छाया : स्व संप्रेषित
चित्रकार
सुप्रसिद्ध चित्रकार प्रीति तामोट का जन्म ललितपुर, उप्र में 31 जुलाई 1955 को हुआ था। उनके पिता डॉ. हरीश भूषण जैन विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन में संस्कृत व प्राच्य भाषा के व्याख्याता थे। वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे। माँ केशर देवी ने 12वीं तक शिक्षा प्राप्त की थी और साथ ही हिंदी की शास्त्रीय स्तर की परीक्षाएँ भी पास कीं। वे एक सुघड़ गृहिणी थीं और बच्चों के लिए शिक्षा का महत्त्व जानती थीं। प्रीति जी दो भाई एवं दो बहन हैं। उनके पिता का सोचना था कि बेटियों की शादी समय पर हो जानी चाहिए, हालाँकि वे उनकी शिक्षा के प्रति भी सजग थे। बेटियों को जीवनपर्यंत उन्होंने अपना मार्गदर्शन दिया।
प्रीति जी की प्रारंभिक शिक्षा मिशनरी स्कूल में हुई जहां बाइबिल को भी ज़रूरी विषय के तौर पर पढ़ाया जाता था। उस स्कूल में क्रिसमस पर आधारित सुन्दर-सुन्दर कार्ड मिलते थे, जिसे हर बच्चे की तरह प्रीति भी जमा पूँजी की तरह संभाल कर रखती थीं। उन कार्डों पर बने बर्फ, स्केटिंग, क्रिसमस ट्री के छपे चित्र उन्हें अलग ही दुनिया का अहसास कराता । उनके द्वारा चित्रकला को अपनाने के पीछे यह अनुभूति बीज तत्व मानी जा सकती है। इसलिए बचपन में रंग और कूची से खेलने का शौक थी जो आगे चलकर उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया ।
प्रीति जी की नौंवी से लेकर 11 कक्षा तक की पढ़ाई विज्ञान विषय लेकर उज्जैन के लोकमान्य तिलक हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई। सांस्कृतिक गतिविधियों की दृष्टि से वह विद्यालय अत्यंत समृद्ध था। वहाँ छिपी हुई प्रतिभाओं की ज़मीन तैयार हो जाती थी। चित्रकला में बचपन से ही रुचि होने के कारण वे विश्व प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता वाकणकर जी द्वारा संचालित कक्षा में भी जाने लगीं। कक्षा वाकणकर जी के घर के ऊपरी मंज़िल पर लगती थी, जिसे भारती कला भवन के नाम से जाना जाता था। वहीं से उन्होंने चित्रकला में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। श्री वाकणकर ने उसी दौरान भीमबैठका की ऐतिहासिक गुफाओं की खोज की थी। एक कलाकार को तैयार करने में योग्य गुरु के अलावा उचित वातावरण की भी भूमिका होती है। कला भवन में वह वातावरण सहज रूप से उपलब्ध था। कक्षा की दीवारें पाश्चात्य शैली के सुन्दर चित्रों की अनुकृतियों के साथ-साथ अजंता के गुफा चित्रों की अनुकृतियों सजी थीं। इसके अलावा भी कई ऐसे चित्र थे जो छात्रों के लिए उत्प्रेरक तत्व का काम करते थे। श्री वाकणकर भीमबैठका से जब भी लौटते सभी शिक्षक और बच्चे उन्हें घेरकर बैठ जाते, फिर वह वहाँ की शैलचित्रों के बारे में बताते तथा खोज के किस्से सुनाते।
प्रीति जी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से फाइन आर्ट्स विषय लेकर एम.ए. कर रही थीं, प्रीवियस की परीक्षा के दौरान उनका विवाह अभियंता शरद जैन ‘तामोट” से हो गया। उनके श्वसुर गुलाबचंद तामोट जाने – माने राजनीतिज्ञ थे एवं उस समय कैबिनेट मंत्री थे। नई – नई घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण प्रीति जी ने एम.ए.अंतिम का इम्तिहान एक वर्ष के लिए टाल दिया। 1978 में फाइनल परीक्षा में उन्होंने प्रावीण्य सूची में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। स्नातकोत्तर की कक्षाओं के दौरान उन्हें श्री प्रभाकर वाघ एवं श्री रामचंद्र भावसार जैसे श्रेष्ठ गुरुओं से सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।
भारत भवन अपने उद्घाटन के समय से ही प्रीति जी को रोमांचित करता रहा। वहाँ आयोजित कुछ कार्यक्रमों के दौरान उन्होंने वहाँ निरंतर चलती कार्यशालाओं को भी देखा, जिसके बाद कलाओं के इस घर से जुड़ने की तमन्ना उनके मन में जाग उठी। वह उनके करियर का शुरूआती दौर था। वे भारत भवन की कार्यशालाओं में सम्मिलित होना चाहती थीं लेकिन सीमा घुरैया एवं अनवर खान जैसे चित्रकारों को देखकर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी, हालाँकि उस समय वे भी अपने शुरूआती दौर में ही थे लेकिन वे दिन रात काम कर रहे थे। कार्यशाला की दीवारों को उन्होंने अपने चित्रों से भर दिया था। अब तक प्रीति जी के खाते में घर पर बनाए हुए कुछ चित्र ही थे। साहस बटोरकर वे भारत भवन की कार्यशालाओं में जाने लगीं जहां प्रसिद्ध चित्रकार जे. स्वामीनाथन का मार्गदर्शन उन्हें प्राप्त हुआ। एक दिन प्रीति जी ने पहली जिंक प्लेट का एचिंग प्रिंट दीवार पर लगाकर रख दिया । वे उसे देखकर चले गए लेकिन दूसरे दिन आकर सुबह उनकी मेज के पास आकर बोले –अच्छा काम किया।
तारीफ़ के ये ‘दो बोल’ प्रीति जी के लिए आजीवन उत्प्रेरक का काम करते रहे और इसके बाद उनकी झिझक भी जाती रही। उन दिनों भारत भवन का वातावरण भी अद्भुत था । 1987 का दौर था, देशभर के वरिष्ठ और कनिष्ठ चित्रकार वहाँ की कार्यशाला में काम करते थे। प्रीति जी को उस समय वहाँ मौजूद वरिष्ठ कलाकारों को काम करते देखकर भी बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध चित्रकार युसूफ़ उन दिनों ग्राफ़िक्स के इंचार्ज थे। उनकी कार्यशाला में प्रीति जी का प्रथम परिचय लिथोग्राफ़ी, एचिंग, स्क्रीन प्रिंटिग आदि विधाओं से हुआ। सभी माध्यमों ने थोड़ा-थोड़ा हाथ आजमाने के बाद जिंक प्लेट पर प्रिंट मेकिंग का काम अपने अनुकूल लगा। फिर कई सालों तक वह इसी माध्यम से काम करती रहीं। इसके अलावा एक लम्बे अरसे से वह कैनवास पर एक्रेलिक रंगों से सुन्दर काम कर रही हैं। इस तरह दोनों माध्यमों में उन्होंने खुद को स्थापित किया है।
उनके चित्रों में संस्कृत साहित्य का गहरा असर झलकता है। वे भारतीय लघु चित्रों का अध्ययन करती रही हैं और उसी का सत्व लेकर अपनी अलहदा शैली में वे प्रकृति के विविध छवियों को उकेरती हैं, जो दृश्य चित्र होते हैं। इन्हें वे विशेष कोण से बनाती है जिसे ‘बर्ड आई व्यू’ कहा जाता है। ये चित्र काल्पनिक होते हैं और उन्हें वह ‘अनटच्ड मेमोरी’ का नाम देती हैं। इस कोण से काम करना ही प्रीति तामोट को ख़ास चित्रकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है, जिसका अभ्यास उन्होंने बचपन से कालिदास के मेघदूतम को विभिन्न नाटकों में देखते पढ़ते हुए कर लिया था।
वह प्रीति जी की प्रतिभा के क्रमिक विकास का दौर था, जिसमें सबसे पहले उनकी झिझक दूर हुई, नए-नए विचारों और तकनीकों से निखार आया और पहचान मिलने का दौर शुरू हुआ। उन्हें मानव संसाधन विभाग, भारत सरकार द्वारा 1992-93 का जूनियर फ़ेलोशिप प्राप्त हुई। वर्ष 1994 में ललित कला अकादमी, दिल्ली द्वारा 37 वां राष्ट्रीय पुरस्कार(ऑनरेबल मेंशन) प्राप्त हुआ। पुनः वर्ष 1995 में प्रथम ईस्टर्न प्रिंट बायनियल (दो वर्षों में एक बार होने वाला आयोजन), राष्ट्रीय ललित कला केंद्र, भुवनेश्वर द्वारा उन्हें पुरस्कृत किया गया। दिल्ली की प्रतिष्ठित संस्था ‘आइफेक्स’ ने वर्ष 2000 में वरिष्ठ श्रेणी के तहत प्रीति को पुरस्कृत किया। इसके बाद जैसे पुरस्कारों व सम्मान का सिलसिला सा शुरू हो गया। अखिल भारतीय कालिदास चित्रकला प्रदर्शनी-98, उज्जैन, उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित चित्र प्रदर्शनी-2001 में भी उनकी कृति पुरस्कृत हुई। इसके अलावा भारत भवन में आयोजित इंटरनेशनल प्रिंट बायनियल में भी वह सम्मलित व प्रसंशित हुईं। इन्होंने देश भर में आयोजित प्रतिष्ठित संस्थाओं के शिविरों में शिरकत की है ।
प्रीति जी की चित्रकला का यह सफ़र आज भी जारी है। वर्तमान में वे पति और दो बच्चों के साथ भोपाल में रहते हुए स्वतंत्र चित्रकार के रूप में सक्रिय हैं। देश व विदेश के लगभग सभी प्रतिष्ठित आर्ट गैलरी में उनकी कृतियाँ सराही जा चुकी हैं। देश की कला अकादमियों में उनके चित्रों का संग्रह है। वे देश की जानी-मानी कलाकार हैं एवं उनकी गिनती मध्यप्रदेश के चुनिंदा चित्रकारों में होती हैं।
संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं प्रीति जी से बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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