तेलंगाना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन में होने वाली छोटी-मोटी तकरार और 'सामान्य खटपट' (wear and tear) को क्रूरता नहीं माना जा सकता। अदालत ने क्रूरता और परित्याग (desertion) के आधार पर तलाक की मांग करने वाली पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस के. लक्ष्मण और जस्टिस वकाति रामकृष्ण रेड्डी की खंडपीठ ने पाया कि पत्नी न केवल अपने आरोपों को साबित करने में विफल रही, बल्कि सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि पति-पत्नी अभी भी एक ही छत के नीचे रह रहे हैं।
यह है मामला
यह मामला खम्मम की फैमिली कोर्ट के उस आदेश (28 नवंबर, 2014) के खिलाफ दायर अपील से संबंधित है, जिसमें पत्नी की तलाक याचिका खारिज कर दी गई थी। विवाह 29 मई, 1986 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। पत्नी का आरोप था कि पति को बुरी आदतें थीं और उसका अपनी ही वाटर प्लांट फैक्ट्री की एक महिला कर्मचारी के साथ अवैध संबंध था। उसने यह भी दावा किया कि पति ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और मई 2011 में घर से निकाल दिया। इसके अलावा, संपत्ति और मशीनरी को नुकसान पहुंचाने के गंभीर आरोप भी लगाए गए थे। पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (ia) और (ib) के तहत क्रूरता और परित्याग का हवाला देते हुए तलाक की मांग की थी।
पक्षकारों की दलीलें
प्रतिवादी पति ने इन सभी आरोपों का खंडन किया। उसका कहना था कि पत्नी का स्वभाव जिद्दी है और उसने एक बार आत्महत्या का प्रयास भी किया था। पति ने तर्क दिया कि उसने कड़ी मेहनत से संपत्तियां अर्जित कीं और उन्हें पत्नी के नाम पर पंजीकृत कराया, लेकिन पत्नी ने बच्चों के कल्याण की अनदेखी करते हुए उन संपत्तियों को बेचने का प्रयास किया। अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए पति को निषेधाज्ञा (Injunction) का मुकदमा दायर करना पड़ा था। उसने जोर देकर कहा कि उसने कभी पत्नी का परित्याग नहीं किया।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने मामले का बारीकी से परीक्षण किया और पाया कि पत्नी अपने गंभीर आरोपों के समर्थन में कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी। चूंकि पक्षकार एक साथ रह रहे हैं और शादी पूरी तरह से टूटी नहीं है (irretrievably broken down), इसलिए केवल आरोपों के आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को तर्कसंगत और सही ठहराते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।
सन्दर्भ स्रोत : लॉ ट्रेंड



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