आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट  : घरेलू हिंसा के मामलों में आवेदन

blog-img

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट  : घरेलू हिंसा के मामलों में आवेदन
की तिथि से ही भरण-पोषण का भुगतान किया जाए

हैदराबाद। हाल ही में एक फैसले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में अंतरिम भरण-पोषण के मुद्दे को संबोधित किया, जिसमें आवेदन की तिथि से भरण-पोषण देने के महत्व पर जोर दिया गया। यह मामला 24 अप्रैल 2019 को शुरू हुआ, जब एक विवाहित महिला और उसके नाबालिग बच्चे ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का दावा करते हुए आवेदन दायर किया। 20 अगस्त 2019 को ट्रायल कोर्ट ने पति को याचिका दायर करने की तिथि से प्रभावी रूप से पत्नी को 20 हजार रुपये और बच्चे को 10 हजार रुपये का मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया।

पति ने इस फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट में अपील की। 10 अगस्त 2023 को सेशन जज ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार कर ली। भरण-पोषण की मात्रा को बरकरार रखा लेकिन प्रभावी तिथि को संशोधित कर 1 अप्रैल 2022 कर दिया, यह मानते हुए कि अपीलकर्ता COVID-19 महामारी और इसके कारण हुए वित्तीय बोझ के कारण उन वर्षों के लिए भरण-पोषण देने की स्थिति में नहीं है। इस संशोधन से असंतुष्ट पत्नी और बच्चे ने वर्तमान आपराधिक पुनर्विचार मामला दायर किया।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अपीलीय अदालत का संशोधन उन तथ्यों पर आधारित था, जो रिकॉर्ड में नहीं थे और असंगत थे। उन्होंने तर्क दिया कि गलत आदेश से उन्हें भरण-पोषण में 9,90,000 रुपये का नुकसान होगा। दूसरी ओर प्रतिवादी ने तर्क दिया कि अंतरिम उपाय के रूप में अपीलीय अदालत के संशोधन को अन्यायपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए कृपा सागर ने पाया कि अपीलीय अदालत का निर्णय कई कारणों से अनुचित था। सबसे पहले अपीलीय अदालत ने पति के रोजगार पर COVID-19 महामारी के प्रभाव के बारे में निराधार दावों पर अपना निर्णय आधारित किया, जो रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं थे। अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(2) का हवाला दिया, जो आदेश की तारीख या आवेदन की तारीख से भरण-पोषण का भुगतान करने की अनुमति देता है।

राजनेश बनाम नेहा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, जिसने न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सभी मामलों में आवेदन की तारीख से भरण-पोषण देने की सिफारिश की थी, अदालत ने पति के अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करने के कानूनी दायित्व पर जोर दिया, जिसमें कहा गया कि उनकी जरूरतों को याचिका की तारीख से संबोधित किया जाना चाहिए। 

न्यायालय ने कहा, "नाबालिग बच्चे और कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के भरण-पोषण से संबंधित सिद्धांत पति पर उन्हें भरण-पोषण करने के लिए कानूनी दायित्व की ओर संकेत करते हैं और जब पत्नी और नाबालिग बच्चे को पति से ऐसे भत्ते नहीं मिल रहे हों तो वे न्यायालय के समक्ष उचित याचिका दायर करके राहत पाने के हकदार हैं। याचिका की तिथि पर उनके भरण-पोषण की आवश्यकता पर न्यायालय को विचार करना चाहिए और जब एक बार यह पाया गया कि पत्नी और बच्चा अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। पति अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है तथा उसके पास पर्याप्त साधन हैं तो उसने भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया या उपेक्षा की, तो याचिका दायर करने की तिथि से भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश देना सामान्य रूप से सही लगता है।"

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालत का मूल आदेश कानून के अनुसार था और अपीलीय अदालत का हस्तक्षेप गलत था और प्रस्तुत सामग्री के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने आपराधिक पुनर्विचार की अनुमति दी अपीलीय न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया तथा आवेदन की तिथि अर्थात 24 अप्रैल 2019 से भरण-पोषण देने के लिए निचली अदालत का आदेश बहाल कर दिया।

संदर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



केरल हाईकोर्ट : मां बुरी नहीं हो सकती,
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : मां बुरी नहीं हो सकती, , स्तनपान मां और बच्चे का मौलिक अधिकार

कोर्ट ने एक चाइल्ड वेलफयर कमेटी के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें स्तनपान करने वाले एक बच्चे की कस्टडी उसके पिता को सौंप...

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : सात साल से अलग रह रहे
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : सात साल से अलग रह रहे , जोड़े को एक साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता

कुरुक्षेत्र निवासी पत्नी की याचिका को मंजूर करते हुए हाईकोर्ट ने दिया तलाक का आदेश

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के योग्य होने के कारण
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : पत्नी के योग्य होने के कारण , भरण-पोषण से इनकार नहीं किया जा सकता

पति ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि उसकी पत्नी शिक्षित है और पहले से नौकरी करती रही है, इसलिए उसे मासिक खर्च की मांग...

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : तलाक के बाद ससुराल
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : तलाक के बाद ससुराल , में नहीं रह सकती महिला

माँ, भाई और बहन पर लगाया था घरेलू हिंसा का आरोप

बॉम्बे हाई कोर्ट : नॉमिनी होने भर से
अदालती फैसले

बॉम्बे हाई कोर्ट : नॉमिनी होने भर से , दूसरी पत्नी पेंशन की हकदार नहीं

हाईकोर्ट का पेंशन पर अहम फैसला -• दूसरी पत्नी को पति का उत्तराधिकारी मानने से इनकार किया