छाया : डॉ. सुचित्रा हरमलकर के फेसबुक अकाउंट से
कलाकार - संगीत एवं नृत्य
रायगढ़ घराने की सुविख्यात कथक नृत्यांगना सुचित्रा हरमलकर का जन्म मंदसौर में 5 अक्टूबर 1964 को हुआ। उनके पिता डॉ. डी.एस. डाकवाले प्रोफ़ेसर थे और आगे चलकर कुलसचिव होकर सेवानिवृत्त हुए, जबकि माँ श्रीमती सुषमा डाकवाले छोटे बच्चों के लिए अपना स्कूल चलती थीं। सुचित्रा जी चार भाई – बहनों में दूसरे स्थान पर थीं। माता-पिता दोनों शिक्षण कार्य से जुड़े हुए थे इसलिए परिवार में स्वाभाविक रूप से पढ़ाई-लिखाई पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता था, परन्तु सुचित्रा जी के पिता की खेल कूद में भी रूचि थी, वे टेनिस खेला करते थे। इसलिए बच्चों के खेलने कूदने पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया।
सुचित्रा जी की प्रारंभिक शिक्षा रीवा में हुई। बहुत छोटी उम्र में संगीत की धुन पर नाचते देखकर माता-पिता ने रीवा में स्थित शारदा संगीत महाविद्यालय में उनका नामांकन करवा दिया। वहां एक – दो साल सीखकर उन्होंने छोड़ दिया क्योंकि बड़ी बच्चियों के सामने उन पर कोई ध्यान भी नहीं देता था। सातवीं कक्षा में नृत्य सीखने के लिए झंकार संगीत महाविद्यालय में उनका नामांकन करवाया गया। एक-डेढ़ सालों में ही उनकी छिपी हुई प्रतिभा सामने आने लगी और वे अपने गुरु श्री ए.टी. बागची की प्रिय शिष्या बन गईं।
रीवा शहर के छोटे-बड़े आयोजन में मंच प्रस्तुतियों का दौर तभी शुरू हो गया। परन्तु, तब तक यह तय नहीं था कि उन्हें नृत्यांगना ही बनना है। साल 1975 में जब सुचित्रा जी की पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद के साथ-साथ नृत्य प्रशिक्षण भी चल रहा था, तभी राष्ट्रीय प्रतिभा खोज छात्रवृत्ति का विज्ञापन प्रकाशित हुआ। उनके पिताजी ने आवेदन कर दिया और दो सालों की वह छात्रवृत्ति सुचित्रा जी को मिल गई। उनके भविष्य के प्रति एक उलझन की स्थिति हमेशा बनी रही क्योंकि वे पढ़ाई, खेल और नृत्य तीनों ही क्षेत्रों में अपनी मेधा का प्रदर्शन कर रही थीं।
कक्षा में वे अव्वल आने के साथ-साथ वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेतीं। पांचवी कक्षा में उन्होंने ज़िले भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। साथ ही वे टेबिल टेनिस और बैडमिन्टन की धुरंधर खिलाड़ी मानी जाती थीं। उन्हें खेल के क्षेत्र में भी छात्रवृत्ति मिली। परन्तु उनके गुरु श्री बागची साहेब की हार्दिक अभिलाषा थी कि वे नृत्य के क्षेत्र में अपना भविष्य देखें। उस समय उनकी बातें सुनकर सुचित्रा जी मन ही मन बहुत ही बुरा लगता था क्योंकि वे खुद प्रोफ़ेसर या डॉक्टर बनना चाहती थीं।
तेरह साल की उम्र में एक अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता में उनके गुरु उन्हें लेकर इलाहबाद गए। वहां देश भर से पहुंची दक्ष नृत्यांगनाओं की प्रस्तुतियां देखकर सुचित्रा जी की हिम्मत टूट गई और उन्होंने नृत्य अभ्यास ही छोड़ दिया। उन्हें लगा कि ऐसी प्रतिभाशाली कलाकारों के समक्ष मेरी क्या बिसात। इसके बाद की समयावधि में उन्होंने अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा पढ़ाई में लगा दी जिसका अंतिम लक्ष्म था डॉक्टर बनना। हायर सेकेंड्री 80 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होने के बाद गवर्मेंट गर्ल्स कॉलेज रीवा में विज्ञान विषय लेकर उनका नामांकन करवाया गया जिसके साथ वे पीएमटी की तैयारी भी कर रही थीं।
एक बार वे कॉलेज की ओर से महाविद्यालय स्तर पर टेबल टेनिस खेलने सतना गईं। वापसी पर पिताजी ने बताया कि भोपाल जाना है। दरअसल, उसी समय चक्रधर नृत्य केंद्र हेतु छात्रवृत्ति के लिए विज्ञापन प्रकाशित हुआ और उनके पिता ने आवेदन कर दिया था। बड़े बेमन से वे पिता के साथ परीक्षा देने भोपाल गईं। वह 5 सितम्बर 1981 का दिन था, लम्बे समय से नृत्य अभ्यास न होने के बावजूद चार अन्य प्रतिभागियों के साथ उनका भी चयन हो गया,हालांकि इसके लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं।
घोर मानसिक संघर्ष के बाद सुचित्रा जी एक दिन रीवा से भोपाल आ गईं और उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी, भोपाल द्वारा संचालित चक्रधर नृत्य केंद्र में नृत्य गुरु कार्तिकराम जी एवं पं.रामलाल जी से प्रशिक्षण प्राप्त करने लगीं। चार वर्षों की जूनियर फेलोशिप के पश्चात् उन्हें दो वर्षो की सीनियर फेलोशिप भी हासिल हुई। चक्रधर नृत्य केंद्र के माध्यम से मंचों पर प्रस्तुतियों का दौर भी चल रहा था। वर्ष 1984 में कथक केंद्र, दिल्ली में सुचित्रा जी ने अपनी पहली प्रस्तुति दी।
इस बीच विज्ञान विषय लेकर स्नातक करने के मंसूबे पर पानी फिर चुका था। अत: कला विषयों से स्नातक की उपाधि हासिल की| नृत्य विषय लेकर पुनः खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई और नृत्य प्रशिक्षण दोनों की अवधि पूरी हुई और वे भविष्य की योजना बनाने लगीं परन्तु 1986 में अत्यधिक बीमार होने की वजह से घर आ गईं। जिस प्लूरिसी नामक बीमारी से वे ग्रस्त थीं, उसमें फेफड़ों में पानी भर जाता है। इस तरह एक बार फिर नृत्य का साथ छूट गया।
उस समय प्रो डाकवाले की पदस्थापना सीधी में थी। खाली समय का सदुपयोग करने के लिए उसी दौरान उन्होंने समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने का मन बनाया और स्वतंत्र छात्रा के रूप में प्रीवियस की परीक्षा दी। वर्ष 1988 में एमए फाइनल की परीक्षा वे नहीं दे बैठ पाईं क्योंकि लिटिल बैले ट्रूप के साथ उन्हें रूस जाने अवसर प्राप्त हुआ। बैले का निर्देशन श्री प्रभात गांगुली कर रहे थे। पुनः 1989 में उन्होंने एम.ए. फाइनल की परीक्षा दी और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुईं। वर्ष 1989 में वे खैरागढ़ विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में नृत्य विषय की व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुईं। लगभग पौने तीन साल वहाँ काम करने के दौरान मंच प्रस्तुतियों में भी व्यस्त रहीं।
दिसंबर 1990 में माता-पिता की इच्छानुसार उनका विवाह श्री शिशिर हरमलकर के साथ हुआ और वे कुछ समय बाद वे नौकरी छोड़कर अपनी नई नवेली गृहस्थी को सजाने संवारने के लिए इंदौर आ गईं। संयोगवश उसी समय मप्र लोकसेवा आयोग ने सहायक प्राध्यापक के लिए रिक्तियां निकालीं जिसमें समाजशास्त्र और नृत्य दोनों विषयों का उल्लेख किया गया था। सुचित्रा जी ने दोनों ही विषयों के लिए आवेदन किया और दोनों ही विषयों में चयनित हुईं एवं गवर्मेंट गर्ल्स कॉलेज इंदौर (वर्तमान में जो महारानी लक्ष्मीबाई सनात्कोत्तर कन्या महाविद्यालय) में नियुक्त हुईं।
वर्ष 1995 में उन्होंने पद्मश्री पुरु दाधीच के मार्गदर्शन में पीएचडी की। सुचित्रा जी के जीवन में तब तक करियर को लेकर बनी उलझन समाप्त हो गई और वे परिवार, नौकरी एवं मंच प्रस्तुतियों में व्यस्त रहने लगीं। अब तक देश के सभी प्रतिष्ठित मंचों पर सुचित्रा जी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। जैसे – खजुराहो नृत्य महोत्सव, कथक समारोह, नई दिल्ली, गोपी कृष्ण समारोह-मुंबई, मांडू उत्सव, उत्तराधिकार समारोह-भोपाल, पारंगत नृत्य समारोह-हैदराबाद आदि। इसके अलावा इन्होंने कई नृत्य नाटिकाओं का निर्देशन एवं सफल मंचन किया है, जिनमें उल्लेखनीय हैं अमृतस्य नर्मदा, नवलरंगिनी गाथा रघुनन्दन की, अनुकृति आदि।
कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में नृत्य पर आधारित सुचित्रा जी के लेख एवं शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर की अनेक कार्यशालाओं और शोध संगोष्ठियों में वे विशेषज्ञ के रूप में सम्मिलित हुईं। उनके मार्गदर्शन में अब तक 6 छात्राएं पीएचडी कर चुकी हैं एवं कुछ शोधरत हैं। सुचित्रा जी कार्तिक कला अकादमी, इंदौर की मानद सचिव हैं, जहां भावी पीढ़ी को कथक का पारंपरिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके अलवा वे संस्कृति विभाग, मप्र की कार्यकारिणी मंडल की दो वर्षों तक मानद सदस्या रही हैं।
उपलब्धियां :
• वर्ष 1985 में सुर श्रृंगार संसद द्वारा श्रृंगार मणि सम्मान
• वर्ष 2007 में अभिनव कला परिषद द्वारा अभिनव कला परिषद सम्मान
• वर्ष 2007 में मराठी समाज द्वारा मराठी गौरव सम्मान
• वर्ष 2015 में भोज शोध संस्थान, धार (मप्र) द्वारा पद्मश्री फड़के कला सम्मान
• वर्ष 2017 में संस्कृति विभाग, मप्र शासन द्वारा शिखर सम्मान
सन्दर्भ स्रोत : स्व संप्रेषित एवं सुचित्रा जी से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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