भी उठा रही हैं। हालांकि नौकरी लगने के बाद अब घर के हालात भी कुछ बेहतर हुए हैं। 

वे कहती हैं विकलांगता शारीरिक न होकर मानसिक होती है। लेकिन यह कोई अभिशाप नहीं है। हम दिव्यांग जो कर सकते हैं, वो शायद एक सामान्य इंसान भी न कर पाये। मैं माता-पिता के साथ शिक्षकों को भी यह कहना चाहूंगी कि दिव्यांग बच्चों के लिये विकल्प कम नहीं हैं, बस ज़रूरत है उनकी प्रतिभा को निखारने की।

पैरा-कयाकिंग/केनोइंग प्रशिक्षण और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में सक्रियता से भाग ले रही पूजा का लक्ष्य अगले एशियाई चैंपियनशिप और पैराऑलंपिक है। इसके लिए वे जी-जान से कोच मयंक जी के निर्देशन में अभ्यास कर रहीं हैं। 

 

 उपलब्धियां

•  स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) द्वारा 2025 में गणतंत्र दिवस परेड में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रण

•  पैरा कयाकिंग और कैनोइंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व

•  भिंड जिले में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की ब्रांड एंबेसडर (2017)

•  मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा  स्टेट आइकन  (2024)

 

अंतरराष्ट्रीय खेल उपलब्धियां

•  एशियन चैम्पियनशिप- थाईलैंड, स्वर्ण पदक (2025)

•  विश्व कप-पोलैंड चौथा स्थान (2025)

•  एशियन चैम्पियनशिप –जापान, 2 स्वर्ण पदक (2024)

•  विश्व चैम्पियनशिप-हंगरी, रजत पदक (2024)

•  पैरालंपिक गेम्स- फ्रांस, भागीदारी (2024)

•  पैरा एशियन गेम्स-चीन चौथा स्थान (2023)

•  वर्ल्ड चैम्पियनशिप-जर्मनी,  रजत पदक (2023)

•  एशियन चैम्पियनशिप-उज़्बेकिस्तान 2 स्वर्ण पदक (2023)

•  वर्ल्ड चैम्पियनशिप –कनाडा, रजत पदक (2022)

•  एशियन चैम्पियनशिप –थाईलैंड, 2 स्वर्ण पदक (2022)

•  वर्ल्ड चैंपियनशिप-हंगरी, भागीदारी (2019)

•  एशियन चैम्पियनशिप-थाईलैंड, रजत पदक (2017) 

 

राष्ट्रीय उपलब्धियां 

•  नेशनल चैम्पियनशिप- भोपाल, स्वर्ण पदक (20172018/2021/2022/2023/2024/2025)

•  राष्ट्रीय चैम्पियनशिप भोपाल, स्वर्ण पदक (2017)

•  राष्ट्रीय चैम्पियनशिप भोपाल, स्वर्ण पदक ( 2018)

•  नेशनल चैंपियनशिप - दिल्ली, स्वर्ण पदक (2019)

•  नेशनल चैम्पियनशिप- भिंड, स्वर्ण पदक (2020)

सन्दर्भ स्रोत : पूजा ओझा से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

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