छाया: सुरभि सांखला के फेसबुक अकाउंट से
जिस उम्र में बच्चे मार्शल आर्ट खेलना छोड़ छोड़ देते हैं, उस उम्र में मैंने इसे खेलना शुरू किया। मेरा मक़सद खेल में कॅरियर बनाना नहीं, बल्कि आत्मरक्षा के लिये सीखना था। मैंने महसूस किया कि जिसे आत्मरक्षा के गुर आते हैं, उसका आत्मविश्वास हमेशा ऊंचा होता है। है। समाज में महिलाओं के साथ होने वाली छोटी-मोटी घटनाओं ने इस सोच को और बल दिया। बस फिर देर न की और 25 की उम्र में मैंने मार्शल आर्ट सीखना शुरू कर दिया। यह कहना है हाल ही में बहरीन में हुई मिक्स्ड मार्शल आर्ट की एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर लौटीं इंदौर की सुरभि सांखला का। सुरभि हाईकोर्ट में वकालत करती हैं। वे कहती हैं एक जमे-जमाए पेशे के साथ दूसरे क्षेत्र में आगे बढ़ना आसान नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि इंसानी दिमाग एक साथ कई जगह चल सकता है, बशर्ते हर काम पूरी मेहनत और लगन से किया जाए।
सुरभि बताती हैं कि पाकिस्तान से आयी उनकी प्रतिद्वंदी खिलाड़ी कद में उनसे ऊंची और वजनी थी। पहले दो चक्र में वह मुझ पर हावी रही, लेकिन अंतिम चक्र में मैं कि किसी फिल्मी हीरो की तरह उठी और उसे ऐसे पंच मारे कि टेक्नीकली नॉक आउट करके ही दम लिया। दरअसल मैं शरीर से भले ही थक गई थी, लेकिन दिमागी रूप से मैच जीतने का हौसला लेकर ही खेल रही थी। इस स्पर्धा में 14 देशों के खिलाड़ी थे। भारत से कुल 11 खिलाड़ी और मप्र से मैं अकेली थी। मेरे कोच विकास शर्मा और ट्रेनर रोहित जेठवा ने मुझे इतनी अच्छी तालीम दी कि मैं सिल्वर तक पहुंच पाई। पैरेंट्स राजेंद्र-सुषमा सांखला का भी इस सफलता में सहयोग है। वकालत में अपनी व्यस्तता के चलते मैं चैंपियनशिप से पहले विशेष प्रशिक्षण न ले सकी। जिस दिन मुझे जाना था, उस सुबह तक मैंने काम निपटाए। मेरा मानना है कि आपके शौक का असर आपके पेशे पर न हो तो बेहतर परिणाम मिलते हैं।
संदर्भ स्रोत: दैनिक भास्कर
संपादन: मीडियाटिक डेस्क
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