छाया : स्वसंप्रेषित
• सीमा चौबे
‘जहां हौसले बुलंद हों, वहाँ उम्र, ज़िम्मेदारी और हालात भी रास्ता छोड़ देते हैं।‘ यह बात भावना टोकेकर पर सटीक बैठती है, जिन्होंने अपनी शर्तों पर अपनी पहचान दुबारा गढ़ी। उनकी यात्रा सिर्फ एक एथलीट बनने की नहीं, बल्कि एक आम महिला से असाधारण प्रेरणा बनने की कहानी है। जो उन सभी के लिए उम्मीद की लौ है, जो बाधाओं के आगे आत्मसमर्पण कर देते हैं।
बीमारी से लड़ाई, सामाजिक दबाव, मानसिक तनाव और उम्र से जुड़ी धारणाएं - इन सबका सामना करते हुए भावना ने न केवल खुद को फिट और मजबूत बनाया, बल्कि विश्व स्तर पर अपनी एक अलग पहचान स्थापित की। लेकिन एक मां, एक पत्नी के रूप में घर की ज़िम्मेदारियों के साथ यह मुकाम हासिल करना बिलकुल भी आसान नहीं था।
भावना का जन्म 31 दिसंबर 1971 को विदिशा में एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ। मूलरूप से ग्वालियर के रहने वाले उनके दादा-दादी बाद में विदिशा आ बसे। मां श्रीमती अनुप्रीति भावे सुघढ़ गृहिणी और पिताजी श्री आनंद भावे भारतीय रेलवे में कार्यरत थे। बार-बार तबादलों के चलते भावना का बचपन गुजरात के विभिन्न शहरों में बीता। बड़ौदा के विद्याकुंज स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा, फिर गोधरा के रोटरी स्कूल से दसवीं और अहमदाबाद के वसंत स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई पूरी की। गुजरात यूनिवर्सिटी से बीकॉम में प्रवेश और उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा किया।
1 फरवरी 1998 को ग्वालियर निवासी फाइटर पायलट श्रीपाद टोकेकर से उनका विवाह हुआ। शादी के पहले स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट्स और मोबिलिंक पेजर जैसी कंपनियों में काम कर चुकी भावना ने विवाह के बाद परिवार को प्राथमिकता दी और नौकरी न करने का निर्णय लिया। इस बीच वे दो बेटों – ईशान (1999) और आरव (2003) की माँ बनीं।
बचपन में खेल से जुड़ाव रहा वे टेबल टेनिस की जिला चैम्पियन रह चुकी हैं लेकिन दसवीं के बाद पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने के चलते खेल से दूरी हो गई। जीवन की रफ्तार में खेल का सपना पीछे छूट गया। शादी के बाद वे गृहस्थी में व्यस्त हो गईं, लेकिन खेल की चिंगारी भीतर बनी रही। 35 वर्ष की उम्र में उन्हें एक गंभीर ऑटोइम्यून स्किन इन्फ्लेमेशन का सामना करना पड़ा। धूप में एलर्जी, स्टेरॉयड की दवाइयाँ और मानसिक तनाव ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया। नींद अधिक आती, थकावट रहती। त्वचा रोग के कारण उनका सामाजिक दायरा भी सिमट कर रह गया। अवसाद से बाहर निकलने के लिए उन्होंने पति के साथ दौड़ना शुरू किया। मॉर्निंग वाक के साथ-साथ स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के इरादे से भावना ने जिम जाना भी शुरू किया। वे बताती हैं शुरू में मुझे लगा यह मेरे बस की बात नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे दौड़ने लगी, मानसिक तनाव कम हुआ। धीरे-धीरे उन्होंने रनिंग शुरू की, फिर हाफ मैराथन में भाग लिया। इससे मानसिक तनाव कम होने लगा।
शुरुआत में लक्ष्य सिर्फ़ स्वस्थ रहना था, लेकिन जिम में एक ट्रेनर ने उन्हें वेट ट्रेनिंग का सुझाव दिया। शुरुआत में संकोच था, डर था, पर यही अभ्यास आगे चलकर उनकी ज़िंदगी बदलने वाला था। जल्द ही उन्हें वेट ट्रेनिंग और स्ट्रेंथ बिल्डिंग में गहरी रुचि हो गई। उन्हें वायुसेना की बॉडी बिल्डिंग टीम के खिलाड़ियों से प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहा। इसके साथ ही उन्होंने इंटरनेट, यूट्यूब और अन्य माध्यमों से टेक्निकल जानकारी जुटाना शुरू किया। वहीं उन्हें पावरलिफ्टिंग और उसकी स्पर्धाओं का ज्ञान हुआ ख़ास बात यह कि बिना किसी पेशेवर कोचिंग के उन्होंने खुद को प्रशिक्षित किया।
पावर लिफ्टिंग : 40 की उम्र में नया सफर
लगभग 6 साल की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के बाद भावना को पता चला कि भारोत्तोलन (पावर लिफ्टिंग) में मास्टर्स कैटेगरी होती है, जिसमें 40 की उम्र के बाद भी हिस्सा लिया जा सकता है। उन्होंने इंटरनेट खंगाला, सोशल मीडिया पर लोगों से संपर्क किया लेकिन ज्यादातर ने जवाब नहीं दिया। फिर एक दिन WPC फेडरेशन के सचिव का जवाब आया। उस समय भोपाल रह रहीं भावना को तत्काल बैंगलोर बुलाया गया। मुश्किलों के बावजूद उन्होंने ट्रायल्स दिए और 2019 में रूस के चेल्याबिंस्क में आयोजित होने वाले एशियन चैंपियनशिप के लिए चुन ली गईं। चैंपियनशिप के लिए इस चयन से सभी बहुत खुश थे लेकिन भावना को खुद पर चार लाख रुपये खर्च करने का विचार बहुत कठिन और असहज लगा। भावना बताती हैं दरअसल, पावर लिफ्टिंग ओलंपिक खेल नहीं है और इसमें किसी प्रकार का सरकारी आर्थिक समर्थन नहीं मिलता। हर खर्च, चाहे वह यात्रा हो, खाना-पीना या फिर प्रतियोगिता और फेडरेशन फीस, सभी का खर्च खिलाड़ी को खुद उठाना पड़ता है। इन सब में करीब चार लाख रुपये का खर्च आ रहा था। उस समय उनका बड़ा बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और छोटा बेटा कक्षा 10 में था। जाहिर है कि दोनों की पढ़ाई का खर्च भी जुटाना था। इसलिए भावना को संकोच हुआ कि इस उम्र में इतना पैसा खुद पर खर्च करना चाहिए या नहीं। इस बारे में जब बच्चों और पति को पता चला, तो सबसे पहले दोनों बच्चों ने कहा, "पढ़ाई तो हो ही जायेगी, आप ज़रूर जायें।" बच्चों ने माँ की पिछले 6-7 सालों की मेहनत को देखा था और यह भी महसूस किया कि उनके लिए यह एक बड़ा अवसर था।
अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में ही भावना ने चार गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। इस प्रतियोगिता में 500 खिलाड़ियों में से 14 भारत से थे, जिनमें एक भावना थीं। उनकी इस उपलब्धि पर वायुसेना के जनसम्पर्क विभाग ने उनके सोशल मीडिया पर उन्हें सराहा। “40 की उम्र, गंभीर बीमारी, घरेलू महिला – और यह उपलब्धि?” भावना के भारत लौटते ही इंटरव्यू के लिए मीडिया वालों की भीड़ लग गई और भावना रातों-रात एक आम महिला से स्टार बन गईं।
उसी वर्ष दिसंबर 2019 में मास्को में आयोजित WPC/AWPC वर्ल्ड ओपन पावर लिफ्टिंग चैंपियनशिप में भावना ने मात्र चार महीने की अवधि में अपने प्रदर्शन में और भी उल्लेखनीय सुधार किया। इस विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में भी उन्होंने शानदार खेल का प्रदर्शन करते हुए चार स्वर्ण पदक अपने नाम किये।
समाज की आलोचना और भीतर की जंग
जब भावना ने वेट ट्रेनिंग शुरू की तो समाज और परिवार की प्रतिक्रिया हतोत्साहित करने वाली थी। आलोचनाओं के बीच लोगों ने कहा "तुम मर्दों जैसी दिखने लगोगी।" महिला मित्रों ने मज़ाक में उन्हें "भाई" कहना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि ससुराल और मायके के सदस्यों ने भी नाखुशी जाहिर की। लेकिन भावना ने उन सब का उत्तर शब्दों से नहीं, बल्कि अपने काम से दिया। समय के साथ जब परिणाम दिखे तो वही लोग उनके प्रशंसक हुए। वे कहती हैं, “मेरे पति और बच्चों ने मुझे समर्थन दिया। उन्होंने कभी मुझे रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि हर कदम पर मेरे साथ रहे।"
2020–2021 के लॉकडाउन के बीच का समय उनके लिए काफी चुनौती भरा रहा। वे बच्चों और पति के सहयोग से बिना संसाधनों से घर की छत पर अभ्यास करती उनके द्वारा सोशल मीडिया पर उनके अभ्यास के वीडियो देखकर एक अजनबी ट्रेनर ने उन्हें तोहफ़े में उपकरण भेजे, इतना ही नहीं, इस दौरान उन्हें व्यक्तिगत समस्याओं से भी जूझना पड़ा। एक ओर जहाँ उनके पिताजी का निधन हुआ, वहीं एक उंगली में फ्रैक्चर भी हुआ फिर भी भावना ने हार नहीं मानी और अभ्यास जारी रखा और खुद को मजबूत बनाती रहीं। स्वास्थ्य समस्याओं और कई व्यवधानों के बावजूद भावना ने रूस में 2021 में और इंग्लैंड में 2022 में हुई चैम्पियनशिप में भाग लिया। रूस में उन्होंने 3 स्वर्ण पदक और इंग्लैंड में उन्होंने 5 वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है।
भावना कहती हैं - "इंटरनेट ने ही मुझे सही राह दिखाई। मैंने शुरुआत में यूट्यूब पर वीडियो देखे, तकनीक सीखी, आहार के नुस्खे देखे। इंस्टाग्राम पर फिटनेस से जुड़ी प्रोफाइल्स को लगातार देखती रही और किसी प्रोफेशनल के बिना खुद अभ्यास किया। सोशल मीडिया पर भी अपने अभ्यास को साझा की ताकि दूसरी महिलाएँ भी प्रेरित हो सकें। इंटरनेट ने मेरे लिए दुनिया खोल दी। मुझे लगा कि सही जानकारी हो तो हम खुद को भी प्रशिक्षित कर सकते हैं।"
वे कहती हैं सच कहूँ तो यह सब मेरे लिए अभी भी सपना जैसा लगता है। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि 50 की उम्र में मैं स्क्वाट, बेंच प्रेस और डेडलिफ्ट जैसे इवेंट्स में विश्व रिकॉर्ड बनाऊँगी। मुझे लगता है कि मेरी मेहनत और परिवार का साथ ही सबसे बड़ा कारण है। यह सिर्फ मेरे लिए नहीं, उन सब महिलाओं के लिए है जो सोचती हैं कि शादी और बच्चों के बाद उनका जीवन सीमित हो जाता है। मेरे लिए यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि अपनी शर्तों पर जीने का साहस रखें।
वे जून 2026 में आयरलैंड और सितंबर 2026 में मैनचेस्टर में आयोजित होने वाली यूरोपियन और विश्व पावरलिफ्टिंग स्पर्धाओं में भाग लेने की तैयारी में जुटी हैं और इनके लिए प्रायोजकों की तलाश कर रही हैं। साथ ही भोपाल में एक फिटनेस और कोचिंग सेंटर खोलने की योजना है, जहां महिलाएं बिना किसी झिझक के अपने-आपको चुस्त-दुरुस्त रखना सीख सकें।
अब भावना सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं रहीं, वे एक सोच, एक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं। अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर भारत तक हजारों महिलाएं उन्हें देखकर प्रेरणा ले रही हैं। कई लोग उन्हें मैसेज करते हैं - "आपको देखकर हमने भी वेट ट्रेनिंग शुरू की" या फिर "आपने हमें सिखाया कि खुद के लिए समय निकालना ज़रूरी है।"
भावना खुद मानती हैं कि उनके इस सफर में सबसे बड़ी प्रेरणा मैरी कॉम रही हैं - जिन्होंने शादी, मातृत्व और जिम्मेदारियों के बावजूद दुनिया को दिखा दिया कि सपने मातृत्व से छोटे नहीं होते। भावना भी इसी सोच को जीती हैं - "परिवार पहले, लेकिन अपने सपनों को कभी पीछे मत छोड़ो।" अब उनका अगला लक्ष्य है - अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का परचम लहराना। लेकिन इससे भी बड़ा सपना है अपनी कहानी उन महिलाओं तक पहुंचाना, जो खुद को उम्र, जिम्मेदारियों या सामाजिक सीमाओं में बांध कर भूल बैठी हैं कि उनके भी सपने हैं। उनका सीधा संदेश है: "अगर मैं 40 की उम्र के बाद शुरू कर सकती हूं, तो यकीन मानिए, आप भी कर सकती हैं।"
भावना के बड़े बेटे ईशान ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए भारतीय वायुसेना में करियर चुना, जबकि आरव इंजीनियरिंग के बाद नई राह की तलाश में हैं। पति श्रीपाद टोकेकर (कारगिल युद्ध के वीरता पुरस्कार विजेता) वायु सेना से सेवानिवृत होकर बेंगलुरु में अकासा एयरलाइंस में पायलट हैं। भावना इसी साल नवम्बर में होने वाली नेशनल चैम्पियनशिप की तैयारियों में व्यस्त हैं और रशिया के ट्रेनर से ऑनलाइन प्रशिक्षण ले रहीं हैं।
उपलब्धियां
• भावना ने अपनी आयु और भार वर्ग में 11 स्वर्ण पदक जीतकर पावर लिफ्टिंग जगत में एक अलग पहचान बनाई है।
• पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता-चेल्याबिंस्क, रूस (चार स्वर्ण पदक जुलाई 2019)
• WPC/AWPC वर्ल्ड ओपन पावर लिफ्टिंग चैंपियनशिप -मास्को (तीन स्वर्ण पदक दिसंबर 2019)
• पावरलिफ्टिंग विश्व कप, मास्को फुल पावरलिफ्टिंग और बेंच प्रेस दोनों श्रेणियों में स्वर्ण पदक (दिसंबर 2021)
• WPC/AWPC वर्ल्ड पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप मैनचेस्टर, यूके मास्टर्स-3 (उम्र 50–54) कैटेगरी में रॉ डिवीजन, अंडर-75 किलोग्राम भार वर्ग में पाँच विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किये और पोल पोजीशन हासिल की। (सितंबर 2022)
• राष्ट्रीय चैम्पियनशिप हैदराबाद, भारत अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 80 किग्रा की बेंच प्रेस का शानदार प्रदर्शन किया (अक्टूबर 2024)
सम्मान
• मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगू भाई पटेल द्वारा "चैंपियन ऑफ चेंज – मध्यप्रदेश” 2023 पुरस्कार से अलंकृत
सन्दर्भ स्रोत : भावना टोकेकर से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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