छाया : स्व संप्रेषित
प्रमुख लेखिका
• सीमा चौबे
वरिष्ठ लेखिका कृष्णा अग्निहोत्री अपनी मौलिक एवं सहज-सरल, विशिष्ट भाषा शैली के कारण साहित्य के क्षेत्र में अपना खास स्थान रखती हैं। कृष्णा जी ने अपने जीवन के यथार्थ अनुभवों के आधार पर साहित्य का सृजन किया है। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 19 कहानी संग्रह, 19 उपन्यास, 2 आत्मकथा, 4 बाल-साहित्य, 4 रिपोर्ताज और 1-1 नाटक, लघुकथा संग्रह, डायरी व संस्मरण शामिल हैं। उनकी कुछ पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होने वाली हैं।
हिन्दी की महत्वपूर्ण कथा लेखिकाओं में शुमार डॉ. कृष्णा अग्निहोत्री का जन्म 8 अक्टूबर 1934 को नसीराबाद (राजस्थान) में स्व. श्री रामचंद्र तिवारी एवं स्व. श्रीमती हीरामणि तिवारी के यहां हुआ, लेकिन कार्यक्षेत्र मध्यप्रदेश रहा। राजस्थान में जन्मी कृष्णाजी मध्यप्रदेश के खंडवा में पली-बढीं। प्राइमरी तक प्राइवेट शिक्षा ग्रहण की तथा मिशिनरी स्कूल से 8वीं तक पढ़ने के बाद यहां महिलाओं के लिए हाईस्कूल न होने पर मराठी नूतन कॉलेज महाविद्यालय में सीधे 10वीं कक्षा में दाखिला लिया। छोटी उम्र में विवाह होने के बाद विषम परिस्थितियों में इन्होंने एम.ए. (हिन्दी और अंग्रेजी) और पीएचडी की शिक्षा प्राप्त की। पिताजी ने हारमोनियम, सितार आदि कलाओं का ज्ञान कराने हेतु अलग-अलग गुरूओं से शिक्षा दिलाई। वे बेटी को समाजसेवी डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन कृष्णाजी उनकी कल्पना से परे एक लेखक बनने की दिशा में कदम बढ़ा रही थीं।
कृष्णाजी को परिवार में बचपन से ही सामाजिक, साहित्यिक व राजनैतिक माहौल मिला। मां ने गीता, रामायण के साथ अनुशासन का पाठ पढ़ाया, तो पिता ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया और भारत का इतिहास जैसी पुस्तकें हाथ में थमा दीं। मां की साहित्यिक रुचि के कारण घर में साहित्यिक खजाना भरा पड़ा था। खंडवा की लाइब्रेरी से मां जो भी पुस्तक मंगाती, कृष्णाजी भी उन्हें पढ़तीं। मात्र चौदह वर्ष की आयु तक इन्होंने सारे बंगाली लेखक, रामचरित मानस, गीता, सत्यार्थ प्रकाश, महाभारत, शरतचंद्र, बंकिमचंद्र, प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर आदि की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। बाल्यावस्था से ही अपने आसपास इन्होंने भवानी प्रसाद मिश्र, विश्वनाथ मिश्र, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, नीरज, जयप्रकाश नारायण, द्वारका प्रसाद मिश्र, रविशंकर शुक्ल आदि महान व्यक्तित्वों को अपने आसपास पाया। दादा माखनलाल, यशपाल जी, जैनेंद्र जी, अमृत लाल नागर, महादेवी जी अमृता प्रीतम, इलाचंद जोशी, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, जय प्रकाश जी, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, राजेंद्र अवस्थी, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, कवीन्द्र कालिया, माखनलाल चतुर्वेदी, नेहरु जी, इंदिरा गांधी आदि कई हस्तियों से मुलाकात व उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
माता-पिता से प्राप्त संस्कार और आसपास मिली साहित्य धरोहर के साथ लेखन की शुरूआत हुई। नौ वर्ष की आयु में इनकी पहली कविता ‘बाल विनोद’ नामक पत्रिका में छपी, जिस पर इन्हें 25 रुपये पारिश्रमिक भी मिला।
16 वर्ष की उम्र में इनका विवाह सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सत्यदेव अग्निहोत्री से संपन्न हुआ। पति के बार-बार ट्रांसफर के कारण उनकी आगे की पढ़ाई छूट गई। उनका वैवाहिक जीवन संघर्षपूर्ण, चुनौतियों से भरा रहा और अन्तत: असफल रहा, लेकिन विषम परिस्थितियों ने इनके मनोबल को और अधिक दृढ़ बना दिया। पति के विरोध के बावजूद इन्होंने बी.ए., एम.ए. (हिन्दी और अंग्रेजी) और ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी’ विषय में डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के अंडर में पीएचडी पूरी की। पति से अलगाव के बाद नौकरियों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। शुरुआत एक उर्दू हाई स्कूल में हिन्दी की शिक्षिका के रूप में हुई। पश्चात जबलपुर में कृषि विवि में दो साल पढ़ाया। इसके बाद माखनलाल चतुर्वेदी महाविद्यालय खंडवा में 26 वर्ष हिन्दी प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। रिटायर्ड होने के बाद खंडवा से इंदौर आ गई। यहां दस वर्ष लेखक संघ की अध्यक्ष रहीं।
पति से सम्बन्ध टूटने के बाद इन्होंने दूसरा विवाह किया, लेकिन ये शादी भी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और अंतत: ये मायके आ गईं लेकिन मां-पिताजी के नहीं रहने पर मायके से भी वंचित हो गईं। उस समय इनकी बेटी जीने की प्रेरणा बनी और काँटों से भरे जीवन से पगडंडी निकाल ये साहित्य साधना में व्यस्त हो गईं। धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, नवनीत, रविवार, कहानी, कादम्बिनी, हंस, नया ज्ञानोदय, आउटलुक, नई धारा, परती कथा, इंडिया टुडे, वर्तमान साहित्य, आजकल आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख निरंतर प्रकाशित।
4 दशकों से लेखन कार्य में रत कृष्णा अग्निहोत्री अनेक कहानियां व उपन्यास लिख चुकी हैं। उनके चर्चित उपन्यासों में टपरेवाले, नीलोफर, बीता भर की छोकरी आदि शामिल हैं। सभी प्रांतों में इनकी आत्म कथाओं पर अनेक पीएचडी हो चुकी हैं और छात्राएं पीएचडी कर रही हैं। इनका उपन्यास ‘आना इस देश’ बैंगलौर और पूना यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
कृष्णा जी अपने लेखन को लेकर हमेशा चर्चा में रहीं, लेकिन आलोचनाओं और निंदाओं की परवाह किये बगैर लेखन कार्य में सक्रिय रहीं। फिलहाल वे इंदौर में रहकर 85 वर्ष की उम्र में भी साहित्य क्षेत्र में सक्रिय योगदान दे रही हैं।
प्रकाशित साहित्य
कहानी संग्रह
- टीन के घेरे (अक्षर प्रकाशन, दिल्ली 1970)
- पारस
- नपुंसक
- अपने अपने कुरूक्षेत्र
- गलियाई
- याही बनारसी रंग बा
- विरासत
- दूसरी औरत
- सर्पदंश
- जिंदा आमी
- जै सियाराम
- जीना मरना
- पंछी पिजरे के
- मान भी जा सांझी
- ये क्या जगह है दोस्तो
- ऊंची-ऊंची उड़ानें
- एक पाती ऐसी भी,
- मुखौटे
उपन्यास
- बात एक औरत की
- टपरेवाले
- मैं अपराधी हूं
- बिता भर की छोकरी
- निष्कृति
- हरिप्रिया
- अभिषेक
- टेसू की कहानियां
- कुमारिकाएं
- नीलोफर
- बोनी परछाइयां
- नानी अम्मा मान जाओ,
- प्रशसते कर्माणि
- आना इस देश
- पुरवाई, दिल से
- पंचम की फेल
- गए जीते सब धाय।
बाल साहित्य
- अक्षरों की हड़ताल
- अपना हाथ जगन्नाथ
- एक था रौबी
- बुद्धिमान सोनू
- समय की कीमत
- नीली आंखें वाली गुडिय़ा
- सूर्यतपा, गुलगुले
आत्मकथा
- लगता नहीं है दिल मेरा
- और और औरत
लघु कथा
- कठे जाणा
डायरी
- ‘कहानी अपनी अफसाने अपने’
संस्मरण
- ‘याद दिहानी’
प्रौढ़ साहित्य
- ग्राम्य सेविका
- सेवा मोती प्रौढ़ सेवा केंद्र इंदौर
उपलब्धियां
- वर्ष 1995 में म.प्र. लेखक संघ द्वारा अक्षर आदित्य सम्मान
- वर्ष 1997 में साहित्य परिषद भोपाल द्वारा आत्मकथा ‘लगता नहीं है दिल मेरा’ के लिए पन्नालाल पुन्ना लाल बक्शी पुरस्कार
- वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य समिति द्वारा शताब्दी सम्मान
- करवट कला परिषद् भोपाल द्वारा रतन भारती पुरस्कार
- गांधी स्मृति सम्मान सहित कई राष्ट्रीय एवं पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान से राज्य स्तरीय अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।
संदर्भ स्रोत – स्व सम्प्रेषित एवं कृष्णा जी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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