छाया : स्व संप्रेषित
प्रमुख महिला किसान
• सीमा चौबे
छिंदवाड़ा में श्री अरुण कुमार पाण्डेय और श्रीमती मिथिलेश पाण्डेय के घर जनवरी 1978 में जन्मी प्रतिभा की प्रारंभिक शिक्षा उसी शहर में हुई. गणित में स्नातक करने के बाद वर्ष 2003 में उन्होंने प्रथम श्रेणी के साथ एम.ए. किया. इसके अगले ही साल कृषक परिवार के हरदा निवासी जीतेश तिवारी से उनका विवाह हो गया. यह जानना दिलचस्प है कि गणित और फिर समाजशास्त्र की पढ़ाई करने वाली प्रतिभा तिवारी आज स्वयं एक सफल किसान हैं और साढ़े 3 सौ गांवों के जैविक खेती करने वाले 12 सौ से भी ज़्यादा किसानों को भी अपने साथ जोड़े हुए हैं. 42 साल की प्रतिभा पिछले 7 सालों से ऑर्गेनिक खेती करने के साथ-साथ किसानों को उनके उत्पादों के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध करवा रही हैं. ऐसे तमाम किसान जो जैविक विधि से दलहन और मसाला उत्पादन कर रहे हैं, उनके उत्पाद को अपनी कम्पनी के जरिये उन्होंने बाज़ार का रास्ता दिखाया है. प्रतिभा को खेती-किसानी का ज्ञान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं है.
एक बार पंजाब यात्रा के दौरान ‘कैंसर ट्रेन’ नाम सुनकर प्रतिभा जी चौंक गईं. उन्हें मालूम हुआ कि पंजाब के खेतों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का बेहिसाब इस्तेमाल किया जाता है. इन रसायनों के कारण अनेक किसान कैंसर का शिकार हो जाते हैं और एक विशेष ट्रेन से अपना इलाज करवाने राजस्थान के गंगानगर जाते हैं. इस तरह उस ट्रेन का नाम ही कैंसर एक्सप्रेस पड़ गया है. वापस आकर जब प्रतिभा जी ने अपने आसपास नज़र दौड़ाई तो उन्हें हालात पंजाब से बहुत अलग नहीं लगे. तभी उन्होंने फ़ैसला किया कि वे जैविक खेती के लिए न सिर्फ किसानों को जागरूक करेंगी, बल्कि उनसे जैविक खेती करवाएंगी भी. शुरुआत घर से ही की, लेकिन उनके पति अपनी पारम्परिक खेती छोड़ने को तैयार नहीं थे. प्रतिभा अपना मन बना चुकी थीं, सो उन्होंने जैविक खेती पर रिसर्च करना शुरू किया. ज़मीन और अनाज के पोषक तत्व बनाए रखते हुए उपज बढ़ाने के तरीके तलाशे. देशी-विदेशी कृषि वैज्ञानिकों और कृषि तकनीक के बारे में गहन अध्ययन करने के बाद मार्केटिंग और प्राकृतिक जैविक खेती में डिप्लोमा हासिल किया, साथ ही पदम् विभूषण सुभाष पालेकर और ताराचंद वेलजी जैसी कृषि जगत की बड़ी हस्तियों से प्रशिक्षण प्राप्त किया.
इस दौरान प्रतिभा जी को यह भी समझ आया कि जैविक खेती करने के बाद किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिस कारण वे इसमें रुचि नहीं लेते. किसानों की इस समस्या को देखते हुए प्रतिभा ने एक ऐसा मार्केटिंग प्लेटफॉर्म खड़ा करने का मन बनाया, जहां उनके उत्पादों को बाज़ार और वाज़िब दाम मिल सके. लेकिन यह सब करना इतना आसान नहीं था. प्रतिभा के लिए सब कुछ नया था. किसान उन पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे. वे उनका उपहास करते और कहते – मैडम, पहले आप खेत की मेड़ पर तो चल कर दिखाओ, बाद में खेती-किसानी करना. लेकिन प्रतिभा ने हार नहीं मानी और वर्ष 2016 में ‘भूमिशा ऑर्गेनिक्स’ की शुरुआत कर मात्र 10 किसानों के साथ जैविक खेती का कार्य प्रारंभ किया. छोटे-छोटे किसानों को जोड़कर उन्हें बीज से लेकर ऑर्गेनिक खेती और मार्केटिंग में मदद की. जब उनके उत्पादन को बाजार और मुनाफ़ा दिलवाने में सफल हुईं तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा. धीरे-धीरे अन्य किसान भी उनसे जुड़ते गए. उनके समूह में मध्यप्रदेश के साथ राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के किसान भी जुड़े हुए हैं. प्रोसेसिंग यूनिट में 15 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार मिल रहा है. आज ‘भूमिशा ऑर्गेनिक्स’का सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपए से भी ज़्यादा है.
बाज़ार की अच्छी समझ होने के कारण वे किसानों को मांग के अनुरूप फसलें उगाने की सलाह देतीं हैं. समूह के किसानों से औषधीय फसलों की खेती भी करवाती हैं और उनकी उपज को सीधे हर्बल कम्पनियों को बेचती हैं, जिससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए बाज़ार में भी नहीं भटकना पड़ता और उन्हें ठीक ठाक मुनाफ़ा भी मिल जाता है.ग्रेडिंग और पैकिंग के साथ उपलब्ध मसाला उत्पादों की अच्छी खासी मांग है. प्रतिभा जी गन्ना उत्पादक किसानों को गन्ना बेचने के बजाय जैविक गुड़ बनाकर बेचने का सुझाव देती हैं. इससे किसानों को बिकवाली के लिए मिलों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. बाज़ार में अच्छी मांग के चलते किसानों द्वारा निर्मित गुड़ हाथोंहाथ बिक भी जाता है. फसलों के उत्पादन को लेकर प्रतिभा जी नए प्रयोग भी करती हैं. क्योंकि अपने अनुभव से वे इतना जान गई हैं कि किसी भी नई फसल की खेती बड़े स्तर पर करने से पहले प्रयोग करना ज़रूरी है. इसीलिए वे जब भी नई फसल का चयन करती हैं, तो उत्पादन के अनुमान के लिए पहले स्वयं के फ़ार्म पर छोटे स्तर पर उसकी खेती करती हैं और बेहतर परिणाम मिलने पर समूह के किसानों को भी प्रशिक्षित कर बड़े स्तर पर उस फसल की खेती करवाती हैं.
कृषि मंथन-मध्यप्रदेश की ब्रांड एम्बेसडर प्रतिभा जी बेस्ट प्रोजेक्ट मॉडल ऑफ़ एग्रीकल्चर (आईएआरआई -2016) भोपाल, बेस्ट वुमन इंटरप्रेन्योर (2016 -जयपुर (राजस्थान), वुमन एग्रीप्रेन्योर सम्मान (2017 –जबलपुर), समाज सेवी (2017- मुंबई), एम्बेसडर कृषि मंथन (2018 –भोपाल), कृषि भूषण सम्मान (2019-भोपाल), उत्कृष्ट समाजसेविका सम्मान (2020- मुंबई) आदि सम्मानों से नवाज़ी जा चुकीं हैं. बाजरा-आधारित उत्पादों पर काम करने के लिए उनके कृषिका नेचुरल्स स्टार्टअप को भारतीय प्रबंधन संस्थान-काशीपुर से 25 लाख रुपए का अनुदान (जनवरी 2024) मिला.
वे महिलाओं को विभिन्न कार्यों का प्रशिक्षण देने के साथ ही उनके रोजगार व आमदनी बढ़ाने हेतु भी कार्य कर रही हैं. ऐसी महिलाएं जिनके पास भूमि की समस्या है और हुनर की कोई कमी नहीं है, उन्हें कृषि की मुख्यधारा से जोड़ने हेतु प्रतिभा प्रयासरत हैं. उन्हें प्रोत्साहन देने हेतु प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘नारीशक्ति सम्मान’ का आयोजन भी करती हैं. इतना ही नहीं, वे खेती को घाटे का सौदा मानने वालों की धारणा भी बदलना चाहती हैं. वे कहतीं है- आधुनिक तकनीक से कृषि की प्रत्येक शाखा से आमदनी प्राप्त की जा सकती है. प्रतिभा जी सभी राज्यों के किसानों से जुड़कर उन्हें जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्वास्थ्य कारक उत्पाद पहुँच सकें.
प्रतिभा अपने ऑर्गेनिक फूड बिज़नेस को और बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं। 2023 को बाजरा के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाए जाने के साथ उन्होंने एक नई कंपनी, कृषिका नेचुरल्स प्रा. लि. भी शुरू की, जहां बाजरा-आधारित उत्पादों का उत्पादन और मार्केटिंग की जा रही है. बाजरा उत्पादों के निर्यात के लिए दो इंडोनेशियाई फर्म्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। अब आगे वह किसानों को और अच्छी कीमत दिलाने में मदद करना चाहती हैं। साथ ही वह ऑर्गेनिक फूड को ग्राहकों के लिए भी किफायती बनाना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाया जाए.
प्रतिभा जी के इस काम में अब उन्हें अपने पति का सहयोग भी मिलने लगा है. प्रतिभा आज जिस मुकाम पर हैं, उसमें उन्हें परिजनों खासकर सासू माँ का भरपूर सहयोग मिला. ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने बच्चों और परिवार का संभाला साथ ही प्रतिभा जी को आगे बढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहीं. पति ने कृषि क्षेत्र की बारीकियां सिखाई. उनके दोनों बच्चे बेटा और बेटी अभी अध्ययनरत है. बेटा अभी 9 वर्ष का और बेटी 16 वर्ष की है. उनकी बेटी पढाई के साथ-साथ माँ के व्यवसाय में भी रुचि लेती है और आगे चलकर कृषि के क्षेत्र में नई तकनीक के साथ इस व्यवसाय को विस्तार देना चाहती है.
संदर्भ स्रोत: स्व संप्रेषित एवं प्रतिभा जी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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