छाया :हारमनी इंडिया डॉट ओआरजी
अपने क्षेत्र की पहली महिला
• 25 बरस तक निरंतर संपादक की भूमिका निभाती रहीं
• साहित्य और पत्रकारिता दोनों में है समान दखल
• भारत सरकार ने वर्ष 2006 में पद्मश्री अलंकर से किया था सम्मानित
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डे कथाकार, राजनीतिक-सामाजिक, आर्थिक विश्लेषक के रूप में जानी जाती हैं। प्रतिगामी ताकतों के खिलाफ बेबाक कलम चलाने वाली मृणालजी वर्तमान में प्रसार भारती बोर्ड की अध्यक्ष हैं। लम्बे अर्से से कथा लेखन और पत्रकारिता से जुड़ी मृणाल पाण्डे टाइम्स ऑफ इण्डिया की वामा पत्रिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और दैनिक हिन्दुस्तान की समूह सम्पादक के अलावा एनडीटीवी और दूरदर्शन में एंकर और समाचार वाचक के पद कार्य कर चुकी हैं । पत्रकारिता के क्षेत्र में बेबाक टिप्पणियों से उन्होंने नया अध्याय रचा और दुनिया को स्त्री पक्ष से देखने के लिए विवश किया। जहां उन्होंने कचरा बीनने, सब्जियां बेचने और घरों में काम करने वाली महिलाओं के पक्ष में कई सवाल उठाए, वहीं दैनिक हिन्दुस्तान अखबार को व्यवसायिक संस्कृति भी दी। उनके पत्रकारिता जीवन की शुरुआत1984 से हुई, जब वे पहली बार वामा पत्रिका की संपादक बनीं। इससे पूर्व उनका रूझान साहित्य की ओर था। मृणाल पाण्डे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक चुनौतियों की गहराई और समग्रता से पड़ताल कर खूब लिखती हैं। टीवी पर उनकी राजनीतिक टिप्पणी और बातचीत काफी पसंद की जाती है।+
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मृणाल जी का जन्म मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में 26 फरवरी,1946 को हुआ। लेखन का संस्कार उन्हें अपनी मां और सुविख्यात लेखिका गौरा पंत शिवानी से मिला। उनके पिता सुखदेव पंत शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश में कार्यरत थे। पिता के असामयिक निधन के बाद चारों भाई-बहन मां के संरक्षण में ही पले। मृणाल जी की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में हुई। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। जहां उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी साहित्य और प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विषय के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ कारकोरन कॉलेज ऑफ आर्ट एण्ड डिजाइन, वाशिंगटन डीसी से विजुअल आर्ट की उपाधि प्राप्त की। उनकी पहली कहानी प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग में तब प्रकाशित हुई जब वे मात्र 21 वर्ष की थी।
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1984 में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखते ही उनकी पत्रकार की छवि साहित्यकार की छवि से बड़ी हो गई। शायद इसलिए अनेक रचनाओं के बाद भी उनके साहित्य का जो मूल्यांकन होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया।
हिन्दी में षटरंग पुराण उनका चर्चित उपन्यास है। जिसमें उन्होंने पीढिय़ों के अंतराल और बदलाव की विशेषता को रेखांकित किया है। उनकी कहानियां शिल्प और भाषा की प्रयोगात्मकता के साथ-साथ पैनी बन जाती है जो इनकी विशेषता है। इनमें एकल किस्सागोई भी है और सामूहिक हुंकार भी। मृणाल जी संभवत: अकेली ऐसी महिला पत्रकार हैं, जिसने 25 बरस लगातार संपादक की भूमिका का सर्वप्रथम निर्वाह किया हो।
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महज 38 साल की आयु में 1984 में वे संपादक बनीं और तीन साल तक यह ज़िम्मेदारी निभाती रहीं। उसके बाद क्रमश: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, दैनिक हिन्दुस्तान और आगे चलकर इसी समूह से प्रकाशित होने वाली सभी हिन्दी पत्रिकाओं की वे संपादक बन गईं। अनेक विरोधों के बीच अंतत: 31 अगस्त,2009 को वह पद मुक्त हुईं और प्रसार भारती के अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया। मृणाल जी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया दोनों में सक्रिय हैं।
अंग्रेजी में उनके उपन्यास माई ओन विटनेस में इस तथ्य को उजागर किया है, कि किस तरह हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषाई पत्रकारिता अंग्रेजी पत्रकारिता से चोट खाती है। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। अपने इस उपन्यास में मृणाल जी ने मीडिया की चकाचौंध के पीछे के स्याह पहलू को उजागर किया है। उन्होंने अपने उपन्यास में लिखा है, कि जो सुविधाएं अंग्रेजी माध्यम के पत्रकारों को मुहैया कराई जाती हैं, उसका अंश मात्र ही हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकारों को प्राप्त होता है। इसी कारण प्रोत्साहन के अभाव में हिन्दी पत्रकार योग्य होते हुए भी गुणवत्ता की दृष्टि से पीछे रह जाता है। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही यह कथा उनके भीतर उबाल खाने लगी थी। उन्हें लगने लगा था कि अपने मानसिक उद्वेलन की खातिर यह कथा उन्हें कहनी ही होगी। यह आत्मकथ्य शैली में रची गई है और उपन्यास में मीडिया के क्षेत्र में महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव को रेखांकित किया गया है।
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मृणाल जी कई वर्षों तक महिलाओं के स्वरोजगार आयोग की सदस्य रहीं। भारत सरकार की ओर से पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें 2006 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री अलंकरण से नवाजा गया। इसके अलावा राजस्थान और दिल्ली राज्य ने भी साहित्यक लेखन और पत्रकारिता में अभूतपूर्व भूमिका निभाने के लिए उन्हें सम्मानित किया। मृणाल पाण्डे बांग्ला, हिन्दी एवं अंग्रेजी साहित्य भी बराबरी से दखल रखती है। मृणाल पाण्डे का विवाह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और अर्थशास्त्री अरविंद पाण्डेय से हुआ है। रोहिनी और राधिका के रूप में उनकी दो पुत्रियां हैं।
उपलब्धियां
- पद्मश्री अलंकरण- 2006
- राजस्थान शासन का सम्मान
- दिल्ली प्रदेश शासन का सम्मान
प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ
- उपन्यास – हमका दियो परदेस, अपनी गवाही, षटरंग पुराण, विरुद्ध
- कहानी संग्रह- एक स्त्री का विदागीत, चार दिन की जवानी तेरी, जहां औरतें गढ़ी जाती हैं, बचुली चौकीदारिन की कड़ी, यानी कि एक बात थी, रास्तों पर भटकते हुए नाटक: चोर निकल के भागा, आदमी जो मछुवारा नहीं था
- अन्य कृतियाँ- देवकीनंदन खत्री के उपन्यास काजर की कोठरी का नाट्य रूपान्तरण, परिधि पर स्त्री (निबंध), देह की राजनीति से देश की राजनीति तक (निबंध), बंद गलियों के विरुद्ध (संपादन), सब्जेक्ट इज वीमन (महिला-विषयक अंग्रेजी लेखों का संकलन), द डॉटर्स डॉटर (अंग्रेजी उपन्यास), माई ओन विटनेस (अंग्रेजी उपन्यास), देवी (उपन्यास-रिपोर्ताज)
संदर्भ स्रोत -मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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