प्रमुख लेखिका
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गीता पुष्प शॉ का जन्म 26 अक्तूबर 1943 को अपने समय की जानी मानी लेखिका पद्मा पटरथ एवं माधवन ए.पटरथ के घर संस्कारधानी जबलपुर में हुआ जहाँ वे चार वर्ष की आयु तक रहीं। सुभद्रा कुमारी चौहान का उनके घर आना-जाना था, वे गीता जी की माँ से पुत्रीवत स्नेह रखती थीं। हरिशंकर परसाई भी पड़ोस में ही रहते थे, इसके अलावा तत्कालीन अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों का घर में समय-समय पर जमावड़ा होता ही रहता था। इसलिए गीता जी को बचपन में एक स्वाभाविक सा साहित्यिक माहौल मिला। उनके पिताजी का अक्सर अलग-अलग राज्यों में तबादला होता रहता था। परिणामस्वरूप अलग-अलग संस्कृतियों से परिचित होने और अलग-अलग भाषाएँ सीखने का अवसर भी उन्हें प्राप्त हुआ। आज वे हिन्दी -अंग्रेज़ी के अलावा उर्दू, मराठी, गुजराती, मैथिली और भोजपुरी भी बोल और समझ लेती हैं। बाद में उनका परिवार इटारसी आ गया, जहाँ के सेंट जोसेफ़ कॉन्वेंट से उन्होंने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसी समय धर्मयुग में बाल कविता प्रतियोगिता के लिए पाठकों से रचनाएं आमंत्रित की गईं और गीता जी ने पहली कविता लिखी – बरसात आ गई रे। यह कविता पुरस्कृत हुई. लेकिन लेखन का सिलसिला आगे नहीं बढ़ा। वे अपनी पढ़ाई में ज़्यादा रहीं।
होम साइंस कॉलेज,जबलपुर से आई.एस.सी. की पढ़ाई के दौरान वह हॉस्टल में रहीं, तब तक सुभद्रा कुमारी चौहान का देहांत हो चुका था, उनके बड़े पुत्र अजय ही लोकल गार्जियन बने। मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास कर लेने के उपरान्त भी उन्होंने नामांकन नहीं करवाया, क्योंकि उन्हें खून देखकर डर लगता था। गीता जी उसी कॉलेज से बी.एस.सी. करने के बाद एम. एस.सी. के लिए श्री अविनाशी लिंगम होम साइंस कॉलेज, कोयंबटूर चली गईं। इसके बाद राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित होकर होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन कार्य करने लगीं। अब तक साहित्यिक क्षेत्र में स्वयं को आजमाने का ख्याल भी नहीं आया था लेकिन धर्मयुग में दो लेख अवश्य प्रकाशित हुए।
सन 1965 में प्रसिद्ध साहित्यकार रॉबिन शॉ पुष्प से विवाह के बाद बिहार आ गईं। यहाँ का माहौल भी उनके लिए बिलकुल नया नहीं था, एक साहित्यकार परिवार का परिवेश जैसा होना चाहिए वैसा ही कुछ था। बिहार सर्विस कमीशन से चयनित होकर मगध महिला कॉलेज (पटना विश्वविद्यालय) में पढ़ाने लगीं। पति लिखते रहते थे तो उनकी प्रेरणा से गीता जी भी लिखने लगीं। हालाँकि विधा के चयन में उन्होंने अलग ही सूझ-बूझ दिखाई। रॉबिन शॉ पुष्प कहानियां, उपन्यास आदि लिखते थे, गीता जी बाल साहित्य से जुड़ गईं। उनका पहला बाल उपन्यास ‘वीनू और रेशमी टुकड़ा’ के नाम से बाल पत्रिका ‘बालक’ से धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ, बाद में यही उपन्यास वीनू और इक्कीसवीं सदी का भारत नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ। वे आकाशवाणी में वार्ता आदि के लिए भी जाती थीं जहाँ उनसे ‘नारी जगत’ कार्यक्रम के लिए रोचक वार्ताओं की मांग की जाती थी। इस मांग की पूर्ति करते-करते वह हास्य-व्यंग्य की लेखिका बन गईं। इसके बाद लेखन ने अपनी गति पकड़ ली एवं जो भी माध्यम सामने आया उसी में अपने लेखन की छाप छोड़ दी, चाहे पत्र-पत्रिका हो, आकाशवाणी हो या दूरदर्शन। आगे चलकर कई साहित्यिक (हास्य-व्यंग्य एवं बाल साहित्य) के अलावा गृह विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों सहित कई साहित्येत्तर पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। 2003 में नौकरी से सेवा निवृत्त हो गईं मगर कलम चलती रही। अक्टूबर 2014 में रॉबिन जी के गुज़र जाने के बाद गीता जी अकेली पड़ गईं तथापि जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पर फर्क नहीं पड़ा। उस एकांत को भी उन्होंने अपने और अपने पति के साहित्य से भर दिया। गीता जी ने छ: खण्डों में ‘रॉबिन शॉ पुष्प रचनावली’ का संपादन किया। वर्तमान में वे पटना में रह रही हैं एवं अभी भी कई पत्र-पत्रिकाओं से रचनाओं के लिए अनुरोध प्राप्त होने पर कलम उठा ही लेतीं हैं। इनके दो पुत्र हैं, ज्येष्ठ पुत्र संजय ओनील शॉ पुष्प मौसम विभाग में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं एवं छोटे पुत्र सुमित ऑजमंड शॉ लेखक, पत्रकार एवं फिल्म निर्माता हैं।
प्रकाशित साहित्य
- पति का मुरब्बा : 1999 : सन्मार्ग प्रकाशन, दिल्ली
- चटपटी : 2007 : अमित प्रकाशन, गाज़ियाबाद
- हे खाऊ खाए जाओ : 2008: समन्वय प्रकाशन गाज़ियाबाद
- चाट-मसाला : 2009 : समन्वय प्रकाशन, गाज़ियाबाद
- टेंशन जाएगा पेंशन लेने : 2009 : समन्वय प्रकाशन, गाज़ियाबाद
- लिंक फेल है : 2015 : समन्वय प्रकाशन, गाज़ियाबाद
बाल उपन्यास
- छोटे-छोटे जादूगर (पुरस्कृत) 1978 मिश्रा ब्रदर्स, अजमेर
- आँगन-आंगन फूल खिले : 1981 मिश्रा ब्रदर्स, अजमेर
- वीनू और इक्कीसवीं सदी का भारत: 1985, निशि प्रकाशन पटना
संपादन रॉबिन शॉ पुष्प रचनावली(छ: खण्डों में) – 2014 : अमित प्रकाशन, दिल्ली
अन्य
- कथादेश, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, कादम्बिनी, माधुरी, मनोरमा, वनिता भारती, वामा, पराग, नंदन, बालक, माध्यम, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, प्रभात खबर जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
- आकाशवाणी केंद्र, पटना, इलाहाबाद, विविध भारती, बी.बी.सी. लन्दन से हास्य-व्यंग्य, नाटिकाएँ, वार्ता, परिचर्चा, आदि प्रसारित
- दूरदर्शन केंद्र, पटना से वार्ता, परिचर्चा एवं साक्षात्कार प्रसारित
- दैनिक पत्र हिन्दुस्तान से पांच वर्षों तक हास्य-व्यंग्य पर आधारित स्थायी स्तम्भ – चटपटी प्रकाशित
- पराग के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित कथा ‘भूलन मामा’ महाराष्ट्र सरकार की चौथी कक्षा की हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘बाल भारती’ में संकलित
साहित्येतर लेखन
- हमारा घर : भाग-1 एवं 2 (कक्षा-6 के लिए)
- गृह विज्ञान(मैट्रिक स्तर के लिए) हिंदी में: इस पुस्तक का अनुवाद उर्दू, बांग्ला, मैथिली और ओड़िया में भी किया गया। इंटर गृह विज्ञान: भाग-1 एवं 2 (भारत बुक डिपो, भागलपुर)
- नूतन इंटर गृह विज्ञान: भाग-1 एवं 2 (विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा)
- आहार विज्ञान एवं आहार चिकित्सा : (विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा)
- प्रसार शिक्षा एवं संचार : (विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा)
- वस्त्र विज्ञान: (विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा)
उपलब्धियां
- · राजभाषा विभाग, बिहार सरकार द्वारा 1982 में सम्मानित एवं पुरस्कृत
- · बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान- 2003
- · बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा शताब्दी सम्मान-2019
- · महाकवि काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान -2019
संदर्भ स्रोत – स्व सम्प्रेषित
© मीडियाटिक
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